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Blog / 24 Feb 2020

(राष्ट्रीय मुद्दे) धार्मिक स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट के 7 सवाल (Supreme Court 7 Questions on Religious Freedom)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) धार्मिक स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट के 7 सवाल (Supreme Court 7 Questions on Religious Freedom)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): सत्य प्रकाश (वरिष्ठ पत्रकार), मुहम्मद इसा हकीम (सुप्रीम कोर्ट के वकील)

चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता में संविधान पीठ ने धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे से संबंधित मुद्दों के साथ ही अलग अलग धार्मिक पंथों की 'ज़रूरी धार्मिक परंपराओं' की न्यायिक समीक्षा पर 17 फरवरी यानि सोमवार को सुनवाई शुरू हुई । संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एम एम शांतानागौदर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी , जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।

कोर्ट इस मुद्दे पर भी गौर कर रहा है कि क्या कोई व्यक्ति किसी आस्था विशेष से संबंधित नहीं होने के बाद भी उस धर्म की धार्मिक परंपराओं पर सवाल उठाते हुए जनहित याचिका दायर कर सकता है। ये सवाल सबरीमला मामले में शीर्ष अदालत के फैसले से उठे हैं।

संविधान पीठ धार्मिक मामलों में न्यायिक अधिकार के दायरे पर भी विचार कर रही है और उसने इस संबंध में मंदिरों में आने वाले चढ़ावे या दान देने की परपंरा का उदाहरण दिया और कहा कि यह धार्मिक परपंरा का हिस्सा है। पीठ ने साथ ही यह भी कहा, "लेकिन अगर इस धन का इस्तेमाल आतंकवाद या कैसीनो चलाने आदि के लिए होता है तो यह धर्म का पंथनिरपेक्ष हिस्सा है और इसे कानून द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।"

संविद्धान के अनुच्छेद 14 के मुताबिक़ संविधान सभी को सामान अधिकार देता है इसके अलावा धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है जिसके तहत हर धर्म और पंथ को एक आज़ादी मिली है ।बराबरी के हक़ और धार्मिक आज़ादी में कौन सा अधिकार ज़्यादा तवज़्ज़ो रखता है इसका निर्धारण सर्वौच्च न्यायलय अपनी सुनवाई के दौरान करेगी ।सुप्रीम कोर्ट चाहती है की धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में एक न्यायिक नीति तैयार की जा सके ।सितम्बर 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सबरीमाला मंदिर में फैसला देते हुए 10 -50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर प्रवेश की रोक व्यवस्था को ख़त्म करने का आदेश दिया था ।उसके बाद इस फैसले के खिलाफ कई पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गयीं थीं ।संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 25 से 28 तक वर्णित अधिकारों को धर्म की स्वतंत्रता के अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है ।

पीठ ने यह भी कहा कि किसी धार्मिक न्यास की 'दान, सफाई और स्वास्थ्य' से संबंधित गतिविधयों को भी कानून से नियंत्रित किया जा सकता है।

केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बहस शुरू करते हुए कहा, "भले ही यह अनिवार्य धार्मिक परंपरा हो, इसे नियंत्रित किया जा सकता है अगर यह संविधान के अनुच्छेद 26 में प्रदत्त तीन आधारों (लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य) पर असर डालती हो।"

'मानव बलि' और 'सती' प्रथाओं को गैरकानूनी करार दिए जाने के उदाहरण देते हुए पीठ ने कहा कि यही हमारे संविधान की विशिष्टता है।

मेहता ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला दिया और कहा कि सभी व्यक्तियों को लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के इतर धार्मिक स्वतंत्रता है और प्रत्येक धार्मिक पंथ को अपने धार्मिक संस्थान की स्थापना करने और उनका प्रबंध करने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि इनमें दो विशेषताएं थीं जो उपस्थित पक्षकारों को प्रभावित करती थीं और जिनमें एक कानून विशेष को चुनौती दी गई थी।

इस पीठ ने कहा, "किसी व्यक्ति से एक विशेष तरह से 'नमाज' पढ़ने के लिये कहना किसी व्यक्ति के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप के समान है।" पीठ ने कहा की कोई भी धर्म या पंथ का अनुयायी किसी भी धर्म की मान्यताओं पर सवाल उठा सकते हैं

क्या है मामला?

दरअसल में सुप्रीम कोर्ट ने सात सवालो के जरिये आस्था से जुड़े कानूनी मुद्दों का परीक्षण करने की तैयारी की thee । सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार व विभिन्न धार्मिक पंथों के अधिकारों के बीच गुंजाइश और दायरा परीक्षण करने का फैसला किया है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता व आस्था से संबंधित मुद्दों से जुड़े सात सवाल तैयार किए । इस पीठ ने सबरीमला मामले के साथ ही मस्जिदों और दरगाहों में महिलाओं के प्रवेश और गैर पारसी व्यक्ति से विवाह करने वाली पारसी महिला को अज्ञारी के पवित्र अग्नि स्थल पर प्रवेश से वंचित करने की परंपरा से जुड़े मुद्दे बड़ी पीठ के पास भेजे थे। जिससे धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामलों के बारे में एक न्यायिक नीति तैयार की जा सके

क्या हैं सात सवाल?

  1. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दायरा और मायने क्या हैं
  2. अनुच्छेद 25 के तहत व्यक्ति को मिली धार्मिक स्वतंत्रता और अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संस्थान को मिले अधिकार के बीच क्या संबंध और संतुलन होगा
  3. अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संस्थान को मिला अधिकार क्या संविधान के भाग तीन मे दिये गए अन्य मौलिक अधिकारों के प्रावधानों के आधीन है
  4. अनुच्छेद 25 और 26 के तहत दिये गए शब्द नैतिकता (मोरेलिटी) का क्या दायरा और मायने हैं और क्या इसमें संवैधानिक नैतिकता शामिल है
  5. अनुच्छेद 25 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता में दी गई धार्मिक परंपरा को किस हद तक कोर्ट परख सकता है या दखल दे सकता है
  6. अनुच्छेद 25(2)(बी) के तहत दिए गये शब्द सेक्शन आफ हिन्दू का क्या मतलब है
  7. क्या किसी धार्मिक समूह या धार्मिक संस्था से संबंध न रखने वाला व्यक्ति जनहित याचिका के जरिए उस धार्मिक समूह या धार्मिक संस्था में प्रचलित परंपरा पर सवाल उठा सकता है।

कौन कौन हैं पक्षकार?

इस मामले में कोर्ट ने श्वेतांबर जैन कम्युनिटी को भी पक्षकार बनने की इजाजत दे दी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट मे एक मामला जैन धर्म में प्रचलित संथारा प्रथा का भी लंबित है। इसके अलावा वरिष्ठ वकील राजीव धवन, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन दरगाह के एक पीरजादे अल्तमश निजामी को भी पक्ष रखने की कोर्ट ने इजाजत दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने से रोकी गईं दो महिलाओं को भी कोर्ट ने बहस के दौरान पक्ष रखने की इजाजत दी है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट नें महिलाओं से भेदभाव के उपरोक्त लंबित मामलों के पक्षकार भी बहस करेंगे।पिछली सुनवाई में 9 जजों की पीठ ने साफ किया था कि वो सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के साथ-साथ मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश, एक गैर-पारसी से शादी करने वाली पारसी महिलाओं को 'अगियारी' में प्रवेश पर रोक और दाउदी बोहरा समुदाय के बीच महिलाओं के खतना की परंपरा पर भी सुनवाई करेगी।