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Blog / 17 Jan 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत में सूफ़ी आंदोलन (Sufi Movement in India)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत में सूफ़ी आंदोलन (Sufi Movement in India)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): डा. नजफ़ हैदर (इतिहास के प्रोफ़ेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), प्रो. बोध प्रकाश (दिल्ली विश्वविद्यालय)

सन्दर्भ:

सूफी मत का बुनियादी सिद्धान्त प्रेम है। सूफी परम्परा के मुताबिक़ ईश्वर से प्रेम करना तो ज़रूरी है ही लेकिन उसके द्वारा बनाये गए इस पूरे संसार से भी मोहोब्बत रखनी चाहिए। सूफी मतों के अनुसार जब आप ऐसा करते हैं तो आपको ये जानने की ज़रूरत नही होती है कि वो शख़्स किस मज़हब से है या फिर किस मसलक से । सूफीवाद पूरी तरह से दार्शनिक आधारों पर खड़ा हुआ था। सूफीवाद की इन्हीं सब खूबियों के वजह से सूफी को मानने वाले लोग कट्टरपंथी इस्लामियों से अलग हुए और सूफी का प्रसार भी बहुत तेज़ी से हुआ।

भारत में सूफी मत के कई सिलसिले हैं। जिन्हे चिश्तीया, सुहरावर्दीया, क़ादरीया, नक़्शबंदिया और वारसी जैसे कई अन्य सिलसिलों के नाम से जाना जाता है । भारत में सूफी का सबसे पहला सिलसिला 1192 में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती से शुरू हुआ। ख्वाजा मुइनुद्दीन सबसे पहले लाहौर आये और बाद में अजमेर को उन्होंने अपना ठिकाना बनाया। जिसके बाद सूफी मत राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, पंजाब, और बिहार जैसे कई अन्य राज्यों में फ़ैल गया। चिश्ती सिलसिले के सूफी संत समाज सेवा से वास्ता रखते थे। इनका व्यक्तित्व काफी आकर्षक था और इन्होने कई भारतीय रीति रिवाजो को भी अपनाया था। चिश्ती सिलसिले के सूफी संतों को रजवाड़ों में रहना, पैसे इकठ्ठा करना, और सन्यासी परम्पराओं से गुरेज़ था। साथ ही चिश्ती सिलसिले के लोग काफी लिबरल भी थे। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के सबसे मशहूर शागिर्द थे। जिनकी संगीत में काफी दिलचस्पी थी।

इसके अलावा सुहारवर्दी सिलसिले की शुरुआत जलालुदीन तबरीजी और बहाउदीन जकारिया ने की। सुहारवर्दी सिलसिला चिश्ती सिलसिले से बिल्कुल अलग था। इस मत के सूफी संत अमीरों और सुल्तानों से मेल जोल रखने , पैसे जमा करने और आराम पसंद जीवन में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि यदि दिल साफ है, तो पैसों को जमा करना और ज़रूरतमंदों को देने में कोई दोष नहीं है। जबकि ये ज़्यादातर पैसों को अपने सुख - सुविधा के लिए इस्तेमाल करते थे।

फिरदौसी सिलसिला बिहार में ज़्यादा सक्रिय रहा। इसके शुरुआत मध्य एशिया के सैफुद्दीन बखरजी ने की। इसके आलावा इस सिलसिले के संतों ने इस्लाम के सिद्धांतों में काफी सुधार भी किए। कादिरी सिलसिले की शुरुआत सैय्यद मुहम्मद गिलानी ने की। इस सिलसिले के सूफी संतों का मानना था कि वो ईश्वर से सीधा बातचीत करने में सक्षम हैं। जबकि सूफी सिलसिले में रूढ़िवादी विचारों वाले नक्शबंदी सिलसिले को पीर मुहम्मद के लोगों ने चलवाया। जिसने अकबर की उदार नीतियों का काफी विरोध किया।

दुनिया में सबसे पहले सूफियों की पहचान अरब में हुई। सूफी लोगों को 8 वीं और 9वीं शताब्दी के दौर से ही देखा जा रहा है। जबकि भारत में सूफी परंपरा की शुरुआत 12 वीं शताब्दी के आखिर में हुई। तुर्की आक्रमण के दैरान सूफी भारत आए, जिसे महमूद गजनवी की पंजाब विजय से जोड़ कर देखा जाता है। लम्बे वक़्त तक सूफी लोगों को उनके पहनावे यानी ऊनी कपड़ों के ज़रिये पहचाना जाता था। लेकिन बाद में सूफी को लेकर लोगों के अलग - अलग मत सामने आये । कुछ लोगों का कहना है कि, सूफी शब्द की उत्पत्ति सूफ यानी ऊन से हुई। जबकि कुछ लोग इसे ग्रीक भाषा के सोफिया और कुछ वहदत उल बुजूद सिद्धांत से जोड़ कर देखतें हैं। वहदत उल बुजूद सिद्धांत का मतलब है कि ईश्वर एक है, और वो दुनिया की सभी चीज़ों के पीछे मौजूद है।

सूफी सिलसिला इस्लाम की ही एक परम्परा है। जिसमें और भी परम्पराओं के लोग जुड़ते गए और इसको प्रभावित किया। इसके अलावा सूफी परम्परा और भक्ति परम्परा का आपस में गहरा सम्बन्ध रहा है।

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