(राष्ट्रीय मुद्दे) कैग पर सवाल (Question on CAG)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव, भारत सरकार), परंजॉय गुहा ठाकुरता (आर्थिक मामलों के जानकार)
सन्दर्भ:
चर्चा में क्यों?
रक्षा खरीद से जुड़े रफाल सौदे को लेकर विपक्ष ने सरकार पर कई आरोप लगाएं हैं। इस बजट सत्र यानी 16वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के ख़त्म होने से एक दिन पहले सरकार ने विपक्ष के ज़बरदस्त विरोध के बीच रफ़ाल सौदे पर कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटरल जनरल यानी कैग की रिपोर्ट लोकसभा में पेश की।
वर्तमान में क्या आरोप है कैग पर?
हितों के टकराव का आरोप लगाते हुए विपक्ष ने नियंत्रक और महालेखा परीक्षक राजीव महर्षि से अनुरोध किया था कि वह 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के करार की ऑडिट प्रक्रिया से खुद को अलग कर लें, क्योंकि तत्कालीन वित्त सचिव के तौर पर वह राफेल वार्ता का हिस्सा रहे थे। विपक्ष ने यह भी कहा कि राजीव महर्षि द्वारा संसद में राफेल पर रिपोर्ट पेश करना नैतिक रूप से सही नहीं होगा।
संविधान में कैग का ज़िक्र
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में कैग का ज़िक्र आता है। सीएजी को हिंदी में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक भी कहते हैं। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक कहा जाता है और ये इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट डिपार्टमेंट का हेड होता है। डा. अम्बेडकर ने कैग को भारतीय संविधान का सबसे अहम् प्राधिकारी बताया था। ये कैग रिपोर्ट ही था जिसने कोयला और 2 जी स्पेक्ट्रम जैसे घोटालों को उजागर किया था।
कैग की नियुक्ति, कार्यकाल और बर्खास्तगी
- सीएजी को भारत का राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री की सिफारिश पर नियुक्त करता है।
- इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र जो भी पहले पूरा होता हो, निर्धारित किया गया है, किंतु यह किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है।
- कैग को हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाए जाने जैसी ही है। मतलब कि उसे सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विशेष बहुमत से राष्ट्रपति के द्वारा हटाया जा सकता है।
कैग के कर्तव्य
- अनुच्छेद-149 से 151 के तहत कैग के कर्तव्यों और शक्तियों का उल्लेख किया गया है।
- संविधान के अनुच्छेद 149 में बताया गया है कि कैग के कर्तव्यों और शक्तियों को संसद तय करेगा। इसीलिए संसद ने 1971 में 'सीएजी के कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें' नाम से एक अधिनियम पारित किया, जिसे 1976 में संशोधित भी किया गया।
- इसका काम केंद्र, राज्य सरकार और सरकारी संगठनों के सभी खर्चों का ऑडिट करना है यानी हर उस संस्था का ऑडिट जिसमें जनता का पैसा लगा होता है।
शक्तियां
कैग अपने ऑडिट के काम को सही तरीके से अंजाम दे सके इसके लिए उसे कई शक्तियां दी गई हैं।
- ये ऑडिट के तहत आने वाले किसी कार्यालय या संगठन और इसके सभी लेन-देनों की जांच कर सकता है, रिकार्ड, पेपर या दस्तावेज मांग सकता है।
- साथ ही सम्बंधित कार्यकारी से प्रश्न भी पूँछ सकता है।
- ऑडिट की सीमा और स्वरूप कैसा हो कैग इस पर भी निर्णय ले सकता है।
कैग के काम करने का तरीका
कैग तीन प्रकार के रिपोर्ट तैयार करता है –
- अनुपालन लेखापरीक्षा
- वित्तीय सत्यापन लेखापरीक्षा और
- निष्पादन लेखापरीक्षा
कैग ऑडिट को दो भागों में बांटा गया है–
- रेग्युलेरिटी ऑडिट और
- परफॉर्मेंस ऑडिट
रेग्युलेरिटी ऑडिट में फाइनैंशल स्टेटमेंट का ऐनालिसिस किया जाता है और देखा जाता है कि उसमें सभी नियम-कानून का पालन किया गया है या नहीं। इसे कम्पलायंस ऑडिट भी कहते हैं।
परफॉर्मेंस ऑडिट में कैग यह पता करता है कि क्या सरकारी प्रोग्राम शुरू करने का जो मकसद था, वह कम से कम खर्च में सही तरीके से हासिल हो पाया है या नहीं।
कैग अपना स्टाफ कहाँ से पाता है?
सीएजी का अपने रोल को निभाने के लिए भारतीय लेखा तथा लेखापरीक्षा विभाग यानी आईएएंडएडी द्वारा मदद की जाती है। इस विभाग अधिकारियों को या तो यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता है या फिर ग्रुप बी से प्रमोशन करके शामिल किया जाता है। इसके अलावा कुछ अधीनस्थ कर्मचारी भी होते हैं।
कैग द्वारा सौंपे गए रिपोर्ट का क्या किया जाता है?
दरअसल कैग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के माध्यम से संसद की कई समितियों को देती है। इन समितियों में लोक लेखा समिति यानी पीएसी और सार्वजनिक उपक्रम समिति यानी कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग्स का नाम आता है। अब ये समितियां रिपोर्ट की स्क्रूटनी करती हैं और फैसला करती हैं कि क्या उसमें सभी पॉलिसी का पालन किया गया है। कैग ये भी देखता है कि क्या किसी सरकारी निकाय की तरफ से कोई गड़बड़ी तो नहीं की गई है। फिर मामले को चर्चा के लिए संसद में पेश किया जाता है और उस पर कार्रवाई की जाती है।
क्या कैग पर राजनीतिक दबाव बनाया जा सकता है?
- कैग को सरकार की आमदनी और खर्च पर नजर रखने के लिए बनाया गया है। ये वो प्राधिकारी है जिसे भारतीय संविधान द्वारा स्थापित किया गया है यानी यह सरकार के प्रभाव क्षेत्र से बाहर है।
- कैग की नियुक्ति देश के राष्ट्रपति द्वारा होती है और पद से हटाने की प्रक्रिया उसी तरह है जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जाता है। यानी कैग को आसानी से नहीं हटाया जा सकता है।
- कैग का वेतन और सेवा की दूसरी शर्तें तय करने का अधिकार संसद के पास होता है और नियुक्ति के बाद उसमें ऐसा कोई बदलाव नहीं किया जा सकता जिससे कैग अधिकारी को नुकसान हो।
- इसको अपने खर्चे के लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना पड़ता क्योंकि कैग के ऑफिस के प्रशासनिक खर्चे भारत के संचित निधि से निकाले जाते हैं।
कैग पर और भी आरोप लगते रहे हैं
- कैग केवल तभी ऑडिट कर सकता है जब पैसा खर्च किया जा चुका होता है। ऐसे में सरकारी पैसे के दुरुपयोग रोकने का जो असल मक़सद है वो प्रभावी तरीके से पूरा नहीं हो पाता है।
- इसके अलावा, कैग कार्यपालिका द्वारा किए गए व्यय से संबंधित दस्तावेजों नहीं मांग सकता है।
- वहीं दूसरी ओर, कैग पर कार्यपालिका द्वारा बार-बार मनमानी का आरोप लगाया जाता है।
- कैग पर कार्यकारी सरकार के नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया लगता रहा है।
- कई बार सरकारी संगठनों के पास किसी प्रोग्राम के खर्च को लेकर बेहतर आईडिया होता है लेकिन कैग के डर से अधिकारी कोई इनिशिएटिव नहीं लेते हैं।