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Blog / 13 Jul 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) शहरीकरण की समस्याएं (Problems of Urbanization)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) शहरीकरण की समस्याएं (Problems of Urbanization)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रो. अमिताभ कुंडु (शहरीकरण के जानकार), निशांत सिंह (शोध छात्र, IIT दिल्ली)

चर्चा में क्यों?

मानसून आते ही हर साल देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में मूसलाधार बारिश होती है। और बारिश शुरू हुई नहीं कि थोड़ी ही देर में शहर के कई इलाकों में जलजमाव का नज़ारा दिखने लगता है। कहीं कमर तक लगे पानी में सैकड़ों गाड़ियां फंस जाती हैं, तो कहीं सड़कों पर जाम लग जाता है। लोगों के घर के सामान पानी में बह रहे होते हैं। हर साल बड़ी तादाद में लोग बाढ़ की भेंट चढ़ जाते हैं और करोड़ों रुपए की बर्बादी होती है। आम जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है।

इस बार भी मुंबई में जोरदार बारिश हुई है जिसने पिछले 44 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। मगर ताज़्जुब की बात है कि हम हर साल इस समस्या से जूझते हैं लेकिन आज तक इसके लिए कोई ठोस उपाय नहीं ढूंढ़ पाए। ऐसे में हमारी शहरी प्लानिंग की व्यवस्था पर सवाल उठाना लाज़मी है।

किसी भी क्षेत्र को शहरी क्षेत्र कब कहा जाता है?

भारत की जनगणना 2011 के मुताबिक़

  • अगर किसी इन्सानी बस्ती की आबादी में 5000 या उससे ज्यादा लोग हों,
  • इस आबादी के कम से कम 75 फीसद लोग गैर-कृषि व्यवसाय में लगे हों,
  • वहाँ जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. से ज़्यादा हो,
  • साथ ही यहाँ कुछ और विशेषताएँ मसलन उद्योग, बड़ी आवासी बस्तियां, बिजली और सार्वजनिक परिवहन जैसी व्यवस्था हो तो इस बस्ती को नगर की परिभाषा के तहत माना जाता है।

क्या है शहरीकरण?

शहरी क्षेत्रों के भौतिक विस्तार मसलन क्षेत्रफल, जनसंख्या जैसे कारकों का विस्तार शहरीकरण कहलाता है। शहरीकरण भारत समेत पूरी दुनिया में होने वाला एक वैश्विक परिवर्तन है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़, ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का शहरों में जाकर रहना और वहाँ काम करना भी 'शहरीकरण' ही है।

भारत में शहरीकरण से जुड़े आंकड़े

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मौजूदा वक़्त में दुनिया की आधी आबादी शहरों में रह रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों और शहरों में रहने लगेगी और तब तक विश्व की आबादी का सत्तर फीसद हिस्सा शहरों में रह रहा होगा।

  • संयुक्त राष्ट्र के ही एक अन्य आंकड़े के मुताबिक साल 2018 से 2050 के बीच बढ़ने वाली आबादी में पैंतीस फीसद हिस्सेदारी भारत, चीन और नाइजीरिया की होगी। अनुमान है कि साल 2050 तक भारत में 41.6 करोड़, चीन में 25.5 करोड़ और नाइजीरिया में 18.9 करोड़ शहरी आबादी बढ़ जाएगी।
  • ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के एक स्टडी के मुताबिक़ साल 2019 और 2035 के बीच सबसे तेजी से बढ़ने वाले सभी शीर्ष 10 शहर भारत में हैं।
  • साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़, हमारे देश की जनसंख्या का 31.16 फीसद हिस्सा शहरों में रहता है लेकिन अगर सेटेलाइट से मिली तस्वीरों को आधार बनाया जाए तो दो तिहाई यानी तिरसठ फीसद भारत शहरी नज़र आएगा।
  • भारत की शहरी आबादी का लगभग 17.4% झुग्गी-झोपड़ी में रहता है।
  • जनगणना 2011 के अनुसार 2.9% शहरी घर टूटे-फूटे हालत में हैं।
  • शहरी ग्रीष्म द्वीप प्रभाव के कारण दिल्ली 4.12 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है। आपको बता दें कि अर्बन हीट आइलैंड यानी शहरी ग्रीष्म द्वीप ऐसे महानगरीय क्षेत्र को कहा जाता है, जो मानवीय गतिविधियों के चलते अपने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों मुक़ाबले ज़्यादा गर्म होता है।
  • शहरी क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 70% योगदान करते हैं लेकिन भूमि आधार पर मात्र 4% का हक़ रखते हैं।

शहरीकरण का कारण

शहरीकरण के कई कारण रहे हैं लेकिन व्यापक आधार पर इसे तीन वर्गों में बांटा जा सकता है - (i) कुछ लोग शहरों की तरफ आकर्षित होकर यहाँ रहने के लिए आते हैं (ii) कुछ लोग मज़बूरीवश आते हैं (iii) साथी ही, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें किसी विशेष कारण के चलते शहरों की तरफ आना पड़ता है। बहरहाल अगर कुछ खास कारणों पर ग़ौर करें तो इनमें निम्नलिखित वजहों को शुमार किया जा सकता है-

  • द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप सरकारी सेवाओं में विस्तार
  • भारत-विभाजन के दौरान लोगों का पलायन
  • औद्योगिक क्रांति
  • ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना - जिसमें भारत के आर्थिक विकास के लिए शहरीकरण को लक्ष्य बनाया गया था।
  • बेहतर आर्थिक अवसरों के लालच और रोज़गार की तलाश में लोग शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी सुविधाएं मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य और ट्रांसपोर्टेशन आदि।
  • साल 1990 के बाद प्राइवेट सेक्टर का विकास
  • ग्रामीण क्षेत्रों में जोत की ज़मीन का कम होना, परिवार का बड़ा आकार और जाति प्रथा जैसे दूसरे ऐसे कारक है जिसके चलते लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
  • कृषि में होने वाले नुकसान की वज़ह से लोग कृषि छोड़कर रोजगार की तलाश में शहर आते हैं। कृषि मंत्रालय के मुताबिक़ खेती पर निर्भर लोगों में से 40 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनको अगर विकल्प मिले तो वे तुरंत खेती छोड़ देंगे। क्योंकि खेती करने में धन की लागत बढ़ती जा रही है।

भारत में शहरीकरण की प्रकृति

विश्व बैंक की साल 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत का शहरीकरण Hidden and Messy यानी "अघोषित और अस्तव्यस्त” है। भारत में शहरी फैलाव, देश की कुल आबादी का 55.3 प्रतिशत है और आधिकारिक जनगणना के आंकड़े इसे केवल 31 फ़ीसदी ही बताते हैं।

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि अकेले दक्षिण एशिया में क़रीब 130 मिलियन लोग अस्थायी बस्तियों जैसे कि मलिन बस्तियों और अव्यवस्थित रूप से फैले क्षेत्रों में निवास करते हैं।
  • अघोषित यानी छिपा हुआ शहरीकरण भारत की आबादी के बड़े हिस्से में देखा जाता है जिसमें शहरी विशेषताएं तो हैं लेकिन ये आधिकारिक रूप से शहरी क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किए जाने के मानदंडो को पूरा नहीं करते हैं।
  • बड़े शहरों में जनसंख्या वृद्धि ज़्यादा तेज़ी से हुई है वहीं इसके मुक़ाबले छोटे शहरों में शहरीकरण की दर या तो स्थिर रही है या फिर कम हुई है।
  • जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय ज़्यादा है वहां पर शहरीकरण की दर भी ज़्यादा है वहीँ इसकी तुलना में जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय कम है वहां पर शहरीकरण की दर भी कम है।

शहरीकरण का महत्व

विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़, दुनिया की 54 फ़ीसदी से अधिक आबादी अब शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। ये आबादी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 80 प्रतिशत का योगदान करती है और दो-तिहाई वैश्विक ऊर्जा का उपभोग करती है। साथ ही 70 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए भी जिम्मेदार है।

  • शहरीकरण के कारण आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  • उत्पादकता को बढ़ाता है और विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं में रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करता है।
  • शहरीकरण के चलते तमाम अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं को एक दूसरे को जानने और समझने का अवसर मिलता है।
  • प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी के चलते लोगों रहन-सहन का स्तर बेहतर होता है।
  • शहरीकरण और शिक्षा के विकास के कारण जाति-प्रथा जैसी व्यवस्थाएं अब ध्वस्त हो रही हैं।

शहरीकरण और भारतीय परिवार

भारत में पारिवारिक संरचना और व्यवस्था पर शहरीकरण का असर देखने को मिलता है। परिवार के सदस्यों के आपसी रिश्ते, दो परिवारों के बीच का रिश्ता और परिवार के काम - इन सब पर असर पड़ा है। शहर में जॉइंट परिवार के बजाय न्यूक्लियर परिवारों का चलन बढ़ रहा है। रिश्तेदारी केवल दो या तीन पीढ़ियों तक सीमित हो रही है।

इसके अलावा, पति के वर्चस्व वाला परिवार अब समानतावादी परिवार में बदल रहा है यानी पत्नी को भी निर्णय लेने की आज़ादी मिलने लगी है। माता-पिता अब बच्चों पर अपना अधिकार नहीं जमाते हैं और बच्चे अब आँख बंद करके अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं। शहरी संयुक्त परिवारों में, अब घर के बड़े-बुजुर्ग भी किसी महत्वपूर्ण बात में अपने से छोटे के साथ राय मशविरा करते हैं।

शहरीकरण के कारण कौन सी दिक्कतें पैदा हो रही हैं?

शहरीकरण से जुड़ी मुख्य समस्याओं में शामिल है:

  • शहरी फैलाव,
  • आवास और मलिन बस्तियों का विस्तार,
  • भीड़ और व्यक्तिवाद की भावना,
  • पानी की आपूर्ति और जल निकासी का बेहतर न होना,
  • शहरी बाढ़,
  • परिवहन और यातायात की समस्या,
  • बिजली की कमी,
  • प्रदूषण,
  • शहरी ग्रीष्म द्वीप प्रभाव,
  • अपराध और बाल अपराध,
  • भीख,
  • शराब और ड्रग्स की समस्या,
  • भ्रष्टाचार

शहरीकरण की समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा किये गए उपाय

  • स्मार्ट सिटी मिशन
  • कायाकल्प और शहरी रूपान्तरण के लिए अटल मिशन यानी अमृत योजना
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र के शहरी विकास कार्यक्रम (एनईआरयूडीपी)
  • सिक्किम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र के लाभार्थ एकमुश्त प्रावधान स्कीम
  • स्वच्छ भारत अभियान
  • हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटेशन योजना यानी हृदय
  • प्रधानमंत्री आवास योजना
  • दीन दयाल अंत्योदय योजना (डीएवाई) - राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम)
  • राजीव आवास योजना
  • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएण्नयूआरएम)
  • क्रेडिट रिस्क गारंटी फंड

भारत में शहरी गवर्नेंस ख़राब क्यों है?

  • वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता का अभाव
  • पैसों की कमी
  • जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव
  • विभिन्न एजेंसियों (जैसे पानी, परिवहन आदि) के बीच बेहतर समन्वय का न होना
  • समुचित शहरी विकास नीति का अभाव
  • अनुचित शहरी नियोजन और
  • परियोजनाओं का खराब कार्यान्वयन

आगे क्या किया जा सकता है?

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के साथ-साथ पलायन को कम करने के लिए ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था का विविधीकरण (Diversification) करने की ज़रूरत है। इस मामले में, मनरेगा ने गावों से शहरों की ओर पलायन कम करने में अहम भूमिका निभाई है।

  • PURA और श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का विकास पर जोर देना होगा।
  • शहरों की लोकल प्लानिंग और सार्वजनिक उपयोगिताओं के लिए स्टैण्डर्ड व्यवस्थाओं को विकसित किया जाना चाहिए।
  • समावेशी शहरीकरण की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि शहरी गरीब और अन्य कमजोर समूहों की आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सम्मानजनक रोज़गार और सुरक्षित वातावरण जैसी ज़रूरतें पूरी की जाएँ।
  • पर्यावरणीय रूप से धारणीय शहरीकरण: शहरीकरण का बेहतर प्रबंधन, ग्रीन पैचेज का विकास, आर्द्रभूमि, उचित अपशिष्ट प्रबंधन
  • सार्वजनिक परिवहन में निवेश
  • बेहतर ढांचागत सुविधाएं- पानी, सीवेज और बिजली सुनिश्चित करना
  • बेहतर अर्बन गवर्नेंस को सुनिश्चित करना - इसके तहत निम्नलिखित क़दम उठाये जा सकते हैं -
  • राजकोषीय विकेंद्रीकरण और पर्याप्त धन की उपलब्धता
  • नगर निगमों और नगरपालिका परिषदों का सशक्तीकरण
  • पारदर्शिता और जवाबदेही
  • नागरिक भागीदारी