(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत के जननायक : नेता जी : विचारधारा और व्यक्तित्व (Netaji : Ideology and Personality)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): प्रोफ़ेसर सलिल मिश्रा (आंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली), डा. सुशीला रामास्वामी (राजनितिक विश्लेषक)
सन्दर्भ:
नेताजी बचपन से ही क्रांतिकारी विचारधारा में यक़ीन रखते थे। उनके ऊपर विवेकानंद, अरविंदोघोष, रवीन्द्रनाथ टैगोर और चितरंजन दास का काफी प्रभाव था। शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1920 में ICS की परीक्षा पास की और बाद में वो गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। सुभाषचंद्र बोस पर महात्मा गांधी का बहुत प्रभाव था और वो उनका बहुत सम्मान भी करते थे। इसके अलावा सुभाषचंद्र बोस ही वो पहले शख़्स थे जिन्होंने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का ख़िताब दिया था।
लेकिन 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद उनके महात्मा गांधी से मतभेद हो गए, जिसके बाद उन्होंने न केवल कांग्रेस पद से इस्तीफा दे दिया बल्कि कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर एक और नए दल फॉरवर्ड ब्लॉक का भी गठन किया। नेताजी का मानना था कि आज़ादी दी नहीं जाती है, बल्कि हांसिल की जाती है। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाषचंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की और एक आज़ाद हिन्द फ़ौज का भी गठन किया। 4 जुलाई 1944 को आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ बर्मा पहुंचे नेताजी ने भारत को आज़ाद कराने के लिए "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा का नारा दिया।
नेताजी द्वारा बनाई गई आजाद हिन्द फौज को छोड़कर शायद ही विश्व-इतिहास में ऐसी कोई घटना हो, जहां क़रीब 30-35 हजार युद्धबन्दियों ने एक साथ मिलकर अपने देश की आज़ादी के लिए ऐसा जबरतदस्त संघर्ष किया हो। नेताजी का मानना था कि स्वतंत्रता हांसिल करने के लिए राजनैतिक गतिविधियों के साथ - साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी ज़रुरत पड़ती है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर जर्मनी के हिटलर और इटली व जापान की फ़ासिस्टवादी ताक़तों से भी हाथ मिलाने के आरोप लगे। लेकिन उन्होंने ये कहते हुए अपनी इस नीति का समर्थन किया कि ब्रितानी साम्राज्यवाद से लड़ने और अपने देश को आज़ाद कराने के लिए वो किसी का भी समर्थन लेने को तैयार हैं।