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Blog / 17 May 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) बौद्धिक सम्पदा अधिकार : क़ानून और सवाल (Intellectual Property Rights: Law and Questions)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) बौद्धिक सम्पदा अधिकार : क़ानून और सवाल (Intellectual Property Rights: Law and Questions)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव), डॉ. सुमन सहाय (बौद्धिक संपदा अधिकारों की जानकार)

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों दिग्गज अमेरिकी कंपनी पेप्सिको ने गुजरात के चार किसानों के खिलाफ पेटेंट उल्लंघन का मुकदमा दर्ज कराया था। कंपनी ने इन किसानों पर अपने पेटेंटेड आलू की किस्म FC5 की अवैध खेती करने का आरोप लगाया था। आलू के इस किस्म को FL 2027 के नाम से भी जाना जाता है। कंपनी ने सभी किसानों से एक करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की थी। बाद में सिविल सोसाइटियों और सरकार के दखलंदाजी के बाद कंपनी किसानों के खिलाफ मुक़दमा वापस लेने के लिए राज़ी हो गई। इसके बाद भारत में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को लेकर बहस गरमा गया।

इसके अलावा, इसी महीने संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय यानी यूएसटीआर ने बौद्धिक संपदा सुरक्षा से जुड़ी अपनी सालाना रिपोर्ट 'स्पेशल 301 - 2018' जारी की। इस रिपोर्ट में भारत को ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ में रखा गया है।

स्पेशल 301 रिपोर्ट क्या है?

ग़ौरतलब है कि स्पेशल 301 रिपोर्ट उन अमेरिकी व्यापार भागीदारों की पहचान करता है जो प्रभावी तरीके से आईपी अधिकारों का संरक्षण या पालन नहीं करते। पेटेंट, कापीराइट, व्यापार और गोपनीयता के मामले में भारत आईपी मसौदे को लेकर चुनौतियों और पर्याप्त सुधार की कमी के कारण इस निगरानी सूची में बना हुआ है।

क्या है पूरा पेप्सिको विवाद?

नमकीन और पेय पदार्थ बनाने वाली अमेरिकी कंपनी पेप्सिको ने आलू की एफसी5 किस्म उगाने के लिए किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। आलू की इस किस्म का इस्तेमाल कंपनी अपने लोकप्रिय लेज पोटेटे चिप्स बनाने के लिए करती है। दूसरे किस्म के मुक़ाबले आलू की इस किस्म में आर्द्रता कम होती है, जिसके कारण इसका इस्तेमाल पोटेटे चिप्स बनाने में होता है।

दरअसल कंपनी का कहना था कि उसने भारी निवेश करके आलू के इस किस्म का विकास किया और इसे 'पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001' के तहत पेटेंट कराया।

उसके बाद पेप्सिको कंपनी ने कुछ भारतीय किसानों के साथ ये कॉन्ट्रैक्ट किया कि ये किसान कंपनी के लिए FC5 किस्म की आलू उगाएंगे। चूँकि आलू के इस किस्म का पेटेंट पेप्सिको कंपनी के पास था, ऐसे में कंपनी के मंज़ूरी के बग़ैर कोई और आलू के इस किस्म का उत्पाद नहीं कर सकता था। लेकिन कंपनी को पता चला कि कॉन्ट्रैक्ट के अलावा कुछ दूसरे किसान भी इस आलू का उत्पादन कर रहे हैं। कंपनी ने इसे 'पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001' का उल्लंघन माना और किसानों पर मुक़दमा कर दिया। यानी कंपनी का कहना था कि इसके बौद्धिक सम्पदा अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

ट्रिप्स (TRIPS) समझौता और पेटेंट क़ानून

यह बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलू पर बना एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य देश अपने आप ही इस समझौते शामिल माने जाते हैं। इस सामझौते में पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेत, औद्योगिक डिजाइन, व्यापार गोपनीयता और पौधों की नई प्रजातियों पर एकाधिकार भी शामिल हैं। यह बाध्यकारी समझौता 1 जनवरी 1995 से लागू हुआ।

इस समझौते के तहत WTO ने सभी सदस्य देशों से बौद्धिक सम्पदा कानून बनाने के लिए कहा। इसके बाद भारत के किसानों के तरफ से ये आवाज उठी कि हम तो परम्परागत ज्ञान के आधार अपना उत्पादन करते हैं, इस पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार कैसे हो सकता है। इसका मतलब, इस पर पूरे समुदाय का अधिकार होता है। इसलिए भारत ने एक रास्ता निकाला कि प्लांट ब्रीडर यानी पौधों पर शोध के ज़रिये पौधों की नई किस्म का उत्पादन करने वाले लोगों और किसानों के हितों दोनों का संरक्षण हो जाए। फिर भारत में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण एक्ट, 2001 बनाया गया।

पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण एक्ट, 2001 क्या है?

इस क़ानून को साल 2001 में लागू किया गया था। ये कानून बीज के साथ शोध करके उन्नत किस्म की बीज बनाने वाले के अधिकार का संरक्षण करता है।

ग़ौरतलब है कि उन्नत किस्म बनाने की क्षमता केवल किसी कम्पनी के पास ही नहीं होती है। बल्कि ये काम एक शोधार्थी से लेकर कम्पनी और कम्पनी से लेकर एक किसान तक कर सकता है। इसलिए इस कानून के तहत सभी हितधारकों का ख़याल रखा गया है। इसका मतलब ये हुआ कि जब तक पेटेंटधारक से अनुमति नहीं ले ली जाती, तब तक उत्पादित किस्म को बेचा नहीं जा सकता।

पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण एक्ट, 2001 का उद्द्येश्य

  • पौधा किस्मों, कृषकों और ब्रीडर्स के अधिकार की सुरक्षा और पौधों की नई किस्मों के विकास को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी प्रणाली की स्थापना।
  • पौधे के नए किस्मों के विकास के लिए किसानों द्वारा दिए गए योगदान के संदर्भ में किसानों के अधिकारों को सुरक्षा देना।
  • देश में कृषि विकास में तेज़ी लाना और पौधे के नए किस्मों के विकास के लिए सरकारी और निजी क्षेत्रों में रिसर्च के लिए निवेश को बढ़ावा देना।
  • देश में बीज उद्योग की प्रगति को सुगम बनाना जिससे किसानों के उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

इस क़ानून के तहत दिए गए अधिकार

ब्रीडर्स के अधिकारः ब्रीडर्स को सुरक्षित किस्म उत्पन्न करने, उसकी बिक्री करने, उसकी मार्केटिंग करने का एकमात्र अधिकार होगा। अधिकारों के उल्लंघन के मामले में ब्रीडर्स को कानूनी सहायता दिया जाएगा। रिसर्चर्स के अधिकारः कोई भी अनुसंधानकर्ता रिसर्च के लिए इस क़ानून के तहत रजिस्टर्ड किसी भी किस्म का उपयोग कर सकता है।

किसानों के अधिकारः जिस किसान ने कोई नई किस्म खोजी या विकसित की हो उसे ब्रीडर्स के जैसे ही अपनी किस्म को करवाने का अधिकार है। कोई भी किसान पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण एक्ट, 2001 के तहत संरक्षित किस्म के बीज और उत्पाद को उपयोग में ला सकता है, बो सकता है, उसकी अदला बदली कर सकता है, या बेच सकता है। लेकिन वह इस सुरक्षित किस्म के ब्रांडेडयुक्त बीज की बिक्री नहीं कर सकता है।

बौद्धिक सम्पदा क्या है?

व्यक्तियों के दिमागी उत्पाद से जुड़े अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। इसमें साहित्यिक रचना, शोध, आविष्कार जैसी चीज़ें शामिल होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस इंसान की मेहनत से ये रचनाएँ बनी हैं, सबसे पहले इस पर उसी व्यक्ति का हक़ होना चाहिये। चूँकि यह अधिकार बौद्धिक उत्पाद के लिये दिया जाता है, इसलिए इसे बौद्धिक संपदा अधिकार कहते हैं।

बौद्धिक संपदा अधिकार एक निश्चित समयावधि और एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के मद्देनजर दिये जाते हैं। ये अधिकार पांच प्रकार के होते हैं- 1) कॉपीराइट, 2) पेटेन्ट, 3) ट्रेडमार्क, 4) औद्योगिक डिज़ाइन और 5) भौगोलिक संकेतक।

पेटेंट से जुड़े भारतीय क़ानून

  • पेटेंट अधिनियम 1970 और पेटेंट (संशोधन) एक्ट 2005
  • ट्रेडमार्क एक्ट 1999
  • कॉपीराइट एक्ट 1957 और कॉपीराइट (संशोधन) एक्ट 1999
  • वस्तुओं का भौगोलिक संकेतन (पंजीकरण और संरक्षण) एक्ट 1999
  • डिजाइन एक्ट, 2000

आईपीआर से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय कंवेन्शन और संगठन

  • औद्योगिक संपदा के संरक्षण जुड़ा पेरिस कंवेन्शन (1883): इसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल हैं।
  • साहित्यिक और कलात्मक कामों के संरक्षण के लिये बर्न कंवेन्शन (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प शामिल हैं।
  • मर्राकेश संधि (2013): इस संधि के मुताबिक़ किसी किताब को ब्रेल लिपि में छापे जाने पर इसे बौद्धिक सम्पदा का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। इस संधि को अपनाने वाला भारत पहला देश है।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)

दुनियाभर में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिहाज़ से 1967 में WIPO का गठन किया गया था। मौजूदा वक़्त में इसके तहत 26 अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ आती हैं और 191 देश इसके सदस्य हैं।

  • WIPO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है।
  • भारत 1975 में WIPO का सदस्य बना था।

राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति 2016

12 मई, 2016 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को मंज़ूरी दी थी। इस अधिकार नीति के जरिए भारत में बौद्धिक संपदा को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाता है। इस नीति के तहत सात लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं-

  • समाज के सभी वर्गों में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना।
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना।
  • मजबूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना ताकि बौद्धिक सम्पदा के हक़दार और लोकहित के बीच संतुलन कायम हो सके।
  • सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मजबूत बनाना।
  • व्यवसायीकरण के जरिए बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्य निर्धारण।
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिए प्रवर्तन और न्यायिक व्यवस्था को मजबूत बनाना
  • मानव संसाधनों संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना और बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना।

भारत के बौद्धिक संपदा माहौल में सुधार

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के बौद्धिक संपदा माहौल में कुछ सुधार हुआ है। अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक सूचकांक-2019 में भारत का स्थान आठ पायदान उछल कर छत्तीसवें पर आ गया है। पिछले साल 2018 में भारत इस सूची में चवालीसवें स्थान पर था।

वरीयता सूचकांक पर नजर डालें तो 2019 की सूची में शीर्ष पर काबिज पांच देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, फ्रांस और जर्मनी शामिल हैं। यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर (जीआइपीसी) द्वारा तैयार की जाने वाली इस सूची में देशों की रैंकिंग पैंतालीस मानकों पर निर्धारित की जाती है।

भारत में पेटेंट से जुड़ी दिक्कतें

  • ग्रामीण इलाक़ों में किसानो के पास पर्याप्त सूचना की कमी के चलते उन्हें ये पता नहीं चल पाता कि कौन सा किस्म पेटेंट के तहत है और कौन सा नहीं। ऐसे में अक्सर किसानों और कॉर्पोरेट्स के बीच टकराव देखने को मिलता है।
  • भारत में पेटेंट करवाना आसान नहीं है। हमारे पेटेंट कार्यालयों के पास रीसर्च से जुड़ी सूचनाओं की कमी रहती है।
  • किसी रीसर्च का पेटेंट मंजूर करने से पहले यह जानना बहुत ज़रूरी होता है कि वह रीसर्च पहले से मौजूद उसी तरह के रीसर्च से बेहतर है या नहीं। इस लिहाज़ से समय के साथ पेटेंट मंजूर करने के लिए भारतीय पैमाने और भी कड़े होते जाएंगे।
  • मौजूदा वक़्त आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का वक़्त है। अब मशीनें भी इंसानों की तरह ही सोचने लगी हैं। ऐसे में अगर हम पेटेंट का आधार कला या तकनीकी कौशल को बनाते हैं, तो आने वाले वक़्त में ये मशीनें ही अपने नाम पेटेंट करवाएँगी।
  • रीसर्च में निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत ही कम है।