Home > National-mudde

Blog / 06 Jul 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत की स्वास्थ्य नीति : ख़ामियाँ और ज़वाब (India's Health Policy: Drawbacks and Concerns)

image


(राष्ट्रीय मुद्दे) भारत की स्वास्थ्य नीति : ख़ामियाँ और ज़वाब (India's Health Policy: Drawbacks and Concerns)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): डा. नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), प्रोफ़ेसर इंद्रनील मुखर्जी (स्वास्थ्य कार्यकर्ता)

चर्चा में क्यों

स्वास्थ्य भारत में लम्बे अरसे से चिंता का विषय रहा है। बीते दिनों बिहार में एक ओर जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के चलते सैंकड़ों बच्चे मौत का शिकार हो गए तो वहीं पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल के चलते भी स्वास्थ्य सुविधाओं पर बुरा असर पड़ा है। 25 जून को नीति आयोग की ओर से जारी राज्य स्वास्थ्य सूचकांक में भी कई बड़े राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं के परफॉर्मेंस को काफी ख़राब बताया गया है।

राज्य स्वास्थ्य सूचकांक 2019

नीति आयोग ने ये इंडेक्स विश्व बैंक और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर जारी किया है। इस रिपोर्ट में राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के साल भर के प्रदर्शन को मांपा जाता है। ये इंडेक्स कुल 23 संकेतकों पर आधारित है, जिन्हें स्वास्थ्य परिणामों, गवर्नेंस एवं सूचना और महत्वपूर्ण जानकारियों/ प्रक्रियाओं के क्षेत्रों में बांटा गया है।

इस इंडेक्स में राज्यों को तीन श्रेणी में बांटा गया है।

  • बड़े राज्य - 21
  • छोटे राज्य - 8
  • केंद्रशासित प्रदेश - 7

बड़े राज्यों में केरल (74.01), आंध्र प्रदेश (65.13) और महाराष्ट्र (63.99) को इस इंडेक्स में क्रमशः पहली, दूसरी और तीसरी रैंकिंग मिली है। इसके अलावा हरियाणा, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों में स्वास्थ्य प्रदर्शन को बेहतर आंका गया है।

सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश (28.61) इसमें फिसड्डी साबित हुआ है। इसके अलावा बिहार (32.11), ओडिशा (35.97), मध्य प्रदेश (38.39) और उत्तराखंड (40.20) जैसे राज्यों में भी स्वास्थ्य सेवाएं बेहाल हैं।

इस रिपोर्ट के दूसरे संस्करण में राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में दो वर्षों की अवधि (2016-17 और 2017-18) के दौरान हुए वृद्धिशील सुधार व समग्र प्रदर्शन को मापने और उन पर प्रकाश डालने पर फोकस किया गया है। ये रिपोर्ट हेल्दी स्टे्टस प्रोग्रेसिव इंडिया (‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत) शीर्षक से जारी की गई है।

स्वास्थ्य क्या है ?

स्वास्थ्य का मतलब किसी व्यक्ति के बीमारियों और चोट जैसी समस्याओं से मुक्त रहना। लेकिन स्वास्थ्य केवल बीमारियों से संबंधित नहीं है। बीमारी के अलावा हमें उन कारणों पर भी विचार करना ज़रूरी है, जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए - स्वच्छ पानी, प्रदूषण-मुक्त वातावरण और भरपेट भोजन न मिलने जैसे कारणों की वजह से लोगों के बीमार पड़ने की संभावना काफी अधिक होती है। सुस्त और अकर्मण्य रहना, चिंताग्रस्त होना और लंबे समय तक डरे-सहमे रहना भी स्वस्थ जीवन के लक्षण नहीं हैं।

WHO के मुताबिक़ स्वास्थ्य केवल बीमारी या दुःख का होना ही नहीं है बल्कि स्वास्थ्य के लिए शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तंदरुस्ती भी पूरी तरह से ज़रूरी है।

भारत में स्वास्थ्य

भारत में आज़ादी के 30 साल बाद पहली बार 1983 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति पेश की गई। इसके बाद साल 2002 में दूसरी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की शुरुआत की गई। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 के क़रीब 15 साल बीत जाने के बाद साल 2017 में तीसरी स्वास्थ्य नीति लाई गई।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के उद्देश्य -

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश
  • स्वास्थ्य सुविधा सेवाओं की व्यवस्था
  • आर्थिक सहयोग
  • रोगों की रोकथाम
  • तकनीकी को बढ़ावा
  • मानव संसाधन विकास और अलग -अलग चिकित्सा प्रणाली को अपनाने जैसे मक़सद इस राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में शामिल हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 का लक्ष्य -

  • सभी उम्र के लिए स्वास्थ्य और आरोग्यता के बेहतर संभावित स्तर को हांसिल करना,
  • ग़रीबों पर बिना किसी आर्थिक दबाव के उत्तम इलाज उपलब्ध कराना
  • स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च को 2025 तक कुल सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक करना

सतत विकास लक्ष्यों के मूलभूत महत्त्व का भी उल्लेख स्वास्थ्य नीति 2017 किया गया है

  • 2025 तक मौजूदा जीवन प्रत्याशा को 67.5 वर्ष से बढ़ा कर 70 वर्ष करना
  • 2025 तक 5 साल से कम आयु वाले बच्चों की मृत्युदर को मौजूदा मृत्युदर से कम करना
  • (1990 में भारत की शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 129 थी, 2005 में ये घटकर 58 हो गई, जबकि 2017 में ये प्रति 1000 पर 39 रह गई)
  • 2020 तक मातृ मृत्यु दर को भी पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य
  • 2018 - तक स्थानीय क्षेत्रों में कुष्ठ रोगों पर पूर्ण रूप से लगाम
  • 2025 - तक T.B रोग को ख़त्म करने जैसे लक्ष्य भी स्वास्थ्य नीति 2017 में शुमार हैं

कितना ख़र्च करता है भारत स्वास्थ्य पर

स्वास्थ्य राज्यों का विषय हैं। भारत अपनी जीडीपी का लगभग 1 से 1.5 % हिस्सा ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से स्वास्थ्य पर ख़र्च किये जाने का मानक 5 % है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में प्रस्ताव है 2025 तक सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए और राज्यों को 2020 तक स्वास्थ्य पर अपने बजट का 8 प्रतिशत खर्च करना चाहिए। अभी राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर खर्च भिन्न-भिन्न है और अधिकांश राज्य स्वास्थ्य पर अपने बजट का पांच प्रतिशत खर्च करते हैं।

भारत में स्वास्थ्य योजनाएं

1. जननी सुरक्षा योजना - 2005

  • मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना

2. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान - 2016

  • गर्भवस्था के दौरान और बच्चे को जन्म देते समय माता की मृत्यु दर और शिशु की मृत्यु दर को कम करना और बच्चे के जन्म को एक सुरक्षित प्रक्रिया बनाना

3. मिशन इंद्रधनुष - 2014

  • मिशन इंद्रधनुष का उद्देश्य उन बच्चों का 2020 तक टीकाकरण करना है जिन्हें टीके नहीं लगे हैं या डिफ्थेरिया, बलगम, टिटनस, पोलियो, तपेदिक, खसरा तथा हेपिटाइटिस-बी रोकने जैसे सात टीके आंशिक रूप से लगे हैं।

4. पोषण अभियान - 2018 (National Nutrition Mission)

  • बच्चो, बालिग बालिकाए, गर्भवती महिलाऐ एवं स्तनपान कराने वाली माताओ में पोषण की कमी को सुधारना है।
  • बच्चो को विकास की कमी न हो, कुपोषण, एनीमिया न हो उस पर ध्यान देना

5. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का उद्देश्य 0 से 18 वर्ष के 27 करोड़ से भी अधिक बच्चों में चार प्रकार की परेशानियों की जांच करना है।
  • विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता सहित विकास में रूकावट की जांच शामिल है।

6. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना

  • मातृत्व सहयोग योजना के नाम को बदलकर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत सरकार द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले जीवित जन्म के लिए 6000 रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है।

7. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

  1. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM ) में दो मिशन शामिल हैं।
  2. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) - 2005
  3. राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) - 2013
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में काम करता है।
  • शिशु मृत्युदर और मातृत्व मृत्युदर में कमी लाना
  • हर नागरिक को लोक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुलभ कराना
  • संचारी और असंचारी रोगों की रोकथाम व नियंत्रण
  • जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ लिंग व जन सांख्यिकीय संतुलन सुनिश्चित करना
  • स्वास्थ जीवनचर्या और आयुष के माध्यम से वैकल्पिक औषधी पद्धतियों को प्रोत्साहित करना
  • इसके तहत गावों को प्रशिक्षित महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता आशा को भी लगाया गया
  • ये कार्यक्रम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यस्था को बेहतर बनाने के लिए शुरू की गई

8. आयुष्मान भारत ( प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना )

ये योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना को मिलाकर बनाई गई है। 25 सितम्बर 2018 से आयुष्मान भारत योजना पूरे भर में लागू है। इस योजना के तहत ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर - बसर करने वाले वाले परिवारों को 5 लाख रूपये का हेल्थ कवरेज दिया जायेगा। सरकारी आंकड़ें के अनुसार आयुष्मान भारत योजना भारत के 10 करोड़ BPL ( लगभग 50 करोड़ लोग ) परिवारों को दी जाएगी। इस योजना के सफल होने के बाद माध्यम वर्ग के परिवारों को भी इसमें शामिल किया जायेगा। इस योजना का 60 % खर्च केंद्र सरकार और 40% खर्च राज्य सरकारों द्वारा किया जायेगा। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना - ये एक स्वास्थ्य बीमा योजना थी। इसकी शुरुआत 1 अप्रैल 2008 को की गई थी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का मुख्य उद्देश्य ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रहे लोगों और प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना था। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजनाका लाभ भी उन्ही लोगों को मिल सकता था जो 2011 की जनगणना के मुताबिक BPL कार्ड धारक थे। इस योजना के तहत BPL कार्ड धारकों के परिवार के लोगों को 30000 तक की धनराशि का इलाज मुफ्त किया जाता था।

स्वास्थ्य संकट की वजह

1. बढ़ती जनसंख्या - जनसँख्या के कारण बेरोज़गारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति निम्न आय, निर्धनता में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि जैसी दिक्कतें उभरकर सामने आयीं हैं। इसके अलावा कृषि विकास में बाधा, पूंजी निर्माण में कमी, जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय, अपराधों में वृद्धि, पलायन और शहरी समस्याओं में वृद्धि जैसी दूसरी समस्याएं भी पैदा हुई हैं।

2. प्रदूषण - स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2019 मुताबिक़ साल 2017 में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से 12 लाख भारतीयों की मौत हो गई है भारत में वायु प्रदूषण अब सभी स्वास्थ्य जोखिमों में मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं। भारत में करीब 66 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर हैं जहां हवा में प्रदूषण की मात्रा राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

3. ग़रीबी - साल 2014 में, ग्रामीण इलाकों में 32 रुपए प्रतिदिन और कस्बों/शहरों में 47 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से गरीबी रेखा तय की गई थी। ग़रीबी रेखा को लेकर अलग-अलग समितियों की अलग अलग राय है। तेंदुलकर फॉर्म्युले में 22 फीसदी आबादी को गरीब बताया गया था जबकि सी. रंगराजन फॉर्म्युले ने 29.5 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था। भारत में ग़रीब कौन हैं और कितने हैं अभी यहीं स्पष्ट नहीं है। साल 2011 की जनगणना के आधार पर देश की क़रीब 22 फीसदी आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे जी रही है। वक़्त के साथ गरीबी में कमी तो आयी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में कमी की दर अभी भी धीमा ही है। शहरी क्षेत्रों की 13.7% के मुक़ाबले ग्रामीण भारत की लगभग 26% आबादी गरीब है।

4. खाद्य असुरक्षा - ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 के मुताबिक़ भारत जहां वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की सूची में 103 वे स्थान पर हैं तो वहीं ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक़ भारत में क़रीब चार करोड़ 66 लाख बच्चों का कुपोषण के चलते लंबाई और वजन नहीं बढ़ा है। खाद्य असुरक्षा में हिडेन हैंगर भी शामिल है। हिडेन हंगर की वजह से लोगों का विकास बाधित होता है, क्यूंकि लोगों के पास गुणवत्ता युक्त भोजन उपलब्ध नहीं होता।

5. डॉक्टरों व अस्पतालों की कमी - केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में औसतन एक डॉक्टर पर क़रीब 11 हज़ार की जनसंख्या निर्भर हैं। WHO के तय मानकों के मुताबिक़ डॉक्टर-जनसंख्या का अनुपात 1: 1,000 होना चाहिए। ऐसे में ये आंकड़ा 10 गुना अधिक है।

6. स्वास्थ्य पर कम खर्च - दुनिया की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भारत अपनी जीडीपी का मात्र 1 से 1.5 फ़ीसदी ही स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करता है, जो दुनिया के सबसे कम खर्च करने वाले देशों में से एक है। देश में क़रीब 7 लाख से अधिक डॉक्टरों की ज़रूरत। स्वास्थ्य क्षेत्र में ज़्यादा निवेश न हो पाने के कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी मात्रा में कमी रहती है।

7. खर्चीला इलाज - भारत में दवाओं की क़ीमत दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले काफी ज़्यादा है। स्वास्थ्य के खर्च में हो रही बढ़ोत्तरी परिवार की बढ़ती हुई आय और ग़रीबी कम करने वाली सरकारी योजनाओं को कमज़ोर कर रही है। बड़े निजी अस्पतालों के मुक़ाबले सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का काफी अभाव है। निजी अस्पतालों की वजह से बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहतर है, लेकिन यहां भी सिर्फ संपन्न लोगों की ही पहुँच है।

8. केंद्र - राज्य संबंधों में तल्ख़ी - दरअसल स्वास्थ्य राज्य का विषय है। स्वास्थ्य राज्य का विषय है ऐसे में जब राज्य सरकारों का सहयोग केंद्र सरकार को नहीं मिलता तो स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो जाती हैं।

9. झोला छाप डॉक्टर - गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि भारत में डॉक्टरों की कमी का फायदा उठाते हुए झोला छाप डॉक्टरों की तादाद तेज़ी से बढ़ी है।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 2016 की अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में एलोपैथिक डाक्टर के तौर पर प्रैक्टिस करने वाले एक तिहाई लोगों के पास मेडिकल की डिग्री नहीं है।

10. निजी अस्पताल - क़रीब 72 फीसदी ग्रामीण आबादी को प्राइवेट हेल्थकेयर सेवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। भारत में प्राइवेट सेक्टर में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ रही हैं लेकिन सरकारी क्षेत्र में विस्तार नहीं हो रहा है। इस समस्या के चलते बड़ी आबादी को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है।

11. सरकारी योजनाओं का अप्रभावी होना - राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली अलग- अलग बीमा योजनाओं के बावजूद भी, कोई सुधार नहीं है। अस्पताल मरीजों को इन स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के बाद भी बेहतर सुविधा नहीं दे पा रहे हैं। भारत में हर साल क़रीब लगभग 55 मिलियन लोग स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के चलते ग़रीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं।

ख़राब स्वास्थ्य के प्रभाव

स्वास्थ्य किसी भी समाज के लिए ज़रूरी विषय होता है। बिना स्वस्थ नागरिकों के किसी भी देश का आर्थिक और औद्योगिक विकास संभव नहीं है। ख़राब स्वास्थ्य के चलते शारीरिक क्षमता घटती हैं, जिससे उत्पादकता में गिरावट होती है। इसके अलावा आर्थिक और सामाजिक स्थिति भी प्रभावित होती है।

क्या किया जाना चाहिए ?

  • स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मज़बूत करना
  • स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश को और बढ़ावा देना
  • ग़रीबों को वित्तीय सहायता प्रदान करना
  • प्रशासनिक स्तर पर जवाबदेहिता तय करना ताकि कार्यपालिका स्वास्थ्य योजनाओं का कियान्वयन बेहतर तरीके से कर सके
  • स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना और
  • सस्ती जेनरिक दवाइयों को बढ़ावा देने जैसे कुछ महत्वपूर्ण काम ज़रूरी रूप से किए जाने चाहिए।