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Blog / 20 Dec 2018

(राष्ट्रीय मुद्दे) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन :विरासत और मूल्य (Indian National Movement : Legacy and Values)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन :विरासत और मूल्य (Indian National Movement : Legacy and Values)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रो. आदित्य मुख़र्जी (JNU), प्रो. सौरभ वाजपेई (दिल्ली विश्वविद्यालय Delhi University)

सन्दर्भ:

1857 में हुए ग़दर को जिसे आज़ादी की पहली लड़ाई कहा जाता है से लेकर देश के आज़ाद होने तक के 90 वर्ष के दौर को राष्ट्रीय आंदोलन कहा जाता है।

10 मई 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ आज़ादी का बिगुल फूँक दिया | धीरे धीरे यह क्रांति मेरठ से शुरू होकर हिंदुस्तान के कई हिस्सों में फ़ैल गई | विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फर को अपना बादशाह घोषित कर दिया | लेकिन अँगरेज़ परस्त लोगों के धोखे की वजह से यह महाक्रांति विफल हो गई। 1858 में ब्रिटैन क़ी भारत का शासन पूरे तरीके से ब्रिटिश महारानी के हाथों में चला गया | 1859 में बंगाल के नदिया जिले में नील क़ी खेती करने वाले किसानों ने अहिंसक आंदोलन करके दुसरे आंदोलन का आगाज़ किया | इसके बाद देशभर में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कई आंदोलन हुए।लेकिन बांटो और राज करो की नीति चलने में अँगरेज़ अब माहिर हो चले थे | वे भारत में बढ़ती राष्ट्रवाद क़ी भावना और राजनीतिक चेतना को किसी भी तरह दबाने में जुट गए | इस बीच 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस क़ी स्थापना हुई | आम जनमानस यहाँ तक के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों में भी अंग्रेज़ों के खिलाफ रोष बढ़ रहा था | लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल फिरोज शाह मेहता, गोपाल कृष्णा गोखले आदि नेताओं ने भारत क़ी आज़ादी की आवाज़ उठाई | भारत की आज़ादी क़ी लड़ाई में एक नया मोड़ तब आया जब जनवरी 1915 को महात्मा गाँधी भारत लौटे| 1917 में गांधीजी चम्पारण आंदोलन, खेड़ा और अहमदाबाद मिल जैसे आंदोलनों में शरीक हुए और इस तरह उन्होंने भारतीय जनमानस में अपनी जगह बना ली | सन 1919 में जलियांवाला बाग़ नरसंहार के बाद सितम्बर 1920 में असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन का आगाज़ हुआ | इस दौरान चौरी CHAURA में आंदोलनकरियों के हिंसक रवैये को देखते हुए गांधीजी ने 5 फरवरी सन 1922 में असहयोग आंदोलन वापस ले लिया | असहयोग आंदोलन क़े बाद क्रांतिकारियों जैसे आज़ाद, भगत सिंह, सूर्य सेन आदि ने हिंसा का रास्ता अखितयार कर आज़ादी क़ी लड़ाई लड़ी |

इसी वक़्त मार्च 1929 के लाहौर अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आंदोलन का निर्णय लिया गया | 6 अप्रैल 1930 में गांधीजी ने दांडी में मुट्ठी भर नमक उठाकर इस आंदोलन की शुरुआत कर दी | यह दशक ऐसा रहा जिसमे ब्रिटिश हुकूमत को भारतीय जनमानस का विरोध कई रूपों में और कई बार देखना पड़ा | यह दशक ऐसा भी रहा कि मुस्लिम लीग पर गाँधी की बातों का प्रभाव होना बंद हो गया | मुस्लिम लीग के नेताओं के भीतर दो राष्ट्र की धारणा प्रबल हो रही थी | अगस्त १९४२ का साल देश के इतिहास में लोगों का ब्रितनिअ हुकूमत के खिलाफ गुस्से का इज़हार करने की महज़ तारिख ही नहीं है यह ऐसी तारिख है जब भारत में अंग्रेजी सरकार के खात्मे की शुरुआत हुई |

सुभाष चंद्र बोस ने जापान कि मदद से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया| और इस तरह आज़ादी कि लड़ाई में आम आदमी के साथ साथ एक फौज भी खड़ी हो गई | इन दिनों आज़ादी के दीवाने अपने अपने तरीकों से आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन अब आज़ादी के साथ एक नया संघर्ष करवट ले रहा था | ये था देश के बटवारे का मसला जिन्ना का कथन था कि पहले बटवारा और फिर आज़ादी | मौन्टबेटन के भारत पहुँचने के साथ ही कैबिनेट मिशन और तमाम पुरानी योजनाओं को दरकिनार करते हुए मौन्टबेटन ने भारत के आज़ादी और बंटवारे का मसौदा तैयार कर लिया जिसमे 15 अगस्त 1947 तक सत्ता हस्तांतरण sham|l था भारत ने विभाजन के दर्द को स्वीकार करते हुए अपनी आज़ादी को गले से लगाया |

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