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Blog / 28 Jan 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) आर्थिक आरक्षण : कितना संवैधानिक? (Economic Reservation: Constitutional or Unconstitutional)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) आर्थिक आरक्षण : कितना संवैधानिक? (Economic Reservation: Constitutional or Unconstitutional)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): प्रोफ़ेसर विवेक कुमार (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), शिवम् पाठक (प्रवक्ता, 'यूथ फॉर इक्वेलिटी')

सन्दर्भ:

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण देने के लिए सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया है। क्यूंकि संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये ही आरक्षण की बात कही गई है। जबकि संविधान में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। आरक्षण देने केलिये केंद्र सरकार को संविधान के इसी अनुच्छेद में आर्थिक शब्द को जोड़ने की ज़रूरत पड़ी। जिसके बाद सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10% का आरक्षण कानून बन सका।

लेकिन इस आरक्षण का लाभ उन लोगो को ही मिलेगा जिनके परिवार की सालाना आय आठ लाख रुपए से कम हो। साथ ही उनकी कृषि योग्य ज़मीन भी पाँच एकड़ से कम होनी चाहिए। इसके अलावा आरक्षण कालाभ सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलेगा जिनका मकान एक हजार वर्ग फीट से कम में बना हो। यदि मकान अधिसूचित नगरपालिका में है तो 100 गज़ और गैरअधिसूचित नगरपालिका वाले इलाके में है तो 200 गज़ से कम होना चाहिए। इन सभी नियमों के दायरे में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों को ही ये आरक्षण मिल सकेगा।

ये आरक्षण केंद्र और राज्य दोनों तरह की सरकारी नौकरियों पर लागू होगा। राज्यों को ये अधिकार होगा कि वे इस आरक्षण के लिए अपना अलग आर्थिक क्राइटेरिया तय कर सकते हैं।आरक्षण देने का उद्देश्य केंद्र और राज्य में शिक्षा के क्षेत्र, सरकारी नौकरियों, चुनाव और कल्याणकारी योजनाओं में हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है। ताकि समाज के हर वर्ग को आगे आने का मौका मिले।

शैक्षिक संस्थानों और नौकरियों में सीटें अलग अलग मापदंड के आधार पर आरक्षित की जाती हैं। जिनमें जातिगत आधार, प्रबंधन कोटा, लिंग आधारित, धर्म आधारित और अन्य मानदंड शामिल होते हैं। विशिष्ट समूह के सदस्यों के लिए सभी संभावित पदों को एक अनुपात में रखते हुए कोटा नियम को बनाया जाता है। जो आरक्षित समुदाय के तहत नहीं आते हैं, वे केवल शेष पदों के लिए ही उम्मीदवार हो सकते हैं, जबकि आरक्षित समुदाय के सदस्य सभी संबंधित पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं।

मौजूदा कानून के तहत कुल 49.5 फीसद आरक्षण की व्यवस्था है। इसमें अनुसूचित जाति को 15 फीसद, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसद और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण दिया जाता है। गौरतलब है कि आर्थिक रूप से आरक्षण देने का ये पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने की बात कही जाती रही है। लेकिन अदालतें इस तरह के आरक्षण को ख़ारिज करती रही हैं। इंदिरा साहनी मामले में भी सुप्रीम कोर्ट आर्थिक आधार पर 10 % आरक्षण को ख़ारिज कर चुका है।

संविधान संशोधन के ज़रिए सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के इस फैसले को भी अदालत में चुनौती दी चुकी है। अब देखना ये है कि इस पूरे मसले पर सुप्रीम कोर्ट अपना क्या फैसला देता है?

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