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Blog / 23 Jan 2020

(राष्ट्रीय मुद्दे) केंद्र - राज्य संबंध (Centre - State Relations)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) केंद्र - राज्य संबंध (Centre - State Relations)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): डॉ. नरेश चंद्र सक्सेना (भारत सरकार में पूर्व सचिव), टी. आर. रामाचंद्रन (वरिष्ठ पत्रकार)

चर्चा में क्यों?

पिछले 14 जनवरी को केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। यह याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर की गई है। बता दें कि इसके पहले केरल विधानसभा ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था और केंद्र सरकार से गुज़ारिश की थी कि वह नागरिकता कानून पर एक बार फिर से विचार करे। इस तरह केरल सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने वाला पहला राज्य बन गया है। हालांकि नागरिकता कानून से जुड़ी करीब 60 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही लंबित हैं। ग़ौरतलब है कि पंजाब विधानसभा ने भी इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया है।

अनुच्छेद 131 के तहत एक और मामला चर्चा में

बीते 15 जनवरी को छत्तीसगढ़ सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया। इसमें उसने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए एक्ट) अधिनियम को चुनौती दी है। छत्तीसगढ़ सरकार ने तर्क दिया कि राज्य में क़ानून व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी उस राज्य सरकार की होती है लेकिन एनआईए एक्ट राज्य की इस अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है।

अनुच्छेद 131 क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत वर्णित विषय सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार का विषय है। इसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट राज्य बनाम राज्य या फिर राज्य बनाम केंद्र के मामलों की सुनवाई कर सकता है और उस पर अपना फैसला दे सकता है। यदि राज्य और केंद्र के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो, तो अनुच्छेद 131 के तहत उस स्थिति में राज्य सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है।

हालांकि इस अनुच्छेद के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट केवल उन्हीं मसलों पर फैसला दे सकती है, जहां केंद्र और राज्यों के अधिकार-क्षेत्र के मसले पर विवाद हो। सरकारों के बीच आपसी झगड़े और छोटे-मोटे विवादों से जुड़े मामलों की सुनवाई इस अनुच्छेद के तहत नहीं की जाती है। साल 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान राज्य बनाम केंद्र सरकार के एक मामले में अनुच्छेद 131 को लेकर यही साफ राय रखी थी।

अनुच्छेद 131 के तहत दायर की गई याचिका नागरिकता कानून के खिलाफ दायर की गई अन्य याचिकाओं से किस तरह अलग है?

नए नागरिकता कानून के संबंध में केरल के द्वारा दायर की गई याचिका के अलावा अन्य याचिकाएं अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई हैं। दरअसल अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून की संवैधानिकता तय करती है जबकि अनुच्छेद 131 के तहत यह केंद्र और राज्य अथवा एक राज्य का दूसरे राज्य के साथ हुए विवादों की सुनवाई करती है। यह विवाद केंद्र अथवा राज्य के बीच या फिर एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच अधिकार क्षेत्र से जुड़े मुद्दों का होना चाहिए।

बता दें कि अनुच्छेद 32 के तहत केवल आम लोगों और नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार है राज्य सरकार इसके तहत सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकती। हां यह बात और है कि इन दोनों अनुच्छेदों के तहत दायर की गई याचिकाओं में नागरिकता कानून को असंवैधानिक घोषित करने की बात कही गई है।

केरल सरकार का क्या तर्क है?

केरल सरकार का तर्क है कि नया नागरिकता कानून संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है। जिसमें अनुच्छेद 14, 21 और 25 शामिल हैं। केरल सरकार ने यह दलील दी कि यह कानून संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों और समानता का अधिकार के ख़िलाफ़ है। इसलिए इसे अवैध घोषित किया जाना चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि अगर सीएए को अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेल रहे लोगों के लिए बनाया गया है तो फिर इन देशों के शिया और अहमदिया को इससे बाहर क्यों रखा गया। साथ ही, इन्हीं 3 देशों के लोगों को नागरिकता देने की बात क्यों की गई, इसमें श्रीलंका के तमिल, नेपाल के मधेशी और अफ़ग़ानिस्तान के हजारा समूह को शामिल क्यों नहीं किया गया।

क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून सभी राज्यों पर बाध्यकारी होता है?

अगर संसद द्वारा पारित किसी कानून को कोई राज्य लागू नहीं करता है तो अनुच्छेद 256 के तहत केंद्र सरकार उस राज्य सरकार को निर्देश जारी कर सकती है। यह निर्देश उस राज्य सरकार के लिए बाध्यकारी होंगे। अगर फिर भी राज्य सरकार उस निर्देश को नहीं मानती तो अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र सरकार यह मान सकता है कि उस राज्य में संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और अब वहां पर राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए। यानी वह सरकार बर्खास्त की जा सकती हैं।

क्या केरल सरकार ने राज्यपाल की अवहेलना की है?

अनुच्छेद 167 के तहत राज्यपाल को यह जानने अधिकार होता है कि राज्य सरकार की कैबिनेट के क्या फैसले रहे और सरकार विधानसभा में कौन सा कानून बनाने जा रही है। लेकिन केरल सरकार ने राज्यपाल को ऐसी कोई सूचना नहीं थी। इसलिए संविधान के कुछ जानकारों का ऐसा मानना है कि राज्यपाल के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

हालांकि कुछ जानकार इससे अलग राय रखते हैं। उनका कहना है कि राज्यपाल को यह जानने का अधिकार है कि राज्य विधानसभा कौन सा कानून बनाने जा रहे हैं या बना रही है। और इस मामले में केरल सरकार ने कोई कानून नहीं बनाया है बल्कि सिर्फ एक प्रस्ताव पारित किया है। इसलिए राज्यपाल के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। यानी इस तरह इस मामले में जानकारों की राय बँटी हुई है।

क्या अनुच्छेद 131 के तहत किसी कानून की संवैधानिकता तय की जा सकती है?

इस बात का जवाब अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। दरअसल साल 2012 के एक मामले बिहार बनाम झारखंड में कुछ इसी तरीके की बात सर्वोच्च न्यायालय के सामने आई थी। उस वक्त अदालत ने इस मामले को बड़ी बेंच को सौंप दिया था तब से इसको लेकर फैसले का इंतजार है।

क्या है नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019?

नागरिकता संशोधन कानून, नागरिकता अधिनियम, 1955 के कुछ प्रावधानों को बदलने के लिए लाया गया है। इसमें नागरिकता प्रदान करने से संबंधित कुछ नियमों में बदलाव किया गया है। नागरिकता संशोधन अधिनियम से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान से आए हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने का विकल्प खुल गया है।

इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं-

  • 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में आकर रहने वाले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाईयों को अब अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
  • इसमें यह भी व्यवस्था की गयी है कि उनके विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई स्थायी नागरिकता के लिए उनकी पात्रता को प्रभावित नहीं करेगी।
  • बता दें कि नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 में इस संबंध में अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 5 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें।
  • नागरिकता संबंधी उक्त प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।
  • इसके अलावा ये प्रावधान बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लाइन’ क्षेत्रों पर भी लागू नहीं होंगे। ज्ञात हो कि इन क्षेत्रों में भारतीयों की यात्राओं को ‘इनर लाइन परमिट’के माध्यम से विनियमित किया जाता है। वर्तमान में यह परमिट व्यवस्था अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैंड में लागू है।
  • ग़ौरतलब है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से प्रतिबंधित करता है। इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया हैः (1) जिसने वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज़ों के बिना भारत में प्रवेश किया हो, या (2) जो अपने निर्धारित समय-सीमा से अधिक समय तक भारत में रह रहा हो। विदित हो कि अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत भी छूट प्रदान करनी होगी, क्योंकि वर्ष 1920 का अधिनियम विदेशियों को अपने साथ पासपोर्ट रखने के लिये बाध्य करता है, जबकि 1946 का अधिनियम भारत में विदेशियों के प्रवेश और प्रस्थान को नियंत्रित करता है।