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Blog / 20 Jan 2020

(India This Week) Weekly Current Affairs for UPSC, IAS, Civil Service, State PCS, SSC, IBPS, SBI, RRB & All Competitive Exams (11th - 17th January 2020)

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(India This Week) Weekly Current Affairs for UPSC, IAS, Civil Service, State PCS, SSC, IBPS, SBI, RRB & All Competitive Exams (11th - 17th January 2020)



इण्डिया दिस वीक कार्यक्रम का मक़सद आपको हफ्ते भर की उन अहम ख़बरों से रूबरू करना हैं जो आपकी परीक्षा के लिहाज़ से बेहद ही ज़रूरी है। तो आइये इस सप्ताह की कुछ महत्वपूर्ण ख़बरों के साथ शुरू करते हैं इस हफ़्ते का इण्डिया दिस वीक कार्यक्रम...

न्यूज़ हाईलाइट (News Highlight):

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ अनुच्छेद 131 का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुँची केरल सरकार। कहा संविधान के समानता का अधिकार और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत का उल्लंघन करता है नागरिकता क़ानून 2019
  • कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बग़ैर किसी नागरिक की निजी संपत्ति को बलपूर्वक नहीं छीन सकती है राज्य सरकार। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मिला 53 साल बाद विद्या देवी को न्याय
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में बताया इंटरनेट को मौलिक अधिकार । कहा जम्मू कश्मीर में बहाल को महीनों से बंद पड़ी इंटरनेट सेवा
  • WHO ने जारी की अगले 10 साल में आने वाली वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से जुडी एक लिस्ट। स्वास्थ्य प्रणालीे और स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे में बेहतरी लाने के मक़सद से जारी हुई है ये लिस्ट
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने दी पुलिसिंग की कमिश्नरी प्रणाली को मंज़ूरी। लखनऊ और नोएडा में पायलट परियोजना के रूप में लागू की जाएगी कमिश्नरी प्रणाली
  • चीन में सामने आए कोरोना वायरस के कई मांमले । चीन में अधिक सी - फूड बाजार से लोगों में फैला है ये वायरस
  • यूरेशिया ग्रुप ने जारी किया टॉप रिस्क 2020 । भारत 2020 के लिए दुनिया के शीर्ष भू राजनीतिक जोखिमों में शुमार
  • लांच हुआ इसरो का संचार उपग्रह जीसैट-30 । फ्रेंच गुआना के कुरु लॉन्च केंद्र से लांच हुआ है भारत का जीसैट-30

खबरें विस्तार से:

1.

नागरिकता संशोधन क़ानून 10 जनवरी 2020 से देश भर में लागू हो गया है। इस क़ानून की पृष्ठभूमि इतने जटिल रही है कि अभी भी ये क़ानून सुर्ख़ियों में बना हुआ है। मौजूदा वक़्त में केरल सरकार नागरिकता क़ानून में हुए संशोधन को चुनौती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। केरल सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है। इनमें मुख्य रूप संविधान के समानता का अधिकार और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत शामिल हैं। केरल सरकार ने और कोर्ट से नागरिकता कानून को मूल अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की है।

केरल सरकार द्वारा दायर की गई याचिका में शीर्ष अदालत से गुज़ारिश की गई है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद- 14 यानी विधि के समक्ष समता, अनुच्छेद- 21 याने प्राण और दैहिक स्वतंत्रता और संविधान के अनुच्छेद- 25 के तहत अंतःकरण और धर्म के अबाध रूप से मानने के अलावा आचरण और प्रसार करने की आज़ादी के सिद्धांतो का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए।
साल 2019 के आखिर में आए इस क़ानून का कई और राज्यों ने भी विरोध किया था। लेकिन कहा ये गया कि नागरिकता संघ सूची का विषय है ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता पर क़ानून बनने के बाद राज्य सरकारें इस मामले में कोई दखल नहीं दे सकती हैं। केरल सरकार ने इस मामले का भी ज़िक्र अपनी याचिका में किया है।

केरल सरकार का कहना है कि CAA कानून का पालन करने के लिये अनुच्छेद- 256 के तहत राज्यों को बाध्य किया जाएगा, जो "स्पष्ट रूप से एकपक्षीय, अनुचित, तर्कहीन और मौलिक अधिकारों का ख़िलाफ़ होगा।

कि संविधान का अनुच्छेद- 131 राज्य और केंद्र सरकार के बीच विवादों पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला देने का विशेष अधिकार देता है। संविधान का अनुच्छेद 131 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि वो राज्य बनाम राज्य या फिर राज्य बनाम केंद्र के मामलों की सुनवाई करे और उस पर फैसला दे। इसके अलावा अनुच्छेद 131 के तहत राज्य और केंद्र में अगर किसी बात को लेकर विवाद जैसे हालात बनते हैं तो उस स्थिति में राज्य सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है।

इससे पहले भी अनुच्छेद- 131 का इस्तेमाल हुआ है। इनमें साल 2012 में अनुच्छेद- 131 का इस्तेमाल कर मध्य प्रदेश राज्य बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि राज्य अनुच्छेद- 131 के तहत केंद्र द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दे सकतें हैं। इसके अलावा भी कई मामले अनुच्छेद- 131 से जुड़े हैं।

बात अगर अनुच्छेद- 256 के अंतर्गत शामिल प्रावधानों की करें तो इसमें संविधान के अनुच्छेद 256 के तहत केंद्र को राज्य के मुक़ाबले अधिक मज़बूत बनाया गया है। अनुच्छेद- 256 के तहत राज्य की कार्यपालिका शक्तियां इस तरह इस्तेमाल में लाई जाएं कि संसद द्वारा बनाए गए क़ानून का पालन हो सके।

2.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में कहा है कि राज्य सरकार कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बग़ैर किसी नागरिक की निजी संपत्ति को बलपूर्वक नहीं छीन सकती है। न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा और न्यायाधीश अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर किसी नागरिक की निजी संपत्ति को जबरन छीनना न केवल मानव अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संवैधानिक क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करने के लिए भी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार नागरिकों से ली गई जमीन पर पूर्ण स्वामित्व के लिए प्रतिकूल कब्जे यानी एडवर्स पजेशन के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण व्यवस्था हमीरपुर जिले की नादौन तहसील के जलाड़ी की विद्या देवी (80) की अपील को स्वीकारते हुए दी है। विद्या देवी की 3.34 हेक्टेयर भूमि को 53 वर्ष पहले हिमाचल सरकार ने सड़क निर्माण के लिए जबरन अपने कब्जे में लिया था। दरअसल वो निरक्षर थी, इसलिए उन्हें कानूनी उपायों की ज़्यादा जानकारी नहीं थी। विद्या देवी ने साल इस मामले को लेकर साल 2010 में हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के तहत मुआवजे का दावा किया। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने निरक्षर विधवा विद्या देवी को राहत प्रदान की, जिनकी जमीन राज्य सरकार ने 1967-68 में सड़क निर्माण के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाये बिना जबरन ले ली थी।

न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने व्यवस्था दी कि सरकार नागरिकों से हड़पी जमीन पर पूर्ण स्वामित्व के लिए प्रतिकूल कब्जे यानी एडवर्स पजेशन के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं कर सकती। यहां आपको बता दें कि एडवर्स पजेशन एक विधिक शब्द है जिसका मतलब प्रतिकूल कब्ज़ा होता है। आसान शब्दों में समझे तो जब किसी वैध व्यक्ति के ज़मीन या मकान पर किसी अवैध व्यक्ति का 12 सालों तक कब्ज़ा होता है और इस दौरान वैध व्यक्ति अपनी ज़मीन या मकान के लिए कोई कदम नहीं उठाता है तो ऐसे में उसका मालिकाना हक समाप्त हो जाता है। साथ ही उस ज़मीन या मकान पर जो व्यक्ति अवैध तरीके से 12 सालों तक रहता आया है उस व्यक्ति को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दे दिया जा सकता है।

राज्य सरकार ने इस याचिका का इसी प्रतिकूल कब्जे यानी एडवर्स पजेशन का ज़िक्र करते हुए इसका विरोध किया था। राज्य सरकार का कहना था कि 42 वर्षों तक प्रतिकूल कब्जे के जरिये उसने पूर्ण स्वामित्व हासिल कर लिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा मामले में की गयी देरी की दलील को भी खारिज किया। साथ ही राज्य सरकार की यह दलील भी दरकिनार कर दी गयी कि अधिग्रहण के लिए मौखिक सहमति दी गयी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ऐसा मामला, जिसमें न्याय की मांग इतनी अकाट्य है, तो एक संवैधानिक अदालत न्याय को बढ़ावा देने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करेगी, न कि न्याय को हराने के लिए। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने किसी कानूनी मंजूरी के बिना एक विधवा औरत को उसकी सम्पत्ति से करीब आधी सदी वंचित रखा। इसलिए शीर्ष अदालत की नज़र में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए यह उचित मामला है। खंडपीठ के लिए न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने फैसला लिखते हुए कहा हम संविधान के अनुच्छेद 136 और 142 के तहत प्रदत्त असाधारण अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं और राज्य सरकार को यह निर्देश देते हैं कि वह अपीलकर्ता को मुआवजे का भुगतान करे। इस मामले को डीम्ड एक्वीजिशन की तरह मानते हुए राज्य सरकार को अपीलकर्ता को उतना ही मुआवजा देने को निर्देश दिया गया, जितना मुआवजा बगल की उस जमीन के लिए दिया गया है।

3.

उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिसिंग की कमिश्नरी प्रणाली को पायलट परियोजना के रूप में मंज़ूरी प्रदान कर दी है। अब यूपी के कुछ बड़े शहरों में कमिश्नरी सिस्टम लागू होगा। ख़बरों के मुताबिक ये पहले लखनऊ और नोएडा में पायलट परियोजना के रूप में लागू किया जायेगा। दरअसल कमिश्नरी प्रणाली पुलिस अधिकारियों को कई महत्त्वपूर्ण शक्तियां प्रदान करती हैं, जिनमें दांडिक शक्तियाँ यानी पीनल पावर्स भी शामिल होती हैं।

संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत पुलिस राज्य सूची का विषय है। ऐसे में देश का कोई भी राज्य इस विषय पर क़ानून बना कर इसे लागू कर सकता है। ज़िला स्तर पर क़ानून-व्यवस्था के बेहतर संचालन के लिये ज़िलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के रूप में नियंत्रण की दोहरी व्यवस्था को अपनाया गया।

हालाँकि समय के साथ बढ़ती जनसंख्या के कारण ज़िला स्तर पर संचालित नियंत्रण की ये दोहरी व्यवस्था नाक़ाम साबित होने लगी। ऐसे हालत में पुलिसिंग के प्रभावी काम और फैसले की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए कमिश्नरी सिस्टम को अपनाया गया।

कमिश्नरी प्रणाली के तहत पुलिस आयुक्त यानी Commissioner Of Police एक एकीकृत पुलिस कमांड संरचना का प्रमुख होता है। ये एकीकृत पुलिस कमांड महानगर में क़ानून - व्यवस्था के संचालन के लिये उत्तरदायी और राज्य सरकार के प्रति जवाबदेह होता है। कमिश्नरी प्रणाली में पुलिस आयुक्त के अंडर एक अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, विशेष पुलिस आयुक्त, संयुक्त पुलिस आयुक्त और पुलिस उपायुक्त काम करते हैं।
कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद पुलिस अधिकारियों को कई महत्त्वपूर्ण शक्तियां मिल जाती हैं। इनमें पुलिस आयुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता यानी CRPC के तहत दांडिक शक्तियाँ यानी पीनल पावर्स का अधिकार मिल जाता है। इसके अलावा होटल के लाइसेंस, बार लाइसेंस और शस्त्र लाइसेंस भी कमिश्नरी सिस्टम में पुलिस द्वारा ही दिये जाते हैं। साथ ही कमिश्नरी सिस्टम में धरना प्रदर्शन की अनुमति देने या न देने का अधिकार भी पुलिस के ही पास होता है। इन सब के अलावा दंगे जैसे हालत में लाठीचार्ज और कितना पुलिस बल का इस्तेमाल होना है ये भी निर्णय पुलिस के द्वारा लिया जाता है। एक तरीके से देखा जाए तो कमिश्नरी प्रणाली के लागू होने के बाद ज़िलाधिकारी और उप ज़िलाधिकारी को मिली कार्यकारी और दांडिक शक्तियाँ भी पुलिस को मिल जाती है। ऐसे में पुलिस किसी भी गंभीर परिस्थिति में गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका भी लगा सकती है।

कमिश्नरी सिस्टम को देश के अन्य हिस्सों में देखें तो बिहार, मध्य प्रदेश, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों को छोड़कर भारत के क़रीब 71 महानगरों में कमिश्नरी सिस्टम लागू है। आपको बता दें कि अंग्रेजों ने सबसे पहले कलकत्ता प्रेसिडेंसी में इस सिस्टम को शुरू किया था। बाद में बाम्बे और मद्रास प्रेसिडेंसी में इस व्यवस्था को लागू किया गया। इसके अलावा साल 1978 में दिल्ली पुलिस ने भी कमिश्नरी प्रणाली को अपनाया था। इससे पहले उत्तरप्रदेश ने भी साल 1978 में ही कमिश्नरी प्रणाली को अपनाने की कोशिश के थी हालाँकि लागू नहीं हो सका।

कमिश्नरी सिस्टम के जहां कुछ फायदे हैं तो वहीं इससे कई खतरों का भी डर रहता है। मसलन इस सिस्टम से एक ओर जहां लॉ एंड आर्डरके बेहतर होने की गुंजाइश होती है तो वहीं पुलिसिंग सिस्टम पर निरंकुश होने का भी डर बना रहता है। इस सिस्टम से पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार बढ़ने के आरोप के साथ साथ पुलिस विभाग पर मानवाधिकारों के हनन का भी आरोप लगता रहा है।

4.

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में इंटरनेट को अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत एक मौलिक अधिकार माना है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों जैसी सभी जरूरी जगहों पर इंटरनेट सेवा बहाल करने का भी निर्देश दिया है। दरअसल जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद वहां इंटरनेट बंद कर दिया गया था। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने पहले ही केरल राज्य में इंटरनेट को लोगों का मूलभूत अधिकार घोषित किया है। हालाँकि यहां गौर करने वाली बात ये है कि एक ओर जहां देश में उच्चतम न्यायालय ने इंटरनेट को मूलभूत अधिकारों में शामिल किया है तो वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर भारत इंटरनेट शटडाउन के मामले में शीर्ष देशों में शुमार है।

कोस्टारीका, एस्तोनिया, फिनलैंड और फ्रांस जैसे देशों में पहले से ही इंटरनेट को मूलभूत अधिकार माना गया है। हालाँकि ये भी सच है कि भारत समेत दुनियाभर के तमाम देशों इंटरनेट पर पाबंदी लगाना कोई नई बात नहीं है। शांति और सुरक्षा के दृष्टिकोण से सरकार फेक न्यूज़ और अफवाहों से फैलने वाली घटनाओं को रोकने के लिए सरकार इंटरनेट शटडाउन का सहारा लेती हैं। इंटरनेट शटडाउन की आसान शब्दों में समझे तो किसी स्थान पर इंटरनेट सेवाओं को बंद किया जाना ही इंटरनेट शटडाउन है।

हमारे यहां इंटरनेट शटडाउन का आदेश केंद्र या राज्य के गृह सचिव द्वारा दिया जाता है। किसी स्थान पर इंटरनेट बंद किए जाने की करवाई के बाद इसे केंद्र या राज्य सरकार के रिव्यू पैनल के समक्ष भेजा जाता है। इस केंद्रीय रिव्यू पैनल में कैबिनेट सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और टेलिकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी होते हैं। इसके अलावा राज्यों के रिव्यू पैनल में चीफ सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और एक कोई अन्य सेक्रेटरी शामिल होता है। देखा जाए तो 2017 से पहले इंटरनेट शटडाउन का आदेश जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता था। हालाँकि 2017 में सरकार ने इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 में संशोधन करते हुए टेम्प्ररी सस्पेंशन ऑफ टेलिकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स को तैयार किया। इसके ज़रिए मौजूदा वक़्त में सिर्फ केंद्र या राज्य के गृह सचिव या उनके द्वारा अधिकृत प्राधिकारी ही इंटरनेट शटडाउन का आदेश दे सकते हैं।

कुछ आंकड़ों को देखों तो 2019 में भारत इंटरनेट शटडाउन के मामले में तीसरे स्थान पर है। इसके अलावा ब्रुकलिन इंस्टीट्यूट के मुताबिक इंटरनेट शटडाउन के कारण आर्थिक नुकसान के मामले में भी भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर मौजूद है। दरअसल सूचना और प्रौद्योगिकी के इस दौर में इंटरनेट शटडाउन से वाणिज्य और व्यापार पर व्यापक असर पड़ता है। इसके साथ ही मूलभूत सेवाएं जैसे स्वास्थ, शिक्षा इत्यादि पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। आज के तकनीकी दौर में लगभग हर सेवाएं इंटरनेट के ज़रिए होने लगी हैं। इंडियन काउंसिल काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के एक अध्ययन के मुताबिक, 2012 से 2017 तक देश में इंटरनेट शटडाउन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 3 बिलियन डालर का नुकसान हुआ। इसके साथ ही इंटरनेट शटडाउन के कारण नागरिक मूलभूत सेवाओं से वंचित हो जाते हैं। वह समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं जिससे उन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही शैक्षणिक गतिविधियों इत्यादि पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है।

5.

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने अगले 10 साल में आने वाली वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से जुडी एक लिस्ट जारी की है। इस सूची में अगले दशक में आने वाली 13 महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का ज़िक्र किया गया है। WHO का मानना है कि ये सभी चुनौतियाँ समान रूप से दुनिया के लगभग सभी देशों में मौजूद हैं। WHO द्वारा जारी वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का मक़सद स्वास्थ्य प्रणालीे और स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे में मौजूद अंतराल को कम करना है। इसके साथ ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए कमज़ोर देशों को वित्तीय मदद मुहैया कराना भी WHO के मकसदों में शुमार है।

WHO ने अपनी लिस्ट में जिन 13 वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का ज़िक्र किया है उनमें जलवायु सम्मेलनों में स्वास्थ्य को शामिल किया जाना, संघर्ष और संकट के वक़्त में स्वास्थ्य से जुडी सेवाएँ मुहैया करना, स्वास्थ्य देखभाल में समानता लाना, दवाओं तक पहुँच बढ़ाना, संक्रामक रोगों को रोकना , महामारी से बचने के लिये हमेशा तैयार रहना, खतरनाक उत्पादों से व्यक्तियों की रक्षा करना, स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में निवेश करना, किशोरों को सुरक्षित रखना, जनता का विश्वास हासिल करना, नई तकनीकों का इस्तेमाल करना, स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी दवाओं को संरिक्षत करना और स्वास्थ्य रक्षा के लिये सफाई का पर विशेष ध्यान देने जैसी स्वास्थ्य चुनौतियां शामिल हैं।

भारत के नज़रिए से देखें तो आर्थिक असमानता के कारण देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। देश में ग़रीब और निर्धन लोगों तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। भारत में महिलाएँ और बच्चे बड़ी संख्या में कुपोषण के शिकार हैं। इसके अलावा भारत में उच्च शिशु मृत्यु दर और प्रसव के दौरान होने वाली मातृ मृत्यु की संख्यी भी काफी अधिक है। साथ ही उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मलेरिया, जापानी बुखार और डेंगू जैसी कई और संक्रमित बीमारियाँ भारत में फैल रही हैं। देखा जाए तो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में मौजूद भ्रष्टाचार और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इस क्षेत्र में रोड़ा बन कर खड़ी है। आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने आगामी दशक यानी 2030 को ‘कार्रवाई का दशक’ (Decade of Action) घोषित किया है।

6.

चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस का आतंक जारी है। बीते दिनों कोरोना वायरस से फैले निमोनिया के चलते एक शख़्स की मौत भी हो गई है। इसके अलावा इस नए प्रकार के वायरस के अभी तक संक्रमण के 41 मामले सामने आ चुके हैं। ख़बरों के मुताबिक़ कोरोना वायरस के चलते सात लोगों की हालत अभी भी गंभीर है और कई अन्य लोगों की हालत स्थिर बनी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने कहा है कि चीन के लिए ज़रूरी है कि वो कोरोना वायरस के फैलने के स्रोत का पता लगाया जाए जिससे अनेक लोगों के प्रभावित होने के मामले सामने आए हैं।

कोरोना वायरस उस वायरस समहू का एक हिस्सा है जिससे सामान्य सर्दी-खांसी से लेकर कई घातक बीमारियां हो सकती हैं। साल 2003 में एशिया में एक ऐसा ही 'सार्स वायरस' यानी Severe Acute Respiratory Syndrome, फैला था, जिसका असर उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप तक में देखा गया। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक़ इससे साल 2003 में कुल 646 मौतें अकेले चीन में हुई थी। कोरोना वायरस का संक्रमण आम तौर पर पशुओं और इंसानों में होता है। इसके लक्षणों में बुख़ार, खांसी, सांस फूलना और सांस लेने में दिक़्कतें जैसे लक्षण शामिल हैं। इसके अलावा कोरोना वायरस हालत बिगड़ने पर संक्रमण न्यूमोनिया की वजह बन सकता है जिससे किडनी ख़राब होने के अलावा मौत तक हो सकती है.

वुहान में फैले इस रहस्यमय निमोनिया का लक्षण सूखी खांसी के साथ बुखार और थकान को बताया जा रहा है। कई मामलों में, डिस्पेनिया यानी सांस की तकलीफ भी सामने आई है। जांच से पता चला कि समुद्री खाद्य बाजार यानी सी - फूड बाजार से यह वायरस लोगों में फैला है। अभी तक के ज्ञात कोरोना वायरस में सबसे घातक सार्स कोरोना वायरस और मर्स कोरोना वायरस पाए गए हैं, जिनसे सांस सम्बन्धी गंभीर बीमारियां पैदा हो सकती हैं। कोरोना वायरस अपना शिकार ज्यादातर 50 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को बनाता है। कोरोना वायरस संक्रमण का पता लगाने के लिए आणविक टेस्ट और सर्जरी टेस्ट का प्रयोग किया जाता है। कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए कोई वैक्सीन नहीं है न ही इसके लिए कोई विशेष उपचार है। साबुन और पानी से अपने हाथ धोकर, अपनी आँख, नाक या मुंह ना छूकर और संक्रमित लोगों के ज्यादा करीब रहने से बचकर संक्रमण के जोखिम को घटाया जा सकता है।

7.

इन दिनों नेपाल की सीक नाम की एक भाषा सुर्ख़ियों में है। लुप्तप्राय भाषाओं पर काम करने वाली एक संस्था इंडेंज़र्ड लैंवेज़ अलायंस ने बताया है कि मौजूदा वक़्त में सीक भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या दुनिया भर में सिर्फ 700 ही रह गई है। आपको बता दें कि ये भाषा नेपाल में बोली जाने वाली 100 जनजातीय भाषाओं में शुमार है। इसके अलावा नेपाल की इस सीक भाषा को यूनेस्को की संकटग्रस्त भाषाओं की सूची में भी रखा गया है।

सीक भाषा का मतलब होता है सुनहरी भाषा। सीक भाषा नेपाल के ऊपरी मुस्तांग ज़िले के पाँच गाँवों - चुकसंग, सैले , ग्याकर, तांग्बे और तेतांग में बोली जाती है। बताया जाता है कि इन गाँवों में सीक भाषा की बोली और इसकी स्पष्टता भी एक-दूसरे से अलग है। जानकारों का कहना है कि इस भाषा के इतिहास को हिमालय की चोटियों पर मौजूद गाँवों से जोड़कर देखा जाता है। इसके अलावा सीक भाषा बोलने वाले ज़्यादातर लोग सेब की खेती से जुड़े रहे हैं। हालाँकि जलवायु परिवर्तन का असर इस इलाके की खेती पर भी देखने को मिला है, जिससे यहां रहने वाले तमाम सीक समुदाय के लोग पलायन को मज़बूर हुए हैं। साथ ही नेपाल की राष्ट्रीय भाषा नेपाली के प्रभुत्व के कारण भी सीक भाषा काफी पीछे छूटी है।

इंडेंज़र्ड लैंवेज़ प्रोजेक्ट ELP की शुरूआत अलग - अलग देशों के भाषाविदों और भाषा संस्थानों के सहयोग से साल 2012 में की गई थी। इस प्रोजेक्ट का मुख्य मक़सद लुप्तप्राय भाषाओं से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना और उनके संरक्षण को बढ़ावा देना है। ELP के आँकड़ों के मुताबिक़ भारत में भी क़रीब 201 भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि नेपाल में ऐसी भाषाओं की संख्या 71 बताई गई है।

इसके अलावा आपको बताएं तो यूनेस्को द्वारा परिभाषित लुप्तप्राय भाषाओं की कुल 6 श्रेणियाँ हैं। इनमें पहली भाषा सुरक्षित यानी (Safe) है । सुरक्षित श्रेणी की भाषा ऐसी भाषाएँ होती हैं जो सभी पीढ़ियों के लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। साथ ही इससे संवाद में कोई मुश्किल नहीं आती है। दूसरी भाषा सुभेद्य यानी (Vulnerable) है । सुभेद्य श्रेणी की भाषा ऐसी भाषाएँ होती हैं जिसका नई पीढ़ी इस्तेमाल तो करती है लेकिन वो कुछ इलाकों तक सीमित होती है। इसके अलावा तीसरी भाषा लुप्तप्राय या संकटग्रस्त (Definitely Endangered) श्रेणी की है। इनमें वे भाषाएँ शुमार हैं जो बच्चे मातृभाषा के रूप में नहीं सीखते हैं। चौथी भाषा गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Severely Endangered) श्रेणी की है। इनमें ऐसे भाषाएँ शामिल होती हैं सिर्फ बुजुर्ग पीढ़ी द्वारा ही बोली जाती हैं। ऐसी भाषाओँ को उनके बच्चे समझते तो हों लेकिन अगली पीढ़ी से उस भाषा में बात नहीं करते हैं। पांचवी भाषा अत्यंत संकटग्रस्त यानी (Critically Endangered) श्रेणी की है। ऐसी भाषाओँ में वे भाषाएँ शुमार होती हैं जिन्हें केवल बुजुर्ग पीढ़ी के लोग ही समझ पाते हैं और इनका इस्तेमाल बहुत ही कम मौकों पर किया जाता है। सबसे आख़िरी श्रेणी की भाषा की बात करें तो इनमें विलुप्त भाषाएँ (Extinct Languages) शामिल होती हैं। विलुप्त भाषाएँ ऐसी भाषाएँ होती हैं जिन्हें किसी के भी द्वारा बोलै या समझा नहीं जा सकता है।

यूनेस्को के मुताबिक मौजूदा वक़्त में दुनिया में कुल क़रीब 6000 भाषाएँ अनुमानित हैं। इनमें से लगभग 57% भाषाएं सुरक्षित (Safe), 10% भाषाएँ सुभेद्य (Vulnerable), 10.7% लुप्तप्राय (Definitely Endangered), क़रीब 9% भाषाएं गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Severely Endangered), 9.6 % अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered) और लगभग 3.8% भाषाएँ विलुप्त (Extinct) श्रेणी में शुमार हैं। हो चुकी हैं।

8.

बीते दिनों देश में इन्फ्लूएंज़ा वायरस A के एक दुर्लभ उप-प्रकार यानी H9N2 वायरस का पहला मामला सामने आया है। भारत में ये पहला मामला नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे द्वारा पाया गया है। आपको बता दें कि H9N2 वायरस मानव इन्फ्लूएंजा के साथ-साथ बर्ड फ्लू का भी कारण बनता है। WHO का कहना है कि एवियन इन्फ्लूएंज़ा वायरस पोल्ट्री फर्मों में तेज़ी से फैल रहा है। संक्रमित पोल्ट्री या दूषित वातावरण के संपर्क में आने के चलते इससे मानव समूहों के लिये भी ख़तरा पैदा हो गया है। देखा जाए तो इंसानों में H9N2 वायरस का संक्रमण बहुत दुर्लभ हैं, लेकिन संक्रमण के लक्षणों के ज़ाहिर नहीं हो पाने के कारण H9N2 वायरस से जुड़े मामले सामने नहीं आ पाते हैं।

H9N2 वायरस, इन्फ्लूएंज़ा वायरस A का एक उप-प्रकार है। ये वायरस मानव इन्फ्लूएंजा के कारणों के साथ बर्ड फ्लू का भी कारण बनता है। इस वायरस के सामान्य लक्षणों में बुखार, खांसी तथा श्वसन क्रिया में बाधा जैसी समस्याएँ उत्त्पन्न होती हैं। आपको बता दें कि वायरस यानी विषाणु एक सूक्ष्मजीव है, जो जीवित कोशिकाओं के भीतर ही अपना विकास और प्रजनन करता है। साल 1892 में दमित्री इवानोवास्की ने वायरस यानी विषाणु की खोज की थी। वायरस मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं। इनमें DNA वायरस व RNA वायरस शामिल हैं। बात अगर इन्फ्लूएंजा वायरस की करें तो ये RNA प्रकार के वायरस होते हैं। साथ ही ये ऑर्थोमिक्सोविरिदे (Orthomyxoviridae) वर्ग से संबंधित होते हैं। इन्फ्लूएंजा वायरस के भी तीन प्रकार हैं इनमें हैं। इनमें इन्फ्लूएंज़ा वायरस A, इन्फ्लूएंज़ा वायरस B और इन्फ्लूएंज़ा वायरस C शामिल हैं। H9N2 वायरस, इन्फ्लूएंज़ा वायरस A का ही एक उप प्रकार है। इन्फ्लूएंज़ा वायरस A एक संक्रामक वायरस है। इन्फ्लूएंज़ा वायरस A जंगली जलीय पशु-पक्षी के ज़रिए फैलता है और ये मनुष्यों में फैलने पर काफी घातक साबित होता है।

ग़ौरतलब है कि H9N2 वायरस का पहला मामला संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्कोंसिन में प्रवासी पक्षियों के झुंड टर्की फ्लोक्स (Turkey Flocks) में साल 1966 में देखा गया। इसके बाद मनुष्यों में, H9N2 वायरस के संक्रमण का पहला मामला साल 1998 में चीन के हॉन्गकॉन्ग में दर्ज़ किया गया। म्याँमार में भी साल 2014 से 2016 के दौरान पोल्ट्री फर्मों में किये गए सर्विलांस के ज़रिए H9N2 वायरस के संक्रमण के मामले सामने आए। भारत में भी H9N2 वायरस पाया गया है।

ये वायरस फरवरी 2019 में महाराष्ट्र के मेलघाट ज़िले के कोरकू जनजाति के 93 गाँवों में समुदाय आधारित निगरानी अध्ययन के दौरान देखा गया था।

9.

नई दिल्ली में 14-16 जनवरी के दौरान रायसीना डायलॉग के पाँचवे संस्करण का आयोजन हुआ । रायसीना डायलॉग 2020 की थीम - नेविगेटिंग द अल्फा सेंचुरी रही है। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 100 देशों के क़रीब 700 से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल हुए। आपको बता दें कि रायसीना डायलॉग भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक विषयों पर चर्चा करने का एक वार्षिक सम्मेलन है। इसका आयोजन भारत के विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ORF द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।

रायसीना डायलॉग एक बहुपक्षीय सम्मेलन है। इस सम्मलेन में दुनिया के सामने मौजूद समस्याओं पर चर्चा होती है। इसके अलावा रायसीना डायलॉग भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को और मज़बूत प्रदान करता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत साल 2016 में हुई थी। इस बैठक में अलग - अलग देशों के नीति-निर्माताओं, राजनेताओं, पत्रकारों और उच्चाधिकारियों के अलावा उद्योग व व्यापार जगत के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है। रायसीना डायलॉग में अलग - अलग देशों के विदेश, रक्षा और वित्त मंत्री भी शिरकत करते हैं। इसके आलावा एशियाई एकीकरण के साथ-साथ बाकी दुनिया के साथ एशिया के बेहतर भविष्य के लिए संभावनाओं और अवसरों की तलाश करना भी रायसीना डायलॉग के मक़सदों में शुमार है।

इस बार के रायसीना सम्मेलन में वैश्वीकरण से जुड़ी चुनौतियां, एजेंडा 2030, आधुनिक विश्व में प्रौद्योगिकी की भूमिका, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद का मुकाबला जैसे मुद्दे प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं। इस सम्मेलन के दौरान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक विशेष सत्र भी आयोजित हुआ है। इसमें क्वाड समूह के सदस्य यानी ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन्य या नौसैन्य प्रमुखों के अतिरिक्त फ्राँस के रक्षा अधिकारी भी शामिल हुए।

10.

पर्यावरण मंत्रालय ने समुद्री तटों के रेग्युलेशन से जुड़े नियमों में कुछ नरमी बरतने का फ़ैसला लिया है। इस फ़ैसले का मुख्य मक़सद समुद्र के किनारे कुछ ख़ास जगहों पर बुनियादी ढांचे के निर्माण को बढ़ावा देना है। यानी अब भारत के बीचेज पर पोर्टेबल टॉयलेट ब्लॉक, प्राथमिक इलाज़, बैठने के लिए सीटों की व्यवस्था और सीसीटीवी कैमरे जैसी सुविधाएँ बढ़ाई जाएंगी। अभी तक तटीय विनियमन क्षेत्र यानी CRZ नियमों के तहत, बीच पर इस तरह की गतिविधियों की अनुमति नहीं थी। देखा जाए तो CRZ नियमों में ढील देकर समुद्री तटों के लिए ‘ब्लू फ्लैग’ दर्ज़ा पाना अब और आसान हो जाएगा।

ब्लू फ्लैग’ किसी भी समुद्री तट यानी बीच को दिया जाने वाला एक ख़ास क़िस्म का प्रमाण-पत्र होता है जो ‘फ़ाउंडेशन फॉर इनवॉयरमेंटल एजुकेशन’ नाम के एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन द्वारा दिया जाता है। इस संगठन का मक़सद पर्यावरणीय जागरुकता के ज़रिए सतत विकास को बढ़ावा देना है। डेनमार्क के कोपनहेगन शहर स्थित इस संगठन द्वारा ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफ़िकेट की शुरुआत साल 1985 में की गई थी। ब्लू फ्लैग मानकों के तहत समुद्र तट को पर्यावरण और पर्यटन से जुड़े 33 शर्तों को पूरा करना होता है। इन शर्तों को चार व्यापक वर्गों में बाँटा गया है, जिनमें (i) पर्यावरण शिक्षा और सूचना (ii) नहाने वाले पानी की गुणवत्ता (iii) पर्यावरण प्रबंधन और (iv) सुरक्षा समेत अन्य सेवाएं शामिल हैं।

आसान भाषा में समझे तो अगर किसी समुद्री तट को ब्लू फ्लैग का सर्टिफिकेट मिल जाता है तो इसका मतलब है कि वो बीच प्लास्टिक मुक्त, गंदगी मुक्त और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी सुविधाओं से लैस है। साथ ही, वहां आने वाले सैलानियों के लिए साफ पानी की मौजूदगी, अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक पर्यटन सुविधाएँ और समुद्र तट के आसपास पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी जैसी सुविधाएँ भी चुस्त-दुरुस्त होनी चाहिए।

भारत ने ‘ब्लू फ्लैग’ मानकों के मुताबिक अपने समुद्र तटों को विकसित करने का पायलट प्रोजेक्ट दिसंबर 2017 में शुरु किया था। इस प्रोजेक्ट के तहत सभी तटीय राज्यों से 13 समुद्री तटों को ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफिकेट के लिये चुना गया है। इस परियोजना के दो मूल मक़सद हैं। पहला, भारत में लगातार गंदगी और प्रदूषण के शिकार होते समुद्र तटों को इस समस्या से निजात दिलाकर इनका पर्यावास दुरुस्त करना और दूसरा, सतत विकास और पर्यटन सुविधाओं को बढ़ाकर भारत में इको फ्रेंडली पर्यटन विकसित करना है। इन भारतीय तटों को मिलने वाला ‘ब्लू फ्लैग टैग’ न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में पहली बार होगा। उड़ीसा के कोणार्क तट पर मौजूद चंद्रभागा बीच ‘ब्लू फ्लैग’ टैग पाने वाला भारत का पहला बीच है। भारत में, समुद्री तटों को ‘ब्लू फ्लैग’ के मानकों के मुताबिक विकसित करने का काम ‘सोसायटी फॉर इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट’ यानी SICM नाम की संस्था कर रही है। SICM पर्यावरण मंत्रालय के अंडर काम करती है।

11.

यूरेशिया ग्रुप ने बीते दिनों टॉप रिस्क 2020 शीर्षक से अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत 2020 के लिए दुनिया के शीर्ष भू राजनीतिक जोखिमों में से एक है। इस सूचकांक में भारत के शीर्ष पर होने की वजह प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक प्रगति पर ध्यान न देकर कई सामाजिक विवादास्पद नीतियों को बढ़ावा देना रहा है।

यूरेशिया समूह अमेरिका की सबसे प्रभावशाली जोखिम मूल्यांकन कंपनियों में से एक है। टॉप रिस्क 2020 शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत 2020 में सामुदायिक और सांप्रदायिक अस्थिरिता का सामना करेगा। साथ ही इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति पर भी पड़ेगा। इस रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि भारत की तिमाही वृद्धि 4.5% है, जो छह सालों में सबसे कम रही है। ऐसे हालात में केंद्र की मोदी सरकार के पास संरचनात्मक सुधार करने के भी मौके नहीं है। इसके अलावा ये रिपोर्ट ये भी बताती है कि अर्थव्यवस्था के कमज़ोर होने से आर्थिक राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद को बढ़ावा मिलेगा जो 2020 में भारत के लिए मुश्किलें पैदा करेगा ।

इस रिपोर्ट को वैश्विक परिदृश्य में देखें तो अमेरिका को साल 2020 का सबसे बड़ा भू-राजनैतिक जोखिम माना गया है। रिपोर्ट बताती है इस साल अमेरिका को काफी उतार चढ़ाव देखने को मिलेगा। दरअसल अमेरिका में राष्ट्रपति पर चल रहा महाभियोग और न्यायालय में अनेक चुनौतियों वाले कुछ फैसले लंबित जिन पर इसी साल निर्णय सुनाए जाने हैं। साथ ही इसी साल अमेरिका में होने वाले चुनाव भी अमेरिका के इस सूचकांक में शीर्ष पर होने की मुख्य वजह हैं।

टॉप रिस्क 2020 के मुताबिक़ अमेरिका और चीन के बीच मौजूद तनाव भी साल 2020 के शीर्ष जोखिमों में शुमार है। अमेरिका चीन तनाव का असर सुरक्षा, प्रभाव और मूल्यों पर ज़्यादा दिखाई देगा। इसके अलावा ये रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के कई देश और सरकारें कड़े राष्ट्रवाद-आधारित नियामक ढांचे का इस्तेमाल कर बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रति कठोरता अपनाएंगी। साथ ही साल 2020 में अमेरिका और चीन के बीच जारी संरक्षणवाद या एकपक्षीयता भी यूरोपीय संघ के सामने चुनौतियाँ खड़ी कर सकती है।

साल 2020 में जलवायु परिवर्तन का असर भी तमाम कम्पनियों और देशों पर एक समान रूप से पड़ेगा जिससे कार्बन उत्सर्जन पर क़ाबू पाना मुश्किल होगा। टॉप रिस्क 2020 कहती है कि शिया देश भी कुछ स्थानीय अस्थिरता पैदा करेंगे। इसके अलावा मध्यपूर्व में अपना वर्चस्व हांसिल करने की चाह में तुर्की भी वहां कुछ संकट खड़ा कर सकता है। साथ ही लैटिन अमेरिकी अस्थिरता भी साल 2020 के जोखिमों का एक स्रोत होगा।

12.

ऊर्जा मंत्रालय ने बीते दिनों राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 जारी किया है। ये सूचकांक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऊर्जा दक्षता पहल की प्रगति को उजागर करता है। ये सूचकांक राज्‍यों को ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु से संबधित लक्ष्‍यों को हासिल करने में मदद करेगा। इसके साथ ही ये ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में राज्‍यों द्वारा की गई प्रगति और राज्‍यों और देश के एनर्जी फुट प्रिंट के प्रबंधन पर भी नजर रखने में सहायक होगा।

यह सूचकांक एलायंस फॉर एफिशिएंट इकॉनमी और ऊर्जा दक्षता ब्‍यूरो (BEE) द्वारा मिलकर तैयार की गई है। इस तरह का पहला सूचकांक अगस्त 2018 में जारी किया गया था। इस साल के सूचकांक में छह अलग-अलग क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता पहल, कार्यक्रमों और परिणामों का आकलन करने के लिए गुणात्मक, मात्रात्मक तथा परिणाम आधारित संकेतक शामिल किए गए हैं। इन क्षेत्रों में भवन निर्माण, उद्योग, नगरपालिकाएँ, परिवहन, कृषि और बिजली वितरण शामिल हैं।

तर्कसंगत तुलना के लिये राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति यानी Total Primary Energy Supply-TPES पर आधारित चार समूहों में बांटा गया था। इनमें फ्रंट रनर (Front Runner), अचीवर (Achiever), कंटेंडर (Contender) और एस्पिरेंट (Aspirant) में शामिल हैं । देखा जाए तो ‘फ्रंट रनर’ समूह में किसी भी राज्य को जगह नहीं मिली है। केवल हरियाणा, केरल और कर्नाटक जैसे राज्य साल 2019 के लिये 'अचीवर' समूह में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं। इसके अलावा मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्य ‘एस्पिरेंट’ समूह में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।

राज्‍य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 ये बताता है कि राज्यों द्वारा की गई ज़्यादातर पहलें नीतियों और विनियम से जुडी हैं। बीईई द्वारा मानकों और लेबलिंग (एस एंड एल), ईसीबीसी, परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (पीएटी), आदि के कार्यक्रमों के तहत तैयार की गई पहली-पीढ़ी की ऊर्जा दक्षता नीतियों में से अधिकांश को राज्‍यों ने अच्‍छी तरह से अपनाया है। साथ ही अगले चरण में उन्हें ऊर्जा बजत पर अधिक ध्‍यान केन्द्रित करने की ज़रूरत है। बचत प्राप्त करने के लिए इस साल राज्यों द्वारा भेजी गई प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण के आधार पर, राज्य की एजेसिंयों के लिए एक तीन-बिंदुओं वाले एजेंडे का सुझाव दिया गया है। इनमें पहला नीति निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की सक्रिय भूमिका, दूसरा डेटा संकलन और सार्वजनिक रूप से उसकी उपलब्‍धता की व्‍यवस्‍था को मजबूत बनाने के अलावा ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम की विश्‍वसनीयता बढ़ाने के उपाय जैसे तीन प्रमुख एजेंडे शामिल रहे हैं।

13.

दूरसंचार से जुडी गतिविधियां हमारे रोज़मर्रा के कामों का हिस्सा हैं। ऐसे में दूरसंचार की इन्हीं गतिविधियों के लिए अंतरिक्ष के जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में संचार से जुडे उपग्रहों को प्रक्षेपित किय जाता है। बीते दिनों दूरसंचार गतिविधियों से जुड़े भारत के संचार उपग्रह जीसैट-30 सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। भारत के जीसैट-30 को फ्रेंच गुआना के कुरु लॉन्च केंद्र से प्रक्षेपण वाहन एरियन 5 V A - 251 के ज़रिए प्रक्षेपित किया गया। 38 मिनट 25 सेकंड की उड़ान के बाद जीसैट-30 पांचवें चरण में एरियन 5 से अलग होकर भू स्थिर कक्षा यानी जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में प्रवेश कर गई।

दूरसंचार से जुडी सैटलाइटों को जियोस्टेशनरी ऑर्बिट यानी भू-स्थिर कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है। जियोस्टेशनरी ऑर्बिटपृथ्वी से लगभग 36000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होती है। भू स्थिर कक्षा में किसी उपग्रह को पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में 24 घंटे यानी पूरे 1 दिन का समय लगता है। जीसैट-30 उपग्रह के बारे में बताएं तो ये इसरो का एक संचार उपग्रह है। ये एक उन्नत किस्म की सैटलाइट है, जो अगले 15 सालों तक अपनी सेवाएं देश को प्रदान करेगी। इसरो के चेयमैन के सिवन के मुताबिक़ ये काफी शक्तिशाली है और ये इन्सैट 4A उपग्रह की जगह लेगा जिसे साल 2005 में लॉन्च किया गया था। इसरो के चेयरमैन ने बताया कि उपग्रह इसरो के मानक I3K पर आधारित है और इसमें 12 नार्मल सी बैंड और 12 केयू बैंड ट्रांसपोंडर लगे हुए हैं। सी बैंड ट्रांसपोंडर को VSAT टर्मिनलों का इस्तेमाल करते हुए दो तरफ़ा संचार के लिए बनाया गया है। इसके ज़रिए पूर्व में ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम में यूरोप तक संचार सेवाएं उपलब्ध होंगी। इसके अलावा केयू बैंड ट्रांसपोंडर के ज़रिए पूरे भारत और देश के मुख्य द्वीपों पर सेवाएं ली जा सकती हैं। डॉ. सिवन ने यह भी बताया कि जीसैट-30 डीटीएच टेलीविज़न सेवा, एटीएम, स्टॉक-एक्सचेंज, टेलीविज़न अपलिंकिंग एवं टेलीपोर्ट सर्विसेज, डिजिटल सैटेलाइट न्यूज़ गैदरिंग (डीएसएनजी) और ई-गवर्नेंस अनुप्रयोगों के लिए वीसैट से कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इस उपग्रह का उपयोग उभरते दूरसंचार अनुप्रयोगों के लिए बड़ा डेटा ट्रांसफर करने में भी किया जाएगा। देखा जाए तो एरियन 5 वीए- 251 के ज़रिए प्रक्षेपित वाला जीसैट-30 भारत का 24 वां उपग्रह है। इसके अलावा जीसैट-30 इसरो का साल 2020 का पहला मिशन है।

तो ये थी पिछली सप्ताह की कुछ महत्वपूर्ण ख़बरें...आइये अब आपको लिए चलते हैं इस कार्यक्रम के बेहद ही ख़ास सेगमेंट यानी इंडिया राउंडअप में.... जहां आपको मिलेंगी हफ्ते भर की कुछ और ज़रूरी ख़बरें, वो भी फटाफट अंदाज़ में...

फटाफट न्यूज़ (India Roundup):

1 - अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने की आर्टेमिस मिशन सहित आगामी अंतरिक्ष मिशनों के लिए 11 अंतरिक्ष यात्रियों के स्नातक वर्ग की घोषणा। टीम में एक भारतीय अमेरिकी- राजा चारी शामिल।

आर्टेमिस मिशन का मक़सद साल 2024 तक चाँद की धरती पर दोबारा से क़दम रखना है। इस मिशन में शामिल अंतरिक्षयात्री चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरेंगे और इसमें महिलाओं को भी शामिल किया जाएगा। आपको बता दें कि चंद्रमा पर भेजे गये पहले मनुष्य सहित मिशन का नाम अपोलो था।

2 - शंघाई सहयोग संगठन ने किया‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को SCO के आठवें अजूबे के रूप में शामिल। आठ देशों के इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा उठाए इस क़दम का भारत को मिलेगा लाभ। SCO के सदस्य राष्ट्रों के बीच मिलेगा पर्यटन को बढ़ावा देगा

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार सरोवर बाँध के पास मौजूद है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी 182 मीटर ऊँची सरदार वल्लभभाई पटेल की एक प्रतिमा है। नवंबर 2019 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी Statue of Unity ने अमेरिका की 133 साल पुरानी स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को पर्यटकों की आवाजाही के मामले में पीछे छोड़ दिया है।

3 - 16 जनवरी को हुआ लद्दाख में खाद्य प्रसंस्‍करण शिखर सम्मेलन का आयोजन। खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र के समग्र विकास के लिए भागीदारी को बढ़ाना है सम्मेलन का मक़सद। लेह और कारगिल के उद्यमी ने की इस सम्मेलन में शिरकत

4 - कैप्टन तान्या शेरगिल बनी पुरुष बटालियन का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी । 72वें भारतीय सेना दिवस के अवसर पर आयोजित परेड में बनी हैं पंजाब की रहने वाली कैप्टन तान्या शेरगिल पुरुष बटालियन का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी

हर साल 15 जनवरी को जवानों और भारतीय सेना के सम्मान में सेना दिवस मनाया जाता है। भारतीय सेना दिवस मनाने की शुरुआत साल 1949 में की गई थी ।

5 - छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित युवा महोत्सव के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लांच किया रोज़गार संगी नाम का एक मोबाइल एप । प्रदेश के लाखों बेरोज़गार युवाओं को मिल सकेगा इस एप के ज़रिए रोज़गार

6 - कोलकाता बंदरगाह के 150 वें स्थापना दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया कोलकाता बंदरगाह का नाम बदल कर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रखने का ऐलान। देश का एकमात्र नदी बंदरगाह है कोलकाता बंदरगाह

कोलकाता बंदरगाह यानी अब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंदरगाह समुद्र से 203 किमी. की दूरी पर मौजूद है। यह हुगली नदी पर मौजूद है।

7 - संयुक्त राष्ट्र बाल कोष UNICEF ने जारी की ‘लेवल्स एंड ट्रेंड्स इन चाइल्ड मोर्टेलिटी’ रिपोर्ट। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बाल मृत्यु के ज़्यादातर मामले नवजात मृत्यु से हैं संबंधित

ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टीमेशन UN IGME द्वारा जारी की गई जो बच्चों और किशोर युवाओं की मृत्यु दर से जुड़े वार्षिक आँकड़े तैयार करता है। ये रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्रति 1,000 बच्चों के जन्म पर 23 नवजातों की मृत्यु होती है।

8 - भारत और बांग्लादेश ने किया बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान पर फिल्म बनाने के लिये सहमति पत्र पर दस्तख़त । मशहूर फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल करेंगे इस फिल्म का निर्देशन

फिल्म निर्माण के लिये ज़रूरी कोष भारत सरकार द्वारा दिया गया है। साथ ही भारत ने बांग्लादेश में एक फिल्म सिटी बनाने के लिये भी मदद की है।

9- प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को मिला कृषि में योगदान के लिए मुप्पावरापू वेंकैया नायडू राष्ट्रीय पुरस्कार। परुस्कार देते हुए उपराष्ट्रपति ने बताया श्री स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक और कृषि विज्ञान का पुरोधा।

10 - संस्कृति और साहित्य के प्रख्‍यात विद्वान डॉ. एम. चिदानंद मूर्ति का निधन। समृद्ध इतिहास के विशिष्‍ट पहलुओं को संरक्षित करने में था डॉ. एम. चिदानंद मूर्ति का महत्वपूर्ण योगदान

11 - कोलकाता में जिर्णोद्धार की जा चुकीं चार ऐतिहासिक इमारतें हुईं राष्‍ट्र को समर्पित। ओल्‍ड करेंसी बिल्डिंग, बेलवेडियर हाउस, विक्‍टोरिया मेमोरियल हॉल और मेटकॉफ हाउस जैसी प्रतिष्ठित इमारतें हैं इनमें शामिल

सरकार ने देश के पांच संग्रहालयों को अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर का बनाने के लिए उनके आधुनिकीकरण की योजना बनाई है। यह काम कोलकाता में विश्‍व के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक भारतीय संग्रहालय से शुरु किया गया है।

12 - अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में पारित हुआ मराठी को ‘क्लासिकल यानी शास्त्रीय भाषा के रूप में घोषित करने एक प्रस्ताव । मौजूदा वक़्त में 6 भाषाओँ तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया जैसी भाषाओँ को मिला है ‘क्लासिकल भाषा का दर्ज़ा।

शास्त्रीय भाषा का दर्ज़ा तब मिलता है जब भाषा का कम से कम 1500-2000 वर्ष पुराना इतिहास हो, साहित्य/ग्रंथों एवं वक्ताओं की प्राचीन परंपरा हो और साहित्यिक परंपरा की शुरुआत दूसरी भाषाओं से न हुई हो। दरअसल शास्त्रीय भाषा बन जाने के बाद केंद्र उस भाषा पर शोध और विकास के लिए फंड देता है।

13 - IIT मद्रास के शोधकर्ताओं ने विकसित की भारती लिपि में दस्तावेज़ पढ़ने की एक विधि। एक बहु-भाषी ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन OCR योजना का इस्तेमाल करते हुए विकसित की गई ये विधि

IIT मद्रास के शोधकर्ताओं ने की पहले ही नौ भारतीय भाषाओं के लिए एक भारती लिपि नाम की एकीकृत स्क्रिप्ट विकसित की है। भारती लिपिमें जिन लिपियों को एकीकृत किया गया है उनमें देवनागरी, बंगाली, गुरुमुखी, गुजराती, उड़िया, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और तमिल जैसे लिपियाँ शामिल हैं।

14 - ताल ज्वालामुखी के विस्फोट से फिलीपींस में कहर। फिलीपींस देश के लूज़ोन द्वीप पर मौजूद एक सक्रिय ज्वालामुखी है ताल वॉलकैनो

सक्रिय ज्वालामुखी उन ज्वालामुखीयों को कहा जाता है जिन पर समय-समय पर विस्फोट होता रहता है।

15 - जारी हुआ 2020 का हेनले पासपोर्ट सूचकांक। दुनिया के देशों में भारत को मिला इस सूचकांक में 84 वां स्थान

इस सूचकांक में कुल 199 पासपोर्टों और 227 छोटे-बड़े देशों को शामिल किया गया है। ये सूचकांक दुनिया के सभी पासपोर्टों की लिस्ट जारी करता है। ये लिस्ट ये बताती है कि किस देश का नागरिक अपने यहां के पासपोर्ट के ज़रिए कितने देशों में बिना वीज़ा के यात्रा कर सकता है। इस बार के इस इंडेक्स के मुताबिक भारतीय पासपोर्ट के ज़रिए आप दुनिया के 58 देशों में बिना किसी पूर्व वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं। इस रैंकिंग में जापान टॉप पर है।

16 - ताज़े पानी की सबसे बड़ी मछलियों में से एक चीनी पैडलफिश को घोषित किया गया विलुप्त । अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ IUCN की रेड लिस्ट के मानदंड के आधार पर चीनी पैडलफिश घोषित किया गया है विलुप्त

चीनी पैडलफिश मछली को आख़िरी बार साल 2003 में चीन के यांग्त्ज़ी नदी में देखा गया था। चीनी पैडलफिश मछलियों की एक प्रजाति थी। ये क़रीब लंबाई 7 मीटर यानी 23 फीट तक होती थी। कहा जाता है कि चीनी पैडलफिश की उत्पत्ति 200 मिलियन साल पहले हुई थी।

17 - वार्षिक मगरमच्छ जनगणना के मुताबिक ओडिशा के गंजम जिले के घोड़हाडा जलाशय में बढ़ी हैं Mugger Crocodile की संख्या। IUCN की रेड लिस्ट में Vulnerable श्रेणी में शामिल है Mugger Crocodile

18 - 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती के मौके पर देश भर में मनाया गया राष्ट्रीय युवा दिवस। देश का भविष्य माने जाने वाले युवाओं में तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देना है राष्ट्रीय युवा दिवस का मकसद

भारत सरकार ने साल 1984 में, स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया था और उसके बाद पहली बार वर्ष 1985 में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया गया

19 - उत्तरप्रदेश के लखनऊ में हुआ 23वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव-2020 का आयोजन। केंद्रीय युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से संयुक्त रूप से हुआ है इस कार्यक्रम का आयोजन

इस बार राष्ट्रीय युवा महोत्सव की थीम ‘फिट यूथ फिट इंडिया’ रही है। केंद्र सरकार 1995 से राष्ट्रीय युवा महोत्सव का आयोजन कर रही है।

20 - चीन के बाद भारत में बनेगी गौतम बुद्ध की दूसरी सबसे ऊँची प्रतिमा। गुजरात के साबरकांठा ज़िले के देव नी मोरी (Dev Ni Mori) में है 108 मीटर लम्बी गौतम बुद्ध की प्रतिमा बनाने का प्रस्ताव

गौतम बुद्ध की 153 मीट लम्बी सबसे ऊंची प्रतिमा स्प्रिंग टेम्पल के रूप में चीन में मौजूद है। इसके अलावा देव नी मोरी में इस प्रतिमा को बनाए जाने का प्रस्ताव इसलिए है क्यूंकि यहां 1953 में राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में तीसरी-चौथी सदी से जुड़े बौद्ध मठ के अवशेषों का पता लगा था ।

21 - अमेरिका के लास वेगास में आयोजित वार्षिक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स शो 2020 में पेश किया गया नियॉन नाम का दुनिया का पहला कृत्रिम। नियॉन को सैमसंग कंपनी द्वारा किया गया है विकसित

नियॉन, कोरR3 (CoreR3) तकनीक पर आधारित है। ये Virtual Human भावनाओं को बताने, चीज़ों को सीखने, यदाश्त और ख़ुद से फैसले ले सकेगा। इस आभासी मानव का इस्तेमाल शिक्षा, विपणन, ब्रांडिंग, प्रशिक्षण और बिक्री जैसे अलग - अलग क्षेत्रों किया जा सकता है। नियॉन, कोरR3 (CoreR3) तकनीक पर आधारित है।

22 - WHO ने TB के इलाज के लिये भारत के स्वदेशी उपकरण ट्रूनाट को प्रदान की सार्वजनिक रूप से मज़ूरी। ट्रूनाट टीबी परीक्षण एक नया आणविक परीक्षण है जिससे घंटे भर में हो सकती है टीबी की जाँच

23 - पेट्रोलियम मंत्रालय ने की संरक्षण क्षमता महोत्सव SAKSHAM की शुरुआत। जन केंद्रित गतिविधियों के ज़रिए से ईंधन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना है सक्षम महोत्सव का मक़सद

24 - भारत मौसम विज्ञान विभाग IMD ने घोषित किया 1901 के बाद 2010-2019 के दशक को भारत का सबसे गर्म दशक। 2010-2019 के दौरान औसत तापमान पिछले 30 सालों के औसत तापमान से 0.36 डिग्री सेल्सियस रहा है अधिक ।

25 - विश्व बैंक ने जारी किया वूमन बिज़नेस एंड लॉ 2020 इंडेक्स । महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को दर्शाता है ये इंडेक्स

इस सूचकांक में कुल 190 देशों को शामिल किया गया। भारत की इस इंडेक्स में रैंकिंग 117वीं है।

26 - मशहूर सिंधी लेखक वासदेव मोही को मिलेगा 29वाँ सरस्‍वती-सम्‍मान। के. के. बिरला फाउंडेशन की ओर से दिया जाने वाला ये सम्मान वासदेव मोही को उनकी लघु कथा संग्रह- ‘चेकबुक’ के लिये दिया जा रहा है

27 - हरीश साल्वे को इंग्लैंड और वेल्स की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय ने नियुक्त किया अपना काउंसल। कानून के क्षेत्र में महारत हासिल करने वाले को मिलता है ये पद

28 - भारत और जापान के बीच हो रहा है संयुक्त अभ्यास 'सहयोग-कैजिन’ का आयोजन। दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना है इस संयुक्त अभ्यास का मुख्य मक़सद

29 - केंद्रीय गृह मंत्री और ब्रू शरणार्थियों के प्रतिनिधियों ने किया ब्रू शरणार्थियों के संकट को समाप्त करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर। त्रिपुरा में क़रीब 30,000 ब्रू शरणार्थियों को बसाने के लिए 600 करोड़ रुपये का पैकेज देगी केंद्र सरकार

‘ब्रू’’ पूर्वोत्तर में बसने वाला एक जनजाति समूह है। मिजोरम के अधिकांश ‘ब्रू’ जनजाति के लोग मामित और कोलासिब जिलों में रहते है।

ब्रू’’ जनजाति के मिजोरम से त्रिपुरा प्रवास का कारण मिजो जनजाति का ब्रू’’ जनजाति को बाहरी जनजाति समझना और उनके साथ हिंसा करना, माना जाता है।

तो इस सप्ताह के इण्डिया दिस वीक कर्यक्रम में इतना ही। परीक्षा के लिहाज़ से ज़रूरी और भी तमाम महत्वपूर्ण ख़बरों के लिए सब्सक्राइब कीजिए हमारे यूट्यूब चैनल ध्येय IAS को। नमस्कार।