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Blog / 29 Feb 2020

(Global मुद्दे) ट्रंप का भारत दौरा (Trump's India Visit)

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(Global मुद्दे) ट्रंप का भारत दौरा (Trump's India Visit)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): मीरा शंकर (पूर्व राजदूत, अमेरिका), स्मिता शर्मा (डिप्टी एडिटर, ट्रिब्यून)


भारत-अमेरिका संबंध एक नजर में

हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप अपने परिवार समेत भारत का दौरा किया। भारत सरकार ने डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत के लिए नमस्ते ट्रंप का आयोजन किया। भारत से जिस शानदार स्वागत की अपेक्षा डोनाल्ड ट्रंप को थी उन्हें वह सम्मान और प्यार भी भारत द्वारा दिया गया। पिछले 8 महीनों में यह ट्रंप और मोदी के बीच पांचवी मुलाकात है जिससे पता चलता है कि दोनों देशों के मध्य संबंध कितने प्रकार हैं। दोनों देशों के राष्ट्र अध्यक्षों के द्वारा संयुक्त वक्तव्य दिया गया। दोनों देशों के बीच तीन महत्वपूर्ण समझौते संपन्न हुए। इसके साथ ही दोनों देशों बड़े व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ने की सहमति प्रकट की गई। दोनों देशों ने अपने रणनीतिक संबंधों को वैश्विक स्तर पर ले जाने की मंशा भी प्रकट की। इसके साथ ही दोनों देशों ने आंतरिक सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर एक साथ काम करने की प्रतिबद्धता भी दोहराई। इस दौरे में भारत और अमेरिका के बीच 3 अरब डालर के रक्षा उपकरणों की खरीद पर मुहर लगी। इसके तहत अमेरिका उन्नत मिलिट्री उपकरणों के साथ अपाचे और रोमियो हेलीकॉप्टर भारत को देगा। इसके साथ ही अमेरिका के द्वारा भारत को अत्याधुनिक अमरीकी हथियार को देने का ऐलान भी किया जिसमें एयर डिफेंस सिस्टम, मिसाइल और नौसैनिक जहाज भी शामिल है। इंडो पेसिफिक क्षेत्र में अमेरिकी प्राथमिकता को प्रकट करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका आस्ट्रेलिया जापान और भारत के सामूहिक पहल की आवश्यकता पर बल दिया।

भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों का इतिहास

  • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरिका विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बनकर उभरा, जबकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली स्वीकार किया गया एवं भारत ने गुटनिरपेक्ष विदेश नीति अपनाई तथा भारत विकासशील देशों में मुख्य लोकतांत्रिक राज्य था। अमेरिकी विदेश नीति का मूल उद्देश्य साम्यवाद को नियंत्रित एवं प्रतिसंतुलित करना था। अतः अमेरिका ने साम्यवाद को नियंत्रित करने में भारत से सहायता की अपेक्षा की, जबकि भारत ने स्वतंत्र एवं स्वायत्त विदेश नीति अपनाई। भारत के आरंभिक विकास में अमेरिका ने अत्यधिक आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की एवं दोनों देशों की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के कारण भी संबंध मजबूत हुए। परंतु निम्नलिखित कारणों से शीतयुद्ध के दौरान भारत एवं अमेरिकी संबंध प्रतिकूल हुए-
  • भारत ने सार्वजनिक उद्यमों की प्राथमिकता का सिद्धांत अपनाया, जबकि अमेरिका ने निजी उद्यमों को बढ़ावा देने वाला सिद्धांत स्वीकार किया।
  • कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका ने भारत पर दबाव का प्रयोग किया एवं पाकिस्तान का समर्थन किया।
  • भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को अमेरिका ने स्वीकार नहीं किया।
  • भारत द्वारा सोवियत संघ के साथ बेहतर संबंधों को अमेरिका ने संदेह के दृष्टिकोण से देखा।
  • गोवा पर पुर्तगालियों का नियंत्रण तथा पुर्तगाल नाटो का सदस्य था। इसलिए अमेरिका और पुर्तगाल के मध्य मित्रतापूर्ण संबंध थे। वर्ष-1961 में भारत के द्वारा गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए अभियान शुरू हुआ। अतः गोवा की मुक्ति के संबंध में अमेरिका ने पुर्तगाल का समर्थन किया।
  • उपरोक्त मतभेदों के बावजूद 60 के दशक में भारत एवं अमेरिका के संबंध अत्यधिक बेहतर रहे। वर्ष-1962 में भारत-चीन युद्ध में अमेरिका ने भारत का पूर्ण समर्थन किया तथा भारत को तकनीकी एवं आर्थिक सहायता प्रदान की, परंतु भारत एवं अमेरिका के मध्य यह मधुर संबंध ज्यादा दूरगामी सिद्ध नहीं हुआ। क्योंकि वर्ष-1965 के भारत एवं पाकिस्तान युद्ध के बाद अमेरिका ने दोनों देशों को युद्ध के लिए समान रूप में उत्तरदायी माना और भारत के लिए आर्थिक और सैनिक सहायता पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जिससे भारत एवं अमेरिकी संबंधों में दूरी बन गई।

संबंधों में सुधार

  • वर्ष-1998 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा प्रस्तावित थी, परंतु भारत के परमाणु परीक्षण के कारण इसे स्थगित कर दिया गया और वर्ष-2000 में बिल क्लिंटन की भारत यात्रा हुई, जिसमें अमेरिकी-भारत संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयत्न किया गया।

संबंधों में निर्णायक परिवर्तन

  • वर्ष-2003 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 'न्यूयॉर्क एशियाई सोसायटी' के समक्ष भाषण देते हुए कहा कि 'भारत एवं अमेरिका स्वाभाविक मित्र (Natural Ally) हैं।
  • 2014 को भारत-अमेरिका द्वारा एक विजन स्टेटमेंट 'चलें साथ-साथ' जारी किया गया। इस विजन स्टेटमेंट में सुरक्षा, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् एवं भेदभाव रहित परमाणु निःशस्त्रीकरण इत्यादि मुद्दों पर एक-दूसरे के सहयोग की बात की गई है तथा दोनों देशों के बीच विज्ञान, तकनीक, व्यापार एवं रणनीतिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण समझौते भी हुए हैं।
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वर्ष-2014 में की गई सफल अमेरिका यात्रा के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का 66वें भारतीय गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि बनना, भारत-अमेरिकी संबंधों में बढ़ते विश्वास को प्रदर्शित करता है।
  • पिछले वर्ष ‘टू प्लस टू स्तर’ की रणनीतिक वार्ता का प्रारंभ होना
  • 2019 अमेरिका में हाउडी मोदी का आयोजन
  • 2020 भारत में नमस्ते ट्रम्प का आयोजन

दोनों देशों के मध्य गतिरोध के क्षेत्र

कश्मीर मुद्दा

शीतयुद्ध के दौर में भारत एवं अमेरिका संबंधों के कटु होने का महत्वपूर्ण कारण कश्मीर मुद्दा था। कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका ने सदैव पाकिस्तान का समर्थन किया था तथा भारत को दी जाने वाली आर्थिक सहायता को भी कश्मीर मुद्दे से जोड़ा गया। हालांकि अब इस मुद्दे पर अमेरिका के द्वारा संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा है।हाल ही में कश्मीर मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा मध्यस्थता की घोषणा की गई जिसका भारत के द्वारा काफी कड़ी लहजे में विरोध किया गया।

मानवाधिकार का मुद्दा

  • दोनों देशों के मध्य मानवाधिकारों का मुद्दा भी काफी महत्वपूर्ण है। अमेरिका के द्वारा भारत पर हमेशा मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर लगातार हमले किए गए हैं। हाल ही में कश्मीर मुद्दे पर मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता विभाग के द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है।

परमाणु मुद्दा

  • हालांकि भारतीय विदेश नीति में स्पष्ट रूप से निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया गया। किंतु विभेदकारी नीतियों के कारण भारत ने वर्ष-1995 में स्थापित सी. टी. बी. टी. पर हस्ताक्षर नहीं किया गया, न ही वर्ष-1968 में स्थापित एन. पी. टी. पर हस्ताक्षर किया है। परिवर्तित क्षेत्रीय परिस्थितियों और धुर-राजनैतिक बाध्यताओं के कारण भारत ने वर्ष-1974 में और 1998 में परमाणु परीक्षण किया जिसके उपरांत अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाए।
  • हालांकि 2001 के बाद अमेरिकी रुख में परिवर्तन आया है जिसके तहत अमेरिका ने परमाणु क्षेत्र में सहयोग करना शुरू किया है।वर्ष-2005 में भारत और अमेरिका के मध्य सिविल परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किया गया, जिसे वर्ष-2008 से लागू कर दिया गया।इस समझौते के तहत भारत को एनएसजी के सदस्य देशों से असैनिक परमाणु सहयोग को लेकर छूट प्रदान की गई है। द्विपक्षीय संबंधों और असैनिक परमाणु सहयोग को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने भारत को बड़ा तोहफा दिया है। 2019 में अमेरिका ने भारत में 6 परमाणु बिजली संयंत्र बनाने की घोषणा की है। इसके साथ ही अब अमेरिका सक्रिय रूप से भारत को एनएसजी ग्रुप में प्रवेश करने की वकालत कर रहा है। भारत दौरे पर भी ट्रंप ने भारत की एनएसजी की सदस्यता का समर्थन किया। इन सहयोग के बावजूद भारत और अमेरिका के बीच परमाणु मुद्दे पर मतभेद भी कायम हैं, जो निम्नलिखित हैं-
  1. अमेरिका अभी भी भारत के प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम को प्रतिबंधित करने का प्रयत्न कर रहा है।
  2. अमेरिका द्वारा भारत के लिए अभी भी उच्च संवेदनशील तकनीकी का हस्तांतरण नहीं किया जा रहा है, जिससे भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रभावित हो रहा है।

आर्थिक क्षेत्र में

दुनिया के सबसे पुराने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बीच स्थिर व्यापारिक संबंध रहे हैं। हालांकि दोनों देशों के मध्य व्यापार के संदर्भ में कई चुनौतियां विद्यमान हैं विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन में आने के बाद। आपको बता दें भारत और अमेरिका के बीच में व्यापार 1999-2018 के मध्य 16 बिलियन डॉलर से बढ़कर 142 बिलियन डॉलर पहुंच गया है। अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार चीन को पछाड़ हुए अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है।

यूएस की काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के अनुसार “ भारत और यूएसए के मध्य कई व्यापारिक मुद्दों पर मतभेद विद्यमान है। इसमें प्रमुख हैं- टैरिफ, विदेशी निवेश की सीमा, कृषि व्यापार, बौद्धिक संपदा, चिकित्सा उपकरण और डिजिटल अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे इत्यादि।

डोनाल्ड ट्रंप के विदेश नीति के केंद्र बिंदु में अमेरिका के सहयोगी देशों के साथ व्यापार घाटे से संबंधित मुद्दा प्रमुख है। हालांकि भारत इस संदर्भ में शीर्ष देशों में शामिल नहीं होता उदाहरण के लिए भारत के साथ अमेरिका का व्यापारिक घाटा मात्र 23.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है तो वहीं चीन के साथ व्यापारिक घाटा 346 बिलीयन डॉलर है। फिर भी व्यापारिक घाटा की इस अल्प राशि भारत-अमेरिका संबंधों में पिछले कुछ वर्षों से तनाव का केंद्र बिंदु बना हुआ है, खासकर टैरिफ के मामलों में।

यू.एस.-भारत व्यापार में पिछले कुछ वर्षों में गतिरोध के बिंदु:

  • मार्च 2018 में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के नाम पर ट्रंप प्रशासन के द्वारा भारत से आयातित स्टील पर 10% शुल्क लगा दिया गया। इसके साथ ही अमेरिका के द्वारा भारत को जीएसपी से बाहर कर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि “2017 से भारत से अमेरिका को किए जाने वाला निर्यात 12% तक प्रभावित हुआ है।” प्रत्युत्तर में भारत के द्वारा भी बादाम, अखरोट, काजू, सेब, छोले, गेहूं, और मटर समेत 28 अमेरिकी उत्पादों पर उच्च प्रतिशोधी शुल्क लगाया गया।
  • ट्रंप प्रशासन के द्वारा कृषि, डेयरी उत्पादों, बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण, मुक्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल और अन्य चिकित्सीय उपकरणों जैसे मुद्दों पर भारत को समय-समय पर चेतावनी भी दी गई है।
  • हाल ही में यूएसए के द्वारा भारत की विकासशील स्थिति को बदल कर भारत को विकसित देश की श्रेणी में रख दिया गया है। इससे भारत को मिलने वाली व्यापारिक रियायतों के कम होने की संभावना है।
  • भारत और यूएसए के मध्य वीजा प्रतिबंधों को लेकर भी मतभेद व्याप्त है। अमेरिका में रोजगार करने के इच्छुक कुशल पेशेवरों के लिए ट्रंप प्रशासन के द्वारा कई कानूनों के माध्यम से वीजा हासिल करने की प्रक्रिया जटिल कर दी गई है। उदाहरण के लिए हाल ही में वीजा शुल्क को बढ़ा दिया गया है। आपको बता दें भारतीय कुशल पेशेवरों में H1वीजा काफी लोकप्रिय है।

भारत एवं अमेरिका :दृष्टिकोण में भिन्नता

  • अमेरिका, विश्व की महाशक्ति है और अमेरिका के द्वारा भारत को अपना पिछलग्गू बनाने का प्रयत्न किया जाता है, जबकि भारत सामरिक स्वायत्तता की नीति का समर्थक है। इसलिए स्वतंत्र विदेश नीति अपनाता है। भारत, एक बहुध्रुवीय विश्व का समर्थन करता है, परंतु अमेरिका पूरी दुनिया को अमेरिकी प्रभुत्व के अंतर्गत् नियंत्रित करना चाहता है, जिसे लोकप्रिय रूप में "पैक्स अमेरिकाना' (Pax Americana) कहा जाता है।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) की वार्ताओं में भारत और अमेरिका के मध्य स्पष्ट मतभेद विद्यमान हैं। अमेरिका का यह आरोप है कि भारत, विश्व व्यापार संगठन की वार्ताओं में बाधा उत्पन्न करता है, जबकि भारत का मानना है कि इन वार्ताओं में विकासशील देशों के हितों का संरक्षण होना चाहिए। अमेरिका के अनुसार, पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत जैसे देशों को भी क्योटो प्रोटोकॉल पर बाध्यकारी समझौते के लिए तैयार हो जाना चाहिए। भारत के अनुसार, विकासशील देश बाध्यकारी समझौते को मानने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण में विकसित देशों का सर्वाधिक योगदान है। लेकिन दोनों देशों के मध्य पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के मुद्दे पर भी मतभेद विद्यमान हैं। चूंकि भारत, विकासशील देशों के दृष्टिकोण का समर्थक है, जबकि अमेरिका विकसित देशों के दृष्टिकोणों का।
  • अमेरिका के अनुसार, भारत को परमाणु अप्रसार संधि एवं समग्र परमाणु परीक्षण संधि पर हस्ताक्षर कर देना चाहिए। जबकि भारत का तर्क है कि परमाणु हथियारों का समापन समूचे विश्व में होना चाहिए। विकसित देश अपने परमाणु हथियारों को बनाए रखना चाहते हैं, जबकि भारत पर परमाणु अप्रसार का दबाव बनाया जाता है। इसलिए परमाणु अप्रसार के मुद्दे पर भी मतभेद हैं।

दोनों देशों के मध्य सहयोग के क्षेत्र

सामरिक संबंधों का विकास

  • वर्ष-2005 में भारत एवं अमेरिका के बीच रक्षा समझौते के नए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर हुए, जिसके मूलभूत बिंदु निम्नलिखित हैं
  1. सुरक्षा हितों में व्यापक सहयोग।
  2. लॉजिस्टिक सहायता सुविधाओं की लेन-देन।
  3. भारत की नौसेना का हिंद महासागर के बाहर विस्तार।
  • नवंबर, 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने भारत की यात्रा के दौरान पहली बार सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिए भारत का समर्थन किया।

लॉजिस्टिक सहयोग समझौता

  • वर्ष-2016 में भारत-अमेरिकी सामरिक संबंध और सुदृढ़ हो गए दोनों देशों के बीच दोनों की सेनाओं के लिए ईंधन की आपूर्ति, कल-पुर्जी की मरम्मत के क्षेत्र में आपसी सहयोग किया जाएगा। इसके अंतर्गत् अमेरिकी सेनाएं भारत के सैनिक अड्डों पर तैनात नहीं होंगी, परंतु अमेरिकी सेनाओं के हिंद महासागर एवं समुद्री क्षेत्रों में दोनों के द्वारा एक-दूसरे को परिवहन तथा सैन्य संचालन के क्षेत्र में सहयोग दिया जाएगा।

रक्षा संबंध

  • भारत हथियारों के आयात की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है। वर्ष 2014 में भारत के द्वारा अमेरिका के विमानों की खरीद को रद्द करने का कारण तकनीकी है। अभी भी भारत को बड़ी मात्रा में रक्षा सामग्री के आयात की आवश्यकता है।
  • अमेरिका भारत से हथियार निर्यात समझौता करता है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
  1. अमेरिका द्वारा निर्यातित रक्षा उपकरणों को अमेरिका की अनुमति के बिना किसी अन्य देश को नहीं बेचा जाएगा।
  2. भारत, अमेरिकी रक्षा उपकरणों में सुधार नहीं करेगा।
  3. इन रक्षा उपकरणों के विभिन्न सामान अमेरिका से लिए जाएंगे।
  4. अमेरिका इन उपकरणों का निरीक्षण भी कर सकता है तथा निरीक्षण के स्थान का चयन भारत के द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • भविष्य में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सामग्री का संयुक्त उत्पादन पर विचार किया जा रहा है।
  • 2018 में भारत-अमेरिका के बीच COMCASA समझौता: 'संचार, संगतता, सुरक्षा समझौता' यानि कॉमकोसा करार होने के बाद भारत अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकें हासिल कर सकेगा. साथ ही अमेरिका के महत्वपूर्ण संचार नेटवर्क तक भारत की पहुंच होगी, जिससे दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपसी सहयोग सुनिश्चित होगा. यह करार अमेरिका से मंगाए गए रक्षा प्लेटफॉर्मों पर उच्च सुरक्षा वाले अमेरिकी संचार उपकरणों को लगाने की भी इजाज़त देगा.
  • 2020 के डोनाल्ड ट्रंप के इस दौरे में भारत और अमेरिका के बीच तीन अरब डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। जिसमें अमेरिका के 23 एमएच 60 रोमियो हेलिकॉप्टर और छह एएच 64ई अपाचे हेलिकॉप्टर शामिल हैं।

आतंकवाद

  • विश्व व्यापार केंद्र (WTC) और पेंटागन पर अलकायदा द्वारा किया गया हमला बहुत भीषण था, जिसमें 3,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसके बाद बुश प्रशासन ने "आतंक के विरुद्ध युद्ध" (War Against Terror) का नारा दिया, जिसका भारत ने पूर्ण सहयोग का प्रस्ताव किया।
  • वर्ष-2011 में ही एक अमेरिकी सैनिक अधिकारी ने यह स्पष्ट कहा कि अफगानिस्तान में आतंकवाद, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (ISI) द्वारा प्रायोजित है, अमेरिका ने पहली बार यह सार्वजनिक रूप में कहा। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के मध्य आतंकवाद के मुकाबले के लिए सैन्य और आसूचना के क्षेत्र में सहयोग किया जा रहा है। इसके बावजूद दोनों देशों के मध्य 'आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध' को लेकर दृष्टिकोण में निम्नलिखित अंतर हैं
  1. भारत के अनुसार, अफगानिस्तान नहीं, बल्कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला सर्वप्रमुख देश है।
  2. भारत के अनुसार, जम्मू एवं कश्मीर में चल रहे सीमापार आतंकवाद को भी 'आतंक के विरुद्ध युद्ध' में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • हालाँकि विभिन्न मंचों पर भारत और अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई मजबूत करने के प्रति प्रतिबद्धता जताई।
  • हाल के वर्षों में भारत में पाक प्रायोजित आतंकवाद को लेकर अमेरिका बड़ा ही मुखर रहा है। 2019 में 'जैश-ए-मोहम्मद' सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का मसला हो या एसएटीएफ में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करने का मुद्दा। अब अमेरिका आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के अत्यधिक निकट खड़ा प्रतीत होता है। नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद के संदर्भ में संदेश देना भी भारत के लिए कूटनीतिक रूप से एक बड़ी जीत है।

भारतीय मूल के लोग और लोकतंत्र

  • भारत एवं अमेरिकी संबंध को प्रगाढ़ करने और नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में भारतीय मूल के लोगों का निर्णायक योगदान है। अब भारतीय मूल के लोग अमेरिकी विदेश नीति को अत्यधिक प्रभावित कर रहे हैं। पिछले अमेरिकी चुनाव में हिलेरी क्लिटन की उम्मीदवारी को भारतीय मूल के लोगों ने व्यापक आर्थिक सहयोग दिया। अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोग (लगभग 25 लाख) अत्यधिक शिक्षित एवं संपन्न हैं। इसलिए भारत और अमेरिका को अब प्राकृतिक मित्र कहा जा रहा है तथा अमेरिका, दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र और भारत, विश्व का सबसे विशाल लोकतंत्र है। अतः लोकतंत्र के कारण वैचारिक आधार पर भी दोनों देशों के मध्य संबंध मित्रतापूर्ण हो रहे हैं।
  • वर्तमान में हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजन या नमस्ते ट्रंप का आयोजन कहीं ना कहीं अमेरिका में बढ़ते भारतीय मूल के लोगों की संख्या से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप का यह दौरा भारतीय प्रवासियों और भारतीय मूल के लोगों को अपने पक्ष में करने के तहत की गई है। यह तर्क इसलिए भी मजबूत प्रतीक होता है कि इस दौरे में भारत और अमेरिका के मध्य किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत नहीं की गई।

नमस्ते ट्रम्प :

  • यह आयोजन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आवभगत में गुजरात में आयोजित किया गया है , इसके माध्यम से भारत अपनी सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी का सम्पूर्ण विश्व में प्रदर्शन कर सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ताजमहल , बॉलीवुड तथा क्रिकेट से सम्बंधित बात यह दर्शाते हैं की अब भारत अमेरिकी सम्बन्ध सरकार के जुड़ाव से आगे बढ़कर जन जुड़ाव को प्रदर्शित कर रहा है।
  • यह आयोजन , भारत अमेरिका संबंधों में सुधार के साथ हालिया वैश्विक तनावों को कम करने में भी सहायक सिद्ध होगा।