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Blog / 29 Apr 2019

(Global मुद्दे) ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंध (Sanctions of America on Iran)

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(Global मुद्दे) ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंध (Sanctions of America on Iran)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): मीरा शंकर (पूर्व राजदूत, अमेरिका), प्रो. अब्दुल नाफ़े (अमरीकी मामलों के जानकार और विश्लेषक)

चर्चा में क्यूं?

हाल ही में अमेरिका ने ईरान से तेल आयात संबंधी प्रतिबंधों में कुछ देशों को दी गई छूट को निर्धारित 2 मई 2019 से ख़त्म करने का फैसला किया है। अमेरिका ने पिछले साल नवंबर 2018 में ईरान पर प्रतिबन्ध लगाया था। ईरान पर लगाए प्रतिबंधों के दौरान अमेरिका ने भारत समेत चीन, जापान, तुर्की,दक्षिण कोरिया, इटली, ग्रीस और ताइवान देश को सिग्निफ‍िकेंट रिडक्शन एक्सेप्शंस (Significant Reduction Exceptions- SREs) के ज़रिए 6 महीनों तक ईरान से तेल आयात के नियमों में कुछ छूट दी थी। अमेरिका के इस फैसले के तुरंत बाद ही प्रतिबंधों में छूट पाने वाले तीन देशों - इटली, ग्रीस और ताइवान ने अपने आयात को शून्य कर दिया है। जबकि भारत समेत चीन, जापान, तुर्की और दक्षिण कोरिया अभी तक ईरान से तेल आयात करते रहे हैं।

क्या कहा अमेरिका ने?

22 अप्रैल को वाइट हाउस से जारी सन्देश में कहा गया कि अमेरिका ने अपने Significant Reduction Exceptions को फिर से जारी नहीं करने का फैसला लिया है। अमेरिका के मुताबिक़ वो तेल प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वाली किसी भी संस्था या कंपनी पर वित्तीय लगाम लगाएगा जिसमें कंपनियों द्वारा स्विफ्ट बैंकिंग इंटरनेशनल ट्रांजेक्शन सिस्टम के उपयोग पर प्रतिबंध, प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों की किसी भी अमेरिकी संपत्ति की ज़ब्ती और डॉलर में लेन-देन जैसे प्रतिबंध शामिल हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि - ईरान के साथ किसी भी तरह के साझेदारी को बड़ी गलती के तौर पर लिया जाएगा। अब हम आगे कोई छूट नहीं देंगे। हम ईरान से आयत को ज़ीरो पर देखना चाहते हैं। अगर इसके बाद भी कोई देश ईरान के साथ व्यापार जारी रखता है तो उस देश को भी US के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा।

क्यूं लगाया है अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध?

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम लगाने और ईरान पर दबाव बनाने के लिहाज़ से ये प्रतिबन्ध लगाया गया है। अमरीका ने ये फ़ैसला ईरान के तेल निर्यात को शून्य पर लाने के उद्देश्य से किया है। अमेरिका का मुख्य मक़सद ईरान की सरकार के आय के मुख्य स्रोत को समाप्त करना है ताकि ईरान को नए समझौते के लिए राज़ी किया जा सके।

क्या है ईरान परमाणु कार्यक्रम?

ईरान परमाणु समझौता 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों जर्मनी तथा यूरोपीय संघ के बीच वियना में हुआ था ।जुलाई 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौरान लंबे समय से कूटन‍ीतिक पहल के बाद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने वाले इस परमाणु समझौते पर बात बनी थी।

समझौते के मुताबिक़ ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था। साथ ही अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था। इसके अलावा समझौते के ज़रिए ईरान को अपने उच्च संवर्धित यूरेनियम भंडार का 98 प्रतिशत हिस्सा नष्ट करना था और ईरान को अपने मौजूदा परमाणु सेंट्रीफ्यूज में से दो तिहाई को भी हटाना था। अमेरिका इन समझौते के बदले ईरान को तेल और गैस के कारोबार, वित्तीय लेन देन, उड्डयन और जहाज़रानी के क्षेत्रों में लागू प्रतिबंधों में ढील देने के लिए राजी था। लेकिन साल 2016 में आए ट्रम्प ने इस समझौते को घाटे का सौदा बताया और मई 2018 में अमेरिका ईरान परमाणु समझौते से बाहर हो गया।

प्रतिबंधों के लागू होने से क्या होगा भारत पर प्रभाव?

ईरान पर प्रतिबन्ध लगने का मतलब है कि एक बहुत बड़े तेल स्रोत देश को बाज़ार से हटा देना। तेहरान (ईरान) क़रीब 10 लाख बरैल का रोजाना तेल का निर्यात करता है। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज़्यादातर आयात पर ही निर्भर है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोगता है। भारत अपनी ज़रूरत का क़रीब 80 % तेल आयत करता है। ईरान भारत को तेल आयत पर कई तरह की छूट देता है। इन छूटों में - भुगतान के लिए अतिरिक्त दिन का समय, मुफ़्त बीमा और शिपिंग शामिल है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों के लगने से इसका असर सीधे भारत पर पड़ेगा।

विषेशज्ञों के मुताबिक़ हमे तेल और जगहों से भी मिल सकता है, लेकिन वो किन जगहों और किन शर्तों पर मिलेगा ये देखन भी ज़रूरी है। पिछले चार महीने में तेल के दामों में 35% की वृद्धि हुई है। कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर/बैरेल से आगे हो गईं हैं। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। अमेरिका के इस फैसले का असर डॉलर के मुकाबले पैसों पर भी पड़ सकता है। इसके अलावा भारत के एक और शीर्ष तेल प्रदाता देश वेनेजुएला भी भारी उथल पुथल से झूझ रहा है जहां अमेरिका ने वेनेजुएला पर भी निर्यात प्रतिबन्ध लगा दिया है।

ईरान से कितना तेल आयत करता है भारत

भारत चीन के बाद ईरान से तेल आयात करने वाले दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत ने साल 2017 -18 में जहां 220. 4 मिलियन टन तेल का आयात किया था। लेकिन प्रतिबंधों के बाद ईरान से तेल आयात में कमी आई है। प्रतिबंधों के बाद भारत ने ईरान से हर महीने 1. 5 मिलियन टन की ही खरीद की। जबकि प्रतिबंधों के पहले भारत हर महीने क़रीब 22.6 मिलियन टन तेल का आयत करता था।

ईरान नहीं तो कहां से खरीदेगा भारत तेल

ऐसे स्थिति में भारत की निर्भरता सऊदी अरब और UAE पर ज़्यादा हो जाएगी। इसके अलावा अमेरिका ने भारत को अपने यहां से तेल खरीदने का प्रस्ताव दिया है। भारत इराक़ मैक्सिको और कुवैत से भी तेल आयात को बढ़ा सकता है।

भारत क्यूं जा रहा है USA के साथ

पिछले 3 -4 सालों में USA और भारत के रिश्ते काफी बेहतर हुए हैं । कई सारे मामले में अमेरिका भारत के साथ खड़ा है। इन मामलों में पुलवामा अटैक, मसूद अज़हर और NSG में भारत को शामिल किया जाना शामिल है। ख़बरों के मुताबिक़ USA आने वाले समय में भारत में 6 परमाणु संयंत्र भी बनाएगा।

प्रतिबन्ध लगने के बाद अमेरिका ने भारत को अपने यहां से तेल आयात करने की बात कही है। लेकिन लंबी दूरी के चलते वहां से तेल आयात करना भारत को काफी महंगा पद सकता है। ईरान भौगोलिक रूप से भारत के क़रीब होने के बेहतर विकल्प था। हालांकि कहा ये भी जा रहा है कि USA भारत को ईरान जितने दाम पर तेल निर्यात करने के लिए सहमत है। लेकिन अभी भी इस पर बात चीत जारी है।

ईरान पर प्रतिबन्ध का वैश्विक असर

ईरान पर प्रतिबन्ध लगाने से अंतराष्ट्रीय तेल बाज़ारों में इसका असर दिखना शुरू हो गया है। ईरान पर प्रतिबंधों के चलते वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखलाओं पर असर पड़ने की संभावना है, जिससे दुनिया भर में आपूर्ति में कमी आएगी। तेल निर्यातक देशों के संगठन OPEC ने ऐलान किया है कि प्रतिबंधों के बाद OPEC के अंतरष्ट्रीय तेल उत्पादन में कमी आ सकती है। तेल निर्यातक देश का समूह OPEC तेल का 40 % अंतरष्ट्रीय उत्पादन करता है। ईरान OPEC देशों में शामिल है जोकि वैश्विक तेल आपूर्ति में क़रीब 4% की हिस्सेदारी साझा करता है। इसके अलावा अमेरिका ने हाल ही में एक और तेल उत्पादक देश वेनेज़ुएला पर भी प्रतिबंध लगाए हैं।

भारत ईरान द्विपक्षीय सम्बन्ध

ईरान भारत का पुराना आर्थिक और सामरिक सहयोगी है। दोनों देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों का पुरांना इतिहास है। दोनों देश क्षेत्रीय महाशक्ति हैं। भारत चीन के बाद ईरान का दूसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। दोनों देशों का सालाना द्विपक्षीय कारोबार क़रीब दो हज़ार करोड़ डॉलर का है। भारत ईरान को - दवा भारी मशीनरी कल पुर्जे और अनाज का निर्यात करता है। भारतीय कम्पनियाँ ईरान के तेल रिफाइनरी, दवा, फर्टिलाइजर और निर्माण क्षेत्र में पैसा लगा रही हैं।

सामरिक नज़रिए से महत्वपूर्ण है ईरान

ईरान के ज़रिए भारत मध्य एशिया में दाख़िल हो सकता है। जिसमें रूस और अफगानिस्तान जैसे दो महत्वपूर्ण देश भी शामिल है। इसके अलावा मध्य एशिया और मध्य पूर्व में भारत और ईरान दोनों ही देशो के साझा सामरिक हित भी हैं। कई अंतराष्ट्रीय मंचों पर ईरान पकिस्तान के भारत विरोधी प्रस्तावों का समर्थ नहीं करता। 1990 के दशक में भारत और ईरान दोनों ही देश अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के समर्थन में नहीं थे। हालाँकि अमेरिका इसराइल और सऊदी अरब के साथ मध्य एशिया में ईरान के खराब रिश्तो की वजह से संतुलन बनाए रखना मुश्किल है।

चाबहार पोर्ट पर नहीं पड़ेगा कोई असर

भारत के ईरान में निवेश वाले चाबहार पोर्ट पर इस प्रतिबन्ध का कोई असर नहीं होगा। प्रतिबंधों के बावजूद भी भारत चाबहार पोर्ट में निवेश कर सकता है। भारत चाबहार पोर्ट के ज़रिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया में अपने सामानों का निर्यात कर सकता है। दरअसल समुद्र के रिश्ते व्यापार करना काफी सस्ता है। सड़क और रेल परिवहन के मुकाबले क़रीब 1 चौथाई का खर्च आता है। भारत के लिए चाबहार सामरिक नज़रिए से महत्वपूर्ण है। दरसल चीन पकिस्तान के ग्वादार पोर्ट का विकास कर उसे OROB (one road one belt) प्रोजेक्ट से जोड़ रहा है। चाबहार पाकिस्तान और चीन को भारत का जवाब है।

भारत के साथ तेल के अलावा दूसरे विकल्पों की तलाश में ईरान

मार्च महीने में आए सात सदस्यीय ईरानी प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए अन्य क्षेत्रों में सहयोग करने की पेशकश की। ईरान बैंकिंग चैनलों को ज़रिए भारत के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना चाह रहा है। मौजूदा समय में सिर्फ केवल एक बैंक (यूको बैंक) के साथ ईरान के व्यापारिक संबंध हैं। इसके अलावा ईरान द्विपक्षीय व्यापार में सुधार लाने के लिए दोनों देशों के बीच सीमा शुल्कों को कम करने और मुक्त व्यापार समझौतों पर भी सहमति चाहता है। ईरानी संसद ने हाल ही में ईरान और भारत के बीच दोहरे कराधान से बचने के लिए एक समझौते की भी पुष्टि की। इसके अलावा ईरान ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भारतीयों को स्टेपल वीजा और ई-वीजा की भी पेशकश की थी।

भारत के पास क्या है रास्ता?

2 मई में अभी भी 1 - 2 हफ़्ते बाकी हैं। भारत के पास अभी भी मौका है कि वो ट्रम्प सरकार के अधिकारियों से बात करें। भारत को चाहिए कि वो अमेरिका को आगे भी प्रतिबंधों में ढील देने की बात कहे । हालांकि इस बार काफी दिक्क़तें भी आयेंगी। इसकी वजह भारत में चल रहे चुनाव हैं। भारत सरकार के मौजूदा मंत्री चुनाव में व्यस्त हैं। ग़ौर करने वाली बात ये है कि अमेरिका ने भारत और चीन दोनों पर ही एक ही तरीके के ईरान से तेल आयात करने में प्रतिबन्ध लगाए हैं, जोकि बड़ी समस्या है।