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Blog / 12 Jul 2019

(Global मुद्दे) शरणार्थी संकट (Refugee Crisis)

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(Global मुद्दे) शरणार्थी संकट (Refugee Crisis)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): अशोक सज्जनहार (पूर्व राजदूत), प्रो. शीतल शर्मा (अन्तर्राष्ट्रीय जानकार, JNU)

चर्चा में क्यूं?

अमेरिका में अवैध अप्रवासियों का मुद्दा एक बार फिर से सुर्ख़ियों में है। बीते दिनों अपनी 2 साल की बेटी के साथ मेक्सिको से अमेरिका जा रहे एक शख़्स की रियो ग्रांड नदी पार करते हुए मौत हो गई। इस घटना ने एक बार फिर से दुनिया भर में मौजूद शरणार्थी संकट की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस घटना के बार में कहा कि ये हादसा बेहद ही अफ़सोसजनक है और ऐसे हादसों को तुरंत रोका जा सकता है। शरणार्थी संकट के लिए डेमोक्रेट्स को ज़िम्मेदार ठहराते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि अगर डेमोक्रेट्स इस मामले में क़ानून बदल ले तो हालात सुधर सकते हैं।

इस घटना के बाद मेक्सिको सीमा से आए अवैध अप्रवासी बच्चों के लिए 26 जून को अमेरिकी सीनेट ने आपातकालीन मानवीय सहायता के लिए 4.6 बिलियन डॉलर की आपातकालीन सीमा सहायता बिल को मंजूरी दे दी है। ये धनराशि दक्षिण-पश्चिम सीमा पर प्रवासी संकट से निपटने, मानवीय सहायता और सुरक्षा के लिए दी गई है।

शरणार्थी कौन हैं? (Who is Refugees?)

शरणार्थी वो इंसान होता है जो उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपना देश छोड़कर किसी दूसरे देश में रहने के लिए जाता है और डर के नाते वापस अपने मुल्क़ लौटना नहीं चाहता है। किसी देश में मौजूद राजनीतिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक उत्पीड़न के कारण भी लोग शरणार्थी बनते हैं।

दो तिहाई से ज़्यादा शरणार्थी सिर्फ़ पांच देशों से आते हैं: जिनमें सीरिया (67 लाख), अफ़ग़ानिस्तान (27 लाख), दक्षिण सूडान (23 लाख), म्यांमार (11 लाख), और सोमालिया (9 लाख) जैसे देश शामिल हैं। UNHCR की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2018 में सिर्फ 3% शरणार्थी ही अपने देशों में वापस लौटे हैं।

प्रवासी कौन हैं? (Who is Migrants?)

वो व्यक्ति जो अपनी इच्छा से एक बेहतर जीवन के लिए अपनी मर्ज़ी से किसी दूसरे देश में प्रवास करते हैं प्रवासी कहलाते हैं।

अवैध अप्रवासी कौन हैं? (Who is Illegal Immigrants?)

अवैध आप्रवासी का मतलब –

  • किसी दूसरे देश के ऐसे नागरिक से है जो वैध यात्रा दस्तावेज़ो के ज़रिए किसी दूसरे देश में प्रवेश करता है और उनकी वैधता ख़त्म होने के बाद भी उस देश में रहता है।
  • एक विदेशी नागरिक जो वैध यात्रा दस्तावेज़ों के बिना ही किसी दूसरे देश में प्रवेश अवैध अप्रवासी कहलाता है।

आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (Internally Displaced Person)

आंतरिक रूप से विस्थापित श्रेणी में वो लोग आते हैं जिन्हें अपने देश से भागने के लिए मज़बूर किया जाता है। आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति के इन कारणों में शरणार्थियों वाले कारण ही (उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा) शामिल होते हैं। आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति अपने घर समुदाय से दूर ज़रूर हो जाता है लेकिन वो अंतराष्ट्रीय सीमा को पार नहीं करता है। वे अपने आसपास के कस्बों, स्कूलों, बस्तियों, आंतरिक शिविरों, यहां तक कि जंगलों और खेतों में भी जा कर रहते हैं। सबसे बड़ी आंतरिक रूप से विस्थापित आबादी वाले देशों में कोलंबिया, सीरिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और सोमालिया जैसे देश शामिल हैं। UNCHR के मुताबिक़ 41.3 मिलियन लोग दुनिया में आंतरिक रूप से विस्थापित हैं।

शरण तलाशने वाला (Asylum Seeker)

जब लोग अपने देश से किसी दूसरे देश में भाग जाते हैं और वहां वे शरणार्थी के रूप में मान्यता मिलने का अधिकार और कानूनी सुरक्षा व सामग्री सहायता का अधिकार पाना चाहते हैं तो उन्हें शरण तलाशने (Asylum Seeker) वाला कहा जाता है।

UNHCR के मुताबिक़ साल 2018 में 1.7 मिलियन लोग ने शरण तलाशने वाले लोगों के रूप में दर्ज़ किए गए हैं।

राज्य विहीन व्यक्ति (Stateless Person)

एक राज्य विहीन व्यक्ति वो है जो किसी भी देश का नागरिक नहीं है। दरअसल नागरिकता किसी सरकार और एक व्यक्ति के बीच एक कानूनी बंधन होता है जो उस व्यक्ति के कुछ राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और अन्य अधिकारों के लिए अनुमति देता है साथ ही सरकार और नागरिक होने की जिम्मेदारियां भी सौंपता है।

कोई व्यक्ति राजयविहीन संप्रभु, कानूनी, तकनीकी या प्रशासनिक निर्णयों की वजह से हो सकता है। हालाँकि मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा यह रेखांकित करती है कि “सभी को एक राष्ट्रीयता का अधिकार है।

UNHCR के मुताबिक़ क़रीब 10 मिलियन लोग दुनिया में स्टेटलेस हैं या उन पर राज्यविहीन होने का ख़तरा है।

शरणार्थी संकट के कारण ?

  • संघर्ष
  • हिंसा
  • युद्ध
  • बढ़ती अमीरी-ग़रीबी
  • आंतरिक अस्थिरता
  • बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप
  • और आने वाले वक़्त में प्राकृतिक प्रकोप जैसे कारण भी शरणार्थी संकट के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं ।

शरणार्थी संकट का असर ?

  • मानवाधिकारों का हनन
  • मानव तस्करी
  • पहचान का संकट
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा (आतंकवाद)
  • राजनीतिक अस्थिरता
  • जनसँख्या में वृद्धि
  • अराजकता
  • अलगावाद की समस्या
  • इसके अलावा शरणार्थियों को रास्ते में कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है जिसमें उनकी जान भी चली जाती है।

शरणार्थी संकट के लिए क़ानून

1951 का शरणार्थी कन्वेंशन एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून है जो शरणार्थियों को परिभाषित करता है। इस कन्वेंशन के मुताबिक़ इस पर दस्तख़त करने वाले देशों पर शरण देने वाले व्यक्तियों के सभी कानूनी सुरक्षा, सहायता और सामाजिक अधिकारों का पालन करना होता है। मौजूदा वक़्त में कुल 140 देशों ने इस पर दस्तख़त किए हैं। भारत ने न तो शरणार्थी कन्वेंशन 1951 पर दस्तख़त किए हैं और न ही शरणार्थी कन्वेंशन से जुड़े 1967 के प्रोटोकॉल पर।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNCHR) के कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े?

UN की रेफ्यूजी एजेंसी UNHCR के मुताबिक़ - 2018 के आख़िर तक, उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा और मानव अधिकारों के उल्लंघन के चलते दुनिया भर में क़रीब 70.8 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं। वैश्विक रूप से प्रत्येक 108 लोगों में से 1 व्यक्ति शरण तलाशने वाला (Asylum-Seeker) है, आंतरिक रूप से विस्थापित (Internally Displaced) या फिर शरणार्थी (Refugee) है।

भारत में शरणार्थी संकट से जुड़े मामले

  • बंटवारे के बाद आए शरणार्थी
  • तिब्बती शरणार्थी
  • बांग्लादेशी शरणार्थी
  • अफगान शरणार्थी
  • श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी
  • रोहिंग्या शरणार्थी
  • चकमा और हेजोंग शरणार्थी

बंटवारे के बाद आए शरणार्थी

भारत - पाकिस्तान बंटवारे के दौरान ये इजाज़त थी कि कोई भी व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से दोनों में से किसी भी देश में जा कर बस सकता है। लेकिन जब पाकिस्तान ने जबरन सिखों को वहां से भगाया गया तो मज़बूरन उन्हें शरणार्थी के रूप में भारत आना पड़ा। हालाँकि अब ये सभी लोग भारतीय नागरिक हैं।

तिब्बती शरणार्थी

1959 में तिब्बती विद्रोह के विफल होने के बाद दलाईलामा भारत आ गए। उस समय वो क़रीब 1 लाख तिब्बती शरणार्थियों को लेकर भारत आए थे।

बांग्लादेशी शरणार्थी

1971 के पश्चिमी पकिस्तान द्वारा पूर्वी पकिस्तान पर ढाए सितम के दौरान क़रीब दस लाख से ज़्यादा बांग्लादेशी शरणार्थियों ने भारत में शरण ली थी। 2012 में आई केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 80 हज़ार से अधिक बांग्लादेशी नागरिक शरणार्थी बनकर रह रहे हैं।

अफगान शरणार्थी

1979 से 1989 के बीच क़रीब 60,000 से अधिक अफगानी नागरिकों ने भारत में शरण ली। ये लोग 1979 में अफगानिस्तान पर हुए सोवियत आक्रमण भारत आए थे। अफगान शरणार्थियों के अभी भी छोटे समूह भारत आते रहते हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) की वेबसाइट के अनुसार, 1990 के दशक की शुरुआत में अपने घर से भागकर भारत आने वाले कई हिंदू और सिख अफगानों को पिछले एक दशक में नागरिकता प्रदान की गई है। विश्व बैंक और UNHCR की रिपोर्ट से पता चलता है कि मौजूदा वक़्त में भारत में 200,000 से अधिक अफगान शरणार्थी हैं।

श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी

भारत में शरणार्थियों के एक और बड़े समूह में श्रीलंकाई तमिल शामिल हैं। ये शरणार्थी 1983 के ब्लैक जुलाई दंगों जैसी घटनाओं और खूनी श्रीलंकाई गृहयुद्ध द्वारा जारी भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण भारत आए थे। पहली बार 1983 से 1987 के बीच पाक जलडमरूमध्य को पार कर क़रीब 1.34 लाख से अधिक श्रीलंकाई तमिलों भारत आए थे। इसके बाद तीन और स्टेज में श्रीलंकाई शरणार्थी भारत आए। ये लोग भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के चेन्नई, तिरुचापल्ली और कोयंबटूर में, कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु में वह केरला में रह रहे हैं।

रोहिंग्या शरणार्थी

गृह मंत्रालय के मुताबिक़, भारत में लगभग 40,000 रोहिंग्या रहते हैं, जो पिछले कई सालों से में भूमि मार्ग के रास्ते बांग्लादेश से भारत पहुँचे हैं। भारत सरकार ने रोहिंग्या को अवैध प्रवासियों और एक सुरक्षा खतरे के रूप में वर्गीकृत किया है। साथ ही भारत सरकार ने म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस लेने की अपील भी की है।

इसके अलावा म्यांमार में बहुत से लोग रोहिंग्याओं को अवैध आप्रवासियों के रूप में देखते हैं, जहाँ उनके साथ व्यवस्थित तरीके से भेदभाव किया जाता है। म्यांमार सरकार रोहिंग्याओं को अपने देश का नहीं मानती है और उन्हें देश की नागरिकता देने से इनकार करती है। इन समस्याओं के चलते रोहिंग्या शरणार्थी पहले बांग्लादेश और भारत जैसे देशों में जाकर रहने लगते हैं।

चकमा और हेजोंग शरणार्थी

चकमा बौद्ध संप्रदाय से ताल्लुक़ रखते हैं, जबकि हाजोंग आदिवासी समुदाय से आते हैं। चकमा और हेजोंग शरणार्थी पिछले 5 दशकों से भारत में रह रहे हैं।

चकमा और हेजोंग शरणार्थी पश्चिम बंगाल और नार्थ ईस्ट के इलाकों में रह रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, 47,471 चकमा अकेले अरुणाचल प्रदेश में रहते हैं। हालाँकि साल 2015 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को चकमा और हाजोंग शरणार्थियों दोनों को नागरिकता देने का निर्देश दिया था।

कुछ देशों के शरणार्थी संकट:

अमेरिका - मेक्सिको अवैध अप्रवासी संकट

मध्य अमेरिका में हिंसा से परेशान होकर अमेरिका में आने वाले प्रवासियों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। ट्रंप ने मैक्सिको से लगती देश की सीमा से अवैध प्रवासियों के आने को राष्ट्रीय संकट भी घोषित किया है। हालाँकि आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि गैर-कानूनी तौर से सीमा प्रवेश साल 2000 के बाद से कम होता जा रहा है। साल 2000 में जहां 16 लाख लोगों को सीमा पार करते हुए पकड़ा गया था तो वहीं ये आंकड़ा 2018 में 4 लाख था। अमेरिका में कुल अप्रवसियों की संख्या क़रीब 10.7 मिलियन है जबकि अमेरिका में जो लोग बाहरी देशों से आकर रहे रहे हैं उनमें सबसे ज़्यादा संख्या (क़रीब 50%) मेक्सिको के लोगों की ही है। 1995 के बाद से (जब से मेक्सिको की सीमा पर अवरोध बनने शुरू हुए हैं) अमरीका में आने की कोशिश कर रहे लगभग 7000 लोगों की मौत हुई है।

अमेरिका अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए बना रहा है दीवार

अमेरिकी राष्ट्रपति का मानना है कि अमेरिका मेक्सिको सीमा पर मानवीय संकट बढ़ता जा रहा है। साथ ही ड्रग्स का कारोबार भी एक प्रमुख समस्या है।

अतः दोनों देशों की सीमा पर अवैध प्रवासियों तथा बदमाशों की घुसपैठ को रोकने के लिए दीवार बनाई जा रही है।हालाँकि अमेरिकी कांग्रेस इसके लिए धन मुहैया कराने के ख़िलाफ़ है।

मेक्सिको से अमेरिका क्यों आना चाहते हैं शरणार्थी ?

मध्य अमेरिका में बढ़ते अपराध के चलते लोगों का पलायन मेक्सिको में हो रहा है। ऐसे में यहां के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक हालात देश की जनता के हित में नहीं है। इसके अलावा मेक्सिको में ग़रीबी और बेरोज़गारी भी अपने चरम पर है। मेक्सिको के लोग अपने सामाजिक, आर्थिक जीवन को बेहतर बनाने और हिंसामुक्त वातावरण के लिए अमेरिका में शरण चाहते हैं।

यूरोप का शरणार्थी संकट

सीरिया में हिंसा से बचने के लिए लाखों लोगों ने जान जोखिम में डालते हुए भूमध्यसागर को पार कर ग्रीस और इटली में शरण ली थी। ये शरणार्थी 2011 से ही सीरिया जैसे कई देशों से बड़ी संख्या में यूरोप में पहुँच रहे थे। इसके पीछे न केवल गृहयुद्ध बल्कि ISIS द्वारा सबसे हिंसक और अमानवीय अत्याचारों शामिल रहे हैं। यूरोप में आने वाले ये शरणार्थी मध्य पूर्व (सीरिया, इराक), अफ्रीका (इरिट्रिया, नाइजीरिया, सोमालिया, सूडान, गाम्बिया), दक्षिण एशिया और मध्य एशिया जैसे क्षेत्रों से आते हैं। इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) के आंकड़ों के मुताबिक, नागरिक संघर्षों के कारण कुछ शरणार्थी अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भी यूरोप पहुंचे हैं।

UNHCR के मुताबिक़ सीरिया, इराक, अफ़ग़ानिस्तान और दुनिया के कई हिस्सों में जारी संघर्ष के कारण 2016 के आख़िर तक लगभग 5.2 मिलियन शरणार्थी और प्रवासी यूरोपीय तटों पर पहुंचे। UNHCR के मुताबिक़ 2017 में, 170,000 से अधिक लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर समुद्र के रास्ते यूरोप पहुंचने की कोशिश की और उनमें से क़रीब 3,000 से अधिक डूब गए। इसके अलावा 2015 में, भूमध्य सागर को पार करने वाले सभी शरणार्थियों में से आधे सीरिया से आए थे।

यूरोप क्यूँ जाना चाहते हैं शरणार्थी ?

  • आर्थिक रूप से समृद्ध, सामाजिक रूप से सुरक्षित और मित्रवत कानूनों वाला ये क्षेत्र में युद्ध से प्रभावित देशों सबसे पसंदीदा स्थान है।
  • मध्य पूर्व के नज़दीक होने के नाते भी यूरोप पहली पसंद है।

कुछ अन्य देशों के शरणार्थी संकट

  • वेनेज़ुएला का शरणार्थी संकट
  • सीरिया का शरणार्थी संकट
  • रोहिंग्या शरणार्थी संकट
  • सेंट्रल अमेरिका का शरणार्थी संकट
  • साउथ सूडान का शरणार्थी संकट
  • इराक़ का शरणार्थी संकट
  • यूक्रेन का शरणार्थी संकट
  • यमन का शरणार्थी संकट
  • सेंट्रल अफ्रीका रिपब्लिक का शरणार्थी संकट

भारत ने क्यूँ नहीं किए शरणार्थी कन्वेंशन 1951 पर दस्तख़त ?

  • दरअसल भारत की सीमाएं दक्षिण एशिया के जिन देशों से लगती हैं वहां सीमाओं का निर्धारण और चौकसी की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है। इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत के पड़ोसी मुल्कों से आने वाले लोगों की राह और आसान हो जाएगी।
  • शरणार्थियों से आने से देश को सुरक्षा सम्बन्धी ख़तरों का सामना करना पड़ सकता है।
  • अचानक से जनसँख्या बढ़ते पर स्थानीय बुनियादी ढांचे और संसाधनों पर दबाव और भारत की जनसांख्यिकीय संतुलन को बिगाड़ सकता है।
  • इसके अलावा भारत का एक तर्क ये भी है कि भारत पहले से ही शरणार्थियों को लेकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, इसलिए उसे इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने की ज़रूरत नहीं है। भारत शरणार्थियों की देखभाल के लिए संयुक्त राष्ट्र के पैसे भी नहीं लेता है।