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Blog / 15 Apr 2019

(Global मुद्दे) अल्जीरिया - राजनीतिक संकट (Political Crisis in Algeria)

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(Global मुद्दे) अल्जीरिया - राजनीतिक संकट (Political Crisis in Algeria)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): शशांक (पूर्व विदेश सचिव, भारत सरकार), कमर आगा (विदेशी मामलों के जानकार और विश्लेषक)

चर्चा में क्यूं हैं अल्जीरिया

अल्जीरिया में अप्रैल महीने में चुनाव होने है। अब्दुलअज़ीज़ बूतेफ़्लीका पिछले 20 सालों से अल्जीरिया के राष्ट्रपति हैं। अल्जीरिया की राजनीतिक पार्टी नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ने एक बार फिर से अब्दुलअज़ीज़ को राष्ट्रपति पद का उमीदवार घोषित करने का ऐलान किया। नेशनल लिब्रेशन फ़्रंट ने ये ऐलान बीते 10 फरवरी को किया था जिसके बाद अल्जीरिया की जनता राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आई। भारी विरोध प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ को इस्तीफा देना पड़ा। अल्जीरिया के राजनीतिक उथल पुथल का कारण राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ की ओर से 5वीं बार वहां के चुनावों में दावेदारी करना था।

अल्जीरिया का इतिहास

फ्रांस ने अल्जीरिया पर लम्बे समय तक हुकूमत की थी। 1830 में फ्रांस ने अल्जीरिया को अपना औपनिवेशिक देश बनाया। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ्रांस कमजोर होने लगा । 1945 तक आते - आते अल्जीरिया को पूरी उम्मीद हो गई थी कि वो अब आज़ाद हो जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बाद में जब फ्रांस को जब नाजी जर्मनी से आज़ादी मिली तो फ्रांस ने एक बार फिर से अल्जीरिया पर कब्ज़ा जमा लिया।

अल्जीरिया और फ्रांस युद्ध

1945 के बाद से ही अल्जीरिया ने फ्रांस के ख़िलाफ़ संघर्ष करना शुरू कर दिया था। 1954 से 1962 के बीच अल्जीरिया और फ्रांस के बीच जबर्दस्त संघर्ष चला। इस संघर्ष को अल्जीरियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस के नाम से जाना जाता है। इस संघर्ष में क़रीब 1.5 मिलियन अल्जीरियाई लोग मारे गए थे। आख़िरकार साल 1962 में फ्रांस ने अल्जीरिया से हार मान ली जिसके बाद अल्जीरिया एक आज़ाद मुल्क बना। इस संघर्ष में 'आर्मी ऑफ़ नेशनल लिबरेशन' की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

आज़ादी के बाद का अल्जीरिया

आज़ादी के बाद 'अहमद बिन बेला' अल्जीरिया के पहले राष्ट्रपति बने। अहमद बिन बेला' पर भ्रष्टाचार और ठीक ढंग से सरकार नहीं चला पाने के भी कई आरोप लगे। इन आरोपों के बाद साल 1965 में कर्नल Col Houari Boumédiène ने सैन्य तख़्तापलट कर दिया और अल्जीरिया के नए राष्ट्रपति बन गए । कर्नल Col Houari Boumédiène ने अल्जीरिया के संविधान में बदलाव भी किया। अल्जीरिया के संविधान में बदलाव 1976 में हुआ था। इसमें समाजवाद को बढ़ावा देने, देश में इस्लाम धर्म को मान्यता देने और नेशनल लिबरेशन फ्रंट को अल्जीरिया की एकल राजनैतिक पार्टी के रूप में शामिल करने जैसे बदलाव किए गए ।

अल्जीरियन सिविल वॉर 1992

अल्जीरियन सिविल वॉर अल्जीरियाई सरकार और इस्लामिक चरमपंथियों के बीच एक सशस्त्र लड़ाई थी । ये 1991 के वक़्त से ही शुरू हो गई थी। अल्जीरिया में 1992 में राष्ट्रीय संसदीय चुनाव चुनाव हो रहे थे। इस चुनाव में इस्लामिक पार्टी इस्लामिक सैल्वेशन फ़्रंट जीतने जा रही थी जिसके बाद सैन्य कार्रवाई के ज़रिए इस चुनाव को रद्द करवा दिया गया। चुनाव रद्द होने के बाद अल्जीरिया में गृह युद्ध शुरू हो गया। अल्जीरिया की एकल राजनैतिक पार्टी नेशनल लिबरेशन फ्रंट को डर था कि इस्लामिक सैल्वेशन फ़्रंट जीतती है तो लोकतंत्र समाप्त हो जायेगा।

इसीकारण सैन्य कार्रवाई के ज़रिए इस्लामिक सैल्वेशन फ़्रंट पर पाबंदी लगाई गई। इस्लामिक सैल्वेशन फ़्रंट के नेताओं को गिरफ़्तार किया गया। इस्लामिक सैल्वेशन फ़्रंट ने Islamic Armed Movement (MIA), और Armed Islamic Group (GIA) का गठन भी किया अल्जीरियाई सेना से लड़ने के लिए लेकिन वो नाकाम रहे। इस दौरान सराकर और चरमपंथी गुटों के बीच कुछ बातें भी हुई लेकिन ये सारी बातें रद्द हो गई और एक बार फिर से इलेक्शन कराए गए जिसमें General Liamine Zéroual की जीत हुई । इस संघर्ष में क़रीब डेढ़ से दो लाख लोग मारे गए।

कौन हैं अब्दुलअज़ीज़?

अब्दुलअज़ीज़ अल्जीरियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस के एक स्वतंत्रता सेनानी हैं। अब्दुलअज़ीज़ 19 साल की उम्र में ही अल्जीरिया की नेशनल लिबरेशन आर्मी में शामिल हो गए थे। नेशनल लिबरेशन आर्मी ने फ्रांस के ख़िलाफ़ संघर्ष किया था। आज़ादी मिलने के बाद अब्दुलअज़ीज़ 1963 में काफी कम उम्र में 'अहमद बेन बेला' की सरकार में युवा, खेल और पर्यटन मंत्राी बने । इसके बाद, साल 1963 में अब्दुलअज़ीज़ दुनिया के सबसे कम उम्र के विदेश मंत्राी भी बन गए। अब्दुलअज़ीज़ पर भ्रष्टाचार के कुछ आरोप भी लगे। जिसके बाद 1981 से 1987 तक वो स्वयं से इस्तीफ़ा दे कर बाहर रहे। सिविल वॉर के वक़्त जब दोबारा से चुनाव हुए और उनको राष्ट्रपति बनने का मौका मिला तो उन्होंने इंकार कर दिया। लेकिन 1999 के चुनाव में अब्दुलअज़ीज़ ने हिस्सा लिया और पहली बार राष्ट्रपति बने। अल्जीरियन सिविल वॉर को समाप्त करने में अब्दुलअज़ीज़ की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ ने सिविल वॉर को 2005 के अपने चार्ट फॉर पीस एंड नेशनल रीकोंसिलेशन के ज़रिए समाप्त किया था। 1999 से लेकर 2014 तक वो लगातार अल्जीरिया के राष्ट्रपति बने रहे । अब तक वो कुल चार बार अल्जीरिया के राष्ट्रपति रह चुके हैं। मौजूदा समय में वो 82 साल के हैं। 2013 में आए एक स्ट्रोक के बाद अब वो व्हीलचेयर पर हैं और बोल नहीं पाते हैं।

अरब क्रांति और अल्जीरिया

अरब क्रांति का असर अल्जीरिया पर भी था। अरब क्रांति के वक़्त राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ की उनके विरोधियों ने खूब आलोचना भी की। लेकिन 2011 में हुई अरब क्रांति के बावजूद भी राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ की सरकार बरकरार रही। अरब क्रांति की शुरुआत पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में 2010 के दौर में शुरू हुई थी। अरब क्रान्ति की एक ऐसी लहर थी जिसने धरना, विरोध-प्रदर्शन, दंगा व सशस्त्र संघर्ष के बल पर पूरे अरब जगत के साथ समूचे विश्व को हिला कर रख दिया था। अरब क्रांति की मुख्य वजह बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, मंदी और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पाबंदी जैसी समस्याएं शुमार थी। अरब क्रांति की शुरूआत ट्यूनीशिया से शुरू हुई थी।

अरब क्रांति ने कई देशों के शासकों को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया। अरब क्रांति की लपटें अल्जीरिया में तेज़ी से फ़ैली थी लेकिन राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ को अपदस्थ नहीं कर पाई। हालाँकि मौजूदा विरोध को अरब क्रांति से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। अरब क्रांति ने अब तक ट्यूनीशिया, इजिप्ट, और लीबिया जैसे अरब देशों में वहां की सरकारों को उखाड फेंका है।

अल्जीरिया की अर्थव्यवस्था

अल्जीरिया के पास अधिक मात्रा में प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत हैं। इन्हीं स्रोतों पर अल्जीरिया की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। ओपेक के मुताबिक़ अल्जीरिया दुनिया का 16वां 'आयल रिज़र्व' और 9वां प्राकृतिक गैस रिज़र्व वाला देश है। अल्जीरिया अफ्रीका महाद्वीप का भी दूसरा सबसे ज़्यादा आयल रिज़र्व देश है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़ अल्जीरिया 'अपर मिडिल इनकम' वाला देश है। अल्जीरिया की जीडीपी क़रीब 180 बिलियन डॉलर है। अल्जीरिया की Per Capita GDP - 15 हज़ार डॉलर से अधिक है जोकि से भारत की Per Capita GDP (क़रीब 8 हज़ार) से अधिक है।

अल्जीरिया की भौगोलिक स्थिति:

अल्जीरिया यूरोपियन देशों के क़रीब बसा अफ्रीका महाद्वीप का एक देश है। अल्जीरिया की सीमा टुनिशिया, लीबिया नाइजर , माली, मॉरिटानिया और मोरक्को से मिलती है। अल्जीरिया की सीमा भूमध्य सागर से भी मिलती है। भूमध्य सागर से सटे होने के नाते अल्जीरिया को काफी फायदा मिलता है। अल्जीरिया काफी मात्रा में यूरोपियन देशों को नेचुरल एनर्जी एक्सपोर्ट करता है। अल्जीरिया ओपेक संगठन का भी हिस्सा है। अल्जीरिया की कुल आबादी 41 मिलियन यानी 4 करोड़ 10 लाख है। यहां की मुख्य भाषा -अरेबिक फ्रेंच और बेरबेर है और अल्जीरिया का का मुख्य धर्म इस्लाम है। अल्जीरिया की 90 % आबादी राजधानी अल्जीयर्स के पास ही रहती है।

अल्जीरिया की जनता का मत:

अल्जीरिया में सिर्फ एक ही पोलिटिकल पार्टी है। इससे समस्या ये है कि वहां के लोगों को अन्य देशों के मुकाबले लोकतंत्र में उतनी सहूलियतें नहीं है। इसके अलावा अल्जीरियाई जनता सरकार में पूर्ण रूप से बदलाव चाहती है और राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ से परेशान हो गए हैं। उत्तरी अफ्रीका के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादक देश अल्जीरिया की जनता अब कई और अरब और अफ्रीकी देशों की तरह तानाशाही, खस्ता हाल आर्थिक व्यवस्था और बढ़ते भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ है। अल्जीरिया की क़रीब 70% आबादी युवा है और प्रदर्शन कर रहे लोगों में भी ज़्यादातर युवा ही हैं।

ये अल्जीरियाई युवा रोज़गार को लेकर चिंतित हैं। इसके अलावा फ्रांस से आज़ादी मिलने के बाद अल्जीरिया की सत्ता में कुलीन वर्गों का ही प्रभुत्व रहा है और इन्होने बहुत सारे घोटाले भी किए हैं। साथ ही अल्जीरिया की एक चौथाई जनता ग़रीबी की मार झेल रही है।

क्या कहना है जानकारों का?

जानकारों का मानना है कि अल्जीरियाई लोगों ने अरब स्प्रिंग से कुछ सीख ली है। अरब स्प्रिंग ने कई अरब मुल्क़ों के शासकों को ज़मीन पर ला दिया है। अल्जीरिया में चल रही राजनीतिक उठा पटक उसी का हिस्सा है। अल्जीरिया की अर्थव्यवस्था मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीकी देशों से कम है। इसके अलावा 2014 से 2017 के बीच अल्जीरियाई प्रधानमंत्री द्वारा modest devaluation of the currency and the marginal macroeconomic adjustments के कारण भी वहां की जनता काफी नाराज़ है। मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका में मौजूद अरब मुल्क इस घटना पर नज़र बनाए हुए हैं।

आगे की राह

विपक्ष के कुछ लोग हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। नेशनल कोआर्डिनेशन फाॅर चेंज नामक गठबंधन के ज़रिए अल्जीरिया के राजनीतिक संक्रमण को कम करने के लिए एक रोड मैप तैयार करने के लिए काम हो रहा है । राजनीति में सैन्य हस्तक्षेप के लंबे इतिहास को देखते हुए, नेशनल कोआर्डिनेशन फाॅर चेंज ने इसमें हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी है। हालांकि जानकारों का कहना ये भी है कि – ‘गठबंधन में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो अल्जीरिया की समस्या का हल निकाल सके’।

भारत अल्जीरिया द्विपक्षीय सम्बन्ध

भारत और अल्जीरिया के बीच 1962 से ही द्विपक्षीय सम्बन्ध बरक़रार हैं। दोनों देश द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर एक दूसरे को समर्थन करते रहे हैं। भारत और अल्जीरिया के बीच कुल ट्रेड क़रीब 2700 (2018)मिलियन अमेरिकी डॉलर का है। अल्जीरिया में क़रीब 6 हज़ार के भारतीय हैं। भारत अल्जीरिया से गैस, तेल लुब्रिकेंट्स और फास्फेट जैसे सामान आयत करता है। जबकि भारत अल्जीरिया को ऑटोमोबाइल, कृषि, उद्योग तथा खाद्य पदार्थ से जुड़े सामान भेजता है।

अल्जीरिया और भारत के बीच कई समझौते पर सहमति भी हुई है जिनमें -

  • दोहरा कराधान परिहार करार (Double Taxation Avoidance Agreement)
  • फाइटोसेनिट्री क़रार Phytosanitary Agreement
  • वेटेरिनरी सैनिटेशन प्रोटोकॉलVeterinary Sanitation Protocol
  • हवाई सेवा करार Air Service Agreement और
  • लघु एवं मध्यम उद्यम के बीच क़रार Agreement on Cooperation in Small and Medium-scale Enterprises