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Blog / 19 Apr 2019

(Global मुद्दे) इज़राइल चुनाव और पश्चिम एशिया संकट (Israel Election and West Asia Crisis)

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(Global मुद्दे) इज़राइल चुनाव और पश्चिम एशिया संकट (Israel Election and West Asia Crisis)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): कमर आग़ा, (वरिष्ठ अरब पत्रकार, पश्चिम एशियाई मामलों के जानकार), पिनाक रंजन चक्रवर्ती (पूर्व राजदूत)

चर्चा में क्यों?

इज़राइल में आम चुनाव संपन्न हो गए हैं। इज़राइल में हुए संसदीय चुनाव के अंतिम नतीजे गुरूवार (11 अप्रैल ) को जारी कर दिए गए। केंद्रीय चुनाव समिति के प्रमुख जज हनान मेलर के मुताबिक़ बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी लिकुड को सबसे ज़्यादा 36 सीटें मिली हैं। जबकि विपक्षी पार्टी ब्लू एंड वाइट के खाते में 35 सीटें आई हैं। उम्मीद की जा रही है कि नेतन्याहू इज़राइल की दूसरी राइट विंग पार्टियों के साथ गठबंधन करके एक बार फिर से अपनी सरकार बना लेंगे। 9 अप्रैल (मंगलवार) को शुरू हुए चुनाव की अभी तक लगभग 97 फीसदी मतों की गणना की जा चुकी है।

कौन कौन पार्टी थी चुनाव में?

इज़राइल के 2019 के आम चुनाव में दो मुख्य पार्टियों 'लिकुड' और 'ब्लू एंड वाइट' गठबंधन के बीच मुकाबला था। बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी 'लिकुड' दक्षिणपंथी विचारधारा (राइट विंग) को सपोर्ट करती है। वहीं विपक्षी नेता बेनी गांट्ज़ की ब्लू एंड वाइट पार्टी एक गठबंधन वाली पार्टी है। विपक्षी नेता बेनी गांट्ज़ इज़राइली सेना के पूर्व प्रमुख जनरल हैं। दिसंबर 2018 में वो ‘इज़राइल रेसिलिएंस’ नाम की पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में आए थे। शुरुआत में उनकी पार्टी को बड़ी चुनौती नहीं माना जा रहा था, लेकिन फरवरी 2019 में बेनी गांट्ज़ ने सेना के तीन और पूर्व जनरलों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और गठबंधन करके ‘ब्लू एंड वाइट’ पार्टी बनाई।

कैसी है इज़राइल की संसद?

इजराइली संसद को नेसेट कहा जाता है। इज़राइल की संसद में कुल 120 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को कम से कम 3.25 प्रतिशत वोट की ज़रूरत होती है। इज़राइल में चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व पार्टी सिस्टम’ के ज़रिए कराया जाता है। अनुपातिक प्रतिनिधित्व पार्टी सिस्टम को आसान शब्दों में समझे तो इसका मतलब है कि सबसे अधिक वोट पाने वाली पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बने ये ज़रूरी नहीं है। इज़राइल चुनाव में जब तक कोई पार्टी 120 सीटों में से 61 सीटें हासिल नहीं करती तब तक वो प्रधानमंत्री पद की दावेदारी नहीं कर सकती। चुनाव के बाद इजराइली राष्ट्रपति उस उम्मीदवार को ही सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं जो गठबंधन करके सरकार बनाने में सक्षम होता है। चुनाव होने के बाद ये सारी प्रक्रिया 28 दिनों के भीतर पूरी कर ली जाती है। इज़राइल के इतिहास में कोई पार्टी पूर्ण रूप से बहुमत में नहीं आई है।

किसकी बन सकती है सरकरार?

36 सीटें जीतने के बाद पूरी उम्मीद है कि बेंजामिन नेतन्याहू के बार फिर इज़राइल के प्रधानमंत्री बने। क्यूंकि इज़राइल की लगभग सभी दक्षिणपंथी पार्टियां चुनाव नतीजे आने के बाद नेतन्याहू की पार्टी लिकुड को ही अपना समर्थन देती रही हैं। इस बार के चुनाव में भी दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टियों को काफी संख्या में जीत मिली है। कहा जा रहा है कि नेतन्याहू दक्षिणपंथी पार्टियों से गठबंधन करके क़रीब 65 - 66 सीटें पाने में कामयाब हो जायेंगे। जबकि इज़राइल में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 61 सीटों की ज़रूरत होती है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक प्रतिद्वंदी पार्टी ‘ब्लू एंड वाइट’ तमाम गठजोड़ के बाद भी केवल 54 सीटें ही हांसिल कर पायेगी।

बेंजामिन पर क्या हैं आरोप?

इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर कई आरोप हैं।

1. CASE 1000 - इस केस के मुताबिक़ पुलिस ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर "रिश्वत, धोखाधड़ी और विश्वास के उल्लंघन के अपराधों के लिए" आरोप लगाए हैं। इसके अलावा हॉलीवुड निर्माता और इज़राइली नागरिक अर्नोन मिलचन और ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायी जेम्स पैकर ने 2007 से 2016 तक नेतन्याहू और उनके परिवार को शैंपेन, सिगार और आभूषण सहित कई कीमती उपहार दिए।

2. CASE 2000 - इस केस के मुताबिक़ नेतन्याहू को बेहतर कवरेज के लिए इज़राइल के सबसे ज्यादा बिकने वाले दैनिक समाचार पत्र, 'Yedioth Ahronoth' के मालिक के साथ सौदे पर बातचीत करने का संदेह है। पुलिस आरोपों के मुताबिक़ नेतन्याहू ने समाचार पत्र 'Yedioth Ahronoth' के प्रकाशक आरोनोन मोजेज के साथ गुप्त समझौते कर अपने पक्ष में खबरें छपवाईं थी।

3. CASE 4000 - इस केस के मुताबिक भी पुलिस को नेतन्याहू और उनकी पत्नी सारा के ख़िलाफ़ रिश्वत और धोखाधड़ी के आरोपों के लिए पर्याप्त सबूत मिले थे। पुलिस आरोपों के मुताबिक़ नेतन्याहू ने इज़राइल की प्रमुख दूरसंचार कंपनी बेज़ेक टेलीकॉम इज़राइल (BEZQ.TA) को नियमों में ढील दी। जिसके बदले में नेतन्याहू और उनकी पत्नी सारा को 'वाल्ला' नाम से जानी जाने वाली एक समाचार कंपनी की वेबसाइट पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।

  • इज़राइल के अटॉर्नी जनरल भ्रष्टाचार के तीन मामलों में पुलिस जांच के बाद उनके खिलाफ मुकदमा चलाए जाने की इजाजत दे चुके हैं।

नेतन्याहू के जीतने से अरब देशों की मुश्किल

गाजा में फलीस्तीनी चरमपंथियों और इजराइली सेना के बीच लम्बे समय से संघर्ष चल रहा है। फलीस्तीन को लेकर बेंजामिन के रुख़ सख्त है। नेतन्याहू का जीतना अरब देशों में तनाव को और बढ़ा सकता है। वो ये पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि यदि वो सत्ता ने आते हैं तो वेस्ट बैंक वाले कुछ इलाकों को इज़राइल में शामिल कर लिया जाएगा। इसके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान भी नेतन्याहू ने विपक्षी दलों को वोट नहीं देने की अपील की थी। क्यूंकि ये इज़राइल के अल्पसंख्यक अरबी लोगों के समर्थन में वोट देने जैसा होगा।

अरब देशों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

जानकारों के मुताबिक़ नेतन्याहू की इस जीत से स्वतन्त्र फलस्तीन का सपना अब धूमिल हो सकता है। अरब देशों की हालत कमजोर है। फलस्तीन भी पहली की तरह एकजुट नहीं है। दूसरी ओर इज़राइल पहले से ज़्यादा मज़बूत है और उसे अमेरिका का समर्थन है।

अरब देशों के नेता फलस्तीन का समर्थन करने के बजाय अपनी सत्ता बचाए रखने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। सऊदी अरब और UAE जैसे खाड़ी देश तो इज़राइल के साथ अपने समबन्ध बेहतर बना रहे हैं। सऊदी अरब अपने विरोधी मुल्क़ से मुकाबले के लिए इज़राइल को ज़्यादा तवज्ज़ो दे रहा है। आतंकी संगठन चलते सीरिया और इराक़ की हालत पहले से ही कमजोर है।

जानकारों की मानें तो चुनाव से तुरंत पहले अपने ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठता देख, नेतन्याहू ने दक्षिणपंथ का सहारा लिया। नेतन्याहू ने चुनाव प्रचार के दौरान अपना पूरा ध्यान चुनाव को राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथ और फिलस्तीन विरोध पर केंद्रित रखा था। नेतन्याहू ने देश की एक कट्टरपंथी यहूदी पार्टी ‘ज्यूइश पावर’ को भी अपने गठबंधन में शामिल किया।

नेतन्याहू की जीत के X फैक्टर

अगर नेतन्याहू एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनते हैं तो वो इज़राइल के इतिहास में सबसे ज्यादा वक्त तक प्रधानमंत्री बनने वाले शख़्स होंगे। इज़राइली पीएम ख़ुद को 'मिस्टर सिक्यॉरिटी' कहते है। तमाम आरोपों से घिरे नेतन्याहू की ये कामयाबी बहुत बड़ी जीत है। क्योंकि कई भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कहा जा रहा था कि अब उनका प्रधानमंत्री बनना लगभग नामुमकिन है। बेंजामिन नेतन्याहू ने चुनाव में फायदे के लिए अपने कूटनीतिक संबंधों का भी भरपूर इस्तेमाल किया। मार्च महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इज़राइली प्रधानमंत्री की मांग को मानते हुए ‘गोलान हाइट्स’ वाले पहाड़ी इलाके पर इज़राइल के प्रभुत्व को मान्यता दे दी थी। कुछ सर्वेक्षणों के मुताबिक़ नेतन्याहू को अमेरिका के इस फैसले से चुनाव में काफी लाभ मिला है। इससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने अंतरराष्ट्रीय विरोधों को नजरअंदाज करते हुए यरूशलम को इज़राइल की राजधानी मान्यता दी थी। साथ ही उन्होंने अमेरिकी दूतावास को भी तेल अवीव से यरुशलम ले जाने की बात कही थी।

इज़राइल का ज्यूस नेशन बिल 2018

पिछले साल इजराइली संसद में एक बिल ('ज्यूस नेशन बिल) पास करके को इज़राइल को यहूदी राष्ट्र घोषित कर दिया गया। इस बिल के दौरान ही यरूशलम को इज़राइल की राजधानी घोषित कर दिया गया। संसद में पास बिल हुए इस बिल को उस वक़्त देशहित में लिया गया फैसला बताया गया था। इज़राइल की 90 लाख की आबादी में 20% (18 लाख) अरब मुस्लिम हैं। अरबों को भी वहां यहूदियों की तरह ही अधिकार दिए गए हैं।

लेकिन, वे लंबे समय से दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह बर्ताव होने और भेदभाव की शिकायतें करते रहे हैं।

इज़राइल-भारत द्विपक्षीय सम्बन्ध

भारत और इज़राइल के बीच रक्षा और कृषि द्विपक्षीय सम्बन्धो के मुख्य आधार हैं। 2012-15 की पिछली योजना में हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों के कृषि क्षेत्र में विस्तार किया गया है। इसके अलावा भारत इज़राइल से महत्वपूर्ण रक्षा सामानों का आयात करता रहा है।

भारत ने 17 सितम्बर 1950 को इज़राइल को मान्यता दी थी। पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा और विज्ञानं प्रौद्योगिकी और होमलैंड क्षेत्र दोनों देशों के बीच सहयोग और बढ़ा है। भारत की ओर से इज़राइल को जिन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है उनमें - बहुमूल्य पत्थर एवं मेटल,रासायनिक उत्पाद, टेक्सटाइल तथा टेक्सटाइल की वस्तएं, प्लांट एवं वनस्पति उत्पाद तथा खनिज उत्पाद शामिल हैं। भारत इज़राइल से जिन वस्त ओं का आयात करता है उनमें - बहुमूल्य पत्थर एवं मेटल, रासायनिक पदार्थ (मुख्यता पोटास) एवं खनिज उत्पाद के अलावा बेसमेटल तथा मशीनरी एवं परिवहन उपकरण शामिल हैं।

पर्यटन व्यवसाय और प्रयोजन के लिए हार साल करीब 35 हज़ार इजराइली भारत आते हैं। इसके अलावा 40 हज़ार भारतीय भी हर साल भारत की यात्रा करते हैं। इज़राइल में भारतीय मूल के तकरीबन 80,000 यहूदी हैं। 2011 में भारत और इज़राइल का द्विपक्षीय व्यापार 5.19 अमरीकी डालर था। मौजूदा समय में इज़राइल की कंपनियों ने भारत में ऊजाा, नवीकरण ऊजा, रियल स्टेट जल पौद्योगिकी में निवेश किया है। तथा भारत में आर एंड डी सेंटर व उत्पादन यूनिटें भी स्थापित कर रही है।

मध्य-पूर्व में भारत एक ख़ास स्थिति में है। भारत एक साथ इज़राइल, ईरान और सऊदी तीनों के साथ संबंध रख रहा है। भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार 2016-17 में अरब देशों से भारत का व्यापार 121 अरब डॉलर का रहा था। इसके अलावा अरब देशों में बड़ी संख्या में भारतीय मुसलमान काम करते हैं। हालांकि भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा का इज़राइल के साथ शुरू से ही सहानुभूति रही है। ऐसे हालात में मौजूदा राइट विंग पार्टी के साथ नेतन्याहू के सम्बन्ध बेहतर हैं। बेंजामिन नेतन्याहू मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताते हैं। भारत में भी चुनाव चल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतन्याहू को उनकी जीत के लिए बधाई दी है। बीते साल भारत दौरे पर आए इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कई अहम बैठकों में हिस्सा लिया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इज़राइली पीएम बेंजामिन के बीच हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। दोनों देशों के बीच 9 बड़े समझौते हुए थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच फिल्म निर्माण, साइबर सुरक्षा, तेल और ऊर्जा, कृषि, अंतरिक्ष के क्षेत्र में समझौते हुए थे।