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Blog / 10 Dec 2019

(Global मुद्दे) भारत - जापान 2+2 वार्ता (India-Japan 2+2 Dialogue)

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(Global मुद्दे) भारत - जापान 2+2 वार्ता (India-Japan 2+2 Dialogue)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): स्कन्द तायल (पूर्व राजदूत), प्रो. राजाराम पांडा (भारत-जापान मामलों के जानकार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत और जापान के बीच नई दिल्ली में पहली बार 2+2 वार्ता का आयोजन हुआ। विदेश और रक्षा मंत्री के स्तर पर हुई इस वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने आपसी हितों के अलावा अन्य मुद्दों मसलन रक्षा और सैन्य संबंधों को विस्तार देने पर चर्चा की। यह वार्ता आगामी 15-17 दिसंबर के दौरान असम के गुवाहाटी में होने वाले ‘भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन’ के लिहाज से अहम मानी जा रही है। ग़ौरतलब है कि जापान से पहले भारत अमेरिका के साथ एक ऐसी ही 2+2 वार्ता कर चुका है।

कौन-कौन थे इस वार्ता के भागीदार?

भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने किया जबकि जापान का प्रतिनिधित्व वहां के विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोटेगी और रक्षा मंत्री तारो कोनो ने किया।

2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता की पृष्ठभूमि

पहले दोनों देशों के विदेश और रक्षा सचिवों के स्तर पर वार्ता हुआ करती थी। सचिव स्तर की यह वार्ता सबसे पहले साल 2010 में आयोजित हुई थी। मौजूदा 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता सचिव स्तर की इसी वार्ता का अपग्रेड रूप है। ग़ौरतलब है कि साल 2018 में प्रधानमंत्री मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच 13वें शिखर सम्मेलन की वार्ता हुई थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सुरक्षा व रक्षा सहयोग को मजबूती देने, विशेष सामरिक व वैश्विक भागीदारी में मज़बूती लाने के मकसद से एक नई व्यवस्था शुरू करने का फैसला लिया गया था।

प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा?

‘टू प्लस टू वार्ता’ में शामिल होने के लिए आए जापानी मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि हिंद महासागर में शांति, समृद्धि और स्थिरता के लिहाज से भारत-जापान संबंध काफी अहम है। उन्होंने आगे कहा कि वे और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय साझेदारी को काफी महत्व देते हैं और उन्हें प्रधानमंत्री आबे के आगमन का इंतजार रहेगा।

‘2+2 डायलॉग मॉडल’ क्या है?

दरअसल जब दो देशों के बीच एक साथ ही दो-दो मंत्रिस्तरीय वार्ताओं का आयोजन किया जाता है, इसे ‘2+2 डायलॉग मॉडल’ का नाम दिया जाता है। भारत-जापान या भारत-अमेरिका या फिर भारत-ऑस्ट्रेलिया बीच इसी डायलॉग मॉडल के तहत वार्ताओं का आयोजन किया गया है।

क्या वार्ता हुई दोनों देशों के बीच?

विदेश मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक दोनों देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिति तथा भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और जापान की ‘फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक विजन’ के तहत अपने-अपने प्रयासों पर एक दूसरे के विचारों को साझा किया। इसका मकसद क्षेत्र में शांति, समृद्धि और प्रगति के साझा उद्देश्य को पाना है। दूसरे शब्दों में, हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती धमक को संतुलित करना जरूरी है।

इस 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता में हिंद-प्रशांत क्षेत्र समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा की गई। इसके बाद दोनों पक्षों की तरफ से एक साझा बयान जारी किया गया। इस बयान में आतंकवाद के बढ़ते खतरे की निंदा की गई और पाकिस्तान से चल रहे आतंकी नेटवर्क को क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया। इसके अलावा ऐसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी बात कही गई। दोनों देशों के मंत्रियों ने आतंकवाद जैसी बुराई का मुकाबला करने के लिए मजबूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी पर जोर दिया। इस साझेदारी में सूचना और खुफिया जानकारी को भी साझा करने की बात कही गई।

मंत्रियों ने अक्तूबर, 2018 में ऐक्विज़िशन एंड क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट (एसीएसए) प्रारंभ किए जाने की घोषणा के बाद से इससे संबंधित बातचीत में हुई महत्वपूर्ण प्रगति का स्वागत किया। मंत्रियों ने विचार-विमर्श के जल्द समाप्त होने की इच्छा व्यक्त की और उनका मानना था कि यह समझौता दोनों पक्षों के बीच रक्षा सहयोग को और बढ़ाने में योगदान देगा।

मंत्रियों ने पिछले साल द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को प्रगाढ़ बनाने की दिशा में प्रगति का स्वागत किया। उन्होंने, हाल ही में संपन्न द्वितीय ‘धर्म गार्जियन-2019’ और द्वितीय ‘शिन्यू मैत्री-2019’ का स्वागत किया।
भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपने जापानी समकक्ष से 2+2 वार्ता से पहले भी काफी कुछ बात किया। दोनों नेताओं ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा समेत कई सामरिक मुद्दों पर बात की और समुद्री सुरक्षा सहयोग को और बढ़ाने की बात कही। इसके अलावा दोनों पक्षों ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण ढांचे के अंतर्गत हथियार और सैन्य हार्ड-वेयर के विकास में संबंधों को गति देने पर भी चर्चा की। जापानी रक्षामंत्री ने भारतीय वायुसेना के हिंडन एयरबेस का दौरा भी किया।

क्या है हिंद प्रशांत क्षेत्र और इसकी अहमियत?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है। इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है।

यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है, जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है। ट्रंप द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘एशिया-प्रशांत रणनीति’ (Indo-Pacific Strategy) का अर्थ है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य प्रमुख एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान और ऑस्ट्रेलिया, ‘शीत युद्ध’ के बढ़ते प्रभाव के नए ढाँचे में चीन को रोकने में शामिल होंगे। मौजूदा वक्त में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 फ़ीसदी, विश्व की कुल आबादी का 65 फ़ीसदी, विश्व की कुल GDP का 62 फीसदी और विश्व के माल व्यापार का 46 फ़ीसदी योगदान देते हैं।

RCEP में अगर भारत नहीं तो जापान भी नहीं

हाल ही में भारत ने RCEP में नहीं शामिल होने की बात कही थी। मौजूदा ‘टू प्लस टू वार्ता’ के दौरान जापान ने भी इस बात के संकेत दिए कि अगर भारत RCEP में शामिल नहीं होता है तो जापान भी इसमें शामिल नहीं होगा। जापान की पूरी कोशिश होगी कि भारत को विश्वास में लेकर ही RCEP से जुड़े किसी अंतिम निर्णय पर पहुंचा जाए। भारत और जापान एशिया की दो बड़ी शक्तियां हैं, और अगर ये दोनों देश RCEP से बाहर रहते हैं तो ऐसे में RCEP का महत्व काफी कम हो जाएगा। कूटनीतिक लिहाज़ से भारत के लिए यह एक बड़ी बात है कि RCEP जैसे एक बड़े आर्थिक सहयोग संगठन में भारत को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होगा।

निष्कर्ष

अभी देखने वाली बात होगी कि जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के भारत आगमन के बाद दोनों देशों के संबंधों में नया क्या होता है। बहरहाल अभी के लिए विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग में सैन्य अभ्यास के अलावा रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में काफी गुंजाइश है। और इसके लिए जापानी एनडीपीजी और भारत के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम बेहतर जरिया साबित हो सकते हैं।