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Blog / 26 Dec 2019

(Global मुद्दे) भारत - अमेरिका दूसरी 2+2 वार्ता (India America 2nd 2+2 Dialogue)

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(Global मुद्दे) भारत - अमेरिका दूसरी 2+2 वार्ता (India America 2nd 2+2 Dialogue)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): शशांक (पूर्व विदेश सचिव), प्रो. अब्दुल नाफ़े (अमेरिकी मामलों के जानकार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, वॉशिंगटन में भारत और अमेरिका के बीच दूसरी 2+2 वार्ता संपन्न हुई। इस बातचीत में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भाग लिया। जबकि अमेरिका की तरफ से विदेश मंत्री माइकल आर पोम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क टी एस्पर ने प्रतिनिधित्व किया। इस वार्ता के दौरान दोनों देशों ने क्षेत्रीय, रक्षा संबंध, आतंकवाद और व्यापारिक संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। साथ ही दोनों देशों के बीच एक औद्योगिक सुरक्षा समझौते पर दस्तखत किया गया। ये समझौता रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की अनुमति देने वाला है। वार्ता के बाद दोनों भारतीय मंत्रियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प से भी मुलाकात की।

इस वार्ता की पृष्ठभूमि

टू प्लस टू (2+2) वार्ता का फैसला जून 2017 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक में किया गया था। टू प्लस टू वार्ता की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि अमेरिका इस तरह का साझा विमर्श अभी तक सिर्फ आस्ट्रेलिया और जापान के साथ करता था। इन दोनों देशों को वह अपने रणनीतिक मामलों के लिहाज से बेहद अहम मानता है। लेकिन अब भारत की भी अहमियत अमेरिका के लिए बढ़ चुकी है। आपको बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच 2+2 वार्ता का पहला चरण पिछले साल सितंबर 2018 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था।

‘2+2 डायलॉग मॉडल’ क्या है?

दरअसल जब दो देशों के बीच एक साथ ही दो-दो मंत्रिस्तरीय वार्ताओं का आयोजन किया जाता है, इसे ‘2+2 डायलॉग मॉडल’ का नाम दिया जाता है। भारत-जापान या भारत-अमेरिका या फिर भारत-ऑस्ट्रेलिया बीच इसी डायलॉग मॉडल के तहत वार्ताओं का आयोजन किया गया है।

संयुक्त बयान में क्या कहा गया?

इस 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता में अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका होरमुज़ की खाड़ी, कोरियाई प्रायद्वीप और हिंद महासागर क्षेत्र समेत कई अहम मुद्दों और क्षेत्रों को लेकर चर्चा हुई। इसके बाद दोनों पक्षों की तरफ से एक साझा बयान जारी किया गया। इस बयान में आतंकवाद के बढ़ते खतरे की निंदा की गई और पाकिस्तान अन्य देशों से चल रहे आतंकी नेटवर्क को क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया। इसके अलावा ऐसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी बात कही गई। दोनों देशों के मंत्रियों ने आतंकवाद जैसी बुराई का मुकाबला करने के लिए मजबूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी पर जोर दिया।

  • दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष में खोज, रक्षा तथा औद्योगिक समन्वय जैसे क्षेत्रों में नए समझौते किए गए।
  • अमेरिका ने यूएनएससी में भारत की स्थाई सदस्यता और एनएसजी में भी भारत की सदस्यता का समर्थन किया। दोनों देशों ने क्वैड(QUAD) समूह के लिए चल रहे प्रयासों का स्वागत किया।
  • आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए अमेरिका ने भारत के गठबंधन का समर्थन किया है।
  • दोनों देशों ने अफगानिस्तान में शांति बहाली की वकालत की और इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए जरूरी बताया।
  • दोनों देश ग्लोबल स्ट्रेटैजिक पार्टनरशिप के तहत काम कर रहे हैं। भारत और अमेरिका के बीच हस्ताक्षरित सीओएमसीएएसए और एलईएमओए जैसे कदमों को सराहा गया।
  • इसके अलावा दोनों देशों के बीच बढ़ते द्विपक्षीय व्यापार को लेकर फिर संतोष जाहिर किया गया। पिछले 24 महीनो में अमरीका से कच्चे तेल और एलएनजी का निर्यात 6 बिलियन डॉलर से बढ़ गया है। इसे दोनों देशों की तरफ से सकारात्मक प्रगति बताया गया।
  • चीन की 5जी तकनीक और उससे सामरिक सुरक्षा पर खतरे की चर्चा भी हुई।

भारत-अमेरिका संबंध अहम क्यों है?

एशिया-प्रशांत में चीन का दबदबा बढ़ रहा है। चीन और अमेरिका के संबंध कड़वे हैं। ऐसे में चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत से ज्यादा सक्षम देश कोई और नजर नहीं आता। इसलिए अमेरिका भारत को अपनी पाली में शामिल करना चाहता है। इसलिए 2+2 वार्ता दोनों देशों के लिए अपने-अपने हितों को जाहिर करना और सामने वाले की स्थिति भाँपने के लिए काफी अहम है।

क्या है हिंद प्रशांत क्षेत्र और इसकी अहमियत?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है। इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है।

यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है, जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है। ट्रंप द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘एशिया-प्रशांत रणनीति’ (Indo-Pacific Strategy) का अर्थ है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य प्रमुख एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान और ऑस्ट्रेलिया, ‘शीत युद्ध’ के बढ़ते प्रभाव के नए ढाँचे में चीन को रोकने में शामिल होंगे। मौजूदा वक्त में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 फ़ीसदी, विश्व की कुल आबादी का 65 फ़ीसदी, विश्व की कुल GDP का 62 फीसदी और विश्व के माल व्यापार का 46 फ़ीसदी योगदान देते हैं।

निष्कर्ष

इसमें कोई दोराय नही है कि इस वार्ता के जरिए भारत और अमेरिका ने अगले तीन से चार दशकों के लिए रणनीतिक सहयोग की नींव को और मजबूत किया है। कूटनीतिज्ञों की मानें तो यह सहयोग आने वाले दिनों में दुनिया की राजनीतिक और आर्थिक आयाम को बहुत ही गहरे तरीके से असर डालते हुए एक नई दिशा देगी।