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Blog / 04 Mar 2020

(Global मुद्दे) अमेरिका-तालिबान समझौता (America-Taliban Peace Accord)

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(Global मुद्दे) अमेरिका-तालिबान समझौता (America-Taliban Peace Accord)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): अनिल त्रिगुनायत (पूर्व राजदूत, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के जानकार) प्रो. कमर आग़ा (अफ़ग़ान-तालिबान मामलों के जानकार)


शनिवार को अमेरिका और तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में शांति के मकसद से एक करार पर दस्तखत किये । इस करार के मद्देनज़र अमेरिका और नाटो अगले 1४ महीनों में अपने सैनिकों को वापस बुलाएँगे । इस समझौते पर दस्तखत करते वक़्त भारत भी मौजूद था । क़तर में भारत का प्रतिनिदित्व क़तर में भारत के राजदूत कुमारन ने किया ।यह समझौता अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की देख रेख में हुआ। उन्होंने अलकायदा से संबंध समाप्त करने की प्रतिबद्धता भी तालिबान को याद दिलाई।नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टनबर्ग ने समझौते को ‘स्थाई शांति की दिशा में पहला कदम’ करार दिया

4 पन्ने के इस समझौते पर अमेरिका की और से ज़ालमे ख़लीलज़ाद और तालिबान के राजनैतिक प्रधान मुल्ला अब्दुल घनी बरादर ने दस्तखत किये । तालिबान को अफगानी इस्लामिक अमीरात के नाम से भी जाना जाता है जिसे अमरीका एक देश के रूप में मान्यता देने से इंकार करता है ।मुल्ला बिरादर ने अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया में सहयोग के लिए पाकिस्तान के साथ चीन, ईरान और रूस का जिक्र किया। हालांकि, इस दौरान उन्होंने भारत का जिक्र नहीं किया।

समझौते की ख़ास बातें :

सेना वापसी : इस समझौते के तहत अमेरिका 135 दिनों के भीतर अपने 8600 सैनिकों को वापस बुला लेगा । इस अवधि में अमेरिका के सहयोगी नाटो भी अपने सैनिकों को कम करेगा ।इसके अलावा 1४ महीनों के भीतर अमेरिका और सहयोगी अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाएंगे ।

समझौते में तालिबान ने अपनी आतंकी गतिविधियों को भी बंद करने की सहमति जताई । तालिबान के मुताबिक़ वह या उसका कोई भी सहयोगी या समूह जिसमे अलक़ायदा भी शामिल है अमरीकी सेना या अमरीकी सहयोगी को डराने या धमकाने के लिए अफ़ग़ानी सरजमीं का इस्तेमाल नहीं करेगा । अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में अमरीका के विशेष प्रतिनिधि रह चुके लॉरेल मिलर ने कहा की इस समझौते में अल क़ायदा का ज़िक्र किया जाना बेहद अहम् है लेकिन इस समझौते में भारत में सक्रिय बाकी आतंकी संगठनों लश्कर ए तैयबा या जैशे मोहम्मद का कोई ज़िक्र नहीं है ।इसके अलावा भारत जो की अमेरिका का सहयोगी नहीं है इस समझौते की ज़द से बाहर है ।

बंदिशों का हटाया जाना : तालिबान नेताओं पर संयुक्त राष्ट्र की और से लगाई गयी तमाम बंदिशे अगले 3 महीनों ( 29 मई ) तक हटा ली जाएंगी जबकि अमरीकी प्रतिबंधों को 27 अगस्त तक हटा लिया जाएगा । इसके अलावा तालिबान अफ़ग़ान संबंधों में सुधार के मद्देनज़र इन प्रतिबंधों को समय से पहले भी हटाया जा सकता है ।

कैदियों की रिहाई :

अमेरिकी तालिबान समझौते और समझौते के दौरान जारी संयुक्त वक्तव्य में हालांकि काफी अलग हैं और इस पर अभी अशरफ घनी सरकार द्वारा तालिबान को दिए जाने वाली ढील में में कुछ संदेह भी है । संयुक्त बयान के मुताबिक़ अमरीका तालिबान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में इस बात पर सहमत हो सकता है की दोनों ओर से कैदियों की रिहाई को अंजाम दिया जा सके । हालांकि संयुक्त बयान में कैदियों की रिहाई पर कोई आखिरी तारिख नहीं मुक़र्रर की गयी है न ही रिहा किये जाने वाले कैदियों की संख्या पर कोई सहमति बनी लेकिन अमरीका तालिबान समझौते के मुताबिक़ तकरीबन 1000 कैदियों को तालिबान ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है जिन्हे आने वाले 10 मार्च तक रिहा किये जाने की उम्मीद नज़र आ रही है ।

इस समझौते में युद्ध विराम भी एक मसला है । करार के हिसाब से तालिबान अफ़ग़ान वार्ता के शुरू होने पर युद्ध विराम भी इस अजेंडे में शामिल होगा । लेकिन युद्ध विराम असल में तभी पूरी तरह से लागू होगा जब अफ़ग़ान राजनैतिक समझौते पर मुहर लगेगी

चुनौतियाँ :

संयुक्त बयान एक तरह की प्रतिबद्धता है जिससे अमरीका ये दर्शाना चाहता है की वो अफ़ग़ानिस्तान सरकार को साथ लेकर चलना चाहता है । तालिबान की तकरीबन वो सारी मांगे मान ली गयी हैं जो वो चाह रहा था जैसे अमरीकी सेना की वापसी , प्रतिबंधों को हटाना और कैदियों की रिहाई । इस समझौते से पाकिस्तान को भी फायदा होगा क्यूंकि पाकिस्तान हमेशा से तालिबान की मदद करता आया है और इसके अलावा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का भी इस पर असर देखा जा सकता है ।

अमरीका और तालिबान वार्ता में अफ़ग़ान सरकार को हाशिये पर रखा गया । अगर तालिबान इस समझौते में अपनी प्रतिबद्धताओं पर कायम रहता है तो इसका सीधा असर अफ़ग़ानी जनता पर पडेगा जिनके भविष्य पर अभी फिलहाल प्रश्न चिन्ह है । अगर तालिबान अपने बर्ताव में सुधार नहीं करता है और अपनी पुराणी नीतियों पर कायम रहता है तो अफ़ग़ानिस्तान में पुराना दौर वापस आ सकता है ।

यह समझौता फिलहाल तो अमन की तरफ सिर्फ पहला कदम भर है ।अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति इस पर निर्भर करेगी की वहां की सरकार और तालिबान बिना किसी बाहरी मुल्क के दबाव के इस समझौते को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं । हालाँकि 1989 1992 1996 और 2001 की तरह पाकिस्तान के पास इस समझौते में एक अहम् भूमिका निभाने का मौका है ।

भारत और तालिबान

भारत के लिए भी आगे की राह आसान नहीं है । तालिबानी नेता मुल्ला बरादर ने अपने वक्तव्य में उन देशों में भारत का नाम नहीं लिया जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में अमन के लिए कोशिशें की ।बरादर ने पाकिस्तान की ख़ास तौर पर उसके कामों और मदद की तारीफ़ की ।

भारत और तालिबान के रिश्ते कभी भी अच्छे नहीं रहे हैं । साल 1999 में विमान अपहरण के बाद भारत को मौलाना मसूद अज़हर समेत कई आत्नकियों को रिहा करना पड़ा था जिसकी कड़वी यादें आज भी भारत के ज़ेहन में ताज़ा हैं । मौलान मसूद अज़हर आत्नकी संगठन जैशे मोहममद का सरगना है ।इसके अलावा मसूद अज़हर को संसद हमले , पठानकोट पर हमले और पुलवामा हमले का भी मास्टरमाइंड माना जाता है । तालिबान भारत को एक दुश्मन मुल्क के तौर पर देखता है जिसकी वजह भारत द्वारा 1990 में तालिबान विरोधी ताकतों का किया गया समर्थन है ।

भारत ने राजनैतिक और आधिकारिक तौर पर कभी भी तालिबान को तवज्जो नहीं दी जब 1996-2001 के दौरान तालिबान सत्ता पर काबिज़ था । हाल के सालों में अमरीकी तालिबान वार्ताओं ने ज़ोर पकड़ा । भारत हालंकि वार्ता के सभी पक्षकारों के संपर्क में था लेकिन आधिकारिक तौर पर भारत कभी भी तालिबान के साथ सीधे वार्ता में नहीं शामिल हुआ ।

नई दिल्ली और काबुल

भारत ने गनी सरकार को हमेशा से ही समर्थन दिया है । गनी की जीत पर खुशी ज़ाहिर करने वाले मुल्कों में भारत भी शामिल था । गनी और भारत दोनों ने ही सीमा पार आत्नक वाद के लिए पाकिस्तान को ही ज़िम्मेदार ठहराया था जिससे भारत और गनी की नज़दीकी के और भी पुख्ता सबूत मिलते हैं । भारत ने जहाँ दोहा में आयोजित अफ़ग़ान शांति वार्ता में अपने राजदूत को दोहा भेजा वहीं विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रींगला को बीते शुक्रवार राष्ट्रपति घनी और वरिष्ठ राजनैतिक दल से वार्ता के लिए काबुल भेजा था ।

श्रींगला ने स्वतंत्र , संप्रभु , लोकतान्त्रिक और समावेशी अफ़ग़ानिस्तान के लिए भारत के अटूट समर्थन की प्रतिबद्धता को दोहराया जिसमे समाज के सभी वर्गों के अधिकार और हित सुरक्षित रह सकें । सीमा पार से आतंकवाद ख़त्म करने का सन्देश देकर उन्होंने पाकिस्तान पर सीधा निशाना साधा।

भारत ने बामियान और मज़ार शरीफ प्रांतों में भारतीय सहयोग से बन रही सड़क परियोजनाओं पर भी दस्तखत किये ।भारत ने सामुदायिक विकास कार्यों की परियोजनाओं में तकरीबन 3 बिलियन डॉलर की राशि का निवेश किया है जिससे भारत यहाँ रहने वाली पश्तून समुदाय से काफी नज़दीक है ।इन परियोजनाओं के ज़रिये भारत ने आम अफ़ग़ानी नागरिकों खासकर पश्तूनी नागरिकों में अपनी अच्छी छवि बना ली है।