Home > Global-mudde

Blog / 31 May 2019

(Global मुद्दे) अमेरिका - ईरान तनाव (America-Iran Standoff)

image



(Global मुद्दे) अमेरिका - ईरान तनाव (America-Iran Standoff)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): मीरा शंकर (पूर्व राजदूत, अमेरिका), प्रो. हर्ष पंत (अमेरिकी मामलों के जानकर)

अमेरिका - ईरान तनाव, चर्चा में क्यों?

ईरान अमेरिका के बीच जारी संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है। अमेरिका ईरान के बीच लगभग युद्ध जैसी तौबत है। महीने की शुरुआत में अमेरिका ने ईरान के स्टील और खनन क्षेत्र पर भी नए प्रतिबन्ध लगा दिए। अमेरिका के सख़्त प्रतिबंधों के चलते ईरान ने परमाणु डील से बाहर जाने की चेतावनी दी है। ईरान के मुताबिक़ यदि मौजूदा वैश्विक शक्तियां और परमाणु डील में शामिल रहे यूरोपीय संघ के देश उसका समर्थन नहीं करते हैं तो वो परमाणु डील से बहार हो जायेगा और अपने यूरेनियम भण्डार को बढ़ायेगा। इसके अलावा ईरान ने परमाणु डील में नई शर्तों को रखने के लिए यूरोपीय देशों को 2 महीने का समय दिया है।

होर्मुज जलडमरूमध्य (Hormuz Strait) को बंद कर सकता है ईरान

ईरान ने दुनिया को चेतावनी दी है कि यदि उसे अलग - थलग किया जाता है तो वो ईरान में मौजूद होर्मुज जलडमरूमध्य (Hormuz Strait) को बंद कर देगा।

होर्मुज स्ट्रेट के ज़रिए वैश्विक तेल ज़रूरत की ज़रूरत का लगभग पांचवा हिस्सा गुज़रता है। सऊदी अरब, ईरान, यू.ए.ई., कुवैत और इराक से निर्यात किये जाने वाले ज़्यादातर कच्चे तेल को इसी जलमार्ग के ज़रिए भेजा जाता है। होर्मुज स्ट्रेट फ़ारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। होर्मुज स्ट्रेट 55 से 95 किमी. तक चौड़ा है और ईरान को अरब प्रायद्वीप से अलग करता है। होर्मुज स्ट्रेट में कीश्म, होर्मुज और हेंजम द्वीप मौजूद हैं।

अमेरिका ईरान तनाव में यूरोपीय देशों का रुख़

यूरोपीय देश अमेरिका के ईरान पर सख़्त रवैये से सहमत नहीं हैं। यूरोपीय देशों का मानना है कि अमेरिका ईरान के बीच बढ़ता तनाव नुकसानदेह साबित हो सकता है। यूरोपीय देशों की इससे पहले इराक़ के ख़िलाफ़ हुए भीषण युद्ध में काफी किरकिरी हुई थी इसलिए वे ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका के उकसावे वाले रुख़ का विरोध कर रहे हैं। ज़्यादातर यूरोपीय देशों का मानना है कि ईरान के बढ़ते ख़तरे की वजह अमेरिका है जिसमें परमाणु डील से बाहर होने और अन्य तरीकों के ज़रिए ईरान को घेरने वाले फैसले शामिल हैं।

जानकारों के मुताबिक़ यूरोपीय देश अमेरिका और ईरान के बीच फंसे हुए हैं। वे एक और जहां अमेरिका से भी रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं तो दूसरी तरफ वे ईरान को भी छोड़ना नहीं चाहते। ग़ौरतलब है कि 2015 के परमाणु समझौते के बाद यूरोपीय कंपनियों ने ईरान में तेल शोधन, मेडिसिन और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काफी निवेश किया है। यूरोपीय देशों के ईरान में इस निवेश रोज़गार के भी अवसर बने हैं। 8.अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण ने माना ईरान कर रहा है परमाणु समझौते का पालन अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण के मुताबिक़ ईरान ने साल 2015 के समझौते के तहत अपने क़रीब 9 टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भण्डार को कम करके 300 किलोग्राम पर लाने की शर्त स्वीकार कर ली थी। इस हिसाब से ईरान ने परमाणु समझौते का उल्लंघन नहीं किया है।

अमेरिका ईरान तनाव की वजह

परमाणु डील

2015 में और संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों व जर्मनी के बीच एक परमाणु समझौता हुआ। समझौते के मुताबिक़ ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करने और अपने परमाणु संयंत्रों को संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों को निगरानी की इजाज़त देनी थी। इसके अलावा इस समझौते के तहत ईरान को हथियार और मिसाइल ख़रीदने की भी मनाही थी। ऐसा करने पर ईरान पर क्रमशः पाँच साल और आठ साल तक का प्रतिबंध लगाया जा सकता था।

अमेरिका इन समझौते के बदले ईरान को तेल और गैस के कारोबार, वित्तीय लेन देन, उड्डयन और जहाज़रानी के क्षेत्रों में लागू प्रतिबंधों में ढील देने के लिए राजी था। लेकिन साल 2016 में आए ट्रम्प ने इस समझौते को घाटे का सौदा बताया और पिछले साल अमेरिका ईरान परमाणु समझौते से बाहर हो गया। परमाणु डील से बाहर होने के बाद अमेरिका ने यूरोप और एशिया के कुछ बड़े देशों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कुछ देशों ने इस समझौते को P5+1 की संज्ञा दी है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों को P5 (अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस) और +1 जर्मनी इस समझौते में शामिल है।

2020 में होने वाले चुनाव

जानकारों के मुताबिक़ अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के डेढ़ साल ही और बचे हैं। ऐसे में अमेरिकी प्रशासन को कोई ऐसा मुद्दा चाहिए जोकि चुनाव तक बना रहे। इसके अलावा विशेषज्ञ बताते हैं कि ट्रम्प का ईरान पर हमला मनोवैज्ञानिक है। ज़रूरी नहीं है कि ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध हो। अमेरिकी प्रशासन इस मामले में इतना सतर्क है कि वो चाहता है कि युद्ध से मिलने वाले फायदे बिना युद्ध के ही मिल जाएं।

अमेरिका ईरान तनाव का भारत पर असर

1. आर्थिक संकट

इराक़ और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश है। 2 मई से ईरान से कच्चे तेल का आयात नहीं कर पाने के कारण भारत के हितों को चोट पहुंच सकती है। प्रतिबंधों के कारण तेल के दाम में बढ़ने से पैदा होने वाली मुद्रास्फीति भारत के लिए मुख्य समस्या होगी।

भारत कितना तेल करता है ईरान से आयात

भारत अपनी ज़रूरत का क़रीब 80 % तेल आयात करता है। भारत ने साल 2017 -18 में ईरान से 220.4 मिलियन टन तेल का आयात किया था लेकिन प्रतिबंधों के बाद ईरान से तेल आयात में कमी आई है। प्रतिबंधों के बाद भारत ने ईरान से हर महीने 1.5 मिलियन टन की ही खरीद की, जबकि प्रतिबंधों के पहले भारत हर महीने क़रीब 22.6 मिलियन टन तेल का आयत करता था।

ईरान भारत को देता है तेल निर्यात पर छूट

ईरान भारत को तेल आयत पर कई तरह की छूट देता है। इन छूटों में - भुगतान के लिए अतिरिक्त दिन का समय, मुफ़्त बीमा और शिपिंग शामिल है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों के लगने से इसका असर सीधे भारत पर पड़ेगा। सबसे अच्छी बात ये है कि ईरान से भारत डॉलर में नहीं बल्कि रूपये में तेल आयत करता है।

विषेशज्ञों के मुताबिक़ भारत को उसकी ज़रूरत का तेल तो मिल जायेगा लेकिन मुश्किल ये है ईरान जैसी सहूलियतें शायद ही कोई देश भारत को दे सके। पिछले चार महीने में तेल के दामों में 35% की वृद्धि हुई है। कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर/बैरेल से आगे हो गईं हैं। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। अमेरिका के इस फैसले का असर डॉलर के मुकाबले पैसों पर भी पड़ सकता है।

मानवीय संकट

अमेरिका और ईरान के बीच चल रहा तनाव के कारण इन क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों को भी प्रभावित करने वाला है क्योंकि कोई भी तनावपूर्ण परिस्थिति उनके जीवन को जोख़िम में डाल सकती है। तनाव के कारण कई सारे भारतीय लोगों को इन क्षेत्रें से सुरक्षित निकालना पड़ेगा जैसा पहले भी किया जा चुका है।

प्रतिबंधों के बाद अमेरिका से तेल खरीदेगी इंडियन आयल कंपनी

प्रतिबंधों के बाद भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन आयल (IOC) ने अमेरिका से तेल खरीदने का समझौता किया है। बताया जा रहा है कि इंडियन आयल ईरान से खरीदे जाने वाले कुल तेल का क़रीब आधा हिस्सा अब अमेरिका से आयात करेगी। इंडियन आयल ने अमेरिका की दो कंपनियों से तेल खरीदने का समझता किया है। इंडियन आयल कंपनी ने ईरान से 2018-19 में 90 लाख टन कच्चा तेल खरीदा था। समझौते के मुताबिक़ 2019 -20 में इंडियन आयल अमेरिका से 46 लाख तन क्रूड आयल आयात करेगा। ग़ौरतलब है कि भारतीय कम्पनिया पहले से भी अमेरिका से तेल आयात करती रही हैं

ईरान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा

15 मई को ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ भारत की यात्रा पर थे। भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री ने मौजूदा हालात पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से चर्चा की। चर्चा में भारत ने लोकसभा चुनावों के बाद ही ईरान से तेल आयात पर कोई निर्णय लेने का फैसला किया। भारतीय विदेश मंत्री के मुताबिक़ भारत अपने व्यवसायिक, आर्थिक और ऊर्जा ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए फैसला लेगा।

ईरानी विदेश मंत्री के भारत दौरे के मायने

ज़रीफ़ की यात्रा तेहरान के समर्थन के लिए एक रणनीतिक कदम है। इसके ज़रिए ईरान अपने आर्थिक हितों को संरक्षित करना चाहता है और भारत से समर्थन की उम्मीद करता है। ज़रीफ़ एक कुशल राजनयिक हैं जिन्होंने ईरान और P5+1 देशों के बीच संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCOPA )वार्ता में अग्रणी भूमिका निभाई है।

चाबहार बंदरगाह पर नहीं है प्रतिबन्ध

एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह के विकास पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, क्योंकि दोनों दिल्ली और वाशिंगटन के अफगानिस्तान तक पहुँचने के उद्देश्य समान हैं। चाबहार क्षेत्र का विकास भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अफगानिस्तान के प्रवेश द्वार होने के साथ-साथ मध्य एशिया का भी प्रवेश द्वार होगा। इसके साथ यह क्षेत्र पाकिस्तान को सामरिक रूप से घेरने में भी महत्वपूर्ण है।

मध्य पूर्व में भारत की मुश्किल

ये भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है जिस पर भारत ने अपना हर क़दम बड़ी सावधानी से लिया है।

  • 2018 में इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा
  • 2018 में ईरान के राष्ट्रपति रूहानी की भारत यात्रा
  • 2019 में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की भारत यात्रा
  • UAE का भारत को OIC में आमंत्रण

भारत ने मध्य पूर्व में बेहतरीन कूटनीति का परिचय देते हुए अभी तक संतुलन बनाए रखा है, लेकिन अब हालात बिगड़ रहे हैं। ऐसे में किसी भी कठिन परिस्थिति में भारत के हित प्रभावित होंगे क्योंकि इस क्षेत्र से भारत के सामाजिक, आर्थिक, और सामरिक हित जुड़े हुए हैं।

ईरान और अमेरिका के बीच तेजी से बढ़ रहे तनाव के के संदर्भ में भारत का पक्ष क्या है

  • भारत ने ईरान को यह समझाने की कोशिश की है कि वो संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCOPA ) समझौते के सभी आयामों को अपनी पूर्ण प्रतिबद्धताओं के साथ जारी रखे।

संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCOPA )

P5+1 देशों के बीच हुए समझौते को संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCOPA ) या परमाणु डील के नाम से जाना जाता है।

सभी मुद्दों को सभी पक्षों के साथ शांतिपूर्वक और बातचीत के ज़रिए हल करने की ज़रूरत

अमेरिका- ईरान तनाव और भारत के विकल्प

  • भारत हमेशा से ये कहता आया है कि वो संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का पालन करता है, न कि एकतरफा प्रतिबंधों का। हालाँकि जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को आतंकी सूची में शामिल करने में अमेरिका की भूमिका के कारण भारत के कूटनीतिक अवसर अब थोड़े सीमित हैं।
  • भारत ने अब तक ईरान से किसी भी तेल आयात का अनुबंध नहीं किया है। नई सरकार के कार्यभार संभालते ही भारत को अपने कूटनीतिक और रणनीतिक पहलुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत होगी।
  • दरअसल भारत का फॉर्मूला 'वाणिज्यिक विचार, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों की सुरक्षा' है। ऐसे में भारत का ये फॉर्मूला तेल आयात में उपलब्ध विकल्पों में भारत की मदद करेगा। इसमें ईरान को छोड़ने का जोख़िम नहीं नहीं उठाया जा सकता क्योंकि सभ्यता और ऐतिहासिक रूप से भारत का शिया ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है, जबकि सऊदी अरब के पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ रणनीतिक संबंध है। कश्मीर में ईरान के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ईरान को चीन और पाकिस्तान की ओर नहीं धकेलना चाहेगी।