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Blog / 21 May 2019

(Global मुद्दे) विश्व व्यापार संगठन (WTO) मुद्दे और सवाल (WTO: Issues and Concerns)

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(Global मुद्दे) विश्व व्यापार संगठन (WTO) मुद्दे और सवाल (WTO: Issues and Concerns)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव), अशोक सज्जनहार, (पूर्व राजदूत)

चर्चा में क्यों?

13 और 14 मई को नई दिल्ली में विश्व व्यापार संगठन WTO की मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की गई। चर्चा में 16 विकासशील देशों (चीन, ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका, अर्जेंटीना, तुर्की, इंडोनेशिया और सऊदी अरब जैसे देश) के अलावा 6 अल्पविकसित देशों (बांग्लादेश, बेनिन, युगांडा, और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक जैसे देश) के प्रतिनिधियों ने शिरकत की।

इस बैठक के तीन विषय थे जिनमें

  • पहला - बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली से जुड़े अहम मुद्दों और चुनौतियों पर चर्चा,
  • दूसरा विवादो के निपटारे से जुड़े तंत्र (Appellate Body Dispute settlement) के मामले का हल और
  • तीसरा WTO के एस एंड डीटी (Special and differential treatment provisions) नियमों के तहत देशों को मिलने वाला कृषि सब्सिडी

भारत द्वारा आयोजित WTO सदस्यों की मंत्रिस्तरीय बैठक का मक़सद बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली पर ज़ोर देना था। साथ ही विकासशील देशों और अल्पविकसित देशों के लिहाज़ से महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए WTO में सुधार करने की आवाज़ उठाना था। बैठक में WTO के महानिदेशक रोबर्टो एजेवेदो भी शामिल रहे।

मंत्रिस्तरीय बैठक के कुछ अहम बिंदु

  • दिल्ली में आयोजित विश्व व्यापार संगठन के विकासशील देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत और चीन सहित कई विकासशील देशों ने संगठन को और ज़्यादा प्रासंगिक बनाने पर दिया ज़ोर दिया। इसके अलावा, अपीलीय निकाय विवाद निपटारा (Appellate Body Dispute settlement) प्रणाली को मज़बूत करने, निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और वैश्विक बाज़ार में सभी को समान अवसर मुहैया कराने पर सहमती जताई ।
  • बैठक में भारत ने भारत ने व्यापारिक मुद्दों पर सदस्य देशों की एकतरफा कार्रवाई से संबंधित कानून में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया, जिसे चीन, दक्षिण अफ्रीका का समर्थन भी मिला।
  • बैठक में वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि भेदभाव रहित, पारदर्शिता के सिद्धांतों और आम सहमति से निर्णय लेने की परंपरा इतनी ज़रूरी है कि हम इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। भारत के मुताबिक़ विकासशील देशों में 7.3 अरब लोग रहते हैं और उन्हें वृद्धि के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए।

WTO क्या है?

विश्व व्यापर संगठन एकमात्र ऐसा अंतराष्ट्रीय संगठन है जो देशों के बीच वैश्विक नियमों को तय करता है। WTO दुनिया भर के देशों के लिए बनाए गए व्यापर नियमों को नियंत्रित करता है और इसके सदस्य देशों के बीच होने वाले विवादों का भी निपटारा करने का काम करता है।

WTO दूरसंचार और बैंकिंग सेवाओं के अलावा और बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार को भी अपने कामों में शामिल करता है। WTO का मुख्यालय जिनेवा में है। मौजूदा वक़्त में इसके कुल 164 सदस्य देश हैं। भारत WTO के संस्थापक सदस्य में से एक रहा है। WTO की बैठक आमतौर पर हर 2 साल पर होती है। इस बैठक में सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

कैसे और क्यूं हुआ था WTO का गठन?

1948 में दुनिया की उच्च सीमा शुल्क और अलग अलग तरह की बाधाओं से छुटकारा दिलाने के लिए कुछ देशों के ज़रिए एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ (GATT) का गठन किया गया। लेकिन 1994 तक आते आते देशों के बीच मुक्त और निष्पक्ष व्यापार की मांग ज़ोर पकड़ने लगी। जिसके बाद मुक्त और निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देने के लिए जनवरी 1995 से एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ (GATT) को विश्व व्यापर संगठन (WTO) में तब्दील कर दिया गया।

दरअसल GATT को छोड़ने की वजह के पीछे द्विपक्षीय कारोबार से हटकर बहुपक्षीय कारोबार पर ज़ोर देना था। लेकिन मौजूदा वक़्त में WTO के हालात भी पहले जैसे ही हो गए हैं जिसमें देश बहुपक्षवाद को छोड़ संरक्षणवाद और द्विपक्षीय कारोबार की नीति पर ज़ोर दे रहे हैं।

WTO की संरचना

1.मंत्रिस्तरीय सम्मलेन: WTO की सबसे बड़ी संस्था 'मंत्रिस्तरीय सम्मेलन' है। यह प्रत्येक दो वर्ष में अन्य कामों के साथ संस्था के महासचिव और मुख्य प्रबन्धकर्ता का चुनाव करती है। साथ ही वह 'सामान्य परिषद' का काम भी देखती है। इसमें सभी सदस्य देशो के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मंत्री होते है। यह विश्व व्यापार संगठन की शासी निकाय (Governing body) है। यह संगठन की रणनीतिक दिशा तय करने और अपने अधिकार क्षेत्र के तहत समझोंतो पर सभी अंतिम निर्णय लेने के लिए ज़िम्मेदार होता है।

2.जनरल काउंसिल: इसमें सभी सदस्यों देशो के वरिष्ठ प्रतिनिधि होते है। यह विश्व व्यापार संगठन के रोज़ाना कारोबार और प्रबंधन की देख रेख के लिए ज़िम्मेदार होती है। व्यवहार में, ज़्यादातर मामले के लिए यह विश्व व्यापार संगठन का फैसला करने वाला मुख्य अंग है।

3.व्यापार नीति समीक्षा निकाय: इसमें विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य होते है और यह उरग्वे राऊंड के बाद बने व्यापार नीति समीक्षा तंत्र की देखरेख करता है। यह सभी देशो की नीतियो की आवधिक समीक्षा करता है।

4.विवाद निपटना निकाय: जिन देशो के बीच व्यापार सम्बन्धी कोई विवाद होता है तो वे इसी निकाय के सामने अपील कर न्याय मांगते है। इसमें भी विश्व व्यापार संगठन के सदस्य होते है।

5.वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार पर परिषद: यह जनरल काउंसिल के जनादेश के तहत काम करती है और इसमें सभी सदस्य देश शामिल होते है। यह वस्तुओ और सेवाओं में व्यापार पर हुए आम एवं विशेष समझोतो के विवरण की समीक्षा के लिए तंत्र प्रदान करते है।

क्या है WTO की विवाद निपटान प्रणाली (Appellate Body Dispute Settlement) और मौजूदा मुश्किलें

  • विवाद निपटान प्रणाली WTO की महत्वपूर्ण संस्था है। इसमें सदस्य देशों के बीच पैदा होने वाले व्यापार विवादों का निपटारा किया जाता है। मौजूदा वक़्त में अमेरिका की दखलंदाज़ी के कारण WTO की विवाद निपटान प्रणाली का कामकाज प्रभावित हो रहा है।
  • अमेरिका ने WTO की विवाद निपटान प्रणाली में जजों की नियुक्ति पर रोक लगा दी है। इस संस्था में आम तौर पर सात जज होते हैं, लेकिन फिलहाल इसमें तीन जज ही बचे हैं। 10 दिसंबर को दो और जजों की सेवानिवृत्ति के बाद सिर्फ एक जज ही विवाद निपटान प्रणाली में बचेंगे। जिसके बाद किसी भी मसले पर सुनवाई की गुंजाइश खत्म हो जाएगी क्योंकि किसी भी सुनवाई के लिए तीन जजों का होना अनिवार्य है।
  • नियुक्ति में देरी से प्रणाली के सुचारू रूप से काम करने में समस्या होगी जबकि निष्पक्ष विश्व व्यापार के लिये ये सबसे महत्वपूर्ण है। ख़बरों के मुताबिक़ क़रीब 70 देशों ने अमेरिका के इस फैसले को हटाने की बात कही है। इन देशों भारत, चीन और यूरोपियन यूनियन जैसे बड़े देश शामिल हैं।

एस एंड डीटी (Special and differential treatment provisions) नियम में भी बदलाव चाहता है अमेरिका

अमेरिका WTO के एस एंड डीटी नियम ( विशेष सहूलियतें देने वाला क़ानून) विकासशील सदस्य देशों को लचीलापन और कुछ छूट उपलब्ध कराता है।

ये छूट निम्न हैं

  • विकासशील देशों को समझौतों और प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए ज़्यादा समय मिलता है।
  • विकासशील देशों के साथ व्यापार के अवसरों को बढ़ावा देने के उपाय किए जाते हैं
  • विकासशील देशों के व्यापार हितों की ध्यान में रखकर WTO के सदस्य देश काम करते हैं।
  • विकासशील देशों को डब्ल्यूटीओ के काम को पूरा करने, विवादों को हल करने और तकनीकी मानकों को लागू करने में मदद के लिए सहायता।
  • और सबसे कम विकसित देश (Least-Developed Country- LDC) के सदस्यों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं

WTO में सुधारों के तहत अमेरिका ये दलील दे रहा है कि जो देश आर्थिक वृद्धि और समृद्धि के संदर्भ में अच्छा कर रहे हैं, उन्हें एस एंड डीटी लाभ की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।

अमेरिका ने हाल ही में एक प्रस्ताव पेश किया है जिसमें कहा गया कि जो देश वैश्विक व्यापार में 0. 5 % से ज़्यादा हिस्सेदारी रखते हैं उन्हें विकसित देश की श्रेणी में रखा जायेगा। ऐसे में भारत, चीन, ब्राज़ील और साउथ अफ्रीका जैसे देशों को विकसित देशों जैसे व्यवहार करना होगा।

जबकि भारत अभी विकासशील देशों की श्रेणी में शुमार है। ऐसे में भारत के विकसित देश में शामिल होने से काफी नुकसान होगा। भारत के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स और प्रति व्यक्ति आय के स्तर को देखा जाए तो भारत विकसित देश की श्रेणी में नहीं आता। हालांकि भारत की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी में लगभग 2.5 फीसदी की ज़रूर है।

भारत और WTO

  • भारत शुरू से ही अपनी मांगों को WTO की बैठकों में उठता रहा है। 2001 में भारत ने कहा था कि खेती की आजीविका और खाद्य सुरक्षा के पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विकासशील देशों के लिए WTO के समझौता तंत्र में एक खाद्य सुरक्षा बॉक्स बनाया जाने की वक़ालत की। साथ ही भारत ने ग़रीबी हटाने ग्रामीण विकास, ग्रामीण रोज़गार और कृषि के लिए खर्च की जाने वाली सब्सिडी को कम करने की शर्त से बाहर रखे जाने की बात कही।
  • 2013 में हुई बाली बैठक में बाली में 10 सूत्रीय समझौता होना था। इन दस बिंदुओं में से एक बिंदु कृषि सब्सिडी से भी जुड़ा हुआ था। इसका अनाज़ की सरकारी खरीद, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और खेती से जुड़े कारोबार पर सीधा असर पड़ता जिसकी वजह से भारत राज़ी नहीं हुआ।
  • आख़िर में वार्ता के विफल होने से बचाने के लिए अस्थायी समझौता हुआ। जिसमें तय हुआ कि अगले 4 साल में अलग से वार्ता करके मामले को सुलझाया जाए। इसी के साथ पीस क्लाज़ नाम से अस्थायी बिंदु भी जुड़ा गया। जिसमें तय हुआ कि जब तक स्थायी हल नहीं निकल रहा तब तक विकासशील देश 10% से ज़्यादा सब्सिडी देते रहे।
  • 2015 में हुई बैठक में खाद्य सुरक्षा और कृषि के संरक्षण के लिए सब्सिडी को सीमित किए जाने के लिए समझते पर निर्णय होना था। लेकिन भारत सहित कई देश इसके पक्ष में नहीं थे। दरअसल विकसित देश चाहते हैं भारत किसानों से अनाज खरीदना बंद करे और रसन की दुकान की व्यवस्था हटाए। जबकि भारत ऐसा नहीं चाहता।
  • 2017 में आयोजित बैठक में भारत ने कहा था कि भारत का उद्देश्य अपने हितों और प्राथमिकताओं की रक्षा करना है। इसके अलावा 2013 में हुआ बाली समझौता उसके हितों की रक्षा करता है।

WTO मंत्रिस्तरीय बैठक के मायने

अगले साल 2020 में कज़ाखस्तान में आयोजित होने वाली विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले आयोजित ये एक महत्त्वपूर्ण बैठक है। इस अनौपचारिक बैठक का मक़सद 2020 में कज़ाखस्तान में होने वाली औपचारिक बैठक को सफल बनाने का है। 12 वीं मंत्रिस्तरीय बैठक के पहले हुई ये बैठक एक तरीके का होम वर्क है जोकि WTO सुधार में तेज़ी लाने का काम करेगी।

अमेरिका के संरक्षणवादी रवैये के चलते दुनिया के कई देश ट्रेड वॉर के मुहाने पर हैं। ट्रेड वॉर के चलते कई देश व्यापार संतुलन नहीं बना पा रहे हैं। ट्रेड वॉर के इस दौर में आयोजित ये बैठक दुनिया भर के लिए एक सन्देश है। WTO के मुताबिक़ ट्रेड वॉर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से कतई ठीक नहीं है।

संरक्षणवाद सोच: अमेरिका अपनी संरक्षणवाद सोच के चलते कई देशों पर टैरिफ बढ़ा रहा है। WTO ने अमेरिका को ऐसे हालातों से बचने की नसीहत दी है।

विकसित देशो का WTO पर रहता है दबदबा

एक और मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन का कोई असर नहीं है। अमेरिका ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे वकसित देश वीज़ा नियमों को सख़्त बनाने पर हैं। ऐसे में भारत जैसे विकसित देश और अल्पविकसित देशों के पेशेवर ख़तरे में आ जायेंगे। इस मुद्दे पर WTO का विकसित देशों पर नियंत्रण नहीं है। WTO नियमों के मुताबिक़ मुद्रा प्रवाह स्वतन्त्र है तो प्रतिभा पड़ाव भी स्वतन्त्र होना चाहिए। हालाँकि जानकारों का कहना यही है कि WTO के ज़रिए ही इन समस्याओं का हल निकल सकता है।