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Blog / 31 Aug 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 31 August 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 31 August 2020



सभी चुनावों के लिए एक मतदाता सूची

  • लोकतंत्र को जनतंत्र भी कहते हैं, क्योंकि जनता के चुनाव के द्वारा ही यह तंत्र बनता है।
  • लोकतंत्र का आधार चुनाव प्रणाली होती है, जिसके माध्यम से जनता यह निर्णय लेती है कि वह किसके द्वारा शासित होना चाहती है।
  • आजादी की लड़ाई के समय हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की एक प्रमुख मांग यह थी कि सार्वभौमिक मताधिकार सभी को दिया जाये।
  • स्वतंत्र भारत ने संघात्मक शासन (Federal Governance) व्यवस्था को अपनाया जिसमें केंद्र एवं राज्य सरकार की बात की गई। बाद में इस संघात्मक शासन व्यवस्था को और विशेषीकृत स्वरूप प्रदान किया गया और स्थानीय शासन को मजबूत करने का प्रयास किया गया जिसके लिए 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन का सहारा लिया गया।
  • सरकार कोई भी (केंद्र, राज्य, स्थानीय) सब जनता के अनुसार चलते हैं, अर्थात जनता अपने वोट में जिसे जनमत प्रदान करती है।
  • ‘‘हम भारत के लोग’’ वाक्य जनता की प्रभुता को ही स्थापित करता है।
  • मतदान (Voting) निर्णय लेने या अपने विचार प्रकट करने की एक विधि है जिसके द्वारा व्यति अपने ऊपर शासन करने वाले लोगों का चुनाव करता है।
  • भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी दो स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकारों, भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) और राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission - SEC) को दी गई है।
  • संविधान के अनुच्छेद-324 में निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है जो संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को संपन्न करवाती है। इसके लिए भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को हुई थी।
  • भारतीय संविधान के अनुच्देद 243-K के अधीन राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया जाता है।
  • राज्य निर्वाचन आयोग को राज्य/संघाशासित क्षेत्र के निगम, नगरपालिकाओं, जिला परिषदों, जिला पंचायतों, ग्राम पंचायतों तथा अन्य स्थानीय निकायों के चुनावों का उत्तरदायित्व दिया गया है।
  • वर्ष 1992 में संसद द्वारा 73वें एवं 74वें संवैधानिक संशोधन को पारित किया गया।
  • 73वां संविधान संशोधन ग्रामीण स्थानीय सरकार से संबंधित है तो 74वां संविधान संशोधन शहरी स्थानीय निकाय से संबंधित है।
  • 24 अप्रैल, 1993 को 73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम लागू हुआ, इसीकारण 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायत दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • 73वें संशोधन से पूर्व कई स्थानों पर चुनावों की कोई भी प्रत्यक्ष एवं औपचारिक प्रणाली नहीं थी, परंतु इस संशोधन के माध्यम से यह व्यवस्था की गई कि अब सभी स्तरों पर चुनाव सीधे जनता करेगी और प्रत्येक पंचायती निकाय की अवधि 5 वर्ष होगी।
  • राज्यों के लिए यह अनिवार्य किया गया कि वे राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करें, जिन्हें राज्य के सभी स्थानीय चुनाव करवाने की जिम्मेदारी दी गई।
  • 74वां संविधान संशोधन 1 जून, 1993 को प्रभावी हुआ और इसके संबंध में वही प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अपनाई गई जो ग्रामीण स्थानीय शासन के निर्धारित की गई थी। तथा जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग को दी गई।
  • स्थानीय शासन से समाज के अंतिम व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित होती है।
  • स्थानीय मुद्दों का समाधान बेहतर तरीके से हो पाता है तथा स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित हो पता है।
  • राज्य निर्वाचन आयोग को स्थानीय निकाय चुनावों के लिए भारत निर्वाचन आयोग से अलग अपनी निर्वाचन नामावली तैयार कराने की स्वतंत्रता है और राज्य निर्वाचन आयोग को स्थानीय स्तर के चुनाव आयोजित कराने हेतु निर्वाचन आयोग (ECI) के समन्वय स्थापित करना अनिवार्य नहीं है।
  • प्रत्येक राज्य निर्वाचन आयोग संबंधित राज्य के नियमों के तहत काम करता है, ऐसे में कुछ राज्य अपने राज्य निर्वाचन आयोग को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की गई मतदाता सूची का उपयोग करने की स्वतंत्रता देते है जबकि कुछ इसे केवल आधार के तौर पर प्रयोग करने एवं और अपनी मतदाता सूची तैयार करवाते है।
  • असम, ओडिशा, अरूणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, केरल, उत्तराखंड एवं उत्तरप्रदेश को छोड़कर सभी राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए चुनाव आयोग (ECI) की मतदाता सूची का प्रयोग करते है।
  • भारतीय निर्वाचन आयोग संसद, विधानमंडल, राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करता है तथा मतदाता पहचानपत्र जारी करता है।
  • इस तरह अनेक राज्यों में दो मतदाता सूची बनाई जाती है, एक केंद्र एवं एक राज्य की। इस तरह मतदाता सूची के निर्माण में काफी दुहराव होता है। और संसाधनों की बर्बादी होती है।
  • बार-बार केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर अलग-अलग मतदाता सूची को अपडेट करना होता है।
  • दो तरह की मतदाता सूची भ्रम की स्थिति पैदा करती है क्योंकि कई बार किसी व्यक्ति का एक सूची में नाम होता है लेकिन दूसरे में नहीं।
  • इन्हीं तथ्यों एवं आधारों पर देश के सभी प्रकार के चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची बनाने का विचार वर्ष 2015 में विधि आयोग ने अपनी 255 वीं रिपोर्ट में दिया था।
  • इससे पहले 1999 और 2004 में इसी तरह का विचार भारत निर्वाचन आयोग ने भी दिया था।
  • प्रधानमंत्री कार्यालय ने बीते दिनों पंचायत, नगरपालिका, राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के लिए एक आम/कॉमन मतदाता सूची की संभावना पर चर्चा करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग, विधि और न्याय मंत्रलय के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी।
  • इस पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार इस प्रकार की आम मतदाता सूची बनाने का विचार प्रकट कर चुके हैं।
  • कई लोग इसे एक देश एक चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं।
  • यदि यह संभव हो पाता है तो इससे चुनाव की जटिलता भी कम होगी, खर्च कम होगा और व्यक्तियों को भी आसानी होगी।
  • हालांकि यह प्रक्रिया आसान नहीं है इसके लिए राज्यों एवं राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त करना होगा।
  • इसे लागू करने के लिए पहला विकल्प यह है कि निर्वाचन आयोग और भारत सरकार या दोनों में से किसी एक के द्वारा राज्यों को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वह अपने कानूनों में संशोधन करें और स्थानीय चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची को अपनायें।
  • इसे लागू करने का दूसरा विकल्प संविधान संशोधन से जुड़ा है। संविधान के अनुच्छेद 243K और 243ZA में संशोधन करके देश के सभी चुनावों के लिए समान मतदाता सूची को अनिवार्य किया जाये। यह दोनों अनुच्छेद स्थानीय चुनाव से संबंधित हैं जिसमें मतदाता सूची तैयार करने एवं स्थानीय निकायों के संचालन का प्रावधान है।
  • पिछले कुछ समय से प्रवास करने वाले लोगों के मताधिकार का मुद्दा चर्चा में रहा है। दरअसल प्रवास करने वाले लोग दूसरे राज्य में मतदान का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
  • हमारे यहां 91-05 प्रतिशत रजिस्टर्ड मतदाता है जिसमें से सिर्फ 67-4 लोगों ने ही वर्ष 2019 के चुनाव में भाग लिया।
  • हमारे यहां लगभग 20 करोड़ लोग ऐसे है जो चाहकर भी मतदान नहीं कर पाते है। इसमें सर्वाधिक संख्या प्रवासी मजदूरों की है।
  • यदि एक समान मतदाता सूची तैयार होती है तो इसका अगला चरण एक देश एक वोटर काई हो सकता है जिससे सभी लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
  • वन नेशन वन राशन कार्ड की तरह वन नेशन वन वोटर कार्ड मताधिकार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी पहल होगा।

(Video) 6PM Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 31 August 2020


शंघाई सहयोग संगठन और चीन

  • वर्ष 1996 में चीन एवं चार पूर्व सोवियत गणराज्यों- रुस, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान एवं किर्गिस्तान ने शंघाई-5 नामक संगठन की स्थापना सीमाओं पर स्थिरता के लिए किया था।
  • वर्ष 2001 पुनः शंघाई में शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें उज्बेकिस्तान को शामिल किया गया और शंघाई-5 को शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) नाम दिया गया। तब से यह SCO के नाम से ही जाना जाता है। इसीकारण SCO की स्थापना का समय 15 जून 2001 बताया जाता है। इसकी अधिकारिक भाषा रुसी एवं चीनी भाषा है। इसका मुख्यालय चीन की राजधानी बीजिंग में है।
  • SCO के चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर हुआ और यह वर्ष 2003 में लागू हुआ। यह चार्टर इस संगठन का संवैधानिक दस्तावेज है जो संगठन के लक्ष्यों व सिद्धांतों तथा संरचना को रेखांकित करता है।
  • यह एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
  • SCO एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाये रखना है।
  • इसकी स्थापना का एक प्रमुख उद्देश्य नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निपटना एवं व्यापार-निवेश को बढ़ावा देना था।
  • कुछ समीक्षक मानते है कि SCO अमेरिकी प्रभुत्व वाले नाटो का रुस और चीन की ओर से जवाब था। यह बात कई बार सही भी साबित हुई है क्योंकि कि नाटो के सम्मेलन में रुस एवं चीन की बात उठती रही है और SCO भी चर्चा में क्या रहता है।
  • वर्ष 2001 से इस संगठन का एक अहम मकसद ऊर्जा आपूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना और आतंकवाद से लड़ना बन गया है।
  • भारत को 2005 में इसका पर्यवेक्षक सदस्य देश बनाया गया तथा वर्ष 2017 में एससीओ की 17वीं बैठक में भारत को इसका पूर्णकालिक सदस्य बनाया गया इसके साथ ही पाकिस्तान को भी इसका सदस्य बनाया गया।
  • वर्तमान समय में इसके आठ सदस्य चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, रुस, भारत एवं पाकिस्तान है।
  • इसके 4 आव्जर्वर देश अफगानिस्तान बेलारूस, ईरान एवं मंगोलिया है।
  • इसके छह डायलॉग सहयोगी आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं।
  • भारत जब इसका सदस्य बना तो यह उम्मीद की गई कि चीन- भारत-रुस के संबंध मजबूत होंगे और आतंकवाद के मुद्दे पर सभी देश मिलकर का करेंगे जो सभी देशों की कॉमन समस्या थी।
  • इसके साथ ही ऊर्जा सहयोग एवं प्रवासियों के मुद्दों का समाधान भी हो सकेगा।
  • एस.सी.ओ. में शामिल होते ही भारत दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रीय संगठन का एक बड़ा मंच मिल गया जिसका प्रयोग वह आतंकवाद और क्षेत्रीय अशांति को कम करने के लिए चाहता था। क्योंकि इस संगठन का केंद्र मध्य एशिया और भारत का पड़ोस है इसलिए इसका महत्व ज्यादा माना गया।
  • भारत का एक लक्ष्य मध्य एशिया के प्राकृतिक गैस-तेल भंडार तक अपनी पहुँच बढ़ाना था तो साथ ही रुस और यूरोप तक व्यापार के लिए जमीनी मार्ग प्राप्त करना है।
  • लंबे समय से अटकी तापी (तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान-भारत) पाइप लाइन जैसी परियोजना को पूर्ण करने के लिए भी यह महत्वपूर्ण मंच है।
  • भारत के लिए यह जरूरी है कि वह मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोके इस कार्य के लिए भी यह संगठन महत्वपूर्ण है।
  • भारत की कई कंपनियों ने रूस में निवेश किया हुआ है और रूस तेल और प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख उत्पादनकर्ता है इस तरह इस संगठन का प्रयोग भारत-रूस संबंधों को मजबूत करने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
  • भारत जब इसमें पूर्णकालिक रूप से शामिल हुआ तब भी कुछ चुनौतियाँ थीं जिनकी संख्या अब बढ़ गई है। यह निम्नलिखित है।
    1. भौगोलिक रूस से निकटता होते हुए भी संगठनों के सदस्यों के इतिहास, पृष्ठभूमि, भाषा, राष्ट्रीय हित अलग-अलग रहे है जिसके कारण निर्णय लेने की प्रक्रिया चुनौतिपूर्ण रही है।
  • आतंकवाद, अलगाववाद, मादक पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी के रोकथाम पर अभी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सकता है।
  • पाकिस्तान भी इसका सदस्य देश है जिसका मकसद भारतीय प्रभाव और कार्यों को रोकना रहा है, जैसा कि वह SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) के माध्य से करता आया है।
  • चीन इस संगठन के सदस्यों, पर्यवेक्षक राष्ट्रों एवं डायलॉग में शामिल राष्ट्रों के माध्य से अपने One Belt-One Road Initiative को बढ़ावा देना चाहता है। जिसका एक प्रमुख लक्ष्य भारत को घेरना और उसकी शक्ति को सीमित करना है।
  • चीन पामीर क्षेत्र पर कब्जा करने का प्रयास कर रहा जिससे ताजिकस्तान के साथ चीन का तनाव है। चीन ने पहले इस देश को अपने कर्ज के जाल में फंसाया फिर उसके बदले उसने क्षेत्र अतिक्रमण की नीति अपनाया। वर्ष 2011 ताजिकिस्तान ने इसी दबाव के तहत पामीर क्षेत्र का लगभग 1000 वर्ग किमी- का क्षेत्र चीन को दे दिया गया। यह क्षेत्र चीनी दावे का 5.5 प्रतिशत था।
  • चीन पामीर से निकलने वाली नदियों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है जिससे मध्य एशिया के देश सशंकित हैं। चीन भाविष्य में इस क्षेत्र जल युद्ध (Water War) प्रारंभ कर सकता है।
  • कुछ समय पहले ही चीन ने अपनी मीडिया के माध्यम से यह प्रचारित करवाया कि दो मध्य एशियाई देश किर्गिस्तान और कजाकिस्तान ऐतिहासिक रूप से चीन का हिस्सा हैं।
  • चीन का रुस के साथ भी सीमा विवाद है हालांकि रुस की मजबूत सैन्य स्थिति के कारण चीन वहां पर अपना अक्रामक रूख प्रकट नहीं कर रहा है लेकिन मध्य एशिया में वह अपना प्रभाव बढ़ाकर रूस को नियंत्रित अवश्य कर रहा है।
  • वर्तमान समय में इस संगठन के लिए सबसे बड़ी चुनौती इसका संस्थापक देश चीन ही है जिसकी प्रसारवादी नीति ने इस संगठन की नीतियों के उलट कार्य किया है।
  • क्षेत्रीय शांति, सीमा शांति के लक्ष्य, जो इस संगठन के मूल लक्ष्य थे, इससे इतर वह भारतीय क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहा है।
  • इस अतिक्रमण की वजह से पूरे क्षेत्र में न सिर्फ अशांति और युद्ध का खतरा बढ़ा है बल्कि संगठन की प्रासंगिकता पर भी बात उठने लगी है।
  • LAC पर बढ़ते तनाव के कारण भारत और चीन में न सिर्फ दूरी बढ़ी है बाल्कि भारत अब उन मंचों और सामूहिक अभ्यासों से भी दूर कर रहा है जहां चीन की उपस्थिति है।
  • गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद भारत RIC (रुस, इण्डिया, चीन) में शामिल नहीं होना चाहता था लेकिन रूस के द्वारा किये गये अपील के बाद इसमें शामिल हुआ लेकिन रूस चीन पर यह दबाव नहीं बना पाया कि वह सीमा अतिक्रमण की अपनी गतिविधि को रोके। इस बैठक के बाद भी चीन का अतिक्रमण बना हुआ है।
  • इस समय कई समीक्षकों ने यह बात कहा कि भारत को इस बैठक में शामिल नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह चीन को यह अहसास नहीं होने देगा कि भारतीय पक्ष तब तक कोई बात नहीं करेगा जब तक चीन अतिक्रमण को नहीं रोकता है।
  • कुछ समय पहले रक्षामंत्री रूस जरूर गये लेकिन चीन के अनुरोध के बावजूद वह चीनी रक्षामंत्री या किसी प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिले।
  • Quad (क्वाड) समूह पहले से ही भारत को अपनी गतिविधियाँ चीन एवं रूस के साथ कम करने के लिए कहा रहा है।
  • रूस SCO सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों एवं विदेशमंत्रियो की बैठक आयोजित कर रहा है।
  • रक्षा मंत्रियों की बैठक 3 से 4 सितंबर अनुमानित है जिसमें भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को भी जाना है।
  • विदेश मंत्रियों की बैठक 10 सितंबर के आस-पास अनुमानित है जिसमें विदेशमंत्री एस जयशंकर को जाना है।
  • यदि भारत के रक्षामंत्री एवं विदेशमंत्री इसमें शामिल होते है तो उनका सामना चीनी मंत्रियों से होगी और बात-चीत का प्रयास उनके तरफ से किया जायेगा।
  • भारत ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए खुद को KAVKAZ-2020 सैन्य अभ्यास से खुद को अलग कर लिया है। इसमें रूस, चीन, पाकिस्तान के साथ शंघाई सहयोग संगठन के अन्य सदस्य देश भी भाग ले रहे हैं। भारत को भी इसमें शामिल होना था लेकिन भारत ने अब इसमें शामिल न होने का निर्णय लिया है।
  • रूस हर साल इस प्रकार का सैन्य अभ्यास आयोजित करता है जो उसके चार प्रमुख सैन्य कमानों पर होता है। यह सैन्य कमान पूर्व (Vostok), पश्चिम (Zopad), केंद्र (Tsentr) और दक्षिण (Kavkas) है।
  • सैन्य अभ्यास की यह सीरिज 4 मुख्य रूसी परिचालन रणनीति आदेशों के माध्यम से चलती है।
  • पहली बार इस प्रकार का आयोजन 2017 में Zopad में हुआ था। 2018 में Vostok, 2019 में Tsentr और 2020 में Kavkaz के रूप में इसका आयोजन हो रहा है।
  • वर्ष 2019 के सैन्य अभ्यास में भारत ने हिस्सा लिया।
  • इस साल इसमें शामिल होने के लिए रूस ने 18 देशों को आमंत्रित किया है SCO के सदस्य देशों के अलावा मंगोलिया, सीरिया, ईरान, मिस्र, बेलारूस, तुर्की, आर्मेनिया, तुर्कमेनिस्तान जैसे देश है।
  • भारत ने Covid-19 केा कारण बताते हुए इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया है लेकिन यह भी कहा कि भारत और रूस के संबंध अच्छे बने रहेंगे।
  • भारत ने इस अभ्यास से अलग होकर-तुर्की, पाकिस्तान एवं चीन को एक मैसेज देना चाहता है कि भारत दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और सीमा विवाद की स्थिति में इन देशों के साथ किसी प्रकार की गतिविधि में शामिल नहीं होगा।
  • कई समीक्षकों का मानना है कि इससे चीन मजबूत होगा वहीं दूसरी तरफ समीक्षक इसे भारत की मजबूत विदेशनीति का हिस्सा मान रहे है।
  • कुछ समीक्षकों का वर्तमान तनाव को देखते हुए वह भी कहना है कि भारत को शंघाई सहयोग संगठन से अलग होकर क्वाड समूह और पश्चिमी संगठनों का हिस्सा बना चाहिए।
  • वर्तमान में इसके अंतर्गत लगभग 22 प्रतिशत भू-भाग और 40 प्रतिशत जनसंख्या आती है ऐसे में भारत का इससे बाहर होना भी कठिन होगा।
  • भारत का प्रयास रूस एवं अन्य सदस्यों के साथ अपनी मजबूती बढ़ाने की होनी चाहिए जिससे चीन और पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जा सके।