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Blog / 28 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 28 September 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 28 September 2020



स्ट्रेजिक विनिवेश चर्चा में क्यों है?

  • आजादी के समय हमारा औद्योगिक सेक्टर पिछड़ा हुआ और सुस्त पड़ा था। इस सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए भारी पूंजी की आवश्यकता थी। यह पूंजी दो स्रोतों से आ सकती थी, निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र । निजी क्षेत्र के पास न तो इतनी भारी पूंजी थी और न ही उन्हें अपने द्वारा लगाये गये पूंजी (निवेश) से जल्द लाभ प्राप्त होने की संभावना थी, इसलिए इसके द्वारा निवेश कम ही होना था। ऐसी स्थिति में सरकार ने इसमें निवेश करने का निर्णय लिया ताकि इस सेक्टर को आगे बढ़ाया जा सके।
  • 1948 की औद्योगिक नीति भी इसी मंशा के साथ बनाई गई, जिसमें औद्योगिक विकास के लिए एक उद्यमी और प्राधिकारी के रूप में सरकार की भूमिका तय हुई।
  • सरकार ने ना सिर्फ निवेश किया बाल्कि कुछ निजी क्षेत्रों को भी अपने संरक्षण में ले लिया या अधिग्रहण कर लिया। जिसमें विमान क्षेत्र, कोयला क्षेत्र और बैकों का राष्ट्रीयकरण प्रमुख था।
  • 1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को महत्वपूर्ण भूमिका दी गई और उद्योगों की एक अलग श्रेणी बनायी गई जो पूर्णतया राज्य के नियंत्रण में रखे गये थे, अर्थात निवेश राज्य को ही करना था।
  • खनन, उत्खनन, विमान, भारी उद्योग, ऊर्जा, जहाजरानी, आधारभूत संरचना आदि सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों की जिम्मेदारी सरकार ने अपने हाथ में रखा था और निवेश किया था।
  • सरकार द्वारा किया गया निवेश हर कंपनी में लाभदायक नहीं रहा था, या यूं कहें कि कुछ ही कंपनियां लाभ का सौदा साबित हुईं और अधिकांश कंपनियाँ घाटे में चलती रहीं। सरकारी अधिकारियों की लाल फीताशाही एवं गैर जवाबदेह प्रवृत्ति, कमजोर प्रबंधन, राजनीतिक दखल, गैर- पेशेवर नजरिया, अनावश्यक खर्चा, आदि कारणों से यह स्थिति उत्पन्न हुई थी। धीरे-धीरे औद्योगिक सेक्टर घाटे के सेक्टर में तब्दील होने लगा और इन्हें चालू रखने के लिए सरकार को भारी पूजी खर्च करना पड़ रहा था।
  • 1990 के दशक के प्रारंभ में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति और सरकार की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए LPG (उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण) मॉडल को अपनाया गया। इन नीतियों में यह नीहित था कि सरकार या राज्य बाजार में हस्तक्षेप और अपनी हिस्सेदारी कम करेगा।
  • जुलाई 1991 में नई औद्योगिक नीति अपनाई गई और इसमें विनिवेश (Disinvestment) की रणनीति स्वीकार की गई।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया को विनिवेश कहा जाता हैं हालांकि विनिवेश उतना ही किया जाता है जिससे उस उपक्रम पर सरकार का स्वामित्व या मालिकाना हक बना रहे। आसान शब्दों में निवेश का उल्टा विनिवेश होता है।
  • यह तय किया गया कि विनिवेश से पैसा जुटाया जायेगा, जिससे राजकोषीय घाटा कम हो सके, शिक्षा, स्वास्थ्य पर इस पैसे को खर्च किया जा सके, सामाजिक कल्याण की योजनाओं के लिए वित्त अभाव को कम किया जा सके तथा लाभ में चल रहे सार्वजनिक उद्यमों में निवेश बढ़ाया जा सके। इसका एक लक्ष्य यह भी तय किया गया कि प्राइवेट/निजी सेक्टर के लिए अधिक रास्ते खोले जायें, क्योंकि आजादी के समय की परिस्थिति इस समय तक बदल चुकी थी।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में विनिवेश की नीति और LPG की नीति को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख नाम मनमोहन सिंह का था, जो उस समय भारत के वित्त मंत्री थे।
  • विनिवेश की नीति के तहत वार्षिक लक्ष्य तय करके पूंजी प्राप्त करना था। वर्ष 1991-92 एवं 1992-93 के लिए विनिवेश का लक्ष्य क्रमशः 2500-2500 करोड़ प्राप्त करना था। पहले वर्ष इससे 3038 करोड़ रूपये प्राप्त हुए जबकि दूसरे साल (वित्तीय वर्ष) 1913 करोड़ रूपये प्राप्त हुए।
  • वर्ष 1993 में रंगराजन समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में 49 प्रतिशत विनिवेश करने तथा आरक्षित श्रेणी के अलावा अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में 74 प्रतिशत विनिवेश करने की सलाह दी थी। इस तरह रंगराजन समिति ने यह मंशा जाहिर की थी कि कुछ उद्यमों में सरकारी स्वामित्व बना रहना चाहिए। हालांकि यह सिफारिशें लागू नहीं हो सकी थी।
  • तीन वर्ष बाद अर्थात 1996 में जी.वी. रामकृष्णा के नेतृत्व में विनिवेश आयोग गठित किया गया, जिसकी सिफारिशें बाध्यकारी नहीं थी।
  • वर्ष 1999 में विनिवेश विभाग गठित किया गया, जिसको वर्ष 2001 में विनिवेश मंत्रालय कर दिया गया।
  • वर्ष 2004 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को पुनर्जीवित करने एवं उन्हें वाणिज्यिक स्वायत्तता प्रदान करने की घोषण की। अगले वर्ष (2005) राष्ट्रीय निवेश कोष स्थापित किया गया।
  • वर्ष 2014 में नई विनिवेश नीति (New Disinvestment Policy) को सामने लाया गया और विनिवेश के संबंध में सिफारिश करने की शक्ति नीति आयोग को दी गई।
  • वर्ष 2017 में विनिवेश विभाग का नाम बदलकर निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Managment - DIPAM) कर दिया गया।
  • वित्त वर्ष 2019-20 के लिए सरकार ने विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रूपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, जो कि सामान्य विनिवेश से प्राप्त करना कठिन था। इसलिए कुछ और रास्ते तलाशे गये।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2019-20 के अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार सार्वजनिक उद्यमों में रणनीति विनिवेश (Strategic Disinvestment) को आगे लेकर बढ़ेगी।
  • दीपम (DIPAM) के अनुसार रणनीतिक विनिवेश से तात्पर्य किसी सरकारी या केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में 50 प्रतिशत या उससे अधिक हिस्सेदारी, जो निर्धारित प्राधिकरण द्वारा तय की गई हो, और प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण करना रणनीतिक विनिवेश के दायरे में आता है।
  • विनिवेश की प्रक्रिया में सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचती है लेकिन इतना शेयर (हिस्सा) अपने पास अवश्य रखती है, जिससे मालिकाना हक उसके पास बना रहे लेकिन रणनीति विनिवेश के तहत हिस्सेदारी के साथ-साथ प्रबंधन-नियंत्रण भी हस्तांतरित किया जाता है।
  • रणनीति विनिवेश एक प्रकार से निजीकरण का हिस्सा है।
  • रणनीति विनिवेश के लिए DIPAM को नोडल विभाग बनाया गया है।
  • DIPAM और नीति आयोग संयुक्त रूप से उन सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान करते हैं जिसमें रणनीतिक विनिवेश हो सकता है।
  • रणनीति विनिवेश दो चरणों में संपन्न होती है। पहले चरण में निलामी के संदर्भ में रूचि प्रकट की जाती है, दूसरे चरण में वित्तीय निलामी होती है।
  • रणनीति विनिवेश इसलिए करने का निर्णय लिया गया जिससे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके, सार्वजनिक ऋण को कम किया जा सके, ऋण- जीडीपी अनुपात को सुधारा जा सके।
  • इससे प्राप्त होने वाली पूंजी को आवश्यक अवसंरचनाओं पर खर्च किया जा सकेगा।
  • इसके माध्यम से विनिवेश को गति दी गई है और अनेक प्रशासनिक मंत्रलयों द्वारा जो बांधा उत्पन्न होती थी, उसे कम किया गया है।
  • रणनीति विनिवेश के लिए निम्न कंपनियों का चयन किया गया- भारत पेट्रोलियम, एयर इंडिया एवं उसकी पांच सहयोगी इकाइयाँ, सीमेंट कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया, एलॉय स्टील प्लांट, दुर्गापुर, सेलम स्टील प्लांट, हिंदुस्तान पेट्रोलियम आदि शामिल थे।
  • सरकार का कहना था कि विनिवेश से जो पूंजी प्राप्त करना था वह प्राप्त नहीं हो पा रहा था। इसे एक टेबल के माध्यम से समझ सकते हैं।
क्रमांक वर्ष लक्ष्य (करोड़ रु. में) प्राप्ति (करोड़ रु. में)
1. 1999-2000 10,000 1573-78
2. 2000-2001 10,000 1868-73
3. 2001-2002 12,000 3130-94
4. 2002-2003 12,000 3130-94
5. 2004-2005 4,000 2764-87
6. घटक दलों का विरोध-विनिवेश के प्रति सरकार उदासीन रही।
7. 2010-2011 40,000 22-144-2
8. 2011-2012 40,000 13,894-05
9. इसके बाद लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पा रहे थें।
  • सरकार रणनीति विनिवेश के माध्यम से निजीकरण की ओर बढ़ रही है जिसके संदर्भ में संभावनाएं एवं चुनौतियाँ दोनों है।
  • सरकार अब सार्वजनिक उद्यामों में लगी पूंजी को निकालकर सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा और सामाजिक आधारभूत संरचना पर खर्च बढ़ा सकती है।
  • सरकार सार्वजनिक ऋण को कम कर रही है तथा मार्केट को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने का प्रयास कर रही है।
  • सार्वजनिक कंपनियों का जब बजट वित्तपोषण किया जाता है तब टैक्स के पैसे की बर्वादी होती है, इसलिए इसे रोका जाना चाहिए।
  • सार्वजनिक कंपनियों की उत्पादकता तभी बढ़ सकती है जब प्रबंधन और नियंत्रण पर भी प्राइवेट सेक्टर अपना ध्यान केंद्रित करे।
  • CAG ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में सरकार के विनिवेश कार्यक्रम पर सवाल उठाये हैं।
  • कैग ने सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी को सार्वजनिक क्षेत्र की ही दूसरी कंपनी को बेचे जाने की रणनीति को बेकार बताया है। कैग ने कहा है कि ऐसे विनिवेशों से केवल संसाधनों का स्थानांतरण हुआ है न कि इसे सरकार की कुल हिस्सेदारी में कोई परिवर्तन आया है।
  • सरकार ने HPCL को ONGC को बेच दिया, रूरल इलेक्ट्रीफिकेशन कॉर्पोरेशन को PFC को बेच दिया, HSCC (India) को NBCC बेच दिया।
  • कुछ समीक्षकों का मानना है कि सरकार अपनी ही कंपनियों को इधर से उधर कर रही है।
  • सरकार का कहना है कि इससे बड़ी और अधिक गुणवत्तपूर्ण कंपनी का निर्माण हो रहा है।
  • आलोचकों का कहना है कि सरकार ने इस बिक्री से दूसरी कंपनी के पैसे/पूंजी को भी अपने पास रख लिया है, जिससे कंपनियों की पूंजी में कमी आई है।

समाचार चैनलों के लिए आचार संहिता की आवश्यकता

  • सुदर्शन TV ने 25 अगस्त को एक टीजर जारी किया था जिसमें चैनल के संपादक ने यह दावा किया था कि 28 अगस्त को प्रसारित होने वाले उनके कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ में कार्यपालिका के सबसे बड़े पदों पर मुस्लिम घुसपैठ का पर्दाफाश किया जायेगा।
  • इसके बाद इस पर विवाद बढ़ने लगा। राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने कार्यक्रम के विषय में पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी और न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिएशन (NBA) के अध्यक्ष रजत शर्मा को एक पत्र लिखा तथा कार्यक्रम को रूकवाने तथा संपादक के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई करने का अनुरोध किया था।
  • दिल्ली हाइकोर्ट ने 23 अगस्त को रोक लगा दी मगर 10 सितंबर को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम को प्रसारित करने की अनुमति दे दी। अनेक चरणों से गुजरते हुए यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
  • जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्र और के.एम. जोसेफ की पीठ द्वारा सुदर्शन न्यूज के इस कार्यक्रम पर रोक लगा दी गई।
  • सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने NBA को अपने नियमों को लागू करने में नरमी बरतने पर फटकार लगाई तथा पीठासीन न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड ने NBA को दंतहीन कहा।
  • NBA ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि उनके द्वारा निर्मित आचार संहिता को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के प्रोग्राम कोड के नियम-6 में सम्मिलित कर इसे वैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए। जिससे ये संहिता सभी समाचार चैनलों के लिए बाध्यकारी बन सके।
  • केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह फेक न्यूज या हेट स्पीच पर अंकुश लगाने के लिए इलैक्ट्रानिक मीडिया को विनियमित करने की कोई कवायद की शुरूआत न करे क्योंकि इससे निपटने के लिए पर्याप्त नियम और दिशा- निर्देश पहले से ही हैं।
  • जब कोई भाषण या कथन किसी संपूर्ण समुदाय को राष्ट्र विरोधी के रूप में व्याख्यायित करता है, प्रसारित करता है तो इसे हेट स्पीच की श्रेणी में रखा जाता है। यह विविधतामूलक भारतीय समाज को तोड़ने वाला होता है, जो कि राष्ट्रविरोधी और समाज विरोधी गतिविधि के रूप में जाना जाता है।
  • स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और सामाजिक समरसता हमारे संविधान के मूल तत्व हैं, जिनको संरक्षित करने की जिम्मेदारी सभी संस्थाओं एवं लोगों पर है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-153A और धारा-295A क्रमशः विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने वाले भाषण/कार्य को अपराध घोषित करती है।
  • वर्तमान समय डिजीटल युग का है जिसकी वजह से टीवी एवं अन्य माध्यमों तक लोगों की पहुँच बढ़ती है। दूसरी ओर सबसे पहले खबर दिखाने और ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर कुछ भी परोसने (प्रस्तुत करने) की नीति ने निष्पक्ष पत्रकारिता का न सिर्फ उल्लंघन किया है बल्कि कई बार समाज को बांटने का भी काम किया है। अभी कुछ दिन पूर्व महाराष्ट्र हाइकोर्ट ने भी कहा था कि जमातियों को जिस तरह कोरोना फैलाने वाला बताया गया, मीडिया में प्रसारित किया गया वह गलत था।
  • फेक न्यूज का दायरा जिस तेजी से बढ़ रहा है, जिस गति से यह प्रसारित हो रहा है, इसे देखते हुए समीक्षकों का मानना है कि टेलीविजन सामाचार चैनलों के लिए आचार सहिता का निर्माण बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
  • अक्सर यह भी देखा जाता है कि व्यापारिक समूह, दबाव समूह, राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए समाचार पत्रों एवं टेलीविजन चैनलों का संचालन कर रहे हैं जो चिंताजनक है, जिसे रोकने के लिए सख्त आचार संहिता की आवश्यकता है।
  • मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है उसे इस तरह विनियमित करने की आवश्यकता है जिससे लोकतंत्र मजबूत हो सके, समाज के अल्पसंख्यक एवं वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
  • इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी स्वतंत्र संगठन का निर्माण किया जा सकता है तो साथ ही न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) को मजबूत किया जा सकता है, जो इस समय बहुत लचर प्रकृति का है।
  • NBA निजी टेलीविजन समाचार और समसामयिक घटनाओं के ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है। यह पूर्ण रूप से अपने सदस्यों से वित्त पोषण प्राप्त करता है। इस समय 70 न्यूज और समसामयिक घटनाओं के चैनल इसके सदस्य हैं।
  • केंद्र सरकार ने सुदर्शन TV को प्रोग्राम कोड के उल्लंघन के मामले में नोटिस जारी किया है।