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Blog / 26 Dec 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 26 December 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 26 December 2020



एक्ट ईस्ट पॉलिसी चर्चा में क्यों है?

  • भारत द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ अपने आर्थिक और सामरिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए लुक ईस्ट पालिसी (पूर्व की ओर देखो) 1990 के दशक में प्रारंभ की गई। पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने दक्षिण-पूर्व देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस की ताकि एशिया के उभरते राष्ट्रों के साथ भारत अपने रणनीतिक एवं कूटनीतिक संबंधों को मजबूत कर एशिया में शक्ति संतुलन स्थापित कर सके।
  • लुक ईस्ट पॉलिसी वस्तुतः शीत युद्ध की समाप्ति के बाद उभरे नए वैश्विक और क्षेत्रीय परिदृश्यों, शक्ति संतुलन और भारत आवश्यकता का परिणाम था।
  • इस नीति का एक उद्देश्य जहां उत्तर-पूर्व भारत में विकास की गतिविधियों को बढ़ावा देना था वहीं एक प्रमुख उद्देश्य यह भी था कि भारत ने जो उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की नीति अपनाई थी उसका फायदा देश को मिल सके। भारत को इसका फायदा आसियान देशों के साथ मिला भी।
  • अगस्त 2014 में उस समय की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सिंगापुर के दौरे पर गईं तो उन्होंने कहा कि अब लुक ईस्ट पॉलिसी पर्याप्त नहीं है अब हमें एक्ट ईस्ट पॉलिसी की जरूरत है।
  • भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ सहभागिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लाई गई थी। यह सहभागिता आर्थिक हितों से आगे बढ़कर राजनीतिक, सांस्कृतिक, कूटनीतिक स्तर तक पहुँचाना है।
  • भारत इस नीति के तहत पूर्व के देशों के इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफेक्चरिंग, व्यापार, स्किल डेवलपमेंट, शहरी विकास, कनेक्टविटी प्रोजेक्ट, अंतरिक्ष सहयोग और नागरिक सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है।
  • त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना के संबंध में भारत – म्यांमार – थाईलैंड के संयुक्त कार्यबल की बैठक 11 सितंबर 2012 को नई दिल्ली में आयोजित की गई थी। इससे पूर्व भारत में मोरेह से म्यांमार के रास्ते थाईलैंड में माई सोत तक त्रिपक्षीय राजमार्ग का विचार अप्रैल, 2002 में यांगून में परिवहन संपर्क के संबंध में त्रिपक्षीय मंत्रिस्तरीय बैठक में आया था। यह त्रिपक्षीय राजमार्ग भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के मध्य सड़क संपर्क की स्थापना में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम का द्योतक है। इसकी संकल्पना अवसर और मैत्री के राजमार्ग के रूप में की गई थी जो माल और सेवाओं के आवागमन में ही नहीं अपितु लोगों एवं विचारों के आवागमन में भी मदद देगा। तीनों पक्ष सन् 2016 तक त्रिपक्षीय सड़क संपर्क स्थापित करने के लिए सभी प्रयास करने पर सहमत हुए। यह भी सहमति हुई कि त्रिपक्षीय राजमार्ग की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए माल एवं लोगों के निर्बाध आवागमन हेतु सीमा पर स्थित जांच चौकियों पर सीमा शुल्क और आप्रावास प्रक्रियाओं को सुसंगत बनाने से संबंधित मामलों के समाधान के उपाय शुरू किए जाएं।
  • ये हाईवे भारत में उत्तरपूर्वी राज्य मणिपुर के मोरेह से म्यांमार के तामू शहर जाएगा। इस 1400 किलोमीटर सड़क के इस्तेमाल के लिए त्रिपक्षीय मोटर वाहन समझौता पूरा करने पर बात हुई थी। ये हाईवे थाईलैंड के मेई सोत जिले के ताक तक जाएगी। दवेई पोर्ट को भारत के चेन्नई पोर्ट और थाईलैंड के लेईंग चाबांग पोर्ट से जोड़ा जा सकता है।
  • अगस्त 2016 में म्यांमार के राष्ट्रपति हटिन कयाव की भारत यात्रा के दौरान म्यांमार में आईएमटी राजमार्ग के तमु-क्इगोन-कलइवा खंड और कलइवा-यार्गी खंड में पुलों और संपर्क सड़कों के निर्माण एवं उन्नयन के लिए दो एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे।तमु-क्इगोन-कलइवा सड़क खंड जो 149.70 किलोमीटर लंबा है पर 69 पुलों के निर्माण का भी प्रस्ताव है।
  • भारत के महत्तवपूर्ण पड़ोसी देश और सार्क और बिमस्टेक जैसी संस्थाओं के प्रमुख सदस्य बांग्लादेश ने हाल ही में भारत म्यांमार थाईलैंड ट्राईलेटरल हाईवे प्रोजेक्ट से जुड़ने में अपनी रुचि जाहिर की है। वर्ष 2019 में म्यांमार थाईलैंड के अलावा इस प्रोजेक्ट में लाओस कंबोडिया और वियतनाम को भी जोड़ा गया था। यानि आधे से अधिक आसियान या यूं कहें दक्षिण पूर्वी एशिया भारत के साथ इस राजमार्ग परियोजना से जुड़ गया है जिस पर तेज गति से कार्य हो रहा है। भारत के इस मुहिम को उसकी एक्ट ईस्ट पॉलिसी को मजबूती देनी वाली मुहिम कहा जा सकता है है जिसके लिए दक्षिण पूर्वी एशिया के देश महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • इसी क्रम में दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के मध्य क्षेत्रीय अंतर संपर्क को मजबूती देने के उद्देश्य से बंगलादेश ने इस प्रोजेक्ट से जुड़ने के लिए अपनी इच्छा जाहिर की है। 17 दिसंबर को भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के बीच हुए वर्चुअल बैठक में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया को जोड़ने वाले इस अति महत्वपूर्ण राजमार्ग परियोजना से जुड़ने का प्रस्ताव किया। वहीं भारत ने बांग्लादेश से होते हुए पश्चिम बंगाल के हिली से मेघालय के महेंद्रगंज तक कनेक्टिविटी को शुरू करने का बांग्लादेश से आग्रह भी किया है।
  • भारत ने जब भारत, म्यांमार, थाईलैण्ड (IMT) हाईवे के प्रोजेक्ट को प्रारंभ किया था, उस समय बांग्लादेश के सामने भी यह प्रस्ताव रखा गया था कि वह भी इसमें शामिल हो सकता है लेकिन उस समय की खालिदा जिया सरकार ने मना कर दिया।
  • वर्तमान समय में अनेक स्ट्रैटजिक डेवलपमेंट हुए हैं जिसके कारण बांग्लादेश ने अब इसमें जुड़ने के लिए रूचि व्यक्त की है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए जरूरी है कि वह भी अब पूर्व के देशों के साथ अपनी कनेक्टविटी को बढ़ाये। यह बांग्लादेश के आर्थिक, रणनीतिक दृष्टिकोण से तो महत्त्वपूर्ण होगा ही साथ ही एक मजबूत राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश को स्थापित करेगा।
  • इसमें बांग्लादेश को शामिल करने के लिए भारत, म्यांमार और थाईलैण्ड की स्वीकृति आवश्यक होगी, इसलिए बांग्लादेश ने भारत से सहयोग मांगा है।
  • यह 4 लेन का हाईवे होगा, जो इन देशों के वस्तुओं एवं व्यक्तियों के आवागमन को बढ़ायेंगे।
  • इस प्रोजेक्ट में भारत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि म्यांमार के कई क्षेत्रें में इस हाईवे का निर्माण भारत के द्वारा ही किया जा रहा है।
  • आने वाले समय में इस हाईवे को पश्चिम में उत्तर-प्रदेश भारत पहुँचाना चाहता है जिससे लगभग पूरा उत्तर भारत इसका फायदा उठा सके।
  • वर्ष 2014 में चीन ने अपने वन बेल्ट रोड इनिशिएटिव के तहत यह प्रस्ताव रखा कि वह चीन के कुंनमिंग से कलकत्ता तक एक सड़क परियोजना का प्रस्ताव रखा जो बांग्लादेश-चीन-इंडिया और म्यामार (BCIM) को जोडे़गी। भारत ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़ने से मना कर दिया, जिसके कारण BCIM में कोई प्रगति नहीं हो पाई। इस तरह बांग्लादेश अब BCIM से इतर IMT प्रोजेक्ट की ओर झुकाव प्रदर्शित कर रहा है।
  • बांग्लादेश BBIN (बांग्लादेश, भूटान, इंडिया, नेपाल) का हिस्सा है, जिसके तहत सामानों के संयुक्त आवागमन को बढ़ावा देने का प्रयास इन देशों के द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में बांग्लादेश यदि IMT प्रोजेक्ट से जुड़ जाता है तो वह सार्क देशों साथ साथ आसियान देशों तक अपने वस्तुओं एवं व्यक्तियों की पहुँच बढ़ा सकता है।
  • बांग्लादेश और IMT सदस्यों को एक बड़ा अवसर इस क्षेत्र में इसलिए भी नजर आ रहा है क्योंकि यह परियोजना आगे चलकर पूर्व-पश्चिम इकॉनमिक कोरिडोर से जुड़ सकता है। इस कोरिडोर को जापान द्वारा वियतनाम के Da Nang से म्यांमार के यांगुन तक सड़क का निर्माण कर रहा है। इस तरह यह दो कोरिडोर मिलकर Trans Asian Corrider (IMT+Japan's East West Economic Corridor) का निर्माण करेंगे। इससे भारत से वियतनाम तक या हिंद-महासागर से प्रशांत महासागर तक के क्षेत्र सड़क मार्ग से जुड़ जायेंगे, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र का व्यापार या जुड़ाव बढ़ेगा यह इस क्षेत्र में चीन के वन बेल्ट रोड इनिशिएटिव को कमजोर करेगा।
  • भारत के ऊपर भी एक दबाव है कि वह बांग्लादेश के हितों को समझे। भारत के दबाव में ही बांग्लादेश ने चीन द्वारा बांग्लादेश में विकसित किये जा रहे Sonadia Deep Sea Port को कैंसिल कर दिया था।
  • भारत यदि बांग्लादेश को अपने पक्ष में रखना चाहता तो भी यह आवश्यक है कि वह बांग्लादेश के आर्थिक हितों को समझे। चीन कई प्रकार से बांग्लादेश को अपने पक्ष में करना चाहता है। कुछ दिन पहले ही चीन ने एक टैरिफ कार्ड खेलते हुए बांग्लादेश से चीन को निर्यात होने वाले 97 प्रतिशत सामानों पर शून्यटैरिफ या न के बराबर टैरिफ लगाने की घोषण की थी। नेपाल में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनजर बांग्लादेश रणनीतिक रूप से हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
  • भारत-बांग्लादेश ने 1965 के युद्ध में बंद की गई 6 रेल लिंक को बंद कर दिया था, अब उन्हें चालू कर दिया गया है।
  • दोनों देश अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं, इसके अलावा सागरीय कनेक्टविटी को भी बढ़ा रहे हैं।

चाइना का जासूसी नेटवर्क

  • इंटर पार्लियामेंट अलाइंस ऑफ चाइना (IPAC) का गठन जून 2020 में हुआ था। इसका काम चीन के बढ़ते प्रभाव पर नजर रखना है। चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी को डेमोक्रेसी वाले देशों के साथ कैस संबंध हैं यह इस पर नजर रखती है। 19 देशों के 150 सांसद इसके सदस्य हैं।
  • इस कमेटी को हाल ही में एक डेटा मिला था जिसमें चाइना कम्यूनिस्ट पार्टी के 20 लाख लोगों का डेटा था। इसके 99 प्रतिशत सदस्य हान समुदाय के थे। इसमें इनके नाम, पते, पद की जानकारी थी। इस डेटा से पता चला कि चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी 89000 शाखाएं पूरे विश्व में हैं।
  • IPAC ने जब यह डेटा मीडिया को सौंपा तो इसकी जांच शुरू हुई जिसमें कई खुलासे हुए। पता चला कि चाइना कम्यूनिस्ट पार्टी के कई सदस्य दुनिया की बड़ी कंपनियों, सरकारों, मंत्रलयों, रक्षा विभागों, दुतावासों में कार्यरत हैं। इसमें फाइजर और एस्ट्रोजेनेका जैसे नाम हैं। कुछ सदस्य तो खुफिया एजेंसियों तक में हैं। इस सूचना के बाद हड़कंप मच गया क्योंकि हर देश में इनकी उपस्थिति है और गुप्त सूचनाएं चीन के लिए गुप्त नहीं रह गईं थी। चाइना पहले अपने इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट से सेंधमारी करता था अब वह व्यक्तियों के माध्यम से कर रहा है। यहां यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि यह आज से नहीं हो रहा है यह कई सालों से किया जा रहा है।
  • हाल ही में अफगानिस्तान में चीन का एक जासूसी नेटवर्क (Chinese Spy Network) का खुलासा हुआ है। काबुल पुलिस ने छापा मारकर देश में खुफिया सूचनाएं इकट्ठा कर रहे चीन के 10 जासूसों को गिरफ्रतार किया है। सूचना के मुताबिक पकड़े गये सभी लोग चीन की खुफिया एजेंसी के लिए काम कर रहे थे। इनमें से दो सदस्य तो आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के संपर्क में थे। हक्कानी संगठन तालिबान का खूंखार चेहरा माना जाता है।
  • यह आरोप भी लग रहा है कि यह आतंकी संगठनों को बढ़ावा दे रहे थे।
  • नेशनल डायरेक्टोरेट ऑफ सिक्योरिटी (NDS) का कहना है कि पकड़े गये चीनी लोगों में से एक Li Yangyang पिछले एक साल से पूरी तरह से चीनी खुफिया एजेंसी के लिए काम कर रहा था। पकड़े गये लोगों के पास से गोली-बारूद और Katamine Powder बरामद किया गया था।
  • पकड़े गये लोगों में से एक महिला रेस्टोरेंट चलाती थी जो वहां से मीटिंग फिक्स करवाती थी। यहां तालिबान, अलकायदा और हक्कानी के साथ बात-चीत करवाया जाता था।
  • सामने आई जानकारी के अनुसार पकड़े गये चीनी जासूस एक फर्जी East Turkestan Islamic Movement (ETIM) संगठन खड़ा करने की कोशिश कर रहा था। इसके माध्यम से उइगर/वीगर समुदायों से संपर्क एकत्रित कर उनके विषय में जानकारी प्राप्त कर रहा था।
  • ETIM चीन के शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों का एक छोटा सा अलगाववादी समूह है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि चीन इस संगठन के नाम पर वीगर मुसलमानों पर अत्याचार करता है। फेकू ETIM इसी कारण बनाया जा रहा था ताकि उसके नाम पर उइगर मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ा सके।
  • अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी ने इसकी जाँच की जिम्मेदारी प्रथम उपराष्ट्रपति Amrullah Saleh को सौंप दिया है। यह अफगान इंटेलीजेंस एजेंसी के पूर्व चीफ रहे हैं।
  • उपराष्ट्रपति ने चीन से यह कहा है कि वह यदि इसके लिए माफी मांग लेता है तो वह उसके नागरिकों को क्षमादान दे सकता है, अन्यथ उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा।