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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 23 December 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 23 December 2020



तिब्बत के बहाने चीन को घेरने की अमेरिकी नीति

  • तिब्बत चीन के दक्षिण पश्चिम में एक पठारी है जो इस समय चीन के कब्जे में है, जिसे चीन अपना अभिन्न अंग बताता है, लेकिन तिब्बत के लोगों का कहना है कि यह एक स्वायत्त तथा स्वतंत्र देश रहा है जिस पर चीन ने अपनी सैन्य ताकत के आधार पर कब्जा किया है।
  • तिब्बत का क्षेत्रफल लगभग 24 लाख वर्ग किमी- है, जो चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
  • एक समय तिब्बत संप्रभु देश था, जिसके पास अपनी सेना तथा पूरी प्रशासनिक व्यवस्था थी। 763 ईस्वी में तिब्बत की सेना ने आधे चीन पर कब्जा कर लिया था और तिब्बत की सरकार चीन से टैक्स भी वसूलती थी। 822 ईस्वी में चीन और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण हो गया।
  • चौथी शताब्दी में बौद्ध धर्म तिब्बत पहुँचा। बौद्ध धर्म का प्रभाव जैसे-जैसे तिब्बत में बढ़ता गया तिब्बत की रूचि राजनीतिक के बजाय धार्मिक होती चली गई।
  • चीन जैसे-जैसे संगठित और मजबूत होता गया उसने तिब्बत पर आक्रमण प्रारंभ किया, लेकिन 1940 के दशक के पहले किसी चीनी शासक ने तिब्बत को चीन का हिस्सा नहीं बताया था।
  • वर्ष 1949 में नवगठित पीलुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए अपनी सीमाओं को पुनः स्थापित करने के प्रयास शुरू किये। धीरे-धीरे तिब्बत में चीन का हस्तक्षेप बढ़ता गया।
  • वर्ष 1951 में तिब्बत सरकार को औपचारिक रूप से तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देने वाले 17 बिंदु समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया और चीन ने इस क्षेत्र पर अपनी सत्ता स्थापित कर दी। तिब्बती लोग चीन के इस कृत्त्य को सांस्कृतिक नरसंहार कहते हैं।
  • तिब्बत के लोगों ने चीन के द्वारा किये जा रहे अत्याचार से दुःखी होकर 1959 में चीन की सरकार को उखाड़ फेंकने का असफल प्रयास किया। चीन ने विद्रोह को कुचल दिया और तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लाम को भी जान का खतरा था, फलस्वरूप दलाई लामा ने अपने 80000 समर्थकों के साथ भारत में शरण ली।
  • 1959 के बाद चीन की सरकार तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करती गई और तिब्बत में आज भी भाषण, धर्म या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है।
  • दलाई लामा ने भारत आने के बाद धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) से सटे मैक्लॉडगंज में CENTRAL TIBETAN SECRETARIAT GANGCHEN KYISHONG की स्थापना की, जिसे सेंट्रल तिब्बत प्रशासन (CTA) के नाम से जाना जाता है। CTA तिब्बत की निर्वासित सरकार है, जिसके पास सेना और पुलिस को छोड़कर सभी विभाग एवं मंत्रालय है। दलाईलामा इनके पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।
  • इसमें प्रधानमंत्री का पद, गृहमंत्री, विदेश मंत्री का पद आदि भी होते हैं।
  • प्रधानमंत्री पद को तिब्बती भाषा में सिक्योंग कहा जाता है। वर्तमान समय में इस पद पर लोबसांग सांगेय हैं जो दार्जिंलिंग, भारत के हैं।
  • केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन 11 महत्वपूर्ण देशों में कार्यालय है।
  • तिब्बती सरकार एक सदनीय लोकतांत्रिक सरकार है जिसमें 44 सदस्य हैं और प्रत्येक 5 वर्ष पर इनका चुनाव होता है।
  • यह संसद हर रूप में तिब्बत वापस लौटने का प्रयास करती है हालांकि युवा वर्ग तिब्बत को पूरी तरह स्वतंत्र देखना चाहता है।
  • 1959, 1961 और 1965 में तिब्बत संयुक्त राष्ट्र संघ में अपील कर चुका है।
  • 1963 में दलाई लामा ने प्रजातंत्रीय संविधान का प्रारूप रखा।
  • 1987 में दलाई लामा ने 5 सूत्रीय शांति योजना यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस के सामने पेश किया। इसमें यह मांग थी कि,
  1. पूरे तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में परिवार्तित की जाये।
  2. चीन की जनसंख्या स्थानांतरण की नीति को पूरी तरह छोड़ा जाये।
  3. तिब्बतियों के आधारभूत मानवीय अधिकार और प्रजातंत्रीय स्वतंत्रता की भावना का सम्मान किया जाये।
  4. तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की पुनर्स्थापना और संरक्षण का प्रयास किया जाये तथा परमाणु कूडे़दान न बनाया जाये। दरअसल चीन ने इस क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा परमाणु अपशिष्ट निपटान केंद्र बना रखा है।
  5. तिब्बत के भविष्य की स्थिति और चीनियों के साथ उनके संबंधों के विषय में गंभीर बात-चीत शुरू की जाये। दलाई लामा शांति और अहिंसा पर भरोसा रखते हैं इसी कारण 1989 में उन्हें नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • भारत ने तिब्बत के मुद्द को बहुत ही गंभीरता और परिपक्वता से डील किया है और कभी भी इस मुद्दे का रणनीतिक उपयोग नहीं किया है।
  • अमेरिका समय-समय पर तिब्बत के मुद्दे को सुनता रहा है और चीन से इसका समाधान करने की अपील भी करता आया है।
  • कुछ माह पहले अमेरिका ने अधिकारिक तौर पर घोषणा किया था कि वह तिब्बत की निर्वासित सरकार की कुछ फण्डिंग करेगा। इसी के तहत अमेरिका ने लगभग 1 मिलियन डॉलर की सहायता केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) को दिया था।
  • फण्ड का ट्रांसफर USAID (यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) द्वारा किया गया था।
  • इससे पहले अमेरिकी NGO, संगठन और लोग तो मदद (फण्ड) करते आये थे लेकिन सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ऐसा पहली बार किया गया था।
  • तिब्बती निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ने कहा था कि इससे सहायता का एक रास्ता खुला है भविष्य में बड़ी सहायता भी मिलेगी।
  • इससे पहले अमेरिका उन चीनी नागरिकों का वीजा केंसिल कर चुका है जो तिब्बती लोगों के विषय में गलत सूचना फैलाते हैं या तिब्बती लोगों के मानवाधिकार का हनन करते हों।
  • माइक पांपियों ने कहा है कि चीन को यह सुनिश्चित करना होगा कि तिब्बती लोगों के मानवाधिकार का हनन न हो, वहां के पर्यावरण को प्रदूषित न किया जाये, न्यूक्लियर डंपिंग न किया जाये, नदियों को विषैला न बनाया जाये।

तिब्बत में अमेरिका की नई कूटनीतिक चाल:

  • वाशिंगटन और बीजिंग के बीच बढ़ते तनावपूर्ण संबंधों के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में एक वरिष्ठ मानवाधिकार अधिकारी रॉबर्ट डेस्ट्रो (लोकतंत्र के लिए राज्य सचिव, मानव अधिकार और श्रम) को तिब्बती मुद्दों के लिए विशेष समन्वयक के रूप में नियुक्त किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अमेरिकी प्रशासन के इस निर्णय की घोषणा की। इसके साथ, तिब्बती मुद्दे के विशेष समन्वयक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी प्रयासों का नेतृत्व करेंगे; तिब्बतियों की अद्वितीय धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान की रक्षा करना; और उनके मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए दबाव बनाएंगें।
  • इस साल के जुलाई महीने में अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पिओ ने कहा था कि अमेरिका तिब्बत तक राजनयिक पहुंच को रोकने और "मानवाधिकारों के हनन" में लिप्त कुछ चीनी अधिकारियों के लिए वीजा को प्रतिबंधित कर देगा, जिससे वाशिंगटन तिब्बत के लिए "सार्थक स्वायत्तता" का समर्थन करता है।
  • तिब्बती समुदाय के चीन के दमन के पीपुल्स रिपब्लिक और तिब्बतियों की धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंधों से अमेरिका चिंतित है।

अमेरिका की तिब्बती नीति:

  • अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम, 2019 (HR 4331) को तिब्बत नीति अधिनियम 2002 के बाद से तिब्बत पर सबसे व्यापक नीति विधेयक के रूप में पारित किया है। सोमवार रात को अमेरिकी सिनेट ने Tibetan Policy and Support Act of 2020 (TPSA) को पारित कर दिया जिसे अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव ने इस साल के जनवरी माह में पारित किया था। विधान पर सर्वोच्चता का मत अमेरिका के समर्थन का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन है। मध्य तिब्बती प्रशासन, मध्य मार्ग नीति और तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता, धार्मिक स्वतंत्रता, तिब्बती पठार का पर्यावरण संरक्षण और तिब्बत में स्वतंत्रता की बहाली।
  • तिब्बत में अभिगम के रूप में तिब्बत तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए, तिब्बत अधिनियम तिब्बत तक पहुंच योग्य है, उपरोक्त बिल में ल्हासा, तिब्बत में यूएस वाणिज्य दूतावास की स्थापना के लिए आदेश दिया गया है। नीति के एक मामले के रूप में, बिल सचिव को आह्वान करता है कि वह संयुक्त राज्य में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के किसी भी अतिरिक्त वाणिज्य दूतावास में स्थापना को अधिकृत न करे, जब तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका के ल्हासा, तिब्बत में वाणिज्य दूतावास स्थापित नहीं हो जाता है।
  • यह विधेयक विशेष समन्वयक के उद्देश्यों को आगे बढ़ाता है- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों या तिब्बती पर बातचीत के समझौते के लिए लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं के बीच पूर्व शर्त के बिना ठोस संवाद को बढ़ावा देना। और इस लक्ष्य के लिए बहुपक्षीय प्रयासों में अन्य सरकारों के साथ समन्वय करें; तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं को उनकी विशिष्ट ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान के संबंध में जनवादी गणराज्य चीन सरकार को प्रोत्साहित करना; तिब्बती लोगों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देना; तिब्बती पठार के पर्यावरण और जल संसाधनों को संरक्षित करने के लिए गतिविधियों को बढ़ावा देना; तिब्बत में तिब्बती समुदायों के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संरक्षण, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता परियोजनाओं के अनुसार सतत विकास को प्रोत्साहित करना; और तिब्बत अधिनियम के लिए पारस्परिक पहुंच के अनुसार तिब्बत तक पहुंच को बढ़ावा देना।

अमेरिका द्वारा सोमालिया से अमेरिकी सैनिकों को हटाने का निर्णय

  • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने वर्ष 2021 के शुरुआत में ही सोमालिया से अमेरिकी नौसैनिक जहाजों को वापस बुलाने के निर्देश दिए हैं। अधिक से अधिक अमेरिकी सैनिकों को जो सोमालिया में तैनात हैं उन्हें अब वहां से वापस बुलाया जाएगा। ऑपरेशन ऑक्टेव क्वार्ट्ज को समर्थन देने के लिए अमेरिकी फौजें सोमालिया में मौजूद हैं। इस हॉर्न ऑफ अफ्रीकन देश में शांति सुरक्षा की बहाली समूचे अफ्रीकी महाद्वीप के साथ ही वैश्विक शांति सुरक्षा के लिए भी जरूरी है।
  • सोमालिया के तटों पर कुछ अमेरिकी नौसैनिक जहाजों की तैनाती इसलिए की गई है कि वहां से 700 अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया जा सके। इसके लिए अमेरिका के लड़ाकू पोत यूएसएस मकिन आइसलैंड अन्य नौसैनिक पोतों के साथ अफ्रीका पहुंचे हैं । इसके साथ ही वर्षों से सोमालिया में लगे अमेरिकी सैनिक जो वहां के आतंकवादी संगठन अल शबाब से निपटने में लगे थे, उन्हें वापस बुलाकर उन्हें अन्य पूर्वी अफ्रीका के देशों में तैनात किया जाएगा।
  • जिन 700 अमेरिकी सैनिकों को सोमालिया से हटाने का निर्णय किया गया है , उन्हें केन्या या जिबूती में पुनः बहाल किया जाएगा। इस बात की पुष्टि अमेरिका अफ्रीका कमांड ने भी की है। इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में जनवरी 2021 के मध्य से इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या में कटौती कर दोनों देशों में 2500-2500 सैनिकों के ही तैनात बने रहने का निर्णय किया है।

अल शबाब की हिंसक गतिविधियों के साक्ष्य :

  • सोमालिया से संचालित उपद्रवी आतंकवादी संगठन अल शबाब मुख्य रूप से हॉर्न ऑफ अफ़्रीका (पूर्वी अफ़्रीका) में सक्रिय है। 2012 में एक बहुराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अल क़ायदा के साथ अल शबाब के विलय ने इसकी ताक़त बढ़ा दी है। जनवरी, 2020 को सोमालिया से संचालित आतंकवादी संगठन ने लामू के पास केन्याई सैन्य अड्डे पर हमला किया, जिसमें केन्या में तैनात एक अमेरिकी सैनिक की मौत हो गई। उनका निशाना केन्या के समुद्र तट के पास मंडा खाड़ी थी, जो संयुक्त राज्य अमेरिका का एक अग्रिम टोही अड्डा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के 475वें एयर एक्सपीडिशनरी एयर बेस स्क्वाड्रन का एक ठिकाना है जो अल शबाब के खिलाफ ड्रोन युद्धनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • अल शबाब के कुछ दूसरे बड़े हमले हैं- 2010 में कंपाला (युगांडा) में अल शबाब के हमले में 74 लोग मारे गए। 2013 में नैरोबी (केन्या) में शॉपिंग मॉल पर इसके हमले में 67 लोग मारे गए। अलक़ायदा द्वारा 1998 में तंज़ानिया और केन्या में अमेरिकी दूतावासों में कुख्यात बम धमाके के बाद, अल शबाब ने 2015 में केन्या के गरिसा शहर में बड़ा हमला किया था, जिसमें 147 लोगों की मौत हुईं। इसके अलावा, अल शबाब तेज़ी से अपनी गतिविधियों में परिष्कृत और अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ा रहा है। 15 अक्टूबर, 2017 को अपने एक सबसे घातक हमले में डबल ट्रक बमबारी से अल शबाब ने लगभग 320 लोगों की जान ली। ज़ाहिर तौर पर यह भय की मनोवृत्ति के ज़रिये संघीय सरकार को धमका रहा है।
  • अल शबाब ने सोमालीलैंड और पुंटलैंड में सोमालिया की संघीय सरकार का नियंत्रण ख़त्म करने की कोशिश की, हालांकि वह नाकाम रहा।

अल शबाब की कार्यप्रणाली :

  • असल में अल क़ायदा और इसके सहयोगियों से समर्थन पाने के अलावा, अल शबाब ने केन्या भर में प्रतिबंधित चीनी का कारोबार किया। इसने चारकोल निर्यात पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के बावजूद 2012 के बाद से चारकोल के अवैध कारोबार से भारी कमाई की है। इसके अलावा इसे समुद्री डकैती, अपहरण, उगाही, स्थानीय कारोबार और किसानों से पैसा मिलता है. हालांकि, आतंकवाद को समुद्री डकैती से गड्डमड्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि समुद्री डकैती अपने आप में एक अलग धंधा है और इसकी जांच का दायरा अलग है।

अल शबाब के बारे में :

  • अल शबाब इस्लाम के सबसे कट्टर रूप को मानता है। इसका इस्लाम सऊदी अरब वाला वहाबी इस्लाम है। सोमालिया की राजधानी मोगादिशू पर 2006 में यूनियन ऑफ इस्लामिक कोर्ट्स का कब्जा था। ये असल में शरिया अदालतों का एक संगठन था। कट्टर इस्लामिक कानूनों को मानने पर उसका जोर था। इसी यूनियन ऑफ इस्लामिक कोर्ट्स की कट्टरपंथी युवा शाखा अल-शबाब है।
  • अमेरिका और ब्रिटेन, दोनों ने ही अल-शबाब को आतंकवादी संगठन करार देते हुए प्रतिबंधित किया हुआ है। इस्लामिक स्टेट, अल-कायदा और नाइजीरिया के बोको हरम से भी इसके रिश्ते हैं।