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Blog / 21 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 21 September 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 21 September 2020



क्रा नहर परियोजना चर्चा में क्यों?

  • चीन की वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना समुद्री मार्ग, सड़क मार्ग और रेल मार्ग के माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 70 देशों को जोड़ने की एक परियोजना है।
  • चीन इस पर लगभग 900 अरब डॉलर खर्च करने की योजना के तहत कार्य कर रहा है। इसके लिए वह अनेको देशों में सड़कमार्ग, रेलमार्ग, बंदरगाह एवं समुद्री रास्ता विकसित करने के लिए परियोजना चला रहा है तो साथ ही कुछ देशों को उसने भारी ऋण देकर उनके द्वीपों, बंदरगाहों को लंबे समय के लिए लीज पर लिया है। श्रीलंका, मालदीव एवं कई अफ्रीकी तथा एशियाई देश चीन के ऋण जाल में फंस चुके हैं तो कुछ देश अब सावधान हो गये हैं।
  • चीन की यह OBOR परियोजना भारत को घेरने तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन प्रभुत्व और पहुँच को बढ़ाने को हिस्सा है।
  • चीन अपनी इसी परियोजना के तहत थाईलैण्ड में क्रा नहर (Kra Canal) निर्माण की परियोजना पर कार्य कर रहा था, जिसे थाईलैण्ड की सरकार ने अब कैंसिल कर दिया है। 120 किमी- लंबी, 400 मीटर चौड़ी और 25 मीटर गहरी नहर से चीन को बाहर किये जाने से हिंद-प्रशांत महासागर में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व को बड़ा झटका लगा है।
  • इसे थाई नहर के नाम से भी जाना जाता है जो क्रा स्थलडमरूमध्य (Isthmus) में बनायी जानी थी जिससे अंडमान सागर और थाईलैण्ड सागर एक दूसरे से जुड़ जाते। दूसरे शब्दों में यह हिंद महासागर को प्रशांत महासागर के दक्षिणी चीन सागर से जोड़ने का एक हिस्सा है।
  • इस प्रकार के यहाँ पर नहर निर्माण का विचार सर्वप्रथम 1667 में आया था। लेकिन अधिक आर्थिक खर्च के कारण पूरा नहीं हो पाया। थाईलैण्ड की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसका एक हिस्सा हिंद महासागर में खुलता है तो दूसरा प्रशांत महासागर में जिससे यदि यहाँ नहर को बनाने की दशाएँ बहुत अनुकूल हैं ।
  • बाद में स्वेज नहर का निर्माण करने वाले फ्रेंच इंजीनियर दे लामार को भी यहां सर्वे के लिए बुलाया गया लेकिन आर्थिक और तकनीकी अभाव के कारण यह मूर्त रूप धारण न कर सका।
  • कुछ समय बाद एक बार फिर इसको विकसित करने का प्रयास किया गया लेकिन ब्रिटेन के आपत्ति के कारण यह विकसित न हो सका।
  • 1990 के दशक में एक बार फिर इस पर विचार किया गया, लेकिन अपर्याप्त बजट के कारण यह संभव न हो पाया।
  • चीन ने अपने OBOR परियोजना के तहत इसमें रूचि दिखाई और इसके वित्तपोषण के लिए तैयार हो गया। दोनों देशों द्वारा इसको लेकर बात-चीत भी प्रारंभ हो गई और इस पर काम भी शुरू होना था, लेकिन थाईलैण्ड की चीन के संदर्भ में कुछ चिंताएं थी, जिसके कारण थाईलैण्ड में देश के अंदर इसको लेकर विरोध भी हो रहा था। दूसरी तरफ दक्षिणी चीन सागर में चीन की नकारात्मक प्रवृत्तियाँ भी बनी हुई थीं।
  • इस नहर के संदर्भ में चिंताएं सिर्फ थाईलैण्ड की नहीं थी बल्कि म्यामांर और कंबोडिया में भी चीनी दखल बढ़ने का डर था। दरअसल चीन कई देशों में अपना नेवी बेस पहले से स्थापित कर चुका है, ऐसे में यदि वह इस नहर को विकसित कर अपना कंट्रोल स्थापित कर लेता है तो वह हिंद और प्रशात क्षेत्र के समुद्री मार्ग एवं उसमें होने वाले परिवहन को प्रभावित कर सकता था।
  • इसके अलावा थाईलैण्ड ने चीन से और अधिक दूरी कायम करने के लिए चीन से 72.4 करोड़ डॉलर की देा पनडुब्बियों को खरीदे जाने की योजना को भी स्थागित कर दिया है।
  • क्रा कैनाल प्रोजेक्ट से चीन को बाहर करने के बाद भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने मिलकर थालैण्ड के महत्वाकांक्षी क्रा कैनाल प्रोजेक्ट में अपनी ऊची दिखाई है और थाइैलैण्ड को प्रस्ताव भेजा है।
  • यह तीनों देश क्वाड (Quad) ग्रुप का हिस्सा है जिसकी हिंद-प्रशांत में शांति स्थापित करने और चीन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • क्रा-कैनाल प्रोजेक्ट के इस प्रस्ताव में जापान भी जुड़ सकता है।
  • भारत की एक लोकतांत्रिक और शांत नीति का पालन करने वाले देश के रूप में छवि थाईलैण्ड को इस प्रस्ताव के विषय में सहमत कर सकती है।
  • यह नहर क्यों महत्वपूर्ण है?
  1. हिंद-प्रशांत को जोड़ने के लिए यह महत्वपूर्ण है जिससे समय की बचत होगी।
  2. मलक्का जलसंधि पर निर्भरता कम करने के लिए
  3. मलक्का जलसंधि के विकल्प के तौर
  4. आसियान एवं पश्चिमी एशिया तथा अफ्रीका के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए
  5. कच्चे तेल के आयात-निर्यात को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए
  • मलक्का जलसंधि दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग में से एक है जिसके माध्यम से वैश्विक व्यापार का लगभग 30 प्रतिशत व्यापार होता है और प्रति साल लगभग 84000 जहाज इससे गुजरते है।
  • इस जलसंधि से एक साल में अधिकतम 1,22,000 जहाज गुजर सकते हैं, जबकि आने वाले समय में यहां से व्यापार करने के लिए 1,40,000 जहाजों को गुजारना होगा, जो संभव नहीं हैं।
  • चीन इस जलसंधि से लगभग अपना 80 प्रतिशत तेल आयात करता है इसीकारण वह क्रा कैनाल प्रोजेक्ट को लेकर सक्रियता दिखा रहा था क्योंकि इससे 1200 किमी- की दूरी कम हो जाती। और जहाजों का 72 घंटा बचता।
  • थाईलैण्ड अपने को सिंगापुर की तरह लॉजिस्टिक हब बनाना चाहता है, उसमें भी यह सहायक होगा इसी के साथ थाईलैण्ड इस नहर के दोनों ओर आर्थिक क्षेत्र का विकास कर के अपनी अर्थव्यवस्था को गति दे सकता है।
  • चीन को इस परियोजना को बाहर किये जाने से पश्चिम एशिया के हाइड्रोकार्बन पर होने वाले खर्च को बढ़ायेगा।
  • हाल के समय में चीन के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका एंव दक्षिण पूर्ण एशिया के देशों की दूरी बढ़ी है जिसके कारण मलक्का जलसंधि के नियंत्रण को लेकर भी खींचतान चल रही है, ऐसे में थाईलैण्ड के इस फैसले से क्वाड समूह की चिंताएं कम होंगी।
  • भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के प्रस्ताव को यदि थाईलैण्ड स्वीकार कर लेता है तो इससे भारत का व्यापार भी बढेगा और क्वाड ग्रुप द्वारा बनाये जा रहे नये लॉजिस्टिक चैन का भी विकास हो सकेगा।

रूल्स ऑफ ओरिजिन चर्चा में क्यों हैं?

  • भारत-चीन सीमा तनाव पिछले कई माह से एशिया क्षेत्र के लिए तनाव का कारण बन हुआ है। इस तनाव के बीच भारत के एक बड़े वर्ग का यह मानना था कि चीन के सामान का बहिष्कार किया जाये। इसी संदर्भ में भारत ने कई तरह के कदम उठाये जिससे चीनी निवेश और व्यापार प्रभावित होता है। साथ ही भारत ने आत्मनिर्भरता का लक्ष्य आगे बढ़ाया है, जिससे आयात कम हो सके।
  • हाल ही में भारत सरकार ने देश भर के आयातकों के लिए नए नियम जारी किया है जिसमें इसका उल्लेख है कि आयात करने से पूर्व अपेक्षित सतर्कता बरतते हुए आयातित वस्तुओं पर रूल्स ऑफ ओरिजिन के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने की बात की गई है।
  • रूल्स ऑफ ओरिजिन, किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत के निर्धारण के लिए आवश्यक मापदंड है, जिसके आधार पर कई देशों में आयात शुल्क और प्रतिबंध आरोपित किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कई बार यह देखा गया है कि किसी देश के वस्तुओं के व्यापार को कम करने के लिए या फिर कुछ देशों को कम तबज्जों देने के लिए इस प्रकार का नियम आरोपित किया जाता है।
  • इसका प्रयोग एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने, वाणिज्य नीति के तहत सुरक्षात्मक कदम उठाने, सरकारी-खरीद से किसी देश को बाहर करने के संदर्भ में भी किया जाता है।
  • यह नियम सीमा शुल्क (व्यापार समझौते के लिए उत्पत्ति नियमों के प्रशासन) आज (21 सितंबर) से लागू हो गये हैं। इस संदर्भ में घोषणा एक माह पूर्व की गई थी। इस दौरान आयातकों एवं हितधारकों को इस संदर्भ में तैयारी करनी थी।
  • नये नियमों के तहत अब आयातकों को सीमा शुल्क अधिकारियों को आयातित किये गये माल के लिए उस देश में 35 प्रतिशत मूल्यबर्द्धन का प्रमाणपत्र देना होगा, जिसके साथ भारत ने FTA पर हस्ताक्षर किया हुआ है। यदि आयातक यह प्रमाणपत्र देने में विफल रहते है तो उन्हें समझौते के तहत प्राप्त होने वाली रियायतें प्राप्त नहीं होंगी।
  • दरअसल चीन अपना समान पहले दक्षिण पूर्व एशिया के उन देशों को भेजता है, जिनके साथ भारत का FTA है इस तरह चीन अपने सामान पर लगने वाले आयात शुल्क को कम कर लेता था। सरकार के इस निर्णय से अब चीन में उत्पादित और अन्य देशों के रास्ते भारत में आने वाली वस्तुओं को मुक्त व्यापार समझौते के तहत मिलने वाले सीमा शुल्क रियायत को प्राप्त नहीं कर पायेगा।
  • आयातकों को वस्तुओं का आयात करते समय प्रबिष्ट बिल (Bill of Entry) पर वस्तु के ओरिजिन की जानकारी देनी अनिवार्य कर दिया गया है, इससे यह पता चल पायेगा कि भारत का व्यापार मूलतः किस देश से कितना होता है।
  • भारत के इस निर्णय का मूल उद्देश्य चीन को मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोकना है।
  • भारत और आसियान के बीच मुक्त व्यापार समझौता है जिसका फायदा चीन इन देशों के माध्यम से भारत को सामान बेचकर कर रहा था, जिससे भारत एवं आसियान समूह दोनों को नुकसान हो रहा था।
  • वर्ष 2009 में भारत ने 10 आसियान देशों के साथ FTA हस्ताक्षरित किया था, जो इन देशों एवं भारत के बीच अधिकांश वस्तुओं के शून्य मामूली शुल्क पर आयात का प्रावधान करता है।
  • समझौते के नियमों के तहत शुल्क छूट तभी प्राप्त हो सकता है जब कोई आसियान सदस्य देश से आयातित माल कंट्री ऑफ ओरिजिन के सिद्धांत को पूरा करे।
  • इस नियम को पूरा करने के लिए 35 प्रतिशत मूल्यवर्धन का होना आवश्यक है।