Home > Daily-current-affair

Blog / 18 Nov 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 18 November 2020

image


(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 18 November 2020



क्या चीन ने भारत के खिलाफ माइक्रोवेव हथियार का प्रयोग किया?

  • माइक्रोवेव एक प्रकार की विद्युत चुंबकीय विकिरण होती हैं, जिनकी वेवलेंथ 1 मीटर से 1 मिलीमीटर होती है। दूसरे शब्दों में यह वह विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं जिनकी फ्रिक्वेंसी 300 मेगाहर्ट्ज से लेकर 300 गीगाहर्ट्ज तक होती है। यह रेडियों तरंगों, अल्ट्रावॉयलेट तरंगों, एक्स रे और गामा किरणों जैसी ही होती हैं।
  • वेवलेंथ की श्रृंखला को हम इलैक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम कहते है। वेवलेंथ के आधार पर इस स्पेक्ट्रम को सात भागों (तरंगों) में विभाजित किया जाता है। यह हैं- रेडियों वेव, माइक्रोवेव, इंफ्रारेड, विजुअललाइट, अल्ट्रावॉयलेट रेज, एक्स रे और गामा रेज हैं। इस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम में माइक्रोवेव ठीक रेडियों और इंफ्रारेड के बीच की सीमा में आती है।
  • यह प्रकाश किरणों की भांति सरल रेखा में गमन करती हैं व इनकी भी गति प्रकाश किरणों के बराबर 3×10 मीटर/सेकेण्ड होती है।
  • माइक्रोवेव का उत्पादन किस तरह से किया जा रहा है? उसका स्रोत क्या है? इसके आधार पर माइक्रोवेव की आवृत्ति सामान्य, उच्च, अति उच्च हो सकती है। इनका उत्पादन विमिन्न प्रकार के ट्रांसमीटर द्वारा होता है इस कारण फ्रिक्वेंसी भी अलग-अलग होती है। उदाहरणस्वरूप उच्च आवृत्ति दर वाले माइक्रोवेव्स जो भोजन को गर्म करने के काम में आते हैं। उच्च आवृत्ति वाले माइक्रोवेव्स पानी, वसा तथा कार्बोहाइड्रेटस द्वारा आसानी से शोषित कर लिये जाते हैं तो वहीं कागज, प्लास्टिक, ग्लास तथा सिरैमिक द्वारा अवशोषित नहीं होते हैं तथा अधिकांश धातुओं द्वारा ये परावर्तित हो जाते हैं। जिन पदार्थों द्वारा इनका अवशेषण होता है उनके परमाणुओं को उद्देलित कर यह ताप ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
  • इनका प्रयोग रडार में, विमानों व जहजों में, वाई-फाई में, मोबाइल फोन में और माइक्रोवेव हथियार के निर्माण के रूप में किया जाता है।
  • वर्ष 2008 में ब्रिटेन की र्मेग्जीन न्यू साइंटिस्ट ने बताया था कि माइक्रोवेव शरीर के उत्तकों को गर्म कर सकते हैं। यह कानों के जरिए सिर के अंदर एक शॉकवेव पैदा करते है। इस तकनीक को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने के लिए कई देश रिसर्च कर रहे हैं।
  • वर्ष 2016 से 2018 के बीच अमेरिका के 36 से ज्यादा डिप्लोमैट और उनके परिवार वाले बीमार पड़ गये थे। ये डिप्लोमैट चीन और क्यूबा में तैनात थे। न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट्स के अनुसार इन लोगों के कानों में तेज शोर महसूस हुआ और घंटियों के बजने जैसा अनुभव हुआ था। इनका दावा था कि इन पर माइक्रोवेव हथियारों का इस्तेमाल किया गया था।
  • कई देशों में लंबे समय से लेसर हथियार, माइक्रोवेब हथियार, कणकीय तरंगों आदि को हथियार के रूप में विकसित करने का कार्य किया जा रहा है। इन हथियारों को DEW - Directed Energy Weagon के नाम से जाना जाता है।
  • सिंतबर 2020 की सूचना के अनुसार डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने डायरेक्‍टेड एनर्जी वेपंस (DEWs) पर एक नैशनल प्रोग्राम चलाने की तैयारी की है, जिससे भारत में भी DEWs के क्षेत्र में महारत हांसिल की जा सके। घरेलू इंडस्‍ट्री के साथ मिलकर 100 किलोवाट क्षमता तक के DEWs डेवलप करने की कोशिश होगी । हल्का रहने पर इसे कहिं भी पहुँचाया जा सकता है।
  • डायरेक्‍टेड एनर्जी वेपंस क्या होते हैं ?
  • जहाँ परंपरागत हथियारों में काइनेटिक/केमिकल एनर्जी का इस्‍तेमाल होता है वहीं डायरेक्‍टेड एनर्जी वेपंस में टारगेट पर इलेक्‍ट्रॉनिक/मैग्‍नेटिक एनर्जी या सबएटॉमिक पार्टिकल्‍स की बौछार की जाती है। इनके दो मेजर सब-सिस्‍टम होते हैं- लेजर सोर्स और पार्टिकल बीम कंट्रोल सिस्टम।
  • यह हथियार क्यों खास होते हैं ?
  1. प्रकाश की गति से चलते हैं जिससे निशाना एकदम सटीक।
  2. एक शॉट पर कम खर्च, मिसाइलों के मुकाबले फ्लेक्सिबल।
  3. रैपिड री-टारगेटिंग की मदद से कई टारगेट्स को एक साथ निशाना बनाया जा सकता है।
  4. पावर सप्‍लाई पर्याप्‍त हो तो इनका जब तक चाहें, इस्‍तेमाल जारी रख सकते हैं
  • अमेरिका ने मिलिमीटर वेव (तरंग) का प्रयोग करते हुए एक हथियार बनाया है जिसे एक्टिव डेनियल सिस्टम के नाम से जाना जाता है। इस सिस्टम का प्रयोग दंगों को रोकने, भीड को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता हैं इसकी तरंगें शरीर में पहुँच कर शरीर के अंदर के पानी को गर्म कर देती है, जिससे दर्द होता है। और व्यक्ति ठहर सा जाता है। हालांकि अमेरिका ने अभी तक इसका प्रयोग नहीं किया हैं अफगानिस्तान में इसका प्रयोग किया जाना था लेकिन हो नहीं पाया।
  • इस प्रकार के हथियार की खासियत यह होती है कि व्यक्ति ज्यादा चोटिल नहीं होता है और मौत नहीं होती है, जिससे स्थिति भी नियंत्रित हो जाती है और कोई कैजुअलटी भी नहीं होती है।
  • चीन के संदर्भ में 2014 से यह खबरें आती हैं कि वह माइक्रोवेव हथियारों का निर्माण कर रहा हैं फरवरी 2019 में चीन ने खुद यह दावा किया था। कि वह Non-Lethal Weapon का निर्माण कर रहा है जो माइक्रोवेव राडार तकनीकी पर आधारित होगी इसी प्रकार का चीनी हथियार POLYWB-1 है।
  • माइक्रोवेव हथियार चर्चा में क्यों है? हाल के समय में कई अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है की चीन ने माइक्रोवेव हथियार का प्रयोग करके एक क्षेत्र को भारतीय सैनिकों से मुक्त कराया था।
  • दरअसल कुछ दिन पहले चीन के Beijing's Renmin University के एक बड़े प्रोफेसर Jin Carong ने अपने एक व्याख्यान के दौरान यह कहा कि पेशोंगत्सो झील के साउदर्न बैंक को भारतीय सैनिकों से हथियाने के लिए 25-26 अगस्त 2020 को चीनी सैनिकों ने माइक्रोवेव हथियारों का प्रयोग किया था। प्रोफेसर का कहना है कि इस तरह चीनी सैनिकों ने भारत-चीन के बीच हुए संधि का भी उल्लंघन नहीं किया और क्षेत्र को भी हथिया लिया। भारत-चीन के बीच यह समझौता है कि सीमा पर गोलीबारी नहीं की जायेगीं। इन मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि इस हथियार के प्रयोग से कुछ देर में ही भारतीय सैनिक वहां से हट गये।
  • भारतीय सैनिकों पर माइक्रोवेव हथियारों के प्रयोग की खबर को भारतीय सेना और प्रेस सूचना ब्यूरो ने फर्जी करार दिया है। भारतीय सेना ने यह साफ किया है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई।

चीन ने लांच किया दुनिया का पहला 6G प्रायोगिक उपग्रह

  • बीते 6 नवंबर को चीन ने दुनिया का पहला 6G प्रायोगिक उपग्रह लांच करने में कामयाबी हासिल की। इस उपग्रह के साथ 12 और उपग्रहों को भी लांच किया गया। इन सभी उपग्रहों को एक ही राकेट के ज़रिये भेजा गया। यह राकेट इन सभी उपग्रहों को एक ही कक्षा में स्थापित करेगा।
  • तकरीबन 70 किलोग्राम वज़न वाले इस 6G उपग्रह का नाम इसके सह- डेवलपर, यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रॉनिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ चाइना (यूएएसटीसी) के नाम पर है। इसने चेंगदू गॉक्सिंग एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी और बीजिंग मिनोस्पेस टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर इस उपग्रह को विआकसित किया। चीन के इस अगली पीढ़ी के मोबाइल इंटरनेट कनेक्शन के साल 2030 में शुरू होने की उम्मीद लगाई जा रही है।
  • क्या है 6G उपग्रह
  • हालांकि यह 6G तकनीक अभी पूरी तरह से वज़ूद में नहीं आयी है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की यह उपग्रह एक प्रकार की संचार तरंगों की जांच करेगा जो मौजूदा इंटरनेट की स्ट्रीमिंग गति को 100 गुना तक बढ़ा सकती हैं।
  • 6G उपग्रह से जुडी ख़ास बातें
  • 6G उपग्रह के ज़रिये कई सारे प्रायोगिक उपकरणों को ले जाया जाएगा जिसके ज़रिये अंतरिक्ष में टेराहर्ट्ज़ तरंगों की तकनीक के परीक्षण को अंजाम दिया जाएगा।
  • टेराहर्ट्ज़ तरंगें ज़्यादा आवृत्ति वाली तरंगे होती हैं। इनके ज़रिये डाटा को एक सेकंड में 50 गीगाबिट्स की रफ़्तार से भेजा जा सकता है। इसकी मदद से मौजूदा इंटरनेट स्पीड 100 गुना तेज हो जाएगी। इससे फायदा ये होगा की वायरलेस नेटवर्क 500 मेगाबाइट की उच्च स्पीड तक पहुंच जाएगा।
  • यह 6G जमीन संचार के नेटवर्क के साथ उपग्रह संचार नेटवर्क को संयोजित करेगा। मौजूदा 5G के मुकाबले 6G 100 गुना तेज होने की उम्मीद जताई जा रहा है। इसकी आवृत्ति का विस्तार बैंड 5G के मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम से टेराहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम तक किया जाएगा।
  • इस 6G उपग्रह को उत्तरी चीन के शांक्सी प्रांत में ताइयुआन उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र छोड़ा गया था। इसे एक लॉन्ग मार्च -6 कैरियर रॉकेट के माध्यम से छोड़ा गया था।
  • रॉकेट अपने साथ 10 और वाणिज्यिक रिमोट सेंसिंग उपग्रहों को भी लेकर गया है। इन्हे न्यूसैट 9-18 के नाम से जाना जाता है। इन उपग्रहों को अर्जेंटीना की एक कंपनी सैटलॉजिक ने बनाया है।
  • इस प्रायोगिक उपग्रह से यह पहली बार स्पष्ट हो गया कि, अंतरिक्ष में संचालित करने के बाद ही इस टेराहर्ट्ज़ संचार की तकनीक को सत्यापित किया जा सकेगा।
  • इतिहास
  • चीन ने देश में 5G नेटवर्क की उपलब्धता के बाद साल 2019 के नवंबर महीने में 6G तकनीक पर अनुसंधान और इसे विक्सित करने का काम शुरू कर दिया था।
  • इसके मद्देनज़र चीनी प्रौद्योगिकी ब्यूरो ने कई संस्थानों, विश्वविद्यालयों, और निगमों से 37 दूरसंचार में निपुण और विशेषज्ञों के दल का गठन किया था। इसके अलावा . श्याओमी, हुआवेई, जेडटीई और चाइना टेलीकॉम समेत कई और चीनी दूरसंचार कंपनियों ने भी 6G तकनीक के लिए अपने शोध को अंजाम देना शुरू कर दिया है।