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(Video) डेली करेंट अफेयर्स (Daily Current Affairs) : यमन गृह युद्ध और भूखमरी की समस्या (Yemen Civil War and Hunger Problem) - 18 January 2021

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 18 January 2021



यमन गृह युद्ध और भूखमरी की समस्या

  • यमन अधिकारिक तौर पर यमन गणराज्य के नाम से जाना जाता है। यह मध्यपूर्व एशिया का एक देश है, जो अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
  • यहां की आबादी लगभग 2.9 करोड़ है। यमन की सीमा उत्तर में सऊदी अरब, पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अदन की खाड़ी और अरब सागर और पूर्व में ओमान से मिलती है।
  • मुख्य भूमि के अलावा इसके अंतर्गत लगभग 200 से ज्यादा द्वीप भी शामिल हैं, जिसमें सोकोत्र मुख्य द्वीप है।
  • यमन में लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या सुन्नी समुदाय की जबकि 38-39 प्रतिशत जनसंख्या शिया समुदाय की है। हूती स्वयं को ‘अंसार अल्लाह’ (अल्लाह के समर्थक) कहते हैं। ये जैदी शिया समुदाय से संबंधित हैं। जैदी शिया में अल्पसंख्यक समुदाय हैं।
  • जायदी, शिया इस्लाम की एक धारा है। यमन में एक हजार सालों तक जायदी राजाओं का शासन रहा। वर्ष 1962 में अंतिम जायदी सुल्तान इमाम अहमद की हत्या को गई, जिसके बाद यह देश गृह युद्ध में प्रवेश कर गया। यमन यहाँ से दो हिस्सों में बट गया।
  • वर्ष 1978 में उत्तरी यमन में एक आर्मी अफसर अब्दुल्लाह सालेह को राष्ट्रपति बनाया गया। दक्षिणी यमन में सोबियत संघ का प्रभाव था। 1980 के दशक में सोवियत संघ कमजोर पड़ने लगा, जिससे तनाव थोड़ा कम होने लगा।
  • 22 मई, 1990 को उत्तरी यमन-दक्षिण यमन को मिलाकर यमन गणराज्य का निर्माण किया गया। यमन गणराज्य के पहले राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह बने।
  • अब्दुल्लाह सालेह को सऊदी अरब, अमेरिका, यूके और फ्रांस का समर्थन मिला।
  • अब्दुल्लाह सालेह के नेतृत्व में एक संगठित यमन का गठन तो हो गया लेकिन जायदी शिया मुस्लिम (हूती) हासिये पर चले गये और सत्ता पर इनकी पकड़ कमजोर होने लगी और प्रतिनिधित्व भी।
  • अपनी उपस्थिति और प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए 1990 के दशक में बेदरदीन अल हूती ने ‘बिलिवंग यूथ’ नामक संगठन बनाया। इसका फाउंडर हुसैन बेदरदीन अल हूती था, जिसका मकसद जायदी इस्लाम का पुनर्जागरण था।
  • प्रारंभिक वर्षों में इस संगठन ने बहुत सारे क्लब, स्टूडेंड यूनियन, कैंप्स बनाये और स्टूडेंट आंदोलन को बढ़ावा दिया।
  • यहां समर कैंप्स लगाये जाते थे, जहां शिया स्कॉलर्स की किताबें पढ़ाई जाती थीं, लेबनान और ईरान के शिया धर्मगुरूओं की कहानियाँ बांची जाती थीं।
  • जायदी अपने लिए अधिक संसाधनों और अधिकारों की मांग कर रहे थे वहीं सालेह की सरकार उनकी मांगों को अनुसुना कर रही थी। इससे तनाव बढ़ता गया और हूती समुदाय संगठित होता गया। बदरदीन अल हूती ने सरकार के खिलाफ रैलियाँ निकालना प्रारंभ कर दिया।
  • सालेह सरकार ने अल-हूती के खिलाफ अरेस्ट वारंट निकाल दिया लेकिन इससे मामला सुलझने की बजाय उलझ गया और सेना तथा अल-हूती समर्थक एक दूसरे के आमने आ गये और हिंसक जंग प्रारंभ हो गई।
  • 10 सितंबर 2004 को अलहूती को सेना ने मुठभेड़ में मार दिया, इसके बाद अल-हूती समर्थक हिंसक विद्रोह पर उतारू हो गये। यहीं से हूती विद्रोह तेजी से फैलने लगा।
  • Hussain Badreddin al-Houthi की 2004 में मृत्यु के बाद हूती आंदोलन का नेतृत्त्व अब्दुल-मलिक अल हौती (Houthi) के पास आया। अब्दुल-मलिक अल हौती का संघर्ष सालेह के साथ लंबे समय तक चला।
  • विद्रोहियों को दबाने के लिए यमन सरकार ने अपना पूरा दमखम झोंक दिया और एयरफोर्स तथा सेना ने बड़े पैमाने पर अभियान चलाये लेकिन हूती विद्रोही भारी पड़े और उन्होंने नये ठीकानों पर कब्जा कर लिया। इस हिंसा में हजारों सिविलियन मारे गये। ईरान भी एक शिया मुस्लिम देश है जो सुन्नी बहुल सऊदी अरब को पीछे कर इस क्षेत्र में नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहता है इसने हूती विद्रोहियों का समर्थन किया।
  • ईरान ने न सिर्फ हूतियों को हथियारों की आपूर्ति की और सैन्य प्रशिक्षण दिया बल्कि ईरानी जनरल और नेवी को अदन की खाड़ी में तैनात कर दिया, जिससे सऊदी के प्रभाव को कम कर सके। दरअसल ईरान यह राणनीति अपना रहा था कि यदि यमन पर हूती समुदाय का नियंत्रण हो जाता है तो वह सऊदी अरब को दो सिरे से घेर पायेगा। हूती बहुत हद तक सफल भी रहे और उन्होंने उत्तरी यमन के कई हिस्सों पर कब्जा भी कर लिया।
  • सऊदी अरब हर तरह से सालेह का सहयोग इसलिए कर रहा था क्योंकि हूती व्रिदोहियों के माध्यम से यमन में ईरान मजबूत हो रहा था।
  • साल 2010 में हूती विद्रोहियों ने यमन सरकार के साथ समझौता कर लिया और दोनों पक्ष युद्ध विराम पर राजी हो गये।
  • हूती विद्रोहियों ने सालेह से समझौता कर लिया लेकिन दो और चुनौतियाँ सालेह के सामने खड़ी थीं।
  1. यमन के राष्ट्रपति अब्दुल्लाह सालेह अपने बेटे को यमन आर्मी चीफ बनाना चाहते थे जबकि मोहसिन अल-अहमर अपना पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। अहमर ने हूतियों से व्रिदोह करते समय सेना मे अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी, जिससे यमन की कमजोर सेना राष्ट्रपति सालेह और आर्मी चीफ अहमर के बीच बटी हुई थी। इन दोनों के बीच का संघर्ष 2011 में बहुत बढ़ गया। अरअसल हूतियों पर जब सऊदी अरब की एयरफोर्स के माध्यम से बमबारी की जा रही थी उसी समय सालेह ने अहमर को रास्ते से हटाने के लिए हूतियों के नाम पर सऊदी अरब से ऐसी बिल्डिंग पर हमला करवा दिया जिसमें आर्मी चीफ अहमर बैठता था। उस बिल्डिंग पर हमला किया भी गया लेकिन अहमर बच गया। इसके बाद अहमर और उसके कुछ समर्थनों ने भी हूती विद्रोहियों का मदद करना प्रारंभ कर दिया। इस तरह एक तरफ सालेह और सऊदी अरब थे जबकि दूसरी तरफ हूती एवं अहमर थे।
  2. अब्दुल्लाह सालेह के सामने दूसरी चुनौती थी अरब स्प्रिंग ही घटना। दिसंबर 2010 में टूयूनीशिया में एक फल विक्रेता ने अपने को आग लगा लिया जिसके बाद टूयूनीशिया में क्रांति प्रारंभ हो गई। इससे ट्यूनीशिया में 23 साल से बैठे तानाशाह को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी।
  • ट्यूनीशिया से प्रारंभ हुई क्रांति अफ्रीका और मध्यपूर्व के उन देशों में फैल गई जहाँ कई साल से एक व्यक्ति तानाशाह बनकर सत्ता में बैठा था। इसी क्रम में मिस्र में 29 साल से सत्ता पर बैठे होस्नी मुबारक को अपनी गद्दी छोड़ी पड़ी। लीबिया में गद्दाफी को भी हटा दिया गया।
  • यहां विद्रोह करने वाले लोगों और समूहों को हथियार की आपूर्ति और अपना समर्थन अमेरिका, ब्रिटेन, फांस जैसे देशों द्वारा दिया गया।
  • अरब स्प्रिंग वर्ष 2011 में यमन में भी पहुँचा और यमन में 32 साल से सत्ता पर बैठे सालेह पर भी दबाव बढ़ने लगा। और हूती समुदाय ने फिर से विद्रोह प्रारंभ कर दिया।
  • सऊदी अरब ने अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए अब्दुल्लाह सालेह पर दबाव डाला कि वह इस्तीफा दे दें और हूतियों से समझौता कर लें। सालेह ने इस समझौते से अंत समय में मना कर दिया। जिससे पुनः अशांति बढ़ने लगी।
  • नवंबर 2011 में सालेह एक मस्जिद में नमाज के लिए गया था, उसी समय हमला हुआ जिसमें वह 40 प्रतिशत तक जल गया। इसके बाद सालेह ने समझौता कर लिया और वर्ष 2012 में मंसूर हादी को सत्ता सौंप दी गई। मंसूर हादी ने अहमर को पद से हटाकर आर्मी पर नियंत्रण बढ़ाने का प्रयास किया।
  • यहां की आर्मी जिस दौर में गुट में बंटी थी उस समय यमन में अलकायदा का प्रसार तेजी से हो रहा था क्योंकि गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, अस्थायित्व यहां इसके विकास के लिए अनुकूल दशा उत्पन्न कर रहे थे।
  • वर्ष 2013 में पूर्वी यमन के कई क्षेत्रें में अलकायदा का नियंत्रण स्थापित हो गया। इसी समय पश्चिमी और उत्तरी यमन में Al-Houthi का नियंत्रण भी बढ़ चुका था।
  • इस समय तक लगभग पूर्ण शिया आबादी Al-Houthi के समर्थन में आ चुकी थी जो हथियार से सत्ता प्राप्त करने पर उतारू हो गई फलस्वरूप वर्ष 2014 में हूती विद्रोहियों ने राजधानी SANA'A पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इससे मंसूर हादी का नेतृत्व कमजोर पड़ने लगा।
  • मंसूर हादी ने अपनी पूरी सेना हूती के खिलाफ उत्तर में उतार दिया। जिससे अलकायदा का दक्षिण में प्रसार होने लगा।
  • दो क्षेत्रें में यमन की सेना स्थिति को संभालने में नाकाम साबित हो रही थी जिससे मंसूर हादी ने संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में अल-हौती के साथ समझौता कर लिया। इससे गृह युद्ध थोड़े समय के लिए तो रूक गया लेकिन हूती की पकड़ मजबूत बनी रही।
  • इसके बाद अहमद बुबारक (आर्मी चीफ) को मंसूर हादी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जिसे हूतियों ने अस्वीकार कर दिया और मुबारक का अपहरण कर लिया और अपने उम्मीदवार का प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया और कुछ समय पहले हुए समझौते को मानने से इंकार कर दिया। कुछ समय बाद यहां के राष्ट्रपति मंसूर हादी को गिरफ्रतार कर हाउस अरेस्ट में डाल दिया।
  • हाउस अरेस्ट किये गये मंसूर हादी किसी तरह वहां से भाग निकले और सऊदी अरब पहुँच गये। सऊदी अरब में बैठकर मंसूर हादी ने ऑपरेशन Decisive Storm मार्च 2015 में प्रारंभ कर दिया। इस आपरेशन के तहत सऊदी अरब ने पूरे यमन पर बमबारी प्रारंभ कर दिया। इसमें अमेरिका यूके, फ्रांस, जॉर्डन, सूडान, मिस्र, मोरक्को, सेनेगल ने सऊदी अरब का साथ दिया तो दूसरे तरह हूती के समर्थन में ईरान खड़ा था।
  • सऊदी अरब द्वारा की गई बमबारी से यमन में हजारों सिविलियन की मृत्यु होने लगी, स्कूल, अस्पताल, बंदरगाह, एयरपोर्ट, सड़क बहुत कुछ ध्वस्त हो गया जिससे सप्लाई चैन बर्बाद हो गई और भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई। कुछ समीक्षकों ने इसे 21वीं सदी का सबसे बड़ा डिजास्टर बताया।
  • इतना सब कुछ होने के बावजूद हूती समुदाय ने हार नहीं माना और आज भी यमन का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा उनके कब्जे में है। लेकिन सिविल वॉर से बिल्कुल बर्बाद हो चुका है, यहां भूखमरी और अकाल दिनचर्या का हिस्सा है।
  • यहां की 80 फीसदी आबादी बाहरी मदद पर निर्भर है। यमन अपनी जरूरत का 90 फीसदी सामान बाहर से आयात करता है।
  • डोनाल्ड ट्रंप जाते-जाते ईरान को हर तरह से नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। इसी क्रम में कुछ दिन पहले कतर और ईरान के संबंधों में दूरी लाने के लिए कतर और सऊदी अरब के बीच में मतभेद को समाप्त कर एक समझौता करवाया है। इसी क्रम में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियों ने हूतियों को ग्लोबल टेरिरिस्ट (वैश्विक आंतकवादी सूची) लिस्ट में डाल दिया है।
  • ट्रंप का यह फैसला 19 जनवरी से लागू होगा। ट्रंप का मानना है कि इससे यमन में ईरान की पकड़ मजबूत होगी।
  • जो बाइडन 20 जनवरी को राष्ट्रपति बनेंगे। उनका मानना रहा है कि ईरान पर लगाये गये प्रतिबंधों पर विचार करने की आवश्यकता है लेकिन ट्रंप के इस निर्णय से जो बाइडन को अब काफी परेशानी होने वाली है।
  • समीक्षकों का मानना है कि ट्रंप के इस निर्णय से यमन में शांति की जगह अशांति आयेगी और यमन में भुखमरी की समस्या और जटिल हो जायेगी।
  • मानवाधिकार संगठनों को अब यहां राशन या फिर किसी अन्य सुविधा को पहुँचानना कठिन हो जायेगा और इससे समस्या विकट ही होगी। अमेरिका ने कहा है कि कुछ NGO को पास जारी किया जायेगा जो मदद पहुँचा सकेंगे। लेकिन समीक्षकों का मानना है कि यमन के लोगों की नजर में पास धारी लोग हूतियों के दुश्मन होंगे।
  • संयुक्त राष्ट्र प्रमुख तथा शीर्ष अधिकारियों ने अमेरिका को अपना फैसला वापस लेने की अपील की, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ठुकरा दिया।
  • संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के प्रमुख मार्क लोकॉक ने सुरक्षा परिषद को आगाह किया है कि अमेरिका के इस कदम से अकाल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो पिछले 40 वर्षों में नहीं देखी गई होगी। लोकॉक ने यह भी कहा कि इस कदम के बाद कई कंपनियों को यमन से बाहर जाना पड़ेगा जिससे समन में और भी विषम स्थिति उत्पन्न होगी।