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Blog / 12 Sep 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 12 September 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 12 September 2020



राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की समीक्षा

  • पर्यावरण-पारिस्थितिकी के अनुसार वनों का महत्व सर्वाधिक होता है। यह वन ही पर्यावरण के शोधक एवं सौन्दर्य के बोधक होते हैं। अनेक प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं के नियंत्रण में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वन क्षेत्र अनेक प्रकार के संशाधनों के मुख्य स्रोत भी होते हैं इसलिए इनका संरक्षण अनिवार्य होता है।
  • वर्ष 1894 में देश की पहली राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई जो ब्रिटिश नियंत्रण को जंगली क्षेत्र में मजबूत करती थी।
  • स्वतंत्र भारत की पहली वन नीति वर्ष 1952 में अपनाई गई। इस नीति में वनों के संरक्षण तथा उसके बेहतर उपयोग की बात की गई तथा राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुसार 1894 की नीति में परिवर्तन किया गया।
  • सरकार की इस वन नीति के कारण ही 1952 से वर्ष 1981 के बीच कृषि फसलों के अंतर्गत क्षेत्र 1187.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1429.4 लाख हेक्टेयर हो गया, ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों की वनाच्छादित भूमि को वृक्षहीन करके किया गया।
  • इस नीति के प्रावधान वन क्षेत्र में कमी को रोकने में बहुत सफल नहीं हो पा रहे थे तो साथ ही इस समय तक भारत की आवश्यकता,जनसंख्या, नगरीकरण, औद्योगीकरण आदि का स्तर भी परिवर्तित हो चुका था।
  • 1952 की नीति को भारत सरकार द्वारा संकल्प संख्या 3-1-1986 FP दिनांक 7 दिसंबर, 1988 के अनुसार संशोधित किया गया।
  • वर्ष 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति को लागू किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य वनों के विनाश रोकना तथा वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण को बढ़ावा देना है।
  • इसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं।
  1. देश के 33 प्रतिशत भाग को वनाच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है।
  2. वनों को उनकी वनस्पतियों व जीव जंतुओं सहित राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया जायेगा।
  3. व्यापक पैमाने पर वनारोपण अभियान चलाये जायें तथा सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जायेगा।
  4. बाढ़ सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम तथा मृदा अपरदन व मरुस्थलीकरण को नियंत्रित किया जाये।
  5. राष्ट्रीय आवश्यकताएं पूरा करने के लिए वनों की उत्पादकता बढ़ाना। 6. वन उपज के कुशल उपयोग और लकड़ी के इष्टतम उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • रोजगार के अवसर पैदा करना और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना।
  • राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों एवं तटीय इलाकों में रेत के टीलों के विस्तार की जांच करना एवं रोकना।
  • इस समय राष्ट्रीय वन नीति, 1988 (National Forest Policy, 1988) इस बजह से चर्चा में है क्योंकि हाल ही में वन महानिदेशक ने इस नीति में संशोधन की सिफारिश की है।
  • इन सिफारिशों का आधार वर्ष 2016 में प्रकाशित ‘नेचुरल रिसोर्स फोरम’ का एक शोध पत्र हैं नेचुरल रिसोर्स फोरम एक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास जर्नल (United Nations Sustainable Development Journal) है ,जो प्रमाणन के आधार पर सतत वन प्रबंधन एवं पुनर्स्थापना, संरक्षण व उत्पादन की विशेषता वाली नीति का समर्थन करता है।
  • इसमें कहा गया है कि वनों के बाहर के पेड़ों से लकड़ी प्राप्त करने के लिए पेड़ों को सरकारी रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया के बाहर उगाया जाना चाहिए और उसका दोहन किया जाना चाहिए।
  • रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया के तात्पर्य उस क्षेत्र से है जिसमें आरक्षित वन, संरक्षित वन क्षेत्र का विस्तार है।
  • लकड़ी के बढ़ते स्टॉक, खपत एवं उत्पादन से संबंधित विश्वसनीय आकडों की कमी है जिससे वन प्रबंधन प्रभावित होता है।
  • गोडावर्मन केस, 1996 (Godavarman Case, 1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने वन क्षेत्रें में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी, जिससे लकड़ी के घरेलू उत्पादन मे कमी आई है, इसे बढ़ाने के विकल्प को तलाशने की आवश्यकता है।
  • उत्पादन वानिकी द्वारा रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया और वनों से बाहर के पेड़ों (Trees Outside Forest - TOFs ) में उत्पादकता बढ़ाने के सतत प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • वनों से बाहर के पेड़ों के लिए एक संतुलित राष्ट्रव्यापी नीति विकसित की जानी चाहिए।
  • इन सिफारिशों का मुख्य आधार वन क्षेत्र की उतपादकता को बढ़ाने के लिए संशोधन की आवश्यकता बताई गई है।

मालदीव चर्चा में क्या है?

  • मालदीव कई द्विपों के समूह से मिलकर बना देश है जो हिंद महासागर में लक्षद्वीप (भारत) के दक्षिण में स्थित है।
  • मालदीव करीब 1200 द्वीपों का एक समूह है जिसके 200 द्वीपों पर ही स्थानीय आबादी रहती है। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 298 वर्ग किमी- है।
  • यहां की राजधानी एवं सबसे बड़ा शहर माले है।
  • यह देश अपने प्रवाल द्वीपों एवं उस पर विकसित जैवविविधता के लिए जाना जाता है।
  • यह दुनिया का सबसे निचला देश है। इसका अधिकतर हिस्सा समुद्र से सिर्फ 2.3 मीटर ऊपर है।
  • यह देश पर्यटन से अपनी अर्थव्यवस्था को गति देता है। समुंद्री संसाधन भी इसके आय के स्रोत हैं लेकिन अन्य स्थलीय देशों की तरह इसके पास भूमि संसाधन, खनिज संसाधन, जीवाश्म संसाधन नहीं है।
  • जलवायु परिवर्तन से जो देश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं उसमें मालदीव अग्रणी देशों में शामिल है।
  • मालदीव दक्षिण एशिया का सबसे छोटा देश है लेकिन इसकी अवस्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह लक्षद्वीप से लगभग मात्र 800 किमी की दूरी पर है जिसके कारण यहां पर भारत विरोधी किसी देश की उपस्थिति भारत के लिए चिंताजनक स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • पिछले कुछ समय से चीन की गतिविधियाँ मालदीव में बढ़ी है।
  • यहाँ चीन द्वारा सड़कों, पुलों और एक बड़े हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है।
  • वर्ष 2011 में मालदीव में चीन ने दुतावास खोला और अपने बेल्ट एंड रोड पहल के माध्यम से कई प्रकार निवेश किया है।
  • मालदीव ने Feydhoo Finolhu द्वीप सहित 16 द्वीपों को 2016 में एक चीन को लीज पर सौंपा था। जहां पर चीन ने भारत को घेरने के लिए व्यापक निवेश किया है।
  • चीनी निवेश और ऋण जाल में फसने वाले देशों में मालदीव भी रहा है। दो साल पहले मालदीव के कुल कर्ज का 80 प्रतिशत कर्ज चीन का था।
  • 1965 में इसे आजादी मिली और मालदीव की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले देशों में भारत अग्रणी देश था।
  • वर्ष 1978 से 2008 तक मोमून अब्दुल गय्युम यहां के राष्ट्रपति थे जिनके काल में भारत के साथ संबंध अच्छे थे।
  • वर्ष 1988 में ऑपरेशन कैक्टस के तहत भारत ने मालदीव को तख्तापलट से बचाया था।
  • वर्ष 2008 में यहां नया संविधान बना एवं राष्ट्रपति पद के लिए पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव हुए। इसमें मोहम्मद नशीद की जीत हुई। वर्ष 2012 में नशीद को हटाकार अब्दुल्लाह यमीन ने सत्ता पर कब्जा कर लिया इसके बाद मालदीव भारत से दूर होता गया और चीन के करीब आता गया।
  • वर्ष 2018 में मालदीव के नये राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति बने, जिनके शपथ समारोह में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए।
  • भारतीय प्रधानमंत्री के सामने राष्ट्रपति सोलिह ने अपनी कर्ज की चिंताएं रखी जिसके लिए भारत ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
  • भारत ने हाल के समय में प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य प्रकार की मालदीव की जरूरतों को पूरा करने में तत्परता दिखयी है।
  • Covid-19 के कारण मालदीव की अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान के दौरान भारत ने कई प्रकार की सहायता दी है और अभी भी उसे जारी रखा है।
  • 15 अगस्त 2020 को भारत ने यह घोषण की कि वह मालदीव को एक वित्तीय पैकेज देगा, जिसमें 10 करोड़ डॉलर का अनुदान होगा और 40 करोड़ डॉलर की नई लाइन ऑफ क्रेडिट होगी। इसके अलावा 25 करोड़ डॉलर की अलग सहायता पर भी बात हुई।
  • भारत यहां ग्रेटर माले कनेक्टविटी परियोजना में सहयोग कर रहा है, जो मालदीव की सबसे बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है।
  • हाल के समय में अमेरिका की भी नीति हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को नियंत्रित करने के संदर्भ में तेज हुई है।
  • दरअसल चीन जिस गति से हिंद प्रशांत के द्वीपों में अपनी पहुंच बढ़ा रहा है वह भारत से ज्यादा अमेरिका के लिए चुनौती उत्पन्न कर रहा है।
  • हाल ही में अमेरिका ने मालदीव के साथ एक रक्षा सहयोग ढांचे पर हस्ताक्षर किया है।
  • इसका नाम-फ्रेमवर्क फॉर यू-एस- डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस मालदीव मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस एंड सिक्योरिटी काउंसिल रखा गया है।
  • दोनों देशों ने इस समझौते के माध्यम से मजबूत इच्छाशक्ति द्वारा इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए सहमति व्यक्त की है।
  • इस समझौते से अमेरिकी सेना की उपस्थिति यहां बढ़ेगी जिससे भारत और अमेरिका मजबूत होंगे एवं चीन की पकड़ कमजोर होगी।
  • इससे मालदीव की समुद्री ताकत बढ़ेगी जिससे समुद्री व्यापार ज्यादा सुरक्षित होगा।
  • दोनों देशों द्वारा हिंद प्रशांत क्षेत्र में फ्री एंड ओपेन नेविगेशन की बात की गई है जो चीनी प्रभाव को कम करने की रणनीति का एक हिस्सा है।
  • इसमें यह भी निहित है कि मालदीव की विदेश नीति पर चीन प्रभाव नहीं होगा और अमेरिका तथा भारत की चिंताओं को विशेष प्राथमिकता दी जायेगी।
  • दोनों के द्वारा रक्षा और सुरक्षा संवाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाने और नियमित करने की बात कही गई।
  • कई रिपोर्ट में यह सामने आया है कि चीन की सेना (सेना के तीनों भाग) जिस गति से अपना विस्तार कर रही है वह आने वाले समय में अमेरिका को प्रत्यक्ष चुनौती दे सकती है। इसी कारण अमेरिका पहले से ही अधिकांश देशों के साथ इस प्रकार के समझौते कर रहा है।
  • इस समझौते पर हस्ताक्षर दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए उप सहायक रक्षा मंत्री रीड वर्नर और मालदीव की रक्षा मंत्री मारिश दीदी के बीच हुआ।