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Blog / 10 Nov 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 November 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 10 November 2020



हाइपरलूप ट्रेन क्या होती है और चर्चा में क्यों है?

  • रेलवे महत्वपूर्ण और विश्वसनीय परिवहन में से एक है जो किसी देश की अर्थव्यवस्था और विकास का पैमाना माना जाता है। रेलवे का सरल, सस्ता, गतिशील और सर्वसुलभ होना उस देश के वस्तुओं/सामानों और व्यक्तियों के तीव्र आवागमन को सुनिश्चित करता है। इसलिए विश्व स्तर पर रेल तकनीकी में कई प्रकार के प्ररिवर्तन और सुधार के प्रयास किये गये है ओर किये जा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि आज सामान्य ट्रेन के स्थान पर हाई स्पीड ट्रेन, बुलेट ट्रेन, मैग्लेव ट्रेन और हाइपरलूप ट्रेन के विकास को तरजीह और प्राथमिकता दी जा रही है।
  • दिसंबर 2019 में जारी की गई एक रिपोर्ट्स के अनुसार दुनिया में सबसे तीव्र गति से चलने ट्रेन चीन की CR400BF है, जिसकी औसत गति 350 किमी/घंटा है। इसके बाद जापान की ट्रेन शिकानसेन का नाम आता है, जिसकी औसत गति 320 किमी. प्रतिघंटा है, जबकि अधिकतम गति 400 किमी./घंटा से भी अधिक होती है। इसके बाद क्रमशः फ्रांस की TGV-POS, स्पेन की AVE ट्रेन है।
  • कुछ रिपोर्ट्स में शंघाई मैग्लेव ट्रेन को दुनिया की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन माना जाता है। यह एक मैग्नेटिक लेविटेशन ट्रेन है। कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि जापान की मैग्नेटिक लेविटेशन दुनिया की सबसे तीव्र गति से चलने वाली रिपोर्ट है।

मैग्लेव ट्रेन (Maglev Train) क्या होती है?

  • ट्रेन के विकास में शुरू से यह प्रयास किया जा रहा है कि ट्रेन की गति मे आने वाले रूकावट को कम किया जाये इसीलिए ट्रेन के आकार के साथ ट्रैक में भी कई प्रकार के परिवर्तन किये गये हैं, जिससे घर्षण (हवा के द्वारा, ट्रैक के द्वारा) को कम किया जा सके।
  • मैग्लेव ट्रेन दो शब्दों Magnetic Leviation (चुंबकीय प्रोत्यापन) का संक्षिप्त रूप है, जिसके अंतर्गत चुंबकीय शक्ति का इस्तेमाल करते हुए बिना जमीन हुए ट्रेन को चलाया और नियंत्रित किया जाता है, जिससे पहिया (चक्का) से होने वाले घर्षण को कम किया जा सके। इसमें पहियों का प्रयोग हो भी सकता है और नहीं भी। जिन मैग्लेव ट्रेनों में पहिये का इस्तेमाल किया जाता वह प्लेटफार्म पर ट्रेन की गति कम होने पर कार्य करते हैं।
  • इसमें कोई मूबिंग पार्ट नहीं होता है, जिसकी वजह से घर्षण नहीं होता है। किसी प्रकार का घर्षण न होने की वजह से यह अधिक तेज, शांत और झटका रहित होता है।
  • इसमें मैग्नेटिक पॉवर के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेट, परमानेंट मैग्नेट या सुपर कंडक्टिंग मैग्नेट का प्रयोग किया जा सकता है।
  • मैग्लेव ट्रेन में इलेक्ट्रोमैग्नेट ट्रेन में लगाया जा सकता है, जैसा कि जर्मनी और चीन की ट्रेनों में देखने को मिलता है। अर्थात् यहां बोगी और ट्रेन में इलैक्ट्रोमैग्नेट लगाया जाता है। दूसरा तरीका यह है कि इलेक्ट्रोमैग्नेट ट्रैक में डाले जाते हैं, जैसा कि जापान में किया जाता है। पहले तरीके की तुलना में जापान में प्रयोग की जाने वाली तकनीक में स्पीड ज्यादा होती है। पहले तकनीक से 400 किमी./घंटा की स्पीड प्राप्त की जा सकती है, वहीं दूसरी तकनीक के द्वारा 600 किमी./घंटा की स्पीड प्राप्त हो सकती है। दूसरी तकनीक में पहिये (चक्का) की जरूरत होती है। जिसका प्रयोग स्पीड कम होने या ट्रेन के रूकते समय होता है।
  • मैग्लेव की तकनीकी कोई नई तकनीकी नही है, वर्ष 1979 से इसका पाब्लिक इस्तेमाल हो रहा है। इसका अधिक विकास इसलिए नहीं हो पाया है क्योंकि यह बहुत ही जटिल तकनीकी का मिश्रण है, जिस पर बहुत रिसर्च और अनुसंधान की आवश्यकता होती है। इसके अलावा यह बहुत ही ज्यादा महंगी तकनीकी है, जिसके वजह से इसकी लागत बहुत ज्यादा हो जाती है। फलस्वरूप प्रत्येक देश द्वारा इसका विकास संभव नहीं हो पाता है। इसके अलावा इसका कोई यूनिफाइड रूप नहीं है जिसकी वजह से इसका कोई एक प्रारूप विकसित नहीं हो पाया है। जिसकी वजह से इसके उपकरणों का विकास और उपलब्धता प्रभावित होती है।
  • यह तकनीकी ट्रैक में भी अधिक खर्चा मांगती है तथा वहीं सफल हो पाती है जहां जनसंख्या घनत्व ज्यादा हो। इसका ट्रैक, स्पीड के अनुसार परिवर्तित होती है अर्थात कम स्पीड के लिए अलग ट्रैक और अधिक स्पीड के लिए अलग ट्रैक का विकास करना होता है।
  • बिना पहिए, बिना एक्सल, बिना बियरिंग वाली डॉल्फिन जैसी एयरोडायनेमिक ट्रेनों को आम बोलचाल की भाषा में बुलेट ट्रेन के भी नाम से पुकारा जाता है।
  • अपनी उच्च स्पीड पर जब यह ट्रेनें दौड़ती हैं तो पटरी से 10 सेमी. ऊपर होती हैं, जो लोगों को एक अलग-आरामदायक आनंद देता हैं।
  • मैग्लेव ट्रेन के बाद इसका अगला चरण हाइपरलूप ट्रेनों का है जिसमें मेग्लेव ट्रेन की तक्नीकी में कुछ और चीजों को जोड़ा जाता है।
  • परिवहन के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले हाइपरलूप का कॉसेप्ट टेस्ला कंपनी के CEO एलन मस्क ने दिया था और इसे परिवहन का पांचवा मोड़ बताया था। इसे हाइपरलूप इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें परिवहन एक लूप के माध्यम से होता है, जिसकी गति 1000 से 1300 किलोमीटर प्रति घंटा होता है।
  • इस प्रकार की ट्रेन को चलाने के लिए एक बंद और वैक्युम वाले पाइपों के अंदर एक विशिष्ट प्रकार की तकनीकी संरचना को विकसित किया जाता है। यह वैक्युम वाले ट्यूब हवा के द्वारा लगने वाले घर्षण में कमी आती है, जिससे स्पीड बहुत बढ़ जाती है। इससे ऊर्जा की आवश्यकता कम हो जाती है।
  • इन ट्यूब में विशिष्ट प्रकार के पॉड जैसे वाहन में लोगों को बैठाकर या कार्गों का स्थानांतरण किया जाता है। चुंबकीय प्रभाव से यह पॉड्स ट्रैक से कुछ ऊपर उठ जायेगे जिससे ट्रैक का भी घर्षण समाप्त हो जाता है।
  • इन ट्यूब अंदर रखे गये पॉड्स को Electric Propulsion के माध्यम से उच्च गति प्रदान की जाती है जो अल्ट्रा लो एयरोडायनमिक ड्रैग के परिणामस्वरूप लंबी दूरी तक हवाई जहाज की गति से दौडेंगे।
  • पायलट की त्रुटि और मौसम संबंधी खतरों से बचने के लिए इसे स्वचालन तकनीकी से युक्त किया गया है। यह बिना किसी प्रत्यक्ष कार्बन उत्सर्जन के सुरक्षित और स्वच्छ प्रणाली है। इसे भूमिगत सुरंग और जमीन के ऊपर स्तंभ पर बनाया जा सकता है।
  • हाल ही में Virgin Hyperloop One नामक एक कंपनी ने मानव पैसेंजर को बैठाकर इस परिवहन प्रणाली का परीक्षण किया है।
  • दो मानवीय पैसेंजर इसी कंपनी के चीफ टैक्नोलॉजी ऑफिसर और कंपनी के को-फाउंडर थे।
  • अमेरिका के नवादा राज्य में Las Vegas के मरुस्थलीय क्षेत्र में 500 मीटर लंबे और 3-3 मीटर के डायमीटर से Devloop नामक एक टेस्ट ट्रैक निर्माण कंपनी ने किया है। यहीं पर इसका परीक्षण किया गया। 15 सेकंड के इस टेस्ट में 172 किमी./घंटा स्पीड प्राप्त हुई है।
  • मानवीय परीक्षण से पहले इसके लगभग 400 सफल टेस्ट किये जा चुके थे। अब इन परिणामों से यह स्पष्ट होने लगा है कि हाइपरलुप तकनीकी एक व्यावहारिक परियोजना में बदल सकती है।
  • हाइपरलूप वन कंपनी अमेरिका, कनाड़ा, सऊदी अरब में इस परियोजना पर कार्य कर रही है। दुबई व अबूधाबी के बीच भी एक हाइपरलूप लिंक परियोजना पर कार्य चल रहा है।
  • अगस्त 2019 में महाराष्ट्र सरकार ने हाइपरलूप परिवहन तकनीक को विकसित करने वाली हाइपरलूप वन कंपनी को मुंबई से पुणे के बीच हाइपरलूप लिंक प्रारंभ करने की अनुमति प्रदान की। भारत इस तरह विकसित देशों के साथ अपने यहां भी हाइपरभूप को विकसित करना चाहता है। इसे पूरा होने में लगभग 7 वर्ष का समय लगने की उम्मीद है।
  • मुंबई और पुणे के बीच की दूरी 200 किलोमीटर है, जिसे तय करने में 3.5 घंटे का समय लगता है, जिसे हाइपरलूप के माध्यय से 25- 30 मिनट में तय किया जा सकेगा। इन दोनों शहरों के लिए यह बेहद उपयोगी है क्योंकि 18-19 करोड लोग प्रतिवर्ष यात्र करते हैं। इस परियोजना को महाराष्ट्र सरकार के द्वारा अधिकारिक बुनियादी ढांचा परियोजना घोषित किया जा चुका है।
  • महाराष्ट्र सरकार के अनुमान के अनुसार इस पर 70,000 करोड़ का खर्च आयेगा। इसलिए इसे चरणों में विकसित किया जायेगा। पहले चरण में 11.8 किमी. दूरी तक का ट्रैक विकसित किया जायेगा जिस पर 5000 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा।
  1. तेल, सुरक्षित और कुशल परिवहन,
  2. भीड़भाड और ट्रैफिक से मुक्ति,
  3. पर्यावरण क्षति एवं उत्सर्जन कम,
  4. तकनीकी विकास एवं नवाचार