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Blog / 09 Aug 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 09 August 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 09 August 2020



टूट सकता है इस्लामिक सहयोग संगठन?

  • अंतर-सरकारी संगठन (Inter-Governmental Organization- IGO) से तात्पर्य ऐसे किसी इकाई /संगठन से है जिसमें दो या दो से अधिक राष्ट्र शामिल हों, जिसकी स्थापना किसी संधि के तहत सामान्य हितों/उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए की गई हो।
  • इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation- OIC) संयुक्त राष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना 25 सितंबर 1969 को रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में हुई थी।
  • मुस्लिम समुदाय की सामूहिक आवाज के रूप में पहचान रखने वाले इस संगठन की सदस्य संख्या 57 है, जिसमें 40 मुस्लिम बहुत देश हैं।
  • इसका मुख्यालय सऊदी अरब के जेद्दा में है।
  • रूस एवं थाईलैण्ड जैसे देश इसके पर्यवेक्ष राष्ट्र हैं। बांग्लादेश की तरफ से भारत को भी इसका पर्यवेक्षक बनाने की मांग की गई थी जिस पर अभी-निर्णय नहीं लिया जा सका है।
  • OIC शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रत्येक तीन वर्ष बाद होता है।
  • OIC के विदेश मंत्रियों की प्रथम बैठक वर्ष 1970 में संपन्न हुई थी, और इसके चार्टर को 1972 अपनाया गया था।
  • वर्ष 2011 को अस्ताना (कजाकिस्तान) में हुई 38वीं बैठक के दौरान इसका नाम ‘‘ऑर्गनाइजेशन ऑफ द इस्लामिक कांफ्रेंस’’ से बदलकर ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन कर दिया गया था।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य विभिन्न देशों के लोगों के बीच अंतर्राष्ट्रीय शांति और सदभाव को बढ़ावा देना और मुस्लिम समुदाय के हितों का संरक्षण करना है।
  • यह धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के प्रयासों में समन्वय स्थापित करता है तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर इस्लामिक एकजुटता को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है।
  • यह संगठन मुस्लिम समुदाय की गरिमा, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा करने के लिए उनके उनके संघर्षो को मजबूती प्रदान करने का प्रयास करता है।
  • यह सदस्य देशों के मध्य उत्पन्न होने वाले विवादों का समाधान करने और उनकी सदस्यता संबंधी निर्णय लेने के मामले में स्वतंत्र भूमिका निभाता है।
  • मिस्र ने इजराइल के साथ एक संधि किया था, जिसका अन्यदेश विरोध कर रहे थे फलस्वरूप 1979 में उसकी सदस्यता छीन ली गई थी हालांकि 1989 में उसे पुनः शामिल कर लिया गया था।
  • OIC अपनी स्थापना के बाद से अपने भीतरी राजनीतिक विरोधाभासों को दूर करने के लिए संघर्ष करता रहा है। यह गैर सदस्य देश में मुस्लिम हित की तो बात करता है लेकिन मध्य-पूर्व में शिया-सुन्नी संघर्ष की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम साबित नहीं हो पाया है ।
  • इसमें लाये गये किसी भी प्रस्ताव पर कोई भी सदस्य देश वीटो पावर का प्रयोग कर सकता है, जिससे किसी मुद्दे पर समाधान हो पाना कठिन हो जाता है।
  • कई समीक्षकों का तो मानना है कि शायद इस्लामिक पहचान के अलावा कोई ऐसा दूसरा कारक नहीं है जो दो देशों को एक दूसरे के करीब लाने में सक्षम हो।
  • ईराक, मध्य-पूर्व और अफ्रीकी क्षेत्र में बढ़ते बाहरी हस्तक्षेप को रोकने में यह संगठन नाकाम रहा है।
  • मोरक्को (रबात) में 1969 में हुई बैठक में भारत को आमंत्रिक किया गया था ओर सदस्यता की बात की गई थी। लेकिन पाकिस्तान उस समय दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश था जिसके तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्याखान ने यह धमकी दी थी कि अगर भारत को सदस्यता दी गई तो वह इस सम्मेलन का बहिष्कार करेगा।
  • भारत को 50 साल बाद पुनः मार्च 2019 में विदेश मंत्रियों को बैठक में बतौर ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ आमंत्रित किया गया। पाकिस्तान ने इसका उस समय काफी विरोध किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाया।
  • हालांकि इस बैठक में विदेशनमंत्री सुषमा स्वराज के शामिल होने के दूसरे ही दिन ही 0IC ने जम्मू कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित कर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया था।
  • इसमें कहा गया कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान और भारत के विवाद का अहम मुद्दा है और दक्षिण एशिया में शांति स्थापना के इसका हल होना जरूरी है। इसके अलावा कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन का मुद्दा भी उठाया गया था।
  • भारत ने प्रस्ताव का खंडन करते हुए इसे भारत का आंतरिक मामला बताया।
  • कई देशों (पाकिस्तान, तुर्की, मलेशिया) का मानना रहा है कि OIC भारत पर उतना दबाव नहीं डालता है जितना जरूरी है।
  • नागारिकता संशोधन कानून पर भी OIC ने कहा था कि- भारत के हालिया घटनाक्रम को हम करीब से देख रहे है और नागरिकता के प्रश्न पर अल्पसंख्यक हित की बात उठाई थी।
  • OIC पर सऊदी अरब और UAE का दबदबा है जिससे बहुत से देश खुश नहीं रहते है।
  • कई बार अन्य इस्लामिक देश जेसे तुर्की, पाकिस्तान, मलेशिया, इसकी प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े करते हैं।
  • 19-20 दिसंबर को मलेशिया में कुआलंलपुर समिट हुआ और इस्लामिक आवाज को नया मंच देने की भी बात हुई।
  • सऊदी अरब को डर है कि कहीं OIC के समानांतर कोई दूसरा इस्लामिक संगठन खड़ा न हो जाये इसलिए सऊदी अरब, UAE बहरीन ने इसमें भाग नहीं लिया।
  • इसमें सऊदी अरब ने पाकिस्तान को भी जाने से रोक दिया। जबकि कुआलंलपुर समिट की बात तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगन, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के बीच तय हुई थी।
  • तुर्की ने कहा कि- सऊदी अरब ने पाकिस्तान को आर्थिक प्रतिबंध की धमकी दी थी इसलिए इमरान खान शामिल नहीं हुए।
  • पाकिस्तान OIC की तरफ से एक ऐसे बैठक की मांग कर रहा है जिसमें कश्मीर के मुद्दे पर कड़े कदम उठायें जायें।
  • दरअसल पाकिस्तान की मंश अनुच्छेद-370 पर भारत को गलत साबित करने एवं इस्लामिक देशों से संबंध विच्छेद करने की है।
  • वहीं सऊदी अरब, UAE एवं अन्य देश भारत के संदर्भ में इस प्रकार के कदम को उचित नहीं समझते हैं और भारत से आर्थिक-सांस्कृतिक संबंध मजबूत करना चाहते हैं।
  • पाकिस्तान ने OIC से कहा है कि यदि वह पाकिस्तान का साथ नहीं देते हैं तो वह एक अलग मंच का निर्माण कर सकता है।
  • OIC के कई देश पाकिस्तान के अनुसार OIC की कार्यप्रणाली से खुश नहीं है।
  • तुर्की, अजरबैजान, ईरान, मलेशिया, कतर जैसे देश भारत विरोध की वजह से नहीं बल्की सऊदी अरब के प्रभुत्व को कम करने के लिए पाकिस्तान के साथ आ सकते है।
  • सऊदी अरब ने पाकिस्तान के इस प्रकार के स्टेटमेंट पर प्रतिक्रिया देते हुए कड़े निर्णय लिये है।
  • सऊदी अरब ने नवंबर 2018 में पाकिस्तान को 6-2 बिलियन डॉलर की सहायता दी थी। इसमें से 3-2 बिलियन तेल आयात के लिए था और 3 बिलियन लोन के रूप में था।
  • सऊदी अरब ने अपने पैसे पाकिस्तान से वापस मांग लिये है। कुछ पैसे वापस कर दिये गये है और कुछ पाकिस्तान चीन से लेकर देने वाला है।
  • सऊदी अरब ने तेल आयात के लिए दी जाने वाली 3-2 बिलियन की सुविधा को समाप्त कर दिया है।
  • यह पाकिस्तान को बहुत हद नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • UAE ने भी पाकिस्तान को तेल आयात की सुविधा दे रखा है। यह भी इसी प्रकार का कदम उठा सकता है।