Home > Daily-current-affair

Blog / 08 Aug 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 08 August 2020

image


(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 08 August 2020



कैग का पद इस समय चर्चा में क्यों है?

  • हमारे संविधान में अनेक संवैधानिक पदों की व्यवस्था कार्यपालिका की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए की गई है। इसी प्रकार का एक महत्वपूर्ण पद कैग (CAG) का हैं इसके महत्व को व्याख्यायित करते हुए डॉ. भीम राव अम्बेड्कर कहते हैं- ‘‘भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग- CAG) संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा अधिकारी है जो यह देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाये या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों पर ही धन खर्च किया जाये।’’
  • कैग भारत की संचित निधि और प्रत्येक राज्य, केंद्रशासित प्रदेश जिसकी विधानसभा है, की संचित निधि से संबंधित खातों के सभी प्रकार के खर्चों का परीक्षण करता है।
  • यह भारत सरकार के आकास्मिक निधि और सार्वजनिक खाते के साथ राज्यों की आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाते के खर्चों का परीक्षण करते है।
  • आवश्यक होने पर वह केंद्र या राज्यों के राजस्व से वित्त पोषित होने वाले निकायों, प्राधिकरणों, सरकारी कंपनियों एवं निगमों की आय-व्यय का परीक्षण करता है।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग के सभी ट्रेंडिंग ,विनिर्माण लाभ-हानि खातों, बैसेंसशीट आदि का ऑडिट करता है।
  • यह राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुसंशित किये जाने पर किसी अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करता है, जैसे कोई स्थानीय निकाय।
  • यह राष्ट्रपति को यह सलाह भी देता है कि केंद्र एवं राज्यों के खाते किस प्रारूप में रखे जायेंगे।
  • यह केंद्र के खातों से संबंधित रिपोर्ट राष्ट्रपति और राज्य के खातों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है जो संसद एवं विधानमण्डल के समक्ष रखी जाती है। केंद्र के खाते से संबंधित रिपोर्ट दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती है।
  • यह लोक लेखा समीति के मार्गदर्शक, सहालकार एवं मित्र के रूप में भी कार्य करती है।
  • भारत में CAG नामक इस संस्था का विकास एक दिन में नहीं हुआ है। भारत में इस संख्या का विकास ब्रिटिश भारत (इण्डिया) के दौर में 1858 में हुआ था। यह वह समय था जब 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने भारत का प्रशासनिक नियंत्रण ईस्ट इण्डिया कंपनी से अपने हाथों में लिया था।
  • सर्वप्रथम इस पद पर 1860 में एडवर्ड ड्रमंड को पहले ऑडिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया। कुछ समय बाद इसे भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक को भारत सरकार का लेखापरीक्षक और महालेखाकार कहा जाने लगा।
  • वर्ष 1866 में इस पद का नाम बदलकर नियंत्रक महालेखा परीक्षक कर दिया गया। 1884 में इसे फिर से भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के रूप में फिर से नामित कर दिया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत इसे वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 के द्वारा संघीय ढांचे में प्रांतीय लेखा परीक्षको का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 1936 के लेखा और लेखा परीक्षक आदेश ने महालेखापरीक्षक के उत्तारदायित्वों और लेखा परीक्षा कार्यों का प्रावधान किया।
  • आजादी के बाद इस पद को संवैधानिक पद के रूप में स्थापित किया गया और आज यह हमारे संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
  • आज इस संस्था के माध्यम से संसद, विधानसभाओं एवं अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है और संबंधित रिपोर्ट के माध्यम से जानकारी लोगों तक पहुंचती है।
  • कैग एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करते हैं और इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता है।
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम नियंत्रक महालेखापरीक्षक वी- नरहरि राव थे, जिनका कार्यकाल 1948 से 1954 तक था। वहीं दूसरे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ए- के चंद थे जो 1960 तक इस पद पर थे।
  • वर्ष 2017 में राजीव महार्षि भारत के 13वें नियंत्रक और महालेखा परीक्षक नियुक्त किये गये थे। अब इस पद पर 14वें नियंत्रक और महालेखा के रूप में गिरीश चंद्र मुर्मू आज से अपना कार्यभार संभाल रहे है।
  • गिरीशचंद्र मुर्मू 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर हैं, जो गुजरात कैडर से है।
  • 31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पहले एलजी बनाये जिन्होंने लगभग 9 माह इस पद पर कार्य किया।
  • CAG की नियुक्ति, कार्य, शक्तियों के विषय में निम्न अनुच्छेद महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अनुच्छेद-148 में कैग की नियुक्ति, शपथ और सेवा शर्तों का उल्लेख है।
  • अनुच्छेद-149 कैग के कर्तव्यों एवं शक्तियों से संबंधित है।
  • अनुच्छेद-150 संघ एवं राज्यों को खातों का विवरण राष्ट्रपति के अनुसार (कैग की सलाह पर) रखना होगा।
  • अनुच्छेद-151 संघ के खातों से संबंधित कैग की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी, जो संसद के प्रत्येक सदन के पटल पर रखी जायेगी।
  • अनुच्छेद-279 शुद्ध आय की गणना कैग द्वारा प्रमाणित की जाती है, जिसका प्रमाणपत्र अंतिम माना जाता है।
  • तीसरी अनुसूची के धारा 4 भारत के CAG और सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रावधान करता है।
  • छठी अनुसूची के अनुसार जिला परिषद या क्षेत्रीय परिषद के खातों को राष्ट्रपति या CAG अनुमोदित प्रारूप के अनुसार रखा जाना चाहिए।
  • कैग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक (दोनों में से जो भी पहले हो) होता है।
  • कैग का वेतन और अन्य सेवा शर्तें नियुक्ति के बाद कम नहीं की जा सकती है।
  • इन्हें राष्ट्रपति द्वारा केवल संविधान में दर्ज प्रक्रिया के अनुसार हटाया जा सकता है जो कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश को हटाने के तरीके के समान है।
  • इस पद से सेवा निवृत्ति/इस्तीफा देने के बाद वह भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय का पदभार नहीं ले सकता है।
  • कैग कार्यालय का प्रशासनिक व्यय जिसमें सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर भारत होते हैं अर्थात इस पर मतदान नहीं हो सकता है।
  • कैग को दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन किया जाता है लेकिन कई बार यह पद कई अन्य कारणों से चर्चा में आता रहा है।
  • भारत के 11वें नियंत्रक-महालेखा परीक्षक विनोद राय ने यूपीए गवर्नमेंट पर लगभग 2 लाख करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था, जिसे उस समय की सरकार ने आधारहीन बताया था।
  • यह मामला CBI के कोर्ट में पहुंचा लेकिन आरोप सिद्ध नहीं हुआ और कोर्ट के सामने CBI कोई भी ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई।
  • विनोद राय की रिपोर्ट पर एक बहुत बड़ा जनमत 2014 के चुनावों में प्रभावित हुआ। इस समय कई नेताओं ने यह आरोप लगाया था कि विनोद राय ने सरकार को बदनाम करने के लिए ऐसा किया।
  • पिछले साल विपक्ष ने नियंत्रक और महालेखा परीक्षा राजीव महर्षि से अनुरोध किया था कि वह 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के करार की ऑडिट प्रक्रिया से खुद को अलग कर लें, क्योंकि तत्कालीन वित्त सचिव के तौर वह राफेल वार्ता का हिस्सा थे। इसलिए विपक्ष का कहना था कि उन्ही द्वारा ऑडिट किया जाना नैतिक रूप से ठीक नहीं होगा।
  • इसके अलावा कैग के द्वारा कई बार यह भी कहा जाता रहा है कि कार्यपालिका मनमानी करती है वहीं कार्यपालिका भी कई बार यह कह चुकी है कि कैग सरकार के नीतिगत फेसले में हस्तक्षेप करती है।
  • हाल ही में आई एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि हाल के वर्षों में कैग के रिपोर्ट की संख्या में कमी आई है। इसी के साथ यह भी कहा गया है कि रिपोर्ट प्रस्तुत करने में देरी हुइ। कई बार देरी 16-18 माह तक भी रही है।
  • इस देरी के पीछे कारण ग्राफिक्स, तस्वीर, प्रिटिंग आदि बताई जाती हैं। नोटबंदी और रफाल सौदे मे भी कैग की रिपोर्ट देरी से पेश हुई थी।
  • इस समय लगभग 60 अधिकारियों ने पत्र लिखकर कैग की रिपोर्ट में देरी के मुद्दे को उठाया था। यह भी कहा गया था कि ऐसा इस वजह से हो रहा है जिससे वर्ष 2019 के चुनाव मं सरकार को जवाबदेही से बचाया जा सके।
  • वर्ष 2014 से 2019 के बीच 42 रिपोर्ट ऐसी थी जिनके पेश होने में 90 दिन से अधिक की देरी हुई।
  • 2010 से 2011 के बीच कैग ने 221 ऑडिट रिपोर्ट तैयार की थी, 2011-12 में 137 रिपोर्ट तैयार की गई, 2013-14 में इसने 134 रिपोर्ट, 2014-15 में 162 रिपोर्ट, 2015-16 में 188 रिपोर्ट , 2016-17 में 150 रिपोर्ट, 2017-18 में मात्र 98 रिपोर्ट, 2018-19 में 73 रिपोर्ट तैयार की गई थी।
  • कई समीक्षकों का मानना है कि रिपोर्ट की संख्या कम होना तथा पेश किये जाने में विलंब होना चिंताजनक है। वहीं पूर्व डिप्टी CAG अनुपम कुलश्रेष्ठ का कहना है कि रिपोर्ट की संख्या कम होना चिंताजनक नहीं है यदि जो रिपोर्ट आ रही है उनकी क्वालिटी अच्छी है।
  • कई बार CAG ने बैंकों के ऑडिट की भी बात सामने रखी लेकिन अभी नहीं हो पाया है। इसके लिए सरकार द्वारा कानूनी परिवर्तन करना पडेगा। कई बार इस संदर्भ में बैंक के जानकारों का मानना है इससे बैंक की कार्यप्रणाली प्रभावित होगी।
  • किसी भी संस्था के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए यह जरूरी हैं कि उसके पास काम का दबाव इतना ज्यादा न हो कि वह उसके बोझ के तले दब जाये । वर्तमान में CAG पर अधिक काम का बोझ बताया जाता है। इस समय में CAG कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजनाओं (पीपीपी) का का भी ऑडिट करता है।
  • CAG को किसी भी सरकारी कार्यालय का निरीक्षण करने और खाता मांगने का अधिकार है लेकिन व्यवहारिक तौर पर ऐसा हो नहीं पाता है। सरकारी कार्यालय दस्तावेजों की आपूर्ति में विलंब करते है।
  • भारत में CAG की कार्यपालिका द्वारा अपने पसंद के व्यक्ति के रूप में की जबकि विश्व में ऐसा नहीं है। समीक्षकों का मानना है कि कैग की नियुक्ति मुख्य सतकर्ता आयुक्त की तरह होना चाहिए।
  • भारत में कार्यकाल 6 वर्ष जबकि यूके में 10 वर्ष तथा अमेरिका में 15 वर्ष का होता है।
  • सरकारी धन और भ्रष्टाचार के कई आरोपों के न रूकने से यह कहा जा रहा है कि कैग को अपने ऑडिट तंत्र में बदलाव करना चाहिए।
  • कई बार सरकारी संगठनों के पास किसी प्रोग्राम के खर्च को लेकर बेहतर आईडिया होता है जिसके साथ कैग को तालमेल का प्रयास करना चाहिए।
  • भारत का कैग केवल महालेखा परीक्षक की भूमिका निभाता है नियंत्रक महालेखाकार की नहीं जबक ब्रिटेन का कैग दोनों दायित्वों का निर्वहन करता है।
  • भारत में कैग पैसा खर्च होने के बाद खातों का लेखा- जोखा करता है जबकि ब्रिटेन में बिना कैग की अनुमति के सरकारी खजाने से कोई पैसा नहीं निकाला जा सकता है।