(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 07 November 2020
एससी/एसटी एक्ट पर सर्वोच्च न्यायालय का अब कौन सा निर्णय आया है?
- भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव की समस्या आजादी के बाद भी बनी हुई थी, जिससे एक बड़े वर्ग के साथ असमान व्यवहार की खबरें आती थीं। इसे समाप्त करने के लिए 1955 में प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट लाया गया।
- इस एक्ट के बाद भी दलितों/अति पिछड़े लोगों/और समाज के एक बड़े वर्ग के खिलाफ अत्याचार जारी रहा। इसके समाधान के लिए किसी कड़े कानून की मांग की जा रही थी।
- 1 सितंबर 1989 को संसद द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की सुरक्षा के लिए एससी एसटी एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट को 30 जनवरी 1990 को पूरे देश में लागू कर दिया गया।
- इसका उद्देश्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा मुहैया करवाना था। उद्देश्य यह था कि इस समाज के लोग भी अपने सभी अधिकारों का गरिमामयपूर्ण तरीके से उसी रूप में उपभोग कर सकें जैसे समाज के अन्य लोग करते हैं।
- एससी-एसटी एक्ट 1989 के मुख्य प्रावधान-
- जातिसूचक शब्दों का प्रयोग अपराध है और ऐसा करने पर शीध्र ही मामला दर्ज किया जायेगा।
- केस दर्ज होने की स्थिति में तुरंत गिरफ्रतारी सुनिश्चित की जायेगी।
- इस एक्ट से संबंधित मामलों की जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी द्वारा की जायेगी।
- एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी।
- सुनवाई के दौरान पीडितों और गवाहों की यात्र और जरूरतों का खर्च सरकार की तरफ से मुहैया कराया जायेगा।
- सिर्फ हाईकोट से ही इस मामले में जमानत मिल सकती है।
- पीडित परिवार को पर्याप्त सुविधायें एवं कानूनी मदद दी जायेगी।
- FIR दर्ज करने के 60 दिन के भीतर अपराध की जांच करना और चार्जशीट/आरोप पत्र पेश करना होगा।
- जबरन अखाद्य पदार्थ खिलाना, सामाजिक बहिष्कार करना जैसे 20 से अधिक ऐसे कृत्यों को इसमें अपराध माना गया है, जिससे मानवीय गरिमा का हनन होता है।
- कोई व्यक्ति किसी SC/ST समुदाय के सदस्य से व्यापार करने से इनकार करता है तो इसे आर्थिक बहिष्कार माना जायेगा और दण्डनीय होगा।
- यदि कोई सरकारी अधिकारी अभिप्रायपूर्वक या जानबूझकर इस अधिनियम के तहत दिये गये कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो उसे 6 माह से 1 साल तक की जेल हो सकती है।
- इस एक्ट के तहत अपराध सिद्ध होने पर दोषी व्यक्ति को 6 माह से 5 साल तक सजा, जुर्माना का प्रावधान है। अपराध यदि हत्या से संबंधित है या क्रूरतापूर्वक किया गया है तो मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है।
- यह कानून बहुत कठोर था, जिसके दुरूपयोग की खबरें कई बार मीडिया में आती रहती थीं। इसी संबंध में एससी/एसटी एक्ट के एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को तुरंत गिरफ्रतारी पर रोक लगा दी, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्जा नहीं करने का आदेश दिया।
- कोर्ट ने कहा कि शिकायत मिलने की स्थिति में शुरूआती जांच DSP स्तर के पुलिस अफसर द्वारा की जायेगी। जांच 7 दिन में कंप्लीट की जायेगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात मानी थी। अग्रीम जमानत के लिए आवेदन का अधिकार कोर्ट ने दिया।
- एससी/एसटी कानून में बदलाव के फैसले का विरोध पूरे देश में हुआ। 1 अप्रैल 2018 को देशभर में बंद बुलाया गया। कई जागह हिंसक घटनायें हुईं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा लेकिन एससी/एसटी वर्ग की राजनैतिक चेतना भी सामने आई।
- एससी/एसटी समुदाय ने यह मांग की कि सरकार इसे पुनः सख्ती से लागू करे।
- देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार दबाव में थी। सरकार ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।
- सरकार इन अधिकारों और प्रावधानों को लागू करवाने के लिए पहले अध्यादेश लेकर आई तथा बाद में मानसून सत्र में एससी/एसटी संशोधन विधेयक लेकर आई और उसे पास करवाया, जिसका समर्थन सभी राजनीतिक पार्टियों ने किया। इस कानून/विधेयक के माध्यम से सरकार ने पहले जैसे प्रावधानों को स्थापित किया। सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला परिवर्तित कर दिया।
- संशोधित विधेयक में यह प्रावधान किया गया कि इस तरह के अपराध में FIR दर्ज किया जायेगा और जांच के बाद ही FIR दर्ज करने के प्रावधान को पलट दिया। गिरफ्रतारी से पहले किसी की इजाजत भी नहीं लेनी होगी। अग्रिम जमानत के प्रावधान को भी समाप्त कर दिया गया। कुल मिलाकर कानून लगभग अपने पुराने स्वरूप में आ गया।
- 1 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने कहा कि एससी/एसटी वर्ग के लोगों को अभी भी देश में भेदभाव और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ता है। अभी भी उनका सामाजिक तौर पर बहिष्कार किया जा रहा है। देश में समानता के लिए उनका संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।
- एससी/एसटी कानून इस समय फिर चर्चा में है। एक विवाद उत्तराखंड हाइकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुँचा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है।
- उत्तराखंड निवासी हितेश वर्मा के खिलाफ अनुसूचित जाति की महिला ने निर्माण कार्य संबंधि विवाद में हुई कहासुनी को लेकर एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उसके खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी। हितेश ने इसके खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट में अपील की और कार्रवाई को अनुचित बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद हितेश ने सुप्रीम कोर्ट में आदेश को चुनौती दी।
- सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेंमत गुप्त और जस्टिस अजय रस्तोेगी की पीठ ने कहा कि उच्च जाति के किसी व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस पर एससी/एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध इसलिए नहीं स्वीकार कर लिया जायेगा कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति का है, बशर्ते यह साबित नहीं हो जाये कि आरोपी ने सोच-समझकर श्किायतकर्ता का उत्पीड़न उसकी जाति के कारण ही किया है।
- तीन सदस्यीय पीठ की तरफ से लिखे फैसले में कोर्ट ने कहा कि जब तक उत्पीडन का कोई कार्य किसी जाति के कारण सोच-विचार कर नहीं किया गया हो तब तक आरोपी पर एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
- कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराधिक कृत्य तभी ठहराया जा सकता है जब उसे सार्वजनिक तौर पर अंजाम दिया जाये, न कि घर या चहारदिवारी के अंदर जैसे प्राइवेट प्लेस में। कोर्ट ने कहा है कि जब तक कोई व्यक्ति एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को उसे जाति के आधार पर प्रताड़ित करने की मंशा से भला-बुरा नहीं कहता है और जब तक उत्पीड़न की घटना का कोई गवाह नहीं हो, तब तक किसी उच्च जाति के व्यक्ति के खिलाफ एससी/एसटी के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2008 के एक फैसले का हवाला दिया और कहा कि उसमें पाब्लिक प्लेस को बताया गया है और उसके आधार फैसला दिया गया था। उसमें कहा गया था कि अगर घर के बाहर जैसे कि किसी के घर के सामने, किसी बाहरी स्थान, सड़क, चौराहे, गली में गाली दी जाती है या जातिवाचक शब्दों के आधार पर संबोधन किया जाता है तो इससे उसकी प्रतिष्ठा/गरिमा को चोट पहुँचती है तो यह अपराध है और एससी/एसटी एक्ट के दायरे के तहत आता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक उत्पीड़न का कार्य किसी की जाति के कारण सोच विचार कर नहीं किया गया हो तब तक आरोपी पर एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती है।
- कोर्ट ने कहा है कि उच्च जाति के किसी व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति को गाली भी दी हो तो उस पर एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है। हाँ, अगर उच्च जाति के व्यक्ति ने एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को जान-बूझकर प्रताडित करने के लिए गाली दी हो तो उस पर एससी/एसटी एक्ट के कार्रवाई अरूर होगी।
- बेंच ने इस विवाद में पुरुष को एससी/एसटी एक्ट की कार्रवाई से मुक्त करते हुए कहा कि आरोपी पुरुष तथा शिकायतकर्ता महिला के बीच उत्तराखंड में जमीन की लड़ाई चल रही थी। दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा रखा था। बाद में महिला ने यह कहते हुए एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया कि पुरुष ने सहयोगियों के साथ मिलकर महिला को खेती करने से बलपूर्वक रोक दिया और महिला को जाति संबंधी गालियाँ भी दी। कोर्ट ने कहा कि पुरुष पर घर की चहारदिवारी के अंदर गाली-गलौज करने का आरोप है न कि सार्वजनिक तौर पर। इसलिए उसके खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ कार्रवाई करना उचित नहीं होगा।
- कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारक) कानून की धारा-3(1) के तहत याचिकाकर्ता आरोपी के खिलाफ मामला नहीं बनता है इसलिए इसे खारिज किया जाता है।
- NCRB की रिपोट्र के अनुसार प्रत्येक 15 मिनट में किसी अनुससूचित जाति के व्यक्ति के विरूद्ध अपराध की घटना घटित होती है।
- 2007 से 2017 के बीच इस प्रकार के अपराध में 66 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
- NCRB के आंकड़ों के अनुसार इस संबंध में झूठे मामलों का प्रतिशत लगभग 9 प्रतिशत है।