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Blog / 07 Aug 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 07 August 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 07 August 2020



जम्मू-कश्मीर- UN और चीन

  • अंग्रेजों ने लगभग 200 सालों तक भारत पर सिर्फ शासन नहीं किया बल्कि एक ऐसी खाई का विकास भी वह समय-समय पर और अनेक तरीकों से कर रहे थे जो भारत के विभाजन का आधार बनी।
  • अंग्रेजी द्वारा बनाई गई खाई आजादी के समय तक एक विस्तृत आकार ले चुकी थी जिसके कारण विभाजन किन क्षेत्रें का किस हिस्से में किया जाये यह बहुत ही जटिल हो गया था।
  • इस समय (आजादी के समय) भारत तीन रूपों में हमें दिखाई देता है। भारतीय क्षेत्र, स्वतंत्र रियासतें एवं नवीन राज्य पाकिस्तान।
  • जैसा कि हमें पता है कि ब्रिटिश सरकार ने एक कुटिल चाल चलते हुए रियासतों को भारत-पाकिस्तान में विलय के साथ स्वतंत्र रहने का अधिकार दिया।
  • आजादी के समय (15 अगस्त) 562 में से अधिकांश रियासतों का विलय हो गया था लेकिन जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर अभी अलग थे।
  • जम्मू-कश्मीर रियासत पर महाराज हरिसिंह का शासन था जो आजादी तक एक सुचारू सरकार का संचालन कर रहे थे।
  • 1932 में शेख अब्दुल्ला ने कौमी आंदोलन चलाया जो मुस्लिम हितों की पैरवी करते थे और महाराजा हरिसिंह के खिलाफ थे।
  • 1946 में महाराजा हरिसिंह के खिलाफ आंदोलन को शेख अब्दुल्ला ने तीव्र कर दिया और महाराजा कश्मीर छोड़ों का आंदोलन चलाया ,फलस्वरूप अब्दुल्ला को गिरफ्रतार कर तीन साल के लिए जेल भेज दिया गया।
  • 3 जून 1947 को लार्ड माउंटबेटेन ने देश के विभाजन की अपनी योजना घोषित की।
  • माउंटबेटेन ने महाराजा से कहा कि हस्तांतरण के लिए निश्चित की गई तारीख 15 अगस्त 1947 से पहले आपको यह निर्णय कर लेना चाहिए कि आप पाकिस्तान के साथ विलय करेंगे या हिंदुस्तान के साथ या फिर अलग रियासत के रूप में रहेंगे।
  • महाराजा के अनुसार वाइसराय का झुकाव पाकिस्तान की ओर था और उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तान के साथ विलय में भारत कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं करेगा।
  • दूसरी तरफ जुलाई 1947 में लिखे अपने पत्र में सरदार पटेल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री रामचंद्र कॉक और महाराजा को स्पष्ट किया था कि भारत में विलय करना ज्यादा उचित फैसला होगा।
  • महाराजा के सामने कई प्रकार की चुनौतियाँ थीं, जैसे पाकिस्तान के साथ जाने अल्पसंख्यकों का क्या होगा और भारत में विलय पर मुस्लिम आबादी कहीं आंदोलित न हो जाये।
  • देश आजाद हुआ लेकिन पाकिस्तान कश्मीर की आजादी को हजम नहीं कर पा रहा था इसलिए उसने 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया।
  • महाराजा ने भारत से सैनिक मदद मांगी और विलय के लिए तैयार हो गये। इसके लिए महाराजा ने 26 अक्टूबर 1947 माउंटबेटेन को पत्र लिखा।
  • दिल्ली में आपातकालीन बैठक बुलाई गई जिसमें नेहरू, सरदार पटेल, माउंटबेटेन सभी शामिल थे। निर्णय लिया गया कि पाकिस्तानी सेना को वापस भेजा जायेगा और भारतीय आर्मी इसमें मदद करेगी ।
  • 27 अक्टूबर 1947 को माउंटबेटेन ने पत्र का जवाब देते हुए लिखा - आपने पत्र में जिन परिस्थितियों का उल्लेख किया है, उसे देखते मेरी सरकार ने भारतीय उपनिवेश के साथ कश्मीर राज्य के सम्मिलन को स्वीकार करने का निर्णय किया है।
  • बाद में मउंटबेटेन ने पाकिस्तान की चिंताओं को दूर करने के लिए एक निष्पक्ष मतदान (जनमत संग्रह) की बात कहा।
  • भारत सरकार भी इसके लिए तैयार हो गई लेकिन यह शर्त यह थी कि मतदान संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शन में होगा। हालांकि जिन्ना उस समय इस पर राजी नहीं हुए।
  • अंत में लार्ड माउंटबेटेन के अनुरोध पर इस मामले में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता का निर्णय लिया गया और 1 जनवरी 1948 को विधिवत शिकायत की गई।
  • जब महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर छोड़ दिया तो नेहरू जी के समर्थन से और शेख अब्दुल्ला के मंत्रिमंडल से विचार-विमर्श के बाद अनुच्छेद 370 की योजना बनाई गई जो भारत के साथ कश्मीर राज्य के संबंध की व्याख्या करता है।
  • 1948 में जब यह मामला संयुक्त राष्ट्र में गया तब कई चीजें संयुक्त राष्ट्र के द्वारा कही गई।
  1. दोनों देशों से हालात को नियंत्रित करने की बात की गई।
  2. सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को दोनों देशों से बात करने की जिम्मेदारी दी गई।
  3. एक तीन सदस्यी आयोग का गठन किया जाना था, जो मौके पर पहुँचकर तथ्यों की जांच करेगा।
  4. जनमत संग्रह पर सहमति बनी। इसके लिए पाकिस्तानी सेना का पूर्णरूप से कश्मीर से वापस जाना था।
  • पाकिस्तान की सेना द्वारा पूरी तरह कश्मीर न छोड़ने के कारण भारत ने 1950 के दशक में जनमत संग्रह से दूरी बना ली। यहीं से पाकिस्तान ने भारत पर यह आरोप लगाना प्रारंभ किया कि वह संयुक्त राष्ट्र के नियमों का उल्लंघन कर रहा है।
  • 1971 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच जंग के बाद 1972 में शिमला समझौता अस्तित्व में आया।
  • यह समझौता शिमला में 2 जुलाई 1972 को भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था।
  • इसमें यह कहा गया कि कश्मीर से जुड़े विवाद पर बातचीत में संयुक्त राष्ट्र सहित किसी तीसरे पक्ष के दखल को स्वीकार नहीं किया जायेगा और हर विवाद का समाधान आपसी समझौते से ही किया जायेगा।
  • 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया इसके बाद यह विवाद पुनः संयुक्त राष्ट्र के सामने पाकिस्तान द्वारा लाया गया।
  • पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने सुरक्षा परिषद से बैठक बुलाने की अपील की। इसके बाद सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गई। जिसमें पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के नियमों का उल्लंघन करने और जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार का हनन करने का आरोप भारत पर लगाया।
  • इस बैठक में चीन ने भी पाकिस्तान का पक्ष लिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा एक ऐसा विवादित मुद्दा है जो दोनों के बीच ऐतिहासिक दौर से अब तक सुलझ नहीं पाया है, अर्थात अनिर्णीत है और एक अंतर्राष्ट्रीय दर्जे का विवाद है।
  • आगे चीन ने कहा कि कश्मीर के मुद्दे को यू-एन- चार्टर, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार हल किया जाना चाहिए जिसमें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहमति निहित है।
  • चीन ने कहा कि भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर की यथास्थिति बदलने से तनाव उत्पन्न हुआ है जिसे लेकर चीन चिंतित है और इस प्रकार की किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करता है।
  • तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने उपरोक्त सभी कुतर्को को खारिज किया।
  • इन्होंने सुरक्षा परिषद की परिपक्वता का हवाला देते हुए यह कहा कि यह परिषद पहले से ही सभी तथ्यों से परिचित है और ज्यादा स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है।
  • आगे अकबरूद्दीन ने कहा कि अनुच्छेद 370 पर हमारी राष्ट्रीय स्थिति ये रही है और अब भी है कि ये पूर्ण रूप से भारत आंतरिक मामला है और कोई बाहरी सरोकार नहीं है।
  • भारत क्षेत्र में स्थिति सामान्य और शांतिपूर्ण रखने के लिए प्रतिबद्ध है और उन सभी समझौते पर अपनी प्रतिबद्धता दोहराता है जिन पर हमने दस्तखत किये हैं।
  • चीन को छोड़कर सभी स्थायी सदस्यों ने इस मुद्दे पर भारत का साथ दिया और यह बैठक किसी चर्चा। बहस में नहीं बदल पायी।
  • इसके बाद जनवरी 2020 में भी चीन ने इस मुद्दे को उठाया और किसी तरह की चर्चा करा पाने की अपनी रणनीति में असफल रहा।
  • अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के एक वर्ष बाद फिर से चीन ने संयुकत राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को उठाया है।
  • हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस मुद्दे को लेकर कहा है कि वह कश्मीर क्षेत्र की स्थिति बारीकी से नजर बनाये हुआ है और अपने स्टैंड पर अडिग है।
  • इस बार भी उसने कहा है कि यह दो देशों के बीच एक बचा विवाद है जिसका समाधान नहीं हो पाया है, कोई भी एकतरफा परिवर्तन अवैध और अमान्य है, इस मुद्दे का हल आपसी बताचीत, परामर्श से शांतिपूर्वक ढंग से होना चाहिए।
  • भारत ने कहा है कि चीन को इस मामले में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए चीन को दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।
  • भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरूमूर्ती ने कहा कि UNSC अर्थात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की हालिया बैठक बंद कमरे में आयोजित पूर्ण रूप से एक अनौपचारिक बैठक थी, जिसका कोई भी रिकॉर्ड संग्रहीत नहीं किया गया।
  • दरअसल चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर, पाक अधिकृत कश्मीर में दोनों देशों द्वारा संयुक्त बांध निर्माण तथा हाइड्रो प्रोजेक्ट पर कार्य करना, भारत के साथ सीमा तनाव ऐसे अनेक कारणों से चीन पाकिस्तान का बढ़-चढ़कर साथ दे रहा है और उन गतिविधियों को अंजाम दे रहा है जिससे पाकिस्तान उसके फेवर में पूरी तरह से आ जाये।
  • चीन इस समय उईगुर मुस्लिम समुदाय के मानवाधिकार, हांगकांग की स्वायत्ता, को लेकर वैश्विक विरोध का सामना कर रहा है जिसके कारण वह जम्मू-कश्मीर के सहारे भारत पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहता है।
  • तिब्बत की निर्वासित सरकार को भारत और अमेरिका जिस प्रकार सहयोग कर रहे है इससे भी चीन नाराज है।
  • हाल के महिनों में चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद को उलझाया है इसलिए वह पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को दूसरे मोर्चे पर घेरेने का प्रयास कर रहा है।
  • कई समीक्षकों का मानना है कि भारत के लिए जम्मू-कश्मीर का मुद्दा तनाव वाला नहीं है क्योंकि सुरक्षा परिषद के अन्य सभी सदस्य अनुच्छेद 370 में परिवर्तन को उसका आंतरिक मामला मानते हैं।
  • इसी के साथ एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो अनुच्छेद 370 में परिवर्तन के बाद जम्मू-कश्मीर में उठाये गये अनेक प्रशासनिक कार्यों में ढील दिये जाने के पक्ष में है ताकि वहां की आवाम इस परिवर्तन के सकारात्मकता को समझ सके।