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Blog / 06 Nov 2020

(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 06 November 2020

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(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 06 November 2020



मीथेन का यहाँ से उत्सर्जन सब कुछ बर्बाद कर सकता है।

  • मीथेन (Methane) एक रंगहीन तथा गंधहीन गैस है जो ईंधन के रूप में प्रयोग की जाती है। यह प्राकृतिक गैस का मुख्य घतक है।
  • मीथेन गैस का रासायनिक सूत्र CH 4 है। यह सबसे साधारण प्रकार का हाइड्रोकार्बन है।
  • जब यह सतह और वातावरण में पहुँचता है तो इसे वायुमंडलीय मीथेन कहा जाता है। वायुमंडल में यह ग्रीन हाउस गैस के रूप में कार्य करती है, इसलिए इसकी बढ़ती सांद्रता (मात्रा) ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बनती है।
  • औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक इसकी मात्रा में 150 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो चुकी है।
  • यह वायु की उपस्थिति में नीली लौ के साथ जलती है और जलते समय कार्बन डाइऑक्साइड और बड़ी मात्रा में उष्मा (55,000 किलो जूल प्रति किलोग्राम) उत्पन्न करती है।
  • मीथेन में कार्बन डाइऑक्साइड से 25 गुना अधिक वैश्विक ताप उत्पन्न करने की क्षमता होती है।
  • आर्द्रभूमि क्षेत्रों से होने वाला मीथेन उत्सर्जन इसका सर्वप्रमुख स्रोत है। वैश्विक तेल और गैस उत्पादन के दौरान होने वाले लिकेज से भी मीथेन का उत्सर्जन होता है।
  • नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में मीथेन लीकेज के संदर्भ में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली औद्योगिक इकाइयां करीब 40 प्रतिशत मीथेन का उत्सर्जन करती हैं। कुछ समय पहले ट्रंप प्रशासन ने ऐसे लीकेज पर रोक लगाने वाले रेगुलेशन को ही वापस ले लिया, जबकि अमेरिका प्रमुख मीथेन उत्सर्जक है।
  • एक मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैसों में से 14 प्रतिशत का उत्सर्जन जानवरों से होता है, जिसमें नाइट्रस ऑक्साइड एवं मीथेन प्रमुख है। जुगाली करने वाले जानवर इस मीथेन के लिए बड़े उत्सर्जनकर्ता माने जाते हैं।
  • महासागरों में बहुत गहराई पर तथा आर्कटिक बर्फ के नीचे बड़ी मात्रा में मीथेन दबी हुई है जो अधिक दबाव एवं कम तापमान के कारण बर्फ के क्रिस्टल के रूप में भीतर छुपी है, जिसे मीथेन हाइड्रेट के नाम से जाना जाता है।
  • हाल ही में स्वीडन और रूस के साझा नेतृत्व में बने वैज्ञानिकों के एक दल ने आर्कटिक क्षेत्र में पूर्वी साइबेरियाई सागर के तट के निकट मीथेन गैस के रिसाव का पता लगाया है।
  • आर्कटिक क्षेत्र के उत्तरी ढ़लान के तलछट में बड़ी मात्रा में जमी हुई मीथेन और उसके रिसाव की बात पहले से की जा रही थी।
  • वैज्ञानिकों ने रिसाव का अध्ययन कर बताया है कि गैस के अधिकांश बुलबुले पानी में घुले हुए हैं और यहां सतह पर मीथेन का स्तर सामान्य स्थिति की तुलना में 4 से 8 गुना अधिक पाया गया है जो धीरे-धीरे वायुमंडल में फैल रहा है।
  • इसके अलावा वैज्ञानिकों ने रूस के निकट ‘लापटेव सागर’ में भी 350 मीटर की गहराई में उच्च स्तर पर मीथेन के मिलने की पुष्टी की है इस क्षेत्र में मीथेन की सांद्रता लगभग 1600 नैनोमोल्स प्रति लीटर बताई गई है।
  • वैज्ञानिकों ने इस रिसाव को रोकने के लिए वैश्विक एकजुटता की अपील के साथ-साथ इसके समाधान के संदर्भ में चिंता प्रकट की है।
  • कुछ समय पहले द यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे ने अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन के लिए आर्कटिक के हाइड्रेट्स की अस्थिरता को 4 सबसे गंभीर स्थितियों में से एक बताया था।
  • कुछ समय पहले अलास्का एवं समीपवर्ती क्षेत्रों में अमेरिका एवं जापान द्वारा भी इसी प्रकार के रिसाव की खोज की गई थी। हाल के समय में खनिजों की खोज एवं निष्कर्षण के दौरान इस प्रकार के रिसाव की घटनाएं बढ़ी हैं।
  • ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पिघलते बर्फ के नीचे दबी मीथेन वायुमंडल में बाहर आ रही है जिसकी बजह से ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए एक नई चुनौती उत्पन्न हो रही है।
  • हाल में आर्कटिक क्षेत्र में जिन रिसावों का पता लगाया गया है यदि इन्हें समय रहते न रोका गया तो यहां का तापमान तेजी से बढ़ेगा। यहां ध्यान देने योग्य है कि आर्कटिक क्षेत्र का तापमान वैश्विक औसत की तुलना में 2 गुनी तीव्र गति से बढ़ रहा है।
  • इस वर्ष जनवरी से जून के बीच साइबेरिया के तापमान में सामान्य से 5ºC की वृद्धि दर्ज की गई है जिसके लिए प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारण उत्तरदायी हैं।
  • हाल के समय में गर्म हवाओं तथा गर्म जलधाराओं की तीव्रता और बारम्बारता बढ़ी है।
  • साइबेरिया की 80 प्रतिशत भूमि पर्माफ्रास्ट जोन में आती है जिसकी गहराई 1 इसे 1.5 किलोमीटर तक है। इस जमी हुई जमीन की परत में दबे कार्बन जीवाश्मों (मृत जीव सड़ चुके वनस्पति) की अधिकता से इसमें भारी मात्रा में मीथेन गैस बुलबुलों की शक्ल में जमा हो चुकी है।
  • एक अनुमान के अनुसार साइबेरिया के येडोमा पर्माफ्रॉस्ट में 500 गीगाटन कार्बन जमा है और मिश्रित पर्माफ्रॉस्ट में 400 गीगाटन कार्बन दबा हुआ है।

खाड़ी क्षेत्र का भारतीय महत्त्व

  • फारस की खाड़ी, पश्चिम एशिया में हिंद महासागर का एक विस्तार है जो ईरान और अरब प्रायद्वीप के बीच जल वाला क्षेत्र है।
  • इसकी लंबाई लगभग 989 किमी. है। इसकी ऑसत गहराई 50 मीटर तथा अधिकत गहराई 90 मीटर है।
  • इसके तटवर्ती क्षेत्र ईरान, ईराक, कुवैत, सऊदी अरब, कतर, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान हैं।
  • यह खाड़ी क्षेत्र तेल एवं प्राकृतिक गैस के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • फारस की खाड़ी को अधिकतर अरब राष्ट्रों द्वारा इसके विवादास्वद नाम अरब की खाड़ी के नाम से पुकारा जाता है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय जल सर्वेक्षण संगठन इसके लिए फारस की खाड़ी नाम का प्रयोग करता है।
  • कुवैत, बहरीन, ओमान, कतर, सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात ने 1981 में खाड़ी सहयोग परिषद की स्थापना की थी। इसका मुख्यालय सऊदी अरब के रियाद में है।
  • उद्देश्य-
  1. सदस्य देशों में एकता लाने के लिए समन्वय, सहयोग एवं सक्रियता दिखाना।
  2. सदस्य देशों के नागरिकों के बीच सहयोग को मजबूत करना।
  3. सदस्य देशों के उद्योगों, खनिज, कृषि एवं सभी प्रकार के संसाधनों के उपयोग के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग देना।
  4. यह नीतियों में समन्वयन बनाने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर एकमत बनाने का प्रयास करता है आदि।
  • भारत के विदेश मंत्रालय की सूचना के अनुसार लगभग 8 मिलियन से अधिक भारतीय एशिया में रहते हैं, जिसमें से अधिकांश खाड़ी सहयोग परिषद से जुड़े देशों में रहते हैं और अपनी सेवा देते हैं।
  • इनके द्वारा हर साल लगभग 40 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि रेमिटेंस के रूप में भेजी जाती है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद के देशों में काम करने वाले कुल कामगारों का 30 प्रतिशत हिस्सा केवल भारतीयों का है।
  • कोरोना महामारी के चलते कुछ माह पहले अधिकांश भारतीय वापस लौट आये थे जो अब वापस जाना चाहते हैं।
  • खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों के साथ आयोजित एक रणनीतिक वार्ता को संबंधित करते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस- जयशंकर ने उल्लेख किया कि बड़ी संख्या में भारतीय कामगार एवं पेशेवर अपना कार्य पुनः शुरू करना चाहते हैं, और लौटना चाहते हैं जिसके लिए सभी देशों के द्वारा सकारात्मक प्रयास की आवश्यकता है।
  • यहां के कई देशों ने महामाहारी तथा तेल की कीमतों में अत्यंत कमी के कारण यह निर्णय लिया था कि वह न सिर्फ भारतीय प्रवासियों की संख्या में कटौती करेंगे बलि्क प्रवास पर नियंत्रण लगायेंगे।
  • खाड़ी सहयोग परिषद भारत के लिए न सिर्फ रोजगार और रेमिटेंस के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है बल्कि इनके साथ भारत के मजबूत आर्थिक, सामरिक एवं सांस्कृति महत्व है। यहां हो रहे विकास में भी भारत के लिए कई अवसर विद्यमान हैं।
  • भारतीय कंपनियों की प्रौद्योगिकी, निर्माण आतिथ्य और वित्त समेत विभिन्न क्षेत्रों में यहां के देशों में भारतीय कंपनियों की उपस्थिति है जो प्रवास के कारण इस समय स्किल्ड लेबर के अभाव का सामना कर रहें हैं।
  • GCC के सदस्य भारत की तेल संबंधी 34 प्रतिशत आवयकता की पूर्ति करते हैं।
  • यहां अभी जिन लोगों को रोजगार मिलता हैं उनके भी रोजगार जाने की चिंता बनी हुई है क्योंकि तेल मूल्यों की गिरावट ने इन्हें बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।
  • वापस जाने वाले श्रमिकों से संक्रमण का खतरा तथा वहां की स्वास्थ्य सुविधा पर दबाव पड़ने की संभावना है।

पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लांचर

  • पिनाका (Pinaka) मल्टी बैरल रॉकेट लांचर भारत में उत्पादित एक बहुखंडीय रॉकेट लांचर है। इसे भारतीय सेना के लिए DRDO द्वारा विकसित किया गया है।
  • पिनाका मार्क-1 के लिए 40 किलोमीटर और मार्क-2 के लिए 65 किलोमीटर की अधिकतम सीमा तय की गई है।
  • यह 44 सेकेंड में 12 उच्च विस्फोटक रॉकेट दाग कर अपने लक्ष्य को ध्वस्त कर सकता है।
  • पिनाका ने कारिगल युद्ध के दौरान अपनी सेवा दी थी और पर्वत चोटियों पर दुश्मनों के पोस्टों को निष्क्रिय करने में सफल रही थी।
  • पिनाका का विकास दिसंबर 1986 में शुरू हुआ जिसे 4 साल में तैयार किया जाना था। आर्ममेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट, पुणे स्थित DRDO प्रयोगशाला ने इस प्रणाली का विकास किया।
  • इस सिस्टम को टाटा ट्रक पर लगाया जाता है।
  • वर्ष 1998 से इसका उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें लार्सन एंड टुब्रो तथा आयुध कारखना बोर्ड की महत्त्वपूर्ण भागीदारी है।
  • इसका प्रयोग समीपवर्ती युद्ध और नजदीकी सेना को रोकने एवं उसे तबाह करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
  • भारत ने इसे रॉकेट्स दागने के लिए रूसी 'Grad' नामक सिस्टम को रिप्लेस करने के लिए विकसित किया है।
  • पिनाका सिस्टम की बैटरी में छह लांच वेहिकल होते हैं, साथ ही लोडर सिस्टम, रडार और लिंक विद नेटवर्क सिस्टम और एक कमांड पोस्ट होती है। एक बैटरी के जरिए निश्चित दूरी के एरिया को पूरी तरह ध्वस्त किया जा सकता है।
  • पिनाका रॉकेट का मार्क-II वर्जन एक गाइडेड मिसाइल की तरह बनाया गया हैं इसमें नेविगेशन, कंट्रोल और गाइडेड सिस्टम को जोड़ा गया है ताकि रेंज बढ़ाया जा सके तथा सटीकता भी।
  • इसे और मिसाइलों को इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम से जोड़ा गया है।
  • 4 नवंबर को DRDO ने पूरी तरह स्वदेश निर्मित पिनाका गाइडेड रॉकेट लांचर सिस्टम के अपग्रेड संस्करण का परीक्षण ओडिशा के समुद्री तट के चांदीपुर इंटिग्रेटेड टेस्टिंग रेंज/सेंटर से किया गया।