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Blog / 12 Mar 2019

(आर्थिक मुद्दे) बेरोजगारी - समस्या और निदान (Unemployment: Problem and Solution)

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(आर्थिक मुद्दे) बेरोजगारी - समस्या और निदान (Unemployment: Problem and Solution)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): हरवीर सिंह (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार), शिशिर सिन्हा (आर्थिक पत्रकार)

सन्दर्भ:

लगातार बढ़ रही बेरोजगारी भारत के विकास की राह में बाधा बन सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में हर साल तक़रीबन सवा करोड़शिक्षित युवा तैयार होते हैं। ये नौजवान रोज़गार के लिये सरकारी और निजी क्षेत्रों में राह तलाशते हैं, लेकिन रोज़गार के पर्याप्त अवसर केअभाव में एक बड़ा वर्ग बेरोज़गारी का जीवन जी रहा है या अपनी योग्यता के मुताबिक़ उपयुक्त नौकरी नहीं पाता है।

दरअसल जब कोई इंसान बड़ी सक्रियता से रोजगार की तलाश कर रहा होता है और इसके बावजूद जब उसे काम नहीं मिल पाता तो इसहालात को बेरोजगारी कहा जाता है। भारत में बेरोजगारी संबंधित आँकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय यानी NSSO द्वारा जारी किये जाते हैं। भारत में ज़्यादातर रोज़गार असंगठित क्षेत्र द्वारा मुहैया कराए जाते हैं। कृषि कामगार और शहरी क्षेत्रों में कार्यरत कॉन्ट्रैक्ट मजदूरअसंगठित क्षेत्र के दायरे में आते हैं।

धीमा औद्योगिक विकास, बढ़ती जनसंख्या और परम्परागत शिक्षा और तकनीकी जैसे कारक लम्बे समय से बेरोजगारी की वजह बने हुए हैं।इसके अलावा कुटीर उद्योगों में गिरावट, कृषि मजदूरों के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की कमी और नीतिगत खामियां बेरोज़गारी कीदूसरी वजहें हैं।

बेरोज़गारी के कारण अपराध दर में वृद्धि, खराब जीवन स्तर और हुनर की बर्बादी जैसी दिक्कतें देखने में आ रही हैं। साथ ही, राजनैतिकअस्थिरता, स्वास्थ्य से जुडी समस्याएं और धीमा आर्थिक विकास बेरोज़गारी के दूसरे नतीजे हैं।

सरकार ने बेरोज़गारी की समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाये हैं। जिसमें प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, कौशल विकासकार्यक्रम और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसे पहल शामिल हैं। इसके अलावा मनरेगा, मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री युवा योजना औरदीनदयाल उपाध्याय ‘श्रमेव जयते’ जैसे कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं। साथ ही, जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिये ‘हिमायत’ तथा वामपंथीउग्रवाद से प्रभावित युवाओं के लिये ‘रोशनी’ योजना भी शुरू की गई है।

हालांकि अगर कुछ आंकड़ों पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि भारत साल 2018 में वैश्विक भूख सूचकांक यानि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 119 देशोंकी सूची में 103वें नंबर पर आया था, वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें पायदान पर है। इन सब आंकड़ोंसे देश के लोगों का औसत जीवन स्तर ज़ाहिर होता है, और शायद इसीलिए रोज़गार की दिशा में और ज़्यादा काम किये जाने की ज़रूरत है।

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