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Blog / 21 Jun 2019

(आर्थिक मुद्दे) बेरोज़गारी और कौशल विकास (Unemployment and Skill Development)

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(आर्थिक मुद्दे) बेरोज़गारी और कौशल विकास (Unemployment and Skill Development)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): प्रोफेसर अरुण कुमार (वरिष्ठ अर्थशास्त्री), परंजय गुहा ठाकुरता (कारपोरेट सेक्टर के खास जानकार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी सीएसओ द्वारा भारत में बेरोजगारी को लेकर आंकड़े जारी किए गए। जारी आंकड़ों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी रही। ये आंकड़े जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यानी पीएलएफएस रिपोर्ट के आधार पर जारी किए गए हैं।

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

साल 2016 में हुई विमुद्रीकरण के बाद यह देश में बेरोजगारी पर किसी सरकारी एजेंसी की ओर से तैयार सबसे ताजा और व्यापक रिपोर्ट है।

  • रिपोर्ट के मुताबिक़ शहरों में बेरोजगारी की दर गावों के मुक़ाबले 2.5 फीसदी ज़्यादा है। 7.8 फीसदी शहरी युवा बेरोजगार हैं, तो वहीं गाँवों में ये आँकड़ा 5.3 फीसदी है।
  • इसके अलावा अखिल भारतीय स्तर पर पुरुषों की बेरोज़गारी दर 6.2 फीसदी जबकि महिलाओं के मामले में 5.7 फीसदी रही। ग्रामीण इलाकों की शिक्षित महिलाओं में साल 2004-05 से 2011-12 के बीच बेरोज़गारी की दर 9.7 से 15.2 फीसदी के बीच थी, जो साल 2017-18 में बढ़ कर 17.3 फीसदी तक पहुँच गई।
  • ग्रामीण इलाकों के शिक्षित युवकों में इसी अवधि के दौरान बेरोज़गारी दर 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच थी जो साल 2017-18 में बढ़ कर 10.5 फीसदी तक पहुंच गई।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के 15 से 29 साल की उम्र वाले युवकों में बेरोज़गारी की दर साल 2011-12 में जहां पाँच फीसदी थी, वहीं साल 2017-18 में ये दर बढ़ कर 17.4 फीसदी तक पहुंच गई। इसी उम्र की महिलाओं में यह दर 4.8 से बढ़ कर 13.6 फीसदी तक पहुंच गई।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय और राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय वृहद आर्थिक आंकड़े जैसे जीडीपी वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन और मुद्रास्फीति से जुड़े आंकड़े जारी करता है। वहीँ दूसरी तरफ एनएसएसओ स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू खर्च और सामाजिक एवं आर्थिक सूचकांकों से जुड़ी रिपोर्ट पेश करता है और सर्वेक्षण कराता है। ये संगठन सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार के तहत काम करते हैं।

हाल ही में, मंत्रालय ने केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय और राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय का राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय में विलय करने का फैसला किया है।

अन्य महत्वपूर्ण रिपोर्ट

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2017 से 2019 के दौरान भारत में नौकरियों पर संकट होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में 72 प्रतिशत, दक्षिण पूर्व एशिया में 46 प्रतिशत एवं पूर्वी एशिया में 31 प्रतिशत कर्मचारियों के पास अच्छे जॉब नहीं होंगे।

आईएलओ के वर्ल्ड एम्पलॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सहित कई दक्षिण-एशियाई देशों में अगले दो सालों में बेरोज़गार लोगों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना जताई गई है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि अनौपचारिक क्षेत्र के कारण दक्षिण एशिया में ग़रीबी कम करने में अब और मुश्किलें आएंगी। भारत, बांग्लादेश, कंबोडिया और नेपाल के 90 प्रतिशत श्रमिकों पर अनौपचारिक क्षेत्र की कमियों का असर होगा।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के डेटा के अनुसार भारत में श्रम बल भागीदारी दर लगभग 47 प्रतिशत है, जो वैश्विक मानक से काफी (66 फीसदी) कम है। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार के अवसरों में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी काफी कम हो गई है। कृषि क्षेत्र में पहले महिलाओं को ठीक-ठाक रोजगार मिल जाता था लेकिन वहाँ भी अब रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। दूसरी तरफ उद्योग, आधारभूत संरचना और निर्माण क्षेत्र में भी रोज़गार के अवसर कम होने से महिलाओं पर असर पड़ा है।

आखिर क्यों बढ़ रही है बेरोजगारी?

आज़ादी के बाद भारत ने नब्बे के दशक तक कृषि क्षेत्र पर ध्यान दिया ताकि देश की विशाल आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा किया जा सके। साल 1991 में उदारीकरण के आने के बाद देश में मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र ने गति पकड़ी। लेकिन सेवा क्षेत्र ने इतनी तेजी से गति पकड़ी, जिससे लगने लगा कि देश की अर्थव्यवस्था ने कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र की ओर छलांग लगा दी और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र बीच में ही छूट गया। जबकि विनिर्माण क्षेत्र ही श्रम की ज़्यादा गुंजाईश होती है।

अतः हमारे नीति निर्धारकों ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को गति प्रदान करने के लिए पश्चिमी देशों की तरह पूँजी प्रधान उद्योगों की ओर रुख किया। लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को श्रम प्रधान उद्योगों की ज़रूरत है। इस प्रकार गलत नीतियों ने बेरोजगारी की स्थिति को और भी गम्भीर बना दिया, जिसका असर मौजूदा वक़्त में भी देखा जा सकता है।

  • भारत में बेरोजगारी बढ़ने का एक मुख्य कारण निवेश का कम होना रहा है। दरअसल आज भी देश में अंग्रेज़ों के ज़माने जैसा ही श्रम कानून अस्तित्व में है।
  • बेरोजगारी की एक वजह श्रम बल में आधुनिक जरूरतों के अनुरूप कौशल विकास न हो पाना है।
  • ऑटोमेशन की वजह से भी रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। आज कंपनियाँ बड़ी तेजी से सॉफ्रटवेयर विकसित कर रही हैं जिसके द्वारा काम को मशीन के ज़रिए निपटाया जा सके। ऑटोमेशन की वजह से अगले तीन साल में भारत के आईटी सेक्टर में नौकरियों में 20-25 फीसदी की कमी आने की आशंका जताई गई है।
  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) बेरोजगारी बढ़ने का कारण रहा है।
  • इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स आदि ऐसे तकनीक विकसित हुए हैं जिसने भारत में बेरोजगारी को बढ़ाया है। आपको बता दें कि उद्योग जगत में रोबोट के बढ़ते इस्तेमाल के चलते 2030 तक पूरे विश्व में 80 करोड़ लोग प्रभावित होंगे जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा।
  • नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण के तुरंत बाद भारत की क्रय भागीदारी दर 45% तक गिर गई। कार्यशील आयु वर्ग जनसंख्या का 2% यानी लगभग 13 मिलियन श्रम बाजारों से बाहर निकल गया। ये वे लोग थे जो काम करने के इच्छुक थे और श्रम से जुड़े कार्य के अलावा कोई और काम नहीं करना चाहते थे।

बेरोजगारी का प्रभाव

बेरोजगारी भारत की अत्यंत गंभीर समस्या रही है जो समय के साथ-साथ बढ़ती जा रही है। कोई क्षेत्र या वर्ग इससे मुक्त नहीं रहा है। यह बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्र एवं शहरी क्षेत्र दोनों में नजर आ रही है। इसी प्रकार यह शिक्षित व अशिक्षित वर्गों के बीच में देखने को मिल रही है। बेरोजगारी के अनेक आर्थिक और सामाजिक दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं, जो व्यक्ति और समाज दोनों के लिए बहुत घातक प्रकृति के साबित हुए हैं।

  • व्यापक बेरोजगारी के हालात में राष्ट्रीय उत्पादन की मात्र कम हो जाती है, जिसका पूँजी-निर्माण, व्यापार, व्यवसाय आदि पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। गरीबी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
  • शिक्षित बेरोजगारी के संबंध में अतिरिक्त बर्बादी उन संसाधनों की भी होती है जो उनके कौशल और प्रशिक्षण में लगे होते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा के अभाव में बेरोजगार व्यक्ति प्रायः चोरी, डकैती, बेईमानी, शराबखोरी आदि बुराइयों का शिकार हो जाते हैं।

सरकारी प्रयास

भारत में बेरोजगारी की समस्या की गंभीरता को देखते हुए सभी सरकारों द्वारा इससे निपटने के कई प्रयास किए गए हैं।

  • केन्द्र सरकार ने उद्योगों की माँग के अनुरूप श्रम बल को विकसित करने के लिए साल 2015 में स्किल इंडिया प्रोग्राम की शुरूआत की।
  • केन्द्र सरकार द्वारा रोजगार के अवसर बढ़ाने हेतु प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इसके तहत विनिर्माण क्षेत्र के लिये 25 लाख रुपए और सेवा क्षेत्र के लिए 10 लाख रुपए तक के क़र्ज़ की व्यवस्था की गई है।
  • केन्द्र सरकार द्वारा कौशल विकास कार्यक्रम के तहत 2022 तक 500 मिलियन कुशल कार्मिक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • देश में अधिक से अधिक रोजगार के अवसर विकसित करने के लिए ‘स्टैण्डअप तथा स्टार्ट अप इंडिया प्रोग्राम’की शुरूआत की गयी है।
  • केन्द्र सरकार ने औद्योगिक इकाइयों के विकास के लिए ‘मेक इन इंडिया’कार्यक्रम शुरू किया है जिसके द्वारा व्यापार सुगमता, सरल लाइसेंसिंग, तकनीकों का बेहतर प्रयोग आदि पर बल दिया जा रहा है।
  • स्वयं का व्यवसाय शुरू करने हेतु सरकार मुद्रा योजना के तहत सूक्ष्म ऋण उपलब्ध करा रही है।
  • देश के लॉजिस्टिक क्षेत्र, श्रम सुधार, सिंगल विंडो सिस्टम, ऊर्जा उपलब्धता इत्यादि में सुधार करके सरकार ने सन् 2016 से लगातार विश्व बैंक के ईज ऑफ डूईंग बिजनेस इंडेक्स में अपनी रैंक को बेहतर बनाया है।
  • ठीक इसी तरह सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय ‘श्रमेव जयते कार्यक्रम’ के तहत रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए काम किया जा रहा है। यह श्रम सुविधा पोर्टल, आकस्मिक निरीक्षण, यूनिवर्सल खाता संख्या, प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना, पुनर्गठित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना संबंधी विषयों पर केंद्रित है।
  • सरकार ने बेरोजगारी दूर करने के लिए एक अन्य कार्यक्रम के रूप में प्रधानमंत्री युवा रोजगार योजना शुरू की है। इसका लक्ष्य 2016 से 2021 तक की अवधि में 7 लाख से अधिक प्रशिक्षुओं को उद्यमशीलता प्रशिक्षण और शिक्षा उपलब्ध कराना है।
  • ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकार ने साल 2005 में ‘महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम’के तहत मनरेगा योजना की शुरूआत की।
  • सरकार द्वारा श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए स्वयं सहायता समूहों का विकास किया जा रहा है और उन्हें सस्ती दरों पर क़र्ज़ उपलब्ध कराया जा रहा है।
  • इसी तरह सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा ग्रामीण परिवार की कम से कम एक महिला सदस्य को स्वयं सहायता नेटवर्क समूह में लाया जा रहा है।
  • ग़ौरतलब है कि जम्मू कश्मीर के युवाओं के लिये ‘हिमायत’तथा वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित युवाओं के लिये ‘रोशनी’योजना शुरू की गई है। जिससे कि वहाँ के युवाओं को रोजगार मिल सके।

बेरोज़गारी और कौशल विकास

भारत में आज 65% कार्यशील युवा आबादी है इस जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ इस युवा आबादी को कुशल बनाकर ही उठाया जा सकता है इस प्रकार ये आबादी न केवल अपना विकास करेगी बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी सहयोग कर सकेगी।

  • 15 जुलाई 2015 को कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा 'स्किल इंडिया' की शुरूआत की गई। इस मुहिम का लक्ष्य देश के युवाओं के कौशल विकास के लिए अवसर पैदा करना है।
  • स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत कुछ सफलता ज़रूर मिली लेकिन ये प्रगति नाकाफी साबित हुई। साल 2016 से 2020 के बीच एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन इस योजना के तहत लक्ष्य के आधे युवाओं को रोजगार नसीब नहीं हुआ।
  • आंकड़ों के अनुसार प्रशिक्षण हासिल करने वालों में से सिर्फ एक तिहाई को ही रोजगार मिल पाया है।

क्या किया जाना चाहिए?

व्यापार के बंद होने और अर्थव्यवस्था में आए बदलाव के कारण छूटने वाले नौकरियों को ही बेरोजगारी का एकमात्र कारण नहीं माना जा सकता।

  • बेरोजगारी का एक दूसरा अहम् कारण नौकरियों के लिये ज़रूरी कौशल की कमी भी है। अतः जरूरत इस कौशल के विकास की है।
  • सेवा क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर बढ़ाये जा सकते हैं। भारत के टेक्निशियन, नर्स, होटल कर्मचारियों आदि की विश्व के अनेक देशों में माँग है। सरकार की ओर से इनको बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • सरकार को चाहिए कि वह श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ देश में रोजगार, व्यावसायिक प्रशिक्षण और मानव संसाधन की गुणवत्ता के विकास पर भी ध्यान दे।
  • भारत में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार को दूरगामी नीतियाँ अपनाने की जरूरत है, जैसे कृषि क्षेत्र को लाभदायी बनाने के लिए किसानों को परंपरागत खेती से हटकर अच्छी कीमत दिलाने वाली सब्जियों, फल एवं अनाज के उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • मनरेगा जैसी योजनाओं को और मजबूत करके भी इस संकट को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है।
  • मध्य एशिया, पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका तक में भारत के कुशल श्रमिकों की बहुत माँग है। अभी तक यह रोजगार व्यक्तिगत स्तर पर प्राप्त किया जा रहा है जबकि चीन जैसे देश में सरकार की सहायता से अनेक लोग अफ्रीका से लेकर एशिया में रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। चीन ने ऐसे 65 देशों की पहचान की है, जहां चीनी निवेश के बहाने चीनी लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। भारत को भी ऐसी दीर्घकालिक नीति अपनानी होगी।