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Blog / 12 Oct 2019

(आर्थिक मुद्दे) कॉरपोरेट टैक्स में कटौती (Reduction in Corporate Taxes)

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(आर्थिक मुद्दे) कॉरपोरेट टैक्स में कटौती (Reduction in Corporate Taxes)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव), स्कंद विवेक धर (आर्थिक पत्रकार, हिंदुस्तान)

चर्चा में क्यों?

दुनिया के साथ-साथ भारत में भी मंदी की आहट सुनाई देने लगी है। लोगों की क्रय शक्ति लगातार घट रही है जिसके कारण उद्योगों के विकास का पहिया रुक गया है। कई कंपनियां ने लागत को घटाने के लिए कर्मचारियों की छटनी करना शुरू कर दी है। आर्थिक ग्रोथ का इंजन कहे जाने वाले ऑटोमोबाइल सेक्टर की विकास दर में लगातार 9 महीनों से गिरावट देखी जा रही है। इसके साथ ही कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करने वाले वस्त्र उद्योग की भी हालत खराब है। संक्षेप में भारत लगातार मंदी के चक्रव्यूह में फंसता जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की मंद गति एवं लगातार कम होते निवेश को बढ़ाने हेतु वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा हाल ही में उद्योग जगत के लिए कई घोषणा की गई। इसके साथ ही वित्त मंत्री ने बैंकों से देश भर के 400 जिलों में 'ऋण मेलों' को आयोजित करने का आग्रह किया। इन घोषणाओं का उद्देश्य आर्थिक समृद्धि एवं निवेश में तेजी लाना है। अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने के लिए सरकार के द्वारा उठाए गए इन कदमों को मिनी बजट की संज्ञा दी जा रही है। सरकार के इस कदम से सरकारी खजाने पर 1,45,000 करोड़ रुपये का असर पड़ने का अनुमान है।

वित्त मंत्री के द्वारा कॉर्पोरेट के सन्दर्भ की गई घोषणा:

  • आयकर अधिनियम में नया प्रावधान करते हुए घरेलू कंपनियों को 22% की दर से आयकर भुगतान करने का विकल्प प्रदान किया गया है। हालांकि इसके लिए आवश्यक शर्त यह है कि वे किसी भी अन्य प्रोत्साहन या कर छूट का लाभ नहीं लेंगे। सरचार्ज और सेस मिलाकर टैक्स की प्रभावी दर 25.17 फीसद होगी। इसके साथ ही ऐसी कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) का भी भुगतान नहीं करना होगा।
  • मेक इन इंडिया को बढ़ावा देते हुए विनिर्माण क्षेत्र में नए निवेश को आकर्षित करने के लिए आयकर अधिनियम में एक और नया प्रावधान किया गया है। इसके तहत नई कंपनियों को 15% की दर से आयकर भरने का विकल्प प्रदान किया जाएगा। यह लाभ उन्हीं कंपनियों को मिलेगा जो कोई अन्य प्रोत्साहन या छूट नहीं लेंगे और 31 मार्च 2023 से पहले परिचालन शुरू करेंगे। इन कंपनियों के लिये सरचार्ज और सेस मिलाकर टैक्स की प्रभावी दर 17.01 प्रतिशत होगी। साथ ही इन कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर देने की जरूरत नहीं होगी।
  • यदि कोई कंपनी कम की गई कर की दरों पर भुगतान करने के विकल्प का चयन नहीं करती हैं एवं कर छूट और अन्य प्रोत्साहन का लाभ उठाती हैं तो वह पुरानी दरों पर भुगतान करना जारी रख सकेंगे।
  • कर छूट एवं अन्य प्रोत्साहन का लाभ जारी रखने वाली कंपनियों को राहत प्रदान करते हुए न्यूनतम वैकल्पिक कर की दर 18.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दी गयी है।
  • पूंजी बाजार में निवेश को बनाए रखने के लिए सरकार ने सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) और कैपिटल गेन टैक्स पर भी राहत प्रदान की गई है। अब शेयर बिक्री के जिन सौदों पर सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) लगता है, उन पर बढ़ा हुआ सेस लागू नहीं होगा।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) को बेचे जाने वाली सिक्युरिटी या डेरिवेटिव्स सौदों पर होने वाले कैपिटल गेन को भी बढ़े हुए सेस से बाहर कर दिया गया है।
  • शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों को सरकार के द्वारा राहत प्रदान की गयी है। जिन कंपनियों ने 5 जुलाई 2019 से पहले बायबैक की घोषणा की है, उनको बायबैक पर टैक्स नहीं देना होगा।
  • सरकार के द्वारा कारपोरेट सामाजिक दायित्व के क्षेत्र का विस्तार किया गया है। कंपनियों को अब कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के तहत दो प्रतिशत राशि केंद्र या राज्य सरकार या किसी एजेंसी अथवा सार्वजनिक लोक उपक्रमों द्वारा वित्त पोषित इनक्यूबेशन सेंटर, विज्ञान, प्रौद्याोगिकी, इंजीनियरिंग या औषधि के क्षेत्र में शोध कर रहे सरकार से वित्त पोषित विश्वविद्यालयों, आईआईटी, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और डीआरडीओ, आईसीएआर जैसे संस्थानों के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त निकायों पर खर्च करने की भी छूट दी गयी है।
  • इसके साथ ही स्टार्टअप्स और उनके निवेशकों की समस्या को दूर करने के लिए एंजल टैक्स के प्रावधान को वापस करने का फैसला लिया गया है। इसके साथ ही यह भी घोषणा की गई है कि, स्टार्टअप्स की समस्याओं के समाधान के लिए एक प्रकोष्ठ बनाया जाएगा।

ऋण मेला

  • वित्त मंत्री के द्वारा आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए एवं मांग के सृजन हेतु लोगों को आसान ऋण उपलब्ध कराने की दिशा में पहल की शुरुआत की गई है।
  • लोगों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए उद्देश्य से 400 जिलों में ‘ऋण मेला’ लगाया जाएगा। इसके लिए बैंक और एनबीएफसी साथ मिलकर कर्ज लेने के इच्छुक लोगों को नकदी और ऋण उपलब्ध कराएंगे। बैंक कर्ज देने के इरादे से 29 सितंबर से पहले 200 जिलों में एनबीएफसी और खुदरा कर्जदारों के साथ बैठक करेंगे। दूसरे चरण में 10 अक्टूबर से 15 अकटूबर के बीच 200 अन्य जिलों में ऐसी बैठकें होंगी। कुल मिलाकर 400 जिलों में इस प्रकार की बैठकें होंगी।
  • कुल मिला जुला कर सरकार का यह प्रयास है कि त्योहारों के दौरान ज्यादा-से-ज्यादा कर्ज देना सुनिश्चित किया जा सके। दशहरे और दिवाली को खरीदारी का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस दौरानऋण मेले के माध्यम से खुदरा, कृषि, MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों), आवास एवं अन्य क्षेत्रों के लिए कर्ज उपलब्ध कराए जाएंगे।

अर्थव्यवस्था को राहत प्रदान करने के लिए सरकार के द्वारा उठाए गए अन्य कदम:

  • बीते दिनों वित्त मंत्री ने हाउसिंग क्षेत्र को सुस्ती से उबारने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की।
  • सरकार ने बैंकों से कहा कि वे मार्च, 2020 तक सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) के दबाव वाले कर्ज को नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) घोषित नहीं करें।
  • सरकारी बैंकों के विलय की भी घोषणा की है। इसके साथ ही इन बैंकों को वित्त भी उपलब्ध करवाया गया है।
  • अनुबंधित मैन्यूफैक्टरिंग में एफडीआइ को खोला गया है।
  • सिंगल ब्रांड रिटेल और कोल माइनिंग में भी एफडीआइ के नियम और अधिक उदार किये गए है।
  • आरबीआई के दिशानिर्देश के अनुसार एक अक्टूबर से बैंक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) सिस्टम की जगह एक्सटर्नल बेंचमार्क के आधार पर लोन की ब्याज दर तय करेंगे। इससे लोन की दर रेपो रेट जैसे किसी बेंचमार्क से जुड़ जाएगी।

सरकार ने यह कदम क्यों उठाया?

  • मंदी की ओर बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के फिलहाल बेहतर होने के संकेत नहीं नहीं मिल रहे थे। प्रमुख आठ आर्थिक संकेतकों के अध्ययन के बाद ब्लूमबर्ग न्यूज ने पाया कि इनमें से दो सूचक कमजोर बने हुए हैं जबकि अन्य पांच सूचकों में भी तेजी आती हुई नहीं दिख रही है। आर्थिक संकेतकों के संदर्भ में ब्लूमबर्ग न्यूज के अध्ययन से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है-
  • कारों की बिक्री में अगस्त माह में भी गिरावट जारी है।
  • बैंकों के द्वारा दिए गए ऋणों में गिरावट आई है जो ग्राहकों की क्रय शक्ति में कमी को दर्शाती है।
  • चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घटकर 5 फीसदी हो गई है जो पिछले 6 वर्षों का न्यूनतम स्तर है।
  • मई की तुलना में अगस्त में निजी क्षेत्र में गतिविधियां कमजोर पड़ी, जो नए व्यापारों में सुस्ती का सूचक है।
  • मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में कमजोरी का प्रभाव।
  • भारत का निर्यात अगस्त माह में 6.05 प्रतिशत घटकर 26.13 अरब डॉलर रह गया है।
  • ग्राहकों के खर्च में कमी आई है। बाजार शोधकर्ता नीलसन ने अपनी हालिया रिपोर्ट में 2019 के लिए उपभोक्ता माल क्षेत्र की अनुमानित विकास दर को घटाकर 9-10 फीसदी कर दी है। पहले अनुमान में 11-12 फीसदी विकास की बात कही गई थी। घटती विकास दर और नौकरी जाने के डर के बीच शहरी उपभोक्ताओं के खर्च में भी कटौती देखने को मिली है।
  • बीते साल जुलाई की तुलना में इस साल जुलाई में प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योगों के उत्पादन में 2.1 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। ये उद्योग देश का 40 फीसदी औद्योगिक उत्पादन करते हैं।
  • जून के बाद जुलाई में औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज की गई। जून में यह 1.2 फीसदी था जो जुलाई में बढ़कर 4.3 फीसदी हो गया।
  • वहीं पूंजीगत माल के उत्पादन में लगातार तीसरे महीने भी गिरावट जारी रही। औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े एक महीने की देरी से प्रकाशित किए गए हैं।

किन कारणों से भारत में आर्थिक मंदी के हालात उत्पन्न हुए?

  • अगर हम देखे तो संकट की शुरुआत यूपीए-2 के कार्यकाल से ही हो जाती है जहां पर 2009 से 2014 के बीच में अंधाधुन ऋण बांटे गए जिसके कारण 2014 के उपरांत एनपीए परिसंपत्तियों में व्यापक रूप से वृद्धि हुई।
  • रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन के सख्त रुख के कारण बैंकों ने अपनी बैलेंस शीट को दुरुस्त करना शुरू किया। इस काल में बैंकों के पुनर्पूंजीकरण पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके कारण एनपीए से त्रस्त बैंकों ने उद्योग जगत के लिए दिए जाने वाले ऋणों की मात्रा में कटौती कर दी।
  • यूपीए-2 के कार्यकाल में “नीतिगत अपंगता- Policy paralysis” के कारण आधारभूत अवसंरचना और उद्योग की परियोजनाएं रुकी हुई पड़ी थी। भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी मंजूरी सबसे बड़ी अवरोध थे। एनडीए के कार्यकाल में सबसे पहले इन अवरोधों को दूर करना था लेकिन इन अवरोधों को दूर नहीं किया जा सका। नतीजा यह हुआ कि बैंकों के एनपीए बढ़ने में इन परियोजनाओं में एक सक्रिय भूमिका निभाई और अंततोगत्वा इन परियोजनाओं को धन उपलब्ध करवाने वाली वित्तीय संस्था आईएलएंडएफएस दिवालिया हो गई।
  • निवर्तमान सरकार के द्वारा मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाएं कोई खास बदलाव नहीं कर सकी।
  • विमुद्रीकरण के कारण भारतीय अनौपचारिक अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से प्रभावित हुई। नोटबंदी से निवेशकों में एक अनिश्चितता का भय हुआ और निवेशकों ने बाजार से दूरी बना ली। नोटबंदी के साल कॉर्पोरेट निवेश में 60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
  • सरकार के द्वारा जीएसटी को अच्छे और सरल कर के रूप में परिभाषित किया गया। हालांकि जीएसटी ने छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों की मुश्किलों को बढ़ाने का ही काम किया। जीएसटी की अलग-अलग दरें एवं पहले ही दिन से नियमों के अनुपालन की अनिवार्यता ने व्यवसायों के समक्ष कई दिक्कतें प्रस्तुत की। वस्तुत: अभी भी जीएसटी में काफी सारे सुधार की जरूरत है।
  • एनपीए के संकट से जूझ रहे बैंकों को जब विमुद्रीकरण के उपरांत काफी नगदी प्राप्त हुई तो वे उद्योग देने में हिचकिचा रहे थे। मजबूरन उद्योग जगत को गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (एनबीएफसी) का रुख करना पड़ा। रियल एस्टेट में मंदी के कारण पहले से ही एनबीएफसी संस्थानों पर काफी दबाव था। कुल मिला कर एनबीएफसी संस्थानों पर भी संकट आ गया। रघुराम राजन ने मुद्रा योजना और एमएसएमई उद्योग सेक्टर में बैड लोंन के खतरों की आशंका को लेकर आगाह भी किया था।
  • निवर्तमान सरकार के द्वारा ग्रामीण भारत में नकदी के प्रवाह सुनिश्चित करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई गई वहीं दूसरी ओर मुद्रास्फीति को भी कम रखने की कोशिश की गई। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि क्रय शक्ति घटने के कारण मांग में गिरावट आने लगी। आमदनी नहीं बढ़ने के कारण लोगों के बचत और खर्च में कटौती आई।
  • सरकार के द्वारा विनिवेश के पक्ष पर ज्यादा बल नहीं दिया गया। नतीजा यह हुआ कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम अपने घाटे को कम दिखाने के लिए सरकारी बैंकों से लगातार ऋण लेती रही फलस्वरूप पूंजी का गैर-उत्पादक परिसंपत्तियों में निवेश होता रहा। इसके कारण एक ओर निजी उद्योगों के लिए उपलब्ध ऋण में कमी आई वहीं दूसरी और बैंकों के एनपीए में वृद्धि हुई।
  • सरकार के द्वारा सुस्त हो रही अर्थव्यवस्था को बूस्टर पैकेज देने के बजाय अर्थव्यवस्था से कर वसूली पर जोर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि निवर्तमान सरकार के कर नीतियों को “टैक्स आतंकवाद” की संज्ञा दी गई।

उद्योग जगत को दी गई छूट और ऋण मेला के क्या लाभ होंगे?

  • उद्योग जगत को कर छूट से राहत के निम्नलिखित लाभ होंगे
  1. कारपोरेट टैक्स की दरों में कमी से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में तेजी आएगी।
  2. टैक्स का भार कम होने से कंपनियां अब रिसर्च एंड डेवलपमेंट में ज्यादा खर्च कर सकेंगे जिससे उनके उत्पाद ज्यादा प्रतिस्पर्धी होंगे। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर हमारे उत्पाद अन्य देशों की तुलना में (उदाहरण के लिए चीन) कम प्रतिस्पर्धी होते हैं।
  3. कारपोरेट टैक्स की में कमी के कारण निवेशकों के लिए अमेरिका और आसियान के बाजारों की तरह भारत का बाजार भी उन्हें आकर्षित करेगा। इससे भारत में निवेश के अत्यधिक अवसर सृजित होंगे।
  4. भारत कारोबार शुरू करने और चलाने के लिए अत्यधिक आकर्षक स्थल बनेगा।
  5. मेक इन इंडिया अभियान को गति मिलेगी एवं विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि के साथ रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे
  6. इस पहल से भारतीय कंपनियों का भरोसा बढ़ेगाऔर वे निवेश से नए रोजगार सृजित करेंगी।
  • ऋण मेले के द्वारा सरकार खुदरा, कृषि, MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों), आवास एवं अन्य क्षेत्रों को कर्ज उपलब्ध करवाएगी जिसके निम्नलिखित लाभ होंगे-
  1. लोगों के द्वारा ऋण लेने से लोगों की क्रय क्षमता में वृद्धि होगी जिससे वे औद्योगिक वस्तुओं की मांग करेंगे।
  2. कृषि ऋण उपलब्ध करवाने से कृषि यंत्रों, वाहनों इत्यादि की मांग में वृद्धि होगी।
  3. विमुद्रीकरण और जीएसटी के दोहरे आघात से प्रभावित MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों) को राहत मिलेगी। MSME अपनी क्षमता और उत्पादन का संवर्धन करके रोजगार के नए अवसर प्रदान करेंगे।
  4. इसके साथ ही मंदी से जूझ रहे रियल एस्टेट सेक्टर को भी राहत मिलेगी।
  5. इसके साथ ही स्टार्टअप, नए व्यवसाय और औद्योगिक गतिविधियों के लिए ऋण उपलब्ध होने से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा एवं अर्थव्यवस्था में समृद्धि बढ़ेगी।

उद्योग जगत को दी गई छूट और ऋण मेला के कदम में निहित चिंताएं?

  • इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था पैराडॉक्स ऑफ थ्रिफ्ट से गुजर रही है। इस स्थिति में लोग अपने खर्च में कटौती करते हैं। बड़े वाहनों से लेकर बिस्कुट तक की बिक्री ना होना इस स्थिति का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व करती है। ऐसे में केवल व्यय के द्वारा मांग सृजित करना मात्र एक विकल्प नहीं होगा। उदहारण के लिए सरकार के द्वारा 2009 में बेतहाशा सरकारी खर्च एवं ऋण बाटा गया जिसका नकारात्मक प्रभाव बैंकों एवं राजकोषीय संतुलन पर पड़ा।
  • कटौती से सरकार के राजस्व में कमी आएगी जिसके कारण सरकार अपने सरकारी खर्चे को घटाने की कोशिश करेगी। फलस्वरूप सार्वजनिक निवेश में कमी आएगी।
  • सरकार की आय घटने से राजकोषीय अनुपालन हेतु सरकार के द्वारा बाजार से ऋण लिया जाएगा जिसके कारण क्राउडिंग आउट परिस्थिति पैदा होगी। फलस्वरूप निजी क्षेत्र को पुनः वित्त प्राप्त करने में कठिनाई होगी।
  • मुद्रास्फीति काफी तेजी से बढ़ेगी।
  • व्यापक तौर पर ऋण उपलब्ध करना पुनः बैंकिंग संकट को बढ़ावा देगी। छोटे-छोटे एनपीए मिलकर एक बड़े एनपीए का रूप ले लेंगे। वस्तुत अमेरिका का सबप्राइम संकट भी कहीं ना कहीं छोटे-छोटे ऋणों का सम्मिलित प्रभाव था, जिसने पूरी अमेरिका की अर्थव्यवस्था समेत पूरे विश्व को प्रभावित किया। लगातार बैंकिंग फ्रॉड के कारण वैसे ही हमारी बैंकिंग प्रणाली पर काफी प्रश्न चिन्ह उठ रहा है।

आगे की राह?

  • सरकार को ग्रामीण मांग पक्ष पर ज्यादा ध्यान देना होगा। ध्यातव्य है कि भारतीय जनसंख्या की लगभग 70% आबादी गांव में बसती है अतः जब तक ग्रामीण मांग पक्ष को बढ़ाएं नहीं जाएगा तब तक अर्थव्यवस्था की समृद्धि बढ़ाई जा सकती। अतः सरकार को ग्रामीण क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर निवेश करना चाहिए जिससे यहां पर अवसंरचना निर्माण के साथ-साथ औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाते हुए व्यापक स्तर पर रोजगार सृजित किए जा सके।
  • सरकार को वाहन उद्योग जीएसटी में छूट देनी चाहिए क्योंकि यदि गाड़ियां नहीं बिकेगी तो सरकार को राजस्व की प्राप्ति कैसे होगी? अगर दर घटाई जाए तो हो सकता है ज्यादा गाड़ियां बिकेगी और सरकार को ज्यादा राजस्व प्राप्त हो सकता है।
  • जीएसटी में सुधार करते हुए इसकी दरों को कम किया जाए मसलन अन्य देशों की तरह एक या दो दरें हो जिससे जीएसटी के के जटिलता कम होगी। इससे सरकार को अपेक्षित राजस्व के साथ-साथ व्यापारियों को भी लाभ मिलेगा। जीएसटी से जुड़ी दिक्कतों को भी कम करना चाहिए होगा।
  • सरकार को घाटे में चल रही कंपनियों के विनिवेश पर बल देना चाहिए एवं इन कंपनियों की रियल स्टेट परिसंपत्तियों को भी भुनाने की दरकार है। इससे ना केवल राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाया जा सकेगा बल्कि सरकार को बाजार से कम ऋण लेना होगा। इससे ब्याज दरों को निचले स्तर पर रखने में मदद मिलेगी।
  • सरकार को सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देना चाहिए। सार्वजनिक उपक्रमों के बजाय सरकार को सार्वजनिक प्राथमिकता वाले क्षेत्र जैसे कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
  • देश में उद्यमशीलता को बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है इस्पेक्टर राज का खात्मा किया जाए। भारत में जमीन खरीदने और बेचने की प्रक्रिया को उदार बनाने की आवश्यकता है। इसलिए भूमि उपयोग कानूनों में आवश्यक सुधार किया जाए। इसके साथ ही विभिन्न लाइसेंस संबंधित बाध्यकारी प्रावधानों को भी सीमित किया जाए। क्लियर लैंड टाइटल्स से भी उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
  • सरकार को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अन्य विभिन्न क्षेत्रों में भी बढ़ावा देना होगा उदाहरण के लिए मल्टी ब्रांड रिटेल सौ फीसद एफडीआई। इससे जहां एक और कृषि आपूर्ति शृंखला में सुधार होगा वहीं रोजगार के भी व्यापक अवसरों का सृजन होगा।