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Blog / 05 Dec 2019

(आर्थिक मुद्दे) जीडीपी : गहराती मंदी (GDP : Deepening Slowdown)

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(आर्थिक मुद्दे) जीडीपी : गहराती मंदी (GDP : Deepening Slowdown)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): मुहम्मद हलीम खां (पूर्व सचिव , भारत सरकार), स्कंद विवेक धर (आर्थिक पत्रकार, हिंदुस्तान अखबार)

चर्चा में क्यों?

हाल में साल 2019-20 के दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े जारी किए गए। नए आंकड़ों के मुताबिक जीडीपी विकास दर 4.5 फ़ीसदी पर आ गिरी है। इस गिरावट का असर लोगों की आमदनी, खपत और निवेश पर पड़ रहा है। इस गिरावट का जो सबसे बुरा प्रभाव है वह आम आदमी के रोज़गार पर पड़ा है।

क्या है जीडीपी?

जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे जरूरी पैमाना है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) किसी भी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का अंतिम मौद्रिक मूल्य है। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए।

भारत में कृषि, उद्योग और सर्विसेज यानी सेवा तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी की गणना दर तय होती है। ये आंकड़ा देश की आर्थिक तरक्की का संकेत देता है। आसान शब्दों में, अगर जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही के मुकाबले कम है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख है।

कोर सेक्टर में भी आ रही है गिरावट

बीते 31 अक्टूबर को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने अर्थव्यवस्था के आठ बुनियादी क्षेत्रों से जुड़े आंकड़े जारी किए। ये आंकड़े बताते हैं कि इस साल के सितंबर माह में पिछले साल के मुक़ाबले इन क्षेत्रों में 5.2 फ़ीसदी की गिरावट आई है। विशेषज्ञों का कहना है की देश में आर्थिक गतिविधियां कम हो रही हैं, जिसका असर इन बुनियादी क्षेत्रों पर भी पड़ रहा है।

कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफ़ाइनरी उत्पाद, खाद, स्टील, सीमेंट और बिजली जैसे क्षेत्र अर्थव्यवस्था के बुनियादी क्षेत्रों में शामिल हैं। देश की औद्योगिक दशा बताने वाले इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में इन आठ क्षेत्रों की हिस्सेदारी 40 फ़ीसदी है।

विनिर्माण यानी मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र का भी हो रहा है बुरा हाल

पिछले 2 सालों में पहली बार विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 1 फ़ीसदी की गिरावट देखने को मिली है। विशेषज्ञों की मानें तो मांग में कमी के चलते इस क्षेत्र में गिरावट देखने को मिल रही है। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखें तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में यह गिरावट भयावह साबित हो सकता है। यह आंकड़ा मेक इन इंडिया कार्यक्रम की समस्याओं को भी रेखांकित करता है।

बजट लक्ष्य भी अब पार हो रहे हैं

अप्रैल से अक्टूबर के दौरान केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा करीब 7.2 लाख करोड़ रुपए के स्तर तक पहुंच गया। जबकि साल 2019-20 के बजट मुताबिक राजकोषीय घाटे को 7.01 लाख करोड़ रुपए तक सीमित करना था। ऐसे में ‘5 ट्रिलियन डॉलर इकोनामी’ की राह आसान नहीं दिख रही है।

कृषि विकास दर: मामूली प्रगति

चालू वित्त वर्ष 2019 की दूसरी तिमाही में भारत की कृषि विकास दर 2.1 फ़ीसदी पर रही। जबकि पहली तिमाही में यह आंकड़ा 2 फ़ीसदी था। यानी इस सेक्टर में बहुत मामूली प्रगति देखी जा सकती है। सरकार का लक्ष्य 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का है। इस बाबत अशोक दलवाई की अगुवाई में एक समिति का गठन भी किया गया था। इस समिति ने कृषि आय को दोगुना करने के लिए कृषि विकास दर को 12 फ़ीसदी पर रखने की सिफारिश की थी। लेकिन आलम यह है कि औसत कृषि विकास दर 2 फ़ीसदी के आसपास ही चल रही है।

चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा कौन से कदम उठाए गए?

अर्थव्यवस्था की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं

  • कारपोरेट टैक्स में कटौती
  • आरबीआई द्वारा रेपो रेट में कटौती, जिसका मकसद व्याज दर में कमी लाना है
  • निजी पूंजी निर्माण में मदद करने के लिहाज से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70,000 करोड़ रुपए के नए पूंजी निवेश की योजना बनाई है।
  • रणनीतिक विनिवेश की नई प्रक्रिया को मंज़ूरी, बीपीसीएल समेत पांच सरकारी कंपनियों का रणनीतिक विनिवेश अब नई प्रक्रिया के तहत।
  • तरलता बढ़ाने, व्यक्तिगत कर अदायगी व्यवस्था को सरल बनाने और उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत

आगे क्या किया जाना चाहिए?

सरकार के मुताबिक विकास की धीमी रफ्तार का कारण वैश्विक मंदी है। जिसमें ‘चीन अमेरिका ट्रेड वार’ ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था का मौजूदा संकट मांग से जुड़ा हुआ है। ऐसे में, अगर सरकार कारपोरेट टैक्स में कमी जैसे कदम उठाती है तो मांग पक्ष के बजाय आपूर्ति पक्ष को ज्यादा फायदा होता है यानी मूल समस्या जस की तस बनी हुई है। इन एक्सपर्ट्स की सलाह है कि सरकार को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता में वृद्धि हो और मांग पर इसका सकारात्मक असर पड़े। उदाहरण के तौर पर ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ जैसे कदम सकारात्मक माने जा सकते हैं।

  • अन्य उपाय के तौर पर, मांग बढ़ाने के लिए लोगों की जेब में पैसा होना चाहिए और इसके लिए रोज़गार सबसे जरूरी कारक है। रोज़गार बढ़ाने के लिए सड़क, फ्लाई-ओवर, पुल जैसे निर्माण कार्यों में सरकार को निवेश बढ़ाना होगा। निर्माण क्षेत्र में निवेश से कई सेक्टरों को काम मिलता है।
  • निर्यात के क्षेत्र में भी सुस्ती बनी हुई है। इसलिए निर्यात को बढ़ावा देने के लिए हमें बेहतर नीतियों पर काम करना होगा।
  • जीएसटी से टैक्स की रिकवरी उतनी नहीं हुई जितनी उम्मीद थी। जिस कारण सरकार के पास फंड की दिक्कत है। जीएसटी सिस्टम को ठीक करना होगा। जीएसटी की समीक्षा के लिए सरकार ने हाल ही में एक समिति गठित की है।