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Blog / 24 Jan 2020

(आर्थिक मुद्दे) सीपीआई महंगाई : सवाल और चुनौतियां (CPI Inflation: Concerns and Challenges)

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(आर्थिक मुद्दे) सीपीआई महंगाई : सवाल और चुनौतियां (CPI Inflation: Concerns and Challenges)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व सचिव वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार), हरीश दामोदरन (वरिष्ठ पत्रकार, इंडियन एक्सप्रेस)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानीसीपीआई से जुड़े आंकड़े जारी किए गए। इसके मुताबिक, दिसंबर 2019 के दौरान समग्र खुदरा महँगाई 7.35 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। पूरे सीपीआई में सबसे ज्यादा वेटेज सबसे ज्यादा भूमिका खान-पान की चीजों की होती है और इसी में सबसे ज्यादा महंगाई दर्ज की गई है। खानपान के चीजों की महँगाई में दिसंबर 2019 के दौरान 14.12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जबकि नवंबर में यह आंकड़ा 10.01 फीसदी था।

महँगाई के पीछे एक बड़ा कारण बे-मौसम की बारिश

अन्य कारणों के अलावा, जानकार बे-मौसम की बारिश को खुदरा महँगाई में भारी वृद्धि के पीछे सबसे बड़ा कारण बता रहे हैं। दरअसल पिछले साल जून से सितंबर के दौरान आने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन में काफी देरी देखने को मिली, जिसकी वजह से खरीफ की फ़सलों की बुवाई में भी देरी हो गई। वहीं दूसरी ओर इसी मानसून ने अपने आखिरी वक्त में भारी बारिश की। जबकि शुरुआत में यह बारिश इतनी नहीं थी। उस वक्त फ़सलों को काटने का समय हो चुका था। इस कारण पकी फ़सलों को ज्यादा नुकसान हुआ। कुल मिलाकर उत्पादन पर काफी बुरा असर पड़ा जिसके कारण कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है।

खुदरा मुद्रास्फ़ीति में तेजी के क्या प्रभाव हो सकते हैं?

खुदरा महँगाई में बढ़ोतरी के चलते कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था के लिए कई तरह की दिक्कतें पैदा कर सकती है। सबसे पहला, आरबीआई के सामने मजबूरी हो जाएगी कि वह ब्याज दरों में कटौती नहीं कर सकता। दरअसल बात यह है कि कोई केंद्रीय बैंक महंगाई के दौरान ब्याज दर में कटौती करने का जोखिम इसलिए नहीं उठा सकता है कि ब्याज में कटौती के चलते फिर महंगाई में तेजी का खतरा बना रहता है।

खान-पान की वस्तुओं की कीमतों में इज़ाफा से किसानों को थोड़ा लाभ होने की उम्मीद है, यानी ग्रामीण आय में थोड़ी बहुत वृद्धि की अपेक्षा है। लेकिन साथ ही सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कीमतें एक उचित सीमा में रहे।

क्या होता है WPI और CPI?

WPI: इन दोनों सूचकांकों के ज़रिए मुद्रास्फ़ीति यानी महँगाई की गणना की जाती है। थोक स्तर पर सामानों की कीमतों का आकलन करने के लिए थोक मूल्य सूचकांक यानी WPI का इस्तेमाल किया जाता है।

दरअसल किसी भी अर्थव्यवस्था में सभी सामानों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को मापना एक भागीरथ-कर्म होगा। इसलिये थोक मूल्य सूचकांक में एक नमूने को लेकर मुद्रास्फ़ीति को मापा जाता है। मुद्रास्फ़ीति यानी महँगाई को मापने के लिए एक आधार वर्ष तय किया जाता है। इसी आधार वर्ष की तुलना में मौजूदा मुद्रास्फ़ीति को मापा जाता है। इसमें मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों को सबसे ज़्यादा भार (weightage) दिया जाता है। इसे आर्थिक सलाहकार कार्यालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है।

CPI: ख़ुदरा स्तर पर महँगाई मापने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई का इस्तेमाल किया जाता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई का जुड़ाव सीधे तौर पर उपभोक्ता से होता है। ये सूचकाँक आम उपभोक्ता पर मुद्रास्फ़ीति के प्रभाव को बेहतर तरीके से मापने में सक्षम होता है। इसमें खाद्य और पेय पदार्थों को सबसे ज़्यादा भार (weightage) दिया जाता है। इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है।

खुदरा महँगाई के संबंध में आरबीआई की भूमिका

खुदरा महँगाई को नियंत्रित करने में आरबीआई की एक बड़ी भूमिका होती है। रिजर्व बैंक की ज़िम्मेदारी होती है कि वह खुदरा महँगाई को 4 फ़ीसदी के आस-पास रखे, इसमें 2 फ़ीसदी की कमी या बढ़ोतरी हो सकती है।

मुद्रास्फ़ीति को मापा जाना क्यों जरूरी होता है?

मुद्रास्फ़ीति को मापकर कई मकसद साधे जाते हैं-

  • आम आदमी का जीवन स्तर यानी घरेलू जीवन स्तर कैसा है और उसके लिए क्या किया जाना चाहिए?
  • राजकोषीय नीतियाँ किस प्रकार की बननी चाहिए?
  • मौद्रिक नीतियाँ किस प्रकार की बननी चाहिए?

तो क्या अर्थव्यवस्था ‘स्टैगफ्लेशन’ की तरफ बढ़ रही है?

कुछ जानकारों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब ‘स्टैगफ्लेशन’ की स्टेज में बढ़ रही है। ‘स्टैगफ्लेशन’ शब्द 2 शब्दों - ‘स्टैग्नेशन’ और ‘इन्फ्लेशन’ से मिलकर बना है। किसी भी अर्थव्यवस्था के स्टैगफ्लेशन में चार समानांतर स्थितियाँ शामिल होती हैं-

  • जब विकास दर मंद पड़ने लगती है,
  • मांग में कमी आने लगती है,
  • बेरोज़गारी बढ़ने लगती है, और साथ ही
  • महँगाई कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है

मौजूदा वक्त में जहां लोगों के खर्च में कमी आई है, बेरोज़गारी में बढ़ोतरी हुई है, निवेश में कमी आई है तो वहीं दूसरी तरफ मुद्रास्फ़ीति यानी महँगाई में बढ़ोतरी हुई है। बहरहाल कुछ विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि सिर्फ एक-दो के महीनों के आंकड़े से स्टैगफ्लेशन जैसी निर्णय पर नहीं पहुँचना चाहिए।

आगे क्या किया जा सकता है?

खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में आई ये तेजी पहले से ही कमज़ोरी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था के लिए कोढ़ में खाज का काम रही है। महंगाई की समस्या से निपटने के लिए सरकार को पहले के मुकाबले और प्रभावी कदम उठाने होंगे।

  • सबसे पहले तो सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूंकनी होगा।
  • मनरेगा, स्वास्थ्य, शिक्षा और मूलभूत ढांचे के संबंध में बजट में इज़ाफा करना चाहिए।