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Blog / 17 Aug 2019

(आर्थिक मुद्दे) 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था - चुनौतियाँ और सवाल (5 Trillion Dollar Economy - Challenges and Concerns)

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(आर्थिक मुद्दे) 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था - चुनौतियाँ और सवाल (5 Trillion Dollar Economy - Challenges and Concerns)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)

अतिथि (Guest): परंजय गुहा ठाकुरता (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार), स्कंद विवेक धर (आर्थिक संवाददाता - हिंदुस्तान अखबार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक़ जीडीपी की वैश्विक रैंकिंग में भारतीय अर्थव्यवस्था फिसलकर सातवें पायदान पर पहुंच गई। वित्त वर्ष 2018 के लिए जारी इन आंकड़ों में अमेरिका शीर्ष स्थान पर और ब्रिटेन तथा फ्रांस क्रमशः पांचवें और छठे स्थान पर काबिज़ हैं। ग़ौरतलब है कि साल 2017 के इसी रैंकिंग में भारत ने फ्रांस को पछाड़ते हुए छठवां स्थान हासिल किया था। ये आंकड़ा ऐसे वक्त में आया है जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने काएजेंडा लेकर चलरहा है। ऐसे में,ये रैंकिंग भारत को थोड़ा निराश करने वाली है।

5 खरब डालर अर्थव्यवस्था की संकल्पना

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण के दौरान देश को साल 2024 तक 'फाइव ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी' यानी 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही।

  • हालांकि बजट के पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कई कार्यक्रमों के दौरान इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने की बात कह चुके थे।
  • बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री का तर्क था कि भारत ने आज़ादी के बाद आर्थिक क्षेत्र में तीव्र वृद्धि नहीं की। इसका नतीजा यह रहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने में 55 सालों का समय लग गया, जबकि इसी दौरान चीन की अर्थव्यवस्था बड़ीतेज़ी से आगे बढ़ी।
  • ऐसे में, आर्थिक क्षमता सीमित होने केचलते अक्सर देश के तमाम क्षेत्रों मसलन रेलवे, सामाजिक क्षेत्र, रक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर में ज़रूरी संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाए।
  • सरकार का मानना है कि अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करके संसाधनों की कमी को दूर किया जा सकता है।

इसके लिए सरकार ने कौन से कदम उठाए हैं?

देश 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बन पाएगा, इस बाबत सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण और बजट में अपने तमाम नीतियों को देश के सामने रखा है। इस बार के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था के तमाम आयामों मसलन रोजगार सृजन, बचत, उपभोग और मांग जैसे विषयों को अलग अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। साथ ही, अगर हम 8 फीसदी विकास दर पाने में कामयाब रहे तो 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनना हमारे लिए कोई मुश्किल बात नहीं। हालांकि इससे अलग कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसके लिए 8 फ़ीसदी नहीं बल्कि 12 फ़ीसदी की विकास दर चाहिए।

  • सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान देते हुए अकेले प्रधानमंत्री आवास योजना में ही 1.95 करोड़ आवासों के निर्माण का लक्ष्य तय किया है। साथ ही,होम लोन के ब्याज भुगतान पर 1.5 लाख रुपए की अतिरिक्त कटौती को भी मंज़ूरी दी गईहै।
  • ‘स्टडी इन इंडिया’ पहल के तहत निजी उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये कई एलान किए गए हैं। इसके अलावा, विश्वस्तरीय संस्थानों के निर्माण और ‘खेलो भारत’ योजना के तहत खेल विश्वविद्यालयों की भीस्थापना की जा रही है।
  • सरकार ने एक संप्रभु ऋण बाज़ार की स्थापना का भी ऐलान किया है। इसके तहत सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार से कर्ज लेकर देश में निजी निवेश के लिए धन मुहैया करवाएगी। इस प्रकार ब्याज दर में कमी लाने में मदद मिलेगी।
  • इसके अलावा निजी पूंजी निर्माण में मदद करने के लिहाज से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70,000 करोड़ रुपए के नए पूंजी निवेश की योजना बनाई है।
  • मौजूदा वक्त में निजी क्षेत्र कर्ज़ के दबाव और पूंजी की कमी की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में, पूंजी निर्माण के लिये सरकार को विदेशी पूंजी को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना होगा। इसलिये सरकार कई क्षेत्रों खासकर बीमा, विमानन और एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही है।
  • एमएसएमई पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ सरकार ने श्रम सुधार की दिशा में भी कई कदम उठाए हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बल देने के लिहाज से 44 श्रम कानूनों को मिलाकर चार संहिताओं के रूप में बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
  • 400 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले छोटे उद्यमों के लिये कॉर्पोरेट कर को घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • सरकार ने रेलवे के आधुनिकीकरण के लिये करीब 50 लाख करोड़ रुपए के निवेश की ज़रूरतबताई है। इस तरह,रेलवे के संसाधनों में बढ़ोत्तरी के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी PPP का प्रस्ताव किया गयाहै।

इस राह में चुनौतियां क्या क्या हैं?

सरकार के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के संबंध में कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत को GDP के लगभग 8 फीसद की वृद्धि दर की जरूरत होगी। मौजूदा वक्त में कई अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने की बात कर रहे हैं, साथ ही ऐसे हालत में उच्च आर्थिक वृद्धि दर को प्राप्त करने को एक कठिन चुनौती भी मानते हैं।

  • वैश्विक हालात: अमेरिका-चीन के ट्रेड वॉर के चलते निर्यात आधारित विकास कमजोर होने के संकेत हैं। साथ ही, ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन के प्रधानमंत्री बनने के कारण दुनिया की इकॉनमी पर असर देखने को मिल रहा है। साल 2014 से लेकर 2017 तक कच्चे तेल के दाम देश की अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल थे, लेकिन उसके बाद इनके दामों में तेजी के चलते महंगाई बढ़ने लगी। परेशानी यहां पर सबसे बड़ी ये है कि दुनिया भर में विकास दर की रफ्तार धीमी पड़ रही है, और कमोबेश इसका असर भारत पर भी देखा जा सकता है।
  • कड़े आर्थिक सुधार: नवंबर 2016 में सरकार ने नोटबंदी का ऐलान किया था। इससे आम लोगों के रोजगार पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था, लिहाजा उनके आय में भी कमी हुई थी। इस वजह से मांग में काफी कमी देखने को मिली थी। इसके अलावा, जुलाई 2017 में जीएसटी सुधार ने एक्सपोर्ट ग्रोथ पर भी नकारात्मक असर डाला। जीएसटी रिफॉर्म के चलते आयातकों को रिफंड में देरी हुई।
  • कड़े नीतिगत मानक: मौद्रिक नीति का पूरा ध्यान मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर था जिससे ब्याज दरों के स्तर पर सख्ती बनी रहे। साथ ही, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर राजकोषीय घाटा बहुत ज़्यादा रहा। सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ने की वजह से केंद्र सरकार द्वारा व्यय में वृद्धि करना थोड़ा मुश्किल रहा। कड़े आर्थिक सुधारों और नीतिगत मानकों के चलते देश में उपभोक्ता मांग और निवेश मांग में अभी भी कमी बनी हुई है।
  • धीमा बैंकिंग सुधार: साल 2018 से पहले एनपीए को लेकर बैंकों का काफी बुरा हाल रहा। हालांकि वित्त वर्ष 2018-19 में एनपीए अनुपात में थोड़ा सुधार जरूर देखने को मिला, लेकिन तभी एनबीएफसी के संकट ने एक नई मुसीबत को सामने ला दिया। म्यूचुअल फंड, बैंक और कॉर्पोरेट सेक्टर से जुड़े होने के नाते इस नई मुसीबत का व्यापक असर महसूस किया जा सकता है।
  • कृषि और सेवा क्षेत्रों में सुस्ती: जलवायु परिवर्तन ने मॉनसून की रफ्तार को बिगाड़ रखा है जिसका असर भारतीय कृषि को भुगतान पड़ रहा है। साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा हिस्सा रखने वाले सेवा क्षेत्र में हालात बहुत अच्छे नहीं हैं।

निष्कर्ष

बहरहाल, मौजूदा हालातों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं। लेकिन फिर भी 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना कोई असंभव बात नहीं है। लेकिन आठ फ़ीसदी की वृद्धि दर के लिए सरकार को बहुआयामी मोर्चे पर काम करना होगा।