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Blog / 08 Sep 2019

(Wide Angle with Expert) दक्षिणी चीन सागर विवाद - द्वारा विवेक ओझा (South China Sea Dispute by Vivek Ojha)

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(Wide Angle with Expert) दक्षिणी चीन सागर विवाद - द्वारा विवेक ओझा (South China Sea Dispute by Vivek Ojha)


विषय का नाम (Topic Name): दक्षिणी चीन सागर विवाद - द्वारा विवेक ओझा (South China Sea Dispute by Vivek Ojha)

विशेषज्ञ का नाम (Expert Name): विवेक ओझा (Vivek Ojha)


हाल ही में ( फरवरी से जुलाई 2019 के मध्य चार बार ) चीन ने फिलीपींस के सिबुतू जलडमरूमध्य में अपने युद्धपोत भेज कर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया है । फिलीपींस ने आरोप लगाया है कि उसके अनन्य आर्थिक क्षेत्र में चीन के 2 अनुसंधान पोत काम कर रहे हैं । फिलीपींस इस मामले को चीन के साथ फिर से उठाने को तैयार है।

जुलाई , 2019 में ही चीन का समुद्री सर्वेक्षण पोत वियतनाम के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में वैनगार्ड बैंक में अवैध तरीके से प्रवेश कर गया है जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया । वैनगार्ड बैंक स्पार्टले द्वीप पर स्थित है । वियतनाम यहां तेल अन्वेषण परियोजना चलाना चाहता है जिसमें चीन बाधा पैदा कर रहा है ।

इसके अलावा हाल में चीन और मलेशिया के बीच लूकोनिया शोल और चीन फिलीपींस के बीच रीड बैंक को लेकर भी विवाद बढ़ गया है ।

दक्षिण चीन सागर विवाद दुनिया के सबसे बड़े महासागरीय विवाद के रूप में माना जाता है । चीन के दक्षिण में स्थित सागर जो प्रशांत महासागर का भाग है , को ही दक्षिण चीन सागर कहते हैं । चीन से लगे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और उनके द्वीपों को लेकर भी चीन और वियतनाम , इंडोनेशिया , मलेशिया, ब्रूनेई दारुसल्लाम, फिलीपींस , ताइवान , स्कार्बोराफ रीफ आदि क्षेत्रों को लेकर विवाद है । लेकिन मूल विवाद की जड़ है दक्षिण चीन सागर में स्थित स्पार्टले और परासेल द्वीप ।

चीन ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अतिक्रमण कर वहां अपनी संप्रभुता के दावों के लिए नौ स्थानों पर डैश या चिन्ह लगाकर विवाद को बढ़ा दिया है इसलिए इस विवाद को नाइन डैश लाइन विवाद भी कहते हैं । चीन का नाइन डैश लाइन यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी , 1982 के एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन की मान्यता का खंडन करता है । चीन की निगाह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के ईईजेड और साउथ चाइना सी के द्वीपों में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों , प्राकृतिक तेल , गैस , मत्य संसाधनों पर है ।

इसलिए हाल में स्पारटले और पारासेल के अलावा चीन और वियतनाम के बीच वैनगार्ड बैंक को लेकर , चीन फिलीपींस के बीच रीड बैंक को लेकर , मलेशिया के साथ लूकोनिया शोल को लेकर , ताइवान के साथ स्कारबोराफ रीफ के स्वामित्व को लेकर विवाद है ।

चीन और उसकी ऊर्जा सुरक्षा के प्रति रणनीति

चीन को प्राकृतिक तेल की आपूर्ति मध्य पूर्व से होती है , और मलक्का जलडमरुमध्य के रास्ते से होता है । अक्सर अमेरिका चीन को चेतावनी देता है कि वह मलक्का जलडमरुमध्य को ब्लॉक कर देगा जिससे चीन की ऊर्जा आपूर्ति रुक जाएगी । इसलिए चीन दुनिया भर के अन्य देशों में अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर सजग और आक्रामक हुआ है ।

यही कारण है कि चीन को दक्षिण चीन सागर में अपने भू आर्थिक और भू सामरिक हित दिखाई देते हैं । दक्षिण चीन सागर में 11 बिलियन बैरेल प्राकृतिक तेल के भंडार है, 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार है , जिसके 280 ट्रिलियन क्यूबिक फीट होने की संभावना व्यक्त की गई है । यह क्षेत्र ऐसा हैं जहां से हर वर्ष 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संभव होता है। यहां स्थित महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सुगमता होती है । यह क्षेत्र अपार मत्स्य संसाधन वाला क्षेत्र है । इसलिए चीन इस प्रकार के क्षेत्रों में रुचि रखता है । चीन ने दक्षिण चीन सागर के द्वीपों में कई प्रकार के अवैध कार्य किए हैं । अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए चीन ने यहां कृत्रिम द्वीप बनाए हैं , संसाधन अन्वेषण के लिए सर्वे भी किए हैं ।

विवाद में शामिल पक्ष

चीन ने वर्ष 2018 में दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र में पहली बार अपना बम वर्षक विमान H-6K तैनात कर दिया है । इन विमानों की रेंज उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और अमरीकी द्वीप गुआम तक बताई गई गई । अमरीका ने चीन के इस क़दम के बाद अपने युद्धक जहाज़ों को चीन के बनाए गए कृत्रिम द्वीपों की ओर रवाना किया था ।

बीते एक दशक से चीन लगातार दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभाव बनाता रहा है. इस क्षेत्र में तनाव लगातार बना हुआ है और अमरीका सबसे पहले अपने युद्धक जहाज़ों को भेजकर फ़्रीडम ऑफ़ नैविगेशन की बात करता है. लेकिन आज अमरीका के साथ इस मुद्दे पर ज़्यादा देश खड़े हुए नज़र नहीं आते हैं. अमरीका का ख़ास दोस्त ऑस्ट्रेलिया भी चीन की ओर इस तरह की कार्रवाई से झिझकता है. हालांकि, ब्रिटेन कभी-कभी अपने पोत अमरीका के साथ भेजता है. ऐसे में अमरीका अपने आपको इस मुद्दे पर अकेला पाता है. यही नहीं, अमरीका, डोनल्ड ट्रंप की सरकार में एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपना नेतृत्व बनाए रखने में रुचि खोता जा रहा है।

बीते एक दशक से इस क्षेत्र में तनाव बना हुआ है. चीन की कृत्रिम द्वीप बनाने की कोशिशों, नौसेना के आधुनिकीकरण, जहाज़ों की पेट्रोलिंग और 2010 में बनाया गया सबसे बड़ा एयरक्राफ़्ट कैरियर. इस तरह से इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ता रहा है और इसका तनाव सभी तटीय देशों के संबंधों में नज़र आता है. मगर ये कहना भी ज़रूरी है कि इस क्षेत्र पर बाकी पांच देश भी अपना दावा करते हैं और सभी ऐसी कोशिशें कर रहे हैं, फ़र्क़ इतना है कि चीन की हैसियत बहुत ज़्यादा है।

25 मार्च , 2018 तक चीन के तमाम फ़ाइटर प्लेन जैसे, एच-6के बॉम्बर, एसयू-30 और एसयू-35 फ़ाइटर प्लेन बेहद सक्रिय हो चुके थे। चीन के लड़ाकू विमानों ने पश्चिमी प्रशांत महासागर के एक बड़े हिस्से का चक्कर लगाया।चीन के विमानों ने दक्षिणी चीन सागर से लेकर जापान के दक्षिणी द्वीपों के बेहद क़रीब तक उड़ान भरी थी।

चीन के लड़ाकू विमानों की इस उड़ान का मक़सद था, अमरीका समेत पूरी दुनिया को ये संदेश देना कि दक्षिणी चीन सागर पर उसी का हक़ हैऔर इसमें दखल की जुर्रत कोई न करे। चीन के इस कड़े रुख़ की वजह अमरीका ने मुहैया कराई थी । 23 मार्च , 2018 को अमरीकी जंगी जहाज़ फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन, दक्षिणी चीन सागर में चीन के बनाए आर्टिफ़िशियल द्वीप के बेहद क़रीब से गुज़रा थे । चीन का आरोप था कि अमरीका ने जंगी जहाज़ भेजकर उसकी संप्रभुता और सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश की और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

दक्षिण चीन सागर के महत्व का अवलोकन

इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला समंदर का ये हिस्सा, क़रीब 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इस पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताईवान और ब्रुनेई अपना दावा करते रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण इस समुद्री इलाक़े में जीवों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं।

आज से तीन-चार साल पहले तक इस इलाक़े को लेकर इतनी तनातनी नहीं थी. फिर अचानक, क़रीब तीन साल पहले चीन के समंदर में खुदाई करने वाले जहाज़, बड़ी तादाद में ईंट, रेत और बजरी लेकर दक्षिणी चीन सागर पहुंचे। फिर इन जहाजों ने एक छोटी समुद्री पट्टी के इर्द-गिर्द, रेत, बजरी, ईंटों और कंक्रीट की मदद से बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया। यहां सबसे पहले एक बंदरगाह बनाया गया फिर हवाई जहाज़ों के उतरने के लिए हवाई पट्टी। देखते ही देखते, चीन ने दक्षिणी चीन सागर में एक आर्टिफ़िशियल द्वीप तैयार कर के उस पर सैनिक अड्डा बना लिया।

दक्षिण चीन सागर में चीन ने धीरे-धीरे करके कई छोटे द्वीपों पर सैनिक अड्डे बना लिए। आज हालात ये बन पड़े हैं कि दक्षिणी चीन सागर पर कई देश दावेदारी कर रहे हैं। चीन ने वर्ष 2016 में इस छोटे से सागर पर मालिकाना हक़ के एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के निर्णय को मानने से इनकार कर दिया था । हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने फैसले में कहा था कि चीन अवैधानिक तरीके से दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के जायज अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है । चीन ने इस फैसले को सिरे से खारिज कर दिया था । गौरतलब है कि भारत के विदेश मंत्रालय ने भी आधिकारिक रूप से कहा था कि जिसे चीन दक्षिण चीन सागर कह रहा है , फिलीपींस सागर है ।

यहां यह जानना भी जरूरी है कि सिर्फ़ तेल और गैस ही नहीं, दक्षिणी चीन सागर में मछलियों की हज़ारों नस्लें पाई जाती है। दुनिया भर के मछलियों के कारोबार का क़रीब 55 फ़ीसदी हिस्सा या तो दक्षिणी चीन सागर से गुज़रता है, या वहां पाया जाता है।इसलिए बात अब सिर्फ़ गैस और तेल की नहीं है । चीन और फिलीपींस के बीच स्कारबोरफ शोल नामक मत्स्य संसाधन बहुल क्षेत्र को लेकर दक्षिण चीन सागर में विवाद रहे हैं । 2012 में चीन ने अपने तट से 500 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे से द्वीप स्कारबोरफ शोल पर जहाज़ भेजकर क़ब्ज़ा कर लिया। वैसे तो ये विशाल दक्षिण चीन सागर में एक छोटा सा टीला है लेकिन इसे लेकर फिलीपींस से चीन के तनाव लंबे समय तक बने रहे । इस इलाक़े में चीन और फिलीपींस के जंगी जहाज़ एक-दूसरे के मुक़ाबले खड़े रहे हैं ।हालात युद्ध तक के बन गए क्योंकि स्कारबोरफ शोल फिलीपींस के ज़्यादा क़रीब है। इसलिए फ़िलीपींस इस पर अपना हक़ छोड़ने को तैयार नहीं है । स्कारबोरफ शोल की अहमियत इसलिए है, क्योंकि मछली पकड़ने निकलने वाले जहाज़ अगर समुद्री तूफ़ान में फंसते हैं, तो ये टीला उनके लिए डूबते को तिनके के सहारे जैसा काम करता है । फिलीपींस ने चीन को इस मामले पर पीसीएस में घसीट लिया था। इस इंटरनेशनल ट्राईब्यूनल की सुनवाई में चीन शामिल नहीं हुआ था ।

दक्षिणी चीन सागर, प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच स्थित बेहद अहम कारोबारी इलाक़ा भी है. दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 फ़ीसदी हिस्सा यहां से गुज़रता है.

2016 में दक्षिणी चीन सागर से होकर 6 ख़रब डॉलर का समुद्री व्यापार गुज़रा था. इस इलाक़े में अक्सर अमरीकी जंगी जहाज़ गश्त लगाते हैं, ताकि समुद्री व्यापार में बाधा न पहुंचे. मगर, चीन इसे अमरीका का आक्रामक रवैया कहता है।

चीन के गतिविधि का नकारात्मक असर

चीन लगातार दक्षिणी चीन सागर में कंक्रीट, रेत, और मलबा डालकर कृत्रिम द्वीप बना रहा है। समुद्र ने उथले इलाक़ों में मलबा डाल-डालकर चीन ने क़रीब 3 हज़ार वर्ग हेक्टेयर की नई ज़मीन तैयार कर ली है । इसमें उसने तीन रनवे बना लिए हैं, जिन पर जंगी जहाज़ उतर सकते हैं। इनके लिए ईंधन टैंक, मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी दक्षिणी चीन सागर में बनावटी द्वीपों में चीन ने लगाए हैं।