(Wide Angle with Expert) अफ़ग़ान संकट: द ग्रेट गेम (भाग - 2) - द्वारा विनय सिंह (Afghan Crisis: The Great Game "Part - 2" by Vinay Singh)
विषय का नाम (Topic Name): अफ़ग़ान संकट: द ग्रेट गेम (भाग - 2) (Afghan Crisis: The Great Game "Part - 2")
विशेषज्ञ का नाम (Expert Name): विनय सिंह (Vinay Singh)
19 वीं सदी का अफ़ग़ानिस्तान
19वीं सदी में भारत ब्रिटेन का औपनिवेश था। 1820 तक आते - आते मराठे भी पूरी लड़ाई हार चुके थे और अंग्रेज़ों को चुनौती देने वाली कोई शक्ति नहीं थी। ब्रिटेन के अलावा एक और बड़ा साम्राज्य रूस के रूप में उस वक़्त मौजूद था। अफ़ग़ानिस्तान की भौगोलिक स्थिति इन दोनों साम्राज्यों (ब्रिटेन और रूसी साम्राज्य) को अफ़ग़ानिस्तान से अलग करता है, जिसे बफ़र स्टेट कहते हैं। रूसी साम्राज्य और ब्रिटेन के साम्राज्य में यूरोप में वर्चस्व की लड़ाई जारी थी, जिसका प्रभाव अफ़ग़ानिस्तान पर पड़ा।
19 वीं सदी में ब्रिटेन और रूस के अफ़ग़ानिस्तान में हित – ग्रेट गेम
मौजूदा वक़्त में जैसे महाशक्तियां अफ़ग़ानिस्तान में प्रभुत्व बनाने की प्रयास कर रही हैं, ऐसे ही 19 वीं सदी में भी ब्रिटेन और रूस जैसी महाशक्तियां अफ़ग़ानिस्तान में अपने हितों को लेकर अपना प्रभुत्व क़ायम करना चाहती थी और अफ़ग़ानिस्तान इस पूरे मंज़र को आज की ही तरह एक मूक दर्शक की तरह देख रहा था।
ब्रिटेन के अफ़ग़ानिस्तान में हित
अफ़ग़ानिस्तान में ब्रिटेन की रूचि स्वाभाविक थी, क्यूंकि इससे ब्रिटिश राज को विदेशी सीमा की सुरक्षा का ख़तरा था। दरअसल उस वक़्त ब्रिटेन वैज्ञानिक सीमा कहे जाने वाले हिन्दू कुश के दर्रे की रक्षा चाहता था। इसके अलावा 1860 के बाद अंग्रेज़ों ने भारत में निवेश काफी बढ़ा दिया था, ऐसे में ब्रिटेन अफ़ग़ानिस्तान के ज़रिए कोई संकट नहीं चाहता था।
रूसी सम्राज्य के अफ़ग़ानिस्तान में हित
रूसी सम्राज्य के भी अफ़ग़ानिस्तान में अपने हित थे। दरअसल रूस के पास प्राकृतिक संसाधन बहुत हैं, लेकिन विश्व व्यापर तक पहुंचने के लिए समुद्र तक पहुँच होना बेहद ही ज़रूरी है। ऐसे में रूस एशिया में अपना प्रभाव जमाने के साथ अरब और हिन्द महासगार तक भी अपनी पहुंच सुनिश्चित करना चाहता था। साथ ही रूस यूरोप में जारी वर्चस्व की लड़ाई में शामिल नहीं थी क्यूंकि वहां पर वर्चस्व की लड़ाई ब्रिटेन बनाम फ़्रांस और ब्रिटेन बनाम जर्मनी जैसे देश थे ऐसे में रूस एशिया में अपना प्रभुत्व क़ायम करना चाहता था।
ब्रिटेन की 'फॉरवर्ड पॉलिसी'
फॉरवर्ड पॉलिसी का पहला प्रचारक लॉर्ड ऑकलैंड था। फॉरवर्ड पॉलिसी के तहत 1839 - 1842 के दौरान लॉर्ड ऑकलैंड ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया जिसे अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटेन के बीच पहले युद्ध रूप में देखा जाता है। इस युद्ध को फर्स्ट एंग्लो अफ़ग़ान वॉर भी कहा जाता है। 1878 - 80 के दौर में लार्ड लिटन ने अफ़ग़ानिस्तान पर एक बार फिर से हमला किया जिसे सेकंड एंग्लो अफ़ग़ान वॉर कहते थे। हालाँकि इन दोनों ही युद्धों में ब्रिटेन को अफ़ग़ानिस्तान से कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
ब्रिटेन की 'मस्टरली इनैक्टिविटी पॉलिसी'
'मस्टरली इनैक्टिविटी पॉलिसी' जॉन लॉरेंस के दौर में 1860 के दशक में ब्रिटेन द्वारा अपनाई गई थी। इस नीति के तहत ब्रिटेन इस बात पर राज़ी हुआ था कि उसकी सेनाएं तब तक निष्क्रिय रहेंगी जब तक रूस अपनी सीमाओं में निष्क्रिय है। ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान में भी डिवाइड और रूल पालिसी के तहत कबीलाओं को आपस में संघर्ष के लिए छोड़ दिया। ब्रिटेन का इसके पीछे मक़सद ये था कि इन कबीलों में जो सबसे ताक़तवर होगा उसे गोला बारूद मुहैया करा कर गद्दी पर बैठाया जाए और उसके साथ संधि कर ली जाए। इस नीति ने ब्रिटेन स्थिति को मज़बूत किया।
डूरंड लाइन
पश्तून आमू दरिया (मध्य एशिया) से सिंध तक फैले हुए थे। ऐसे में पश्तून कहीं तक भी आगे बढ़ कर अराजकता फैला सकते थे। इस समस्या को देखते हुए सर डूरंड ने 1893 में अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच एक सीमा रेखा निश्चित करने का निर्णय लिया जिससे अफ़ग़ानिस्तान को एक अलग राज्य के रूप में पहचान मिल सके। डूरंड लाइन के तहत आधा पश्तून और आधा बलूचिस्तान का इलाका ब्रिटिश भारत में शामिल हो गया। तत्कालीन ब्रिटिश भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच मौजूद यह सीमा रेखा आज पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच मौजूद है जिसे 'डूरंड लाइन' के रूप में जाना जाता है। हालाँकि आज भी आए दिन पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच डूरंड लाइन के लेकर अविवाद होते रहते हैं।