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Blog / 27 Oct 2020

(इनफोकस - InFocus) क्या है वन चाइना पालिसी? (What is One China Policy?)

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(इनफोकस - InFocus) क्या है वन चाइना पालिसी? (What is One China Policy?)


सुर्खियों में क्यों?

पिछले कई सालों से ताइवान भारत के साथ एक ट्रेड डील को अंतिम रूप देने की कोशिश कर रहा था. लेकिन भारत की ओर से चीन की ‘वन चाइना पॉलिसी’ के मद्देनजर यह डील पूरा नहीं हो पा रहा था. हालांकि अब ऐसा पहली बार होगा कि भारत की ओर से भी इसको लेकर सकारात्मक संकेत मिलने शुरू हुए हैं। उधर चीन ने भारत द्वारा ताइवान के साथ अलग से किसी भी ट्रेड डील पर आपत्ति दर्ज कराई है. चीन का कहना है कि भारत को चीन के ‘वन चाइना पॉलिसी’ का ध्यान रखना चाहिए।

‘वन चाइना पॉलिसी’ क्या है?

पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना यानी PRC साल 1949 में अस्तित्व में आया था. इसे आम तौर पर चीन कहा जाता है. इसके अंतर्गत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र आते हैं. जबकि रिपब्लिक ऑफ़ चाइना यानी ROC का साल 1911 से 1949 के बीच चीन पर कब्ज़ा था, लेकिन अब उसके पास ताइवान और कुछ द्वीप समूह हैं. इसे आम तौर पर ताइवान कहा जाता है.

  • वन चाइना पॉलिसी का मतलब चीन की एक ऐसी नीति से है, जिसके मुताबिक़ 'चीन' नाम का सिर्फ एक ही राष्ट्र है और ताइवान कोई अलग देश नहीं, बल्कि चीन का ही एक प्रांत है.
  • इस नीति के तहत चीन का कहना है कि दुनिया के जो देश PRC के साथ कूटनीतिक रिश्ते चाहते हैं, उन्हें ROC यानी ताइवान से सारे आधिकारिक रिश्ते तोड़ने होंगे.
  • अमूमन कूटनीतिक जगत में यही माना जाता है कि चीन एक है और ताइवान उसका हिस्सा है.

कहां से आई यह ‘वन चाइना पॉलिसी’?

इस विवाद के कारण को समझने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा. दरअसल चीन में साल 1644 में चिंग वंश सत्ता में आया और उसने चीन का एकीकरण किया. मगर 1911 में चिन्हाय क्रांति हुई जिसमें चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा. इसके बाद चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी. जितने भी इलाके चिंग वंश के अधीन थे, वे अब कॉमिंगतांग सरकार को मिल गए. कॉमिंगतांग सरकार के दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया था.

  • इसके बाद साल 1949 से चीन और ताइवान के बीच विवाद की असली कहानी शुरू होती है. दरअसल माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर दिया और चीन में गृह युद्ध शुरू हो गया।
  • इस गृह युद्ध में कॉमिंगतांग पार्टी की हार हुई। कम्युनिस्टों से हार के बाद कॉमिंगतांग ने ताइवान में जाकर अपनी सरकार बनाई.
  • यहीं से दो राजनीतिक इकाइयां अस्तित्व में आ गईं और वे दोनों आधिकारिक चीन होने का दावा करने लगीं.

कौन हारा कौन जीता?

बीजिंग अपने दावे को मजबूती से आगे बढ़ाने में सक्षम रहा और उसे इसका काफ़ी फ़ायदा मिला. इसकी वजह से ताइवान कूटनीतिक रूप से कमज़ोर हो गया है। संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया के ज्यादातर देश ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देते हैं।

  • हालाँकि, ताइवान अपने पड़ोसियों के साथ काफी जीवंत आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए हुए है और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने भावनात्मक रिश्तों का लाभ उठाकर यह कई प्रकार के रियायतें भी हासिल करता है।
  • कुल मिलाकर यथास्थिति में चीन ज़्यादा ताक़तवर है और इस वजह से कूटनीतिक रिश्तों के लिहाज़ से ताइवान बैकफ़ुट पर है.

‘वन चाइना पॉलिसी’ पर क्या है भारत का रुख?

पिछले कुछ सालों में भारत की विदेश नीति पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि भारत चीन की ‘वन चाइना पॉलिसी’ का समर्थन करता है। कमोवेश यही सोच चीन के तमाम पड़ोसियों की भी है. हालांकि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में कई बार दिक्कतें भी आई मसलन विवादित सीमाओं पर चीन द्वारा भारत में घुसपैठ करना, चीन द्वारा पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को सह देना और भारतीय प्रधानमंत्री एवं दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा आदि।

  • अभी बीते कुछ दिनों से जिस तरह से भारत चीन के बीच सीमा विवाद बढ़ा है. ऐसे में, भारत का ताइवान कार्ड खेलना कोई अस्वाभाविक घटना नहीं कहीं जा सकती.
  • बहरहाल सामान्यतः भारत चीन को यही संकेत देता आया है कि यदि उसे एक ‘वन चाइना पॉलिसी’ पर भारत की मंजूरी चाहिये तो चीन को कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के ऊपर भारतीय संप्रभुता को स्वीकार करना होगा।