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Blog / 26 Sep 2019

(इनफोकस - InFocus) समान नागरिक संहिता - यूसीसी (Uniform Civil Code - UCC)

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(इनफोकस - InFocus) समान नागरिक संहिता - यूसीसी (Uniform Civil Code - UCC)


समान सिविल संहिता

  • चर्चा में क्यों?
  • UCC-यूसीसी क्या है?
  • यूसीसी और विवाद
  • अब तक क्यों नहीं लागू हो पाई है?

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में संपत्ति विवाद के मामले में SC ने UCC को लेकर निम्न टिप्पणियां की-
  1. UCC को लागू करने में सरकारी प्रयास अपर्याप्त।
  2. वर्ष 1956 में हिंदू कानूनों के संहिताबद्ध होने के बावजूद कोई गंभीर प्रयास नहीं।
  3. यह संविधान संस्थापकों की अपेक्षाओं की अनदेखी है।
  4. SC ने इस मामले में गोवा को एक बेहतरीन उदहारण माना।

समान सिविल संहिता क्या है?

  • UCC-यूसीसी पर्सनल लॉ के सम्बन्ध में धार्मिक भेद-भावों का अंत करता है।
  • सभी नागरिकों के लिए एक कानून की वकालत करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC-यूसीसी की चर्चा की गई है।
  • अनुच्छेद44 नीति-निर्देशक तत्व से संबंधित है।
  • इसका लक्ष्य भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू करना है।
  • वर्तमान में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग नियम हैं।
  • विवाह, संपत्ति और गोद लेने आदि में विभिन्न धर्म के लोग अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं।
  • मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का अपना-अपना पर्सनल लॉ है।
  • हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।

समान सिविल संहिता (यूसीसी) और विवाद

  • अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, धार्मिक रीति-रिवाज के संरक्षण का अधिकार देते हैं।
  • वे अपने धर्म के हिसाब से शिक्षण संस्थानों का संचालन कर सकते हैं।
  • अपने धर्म, रीति रिवाज और मान्यताओं का अनुसरण कर सकते हैं।
  • समान नागरिक संहिता को इन अधिकारों के लिए खतरे के तौर पर देखा जा रहा है।
  • भारत का एक बड़ा तबका समय-समय पर इस कानून की मांग करते रहा हैं।
  • इनका मानना है कि जब बहुसंख्यक वर्ग को शादी, गोद लेने, संपत्ति और उत्तराधिकारी से संबंधित कानून का पालन करना पड़ा तो इससे अन्य धर्मों के लोगों को क्यों बचाकर रखा गया है।

अब तक क्यों नहीं लागू हो पाई है?

  • सांस्कृतिक विविधता के कारण निजी मामलों में एक समान राय बनाना व्यावहारिक रूप से बेहद मुश्किल है।
  • देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही मजहब के लोगों के रीति रिवाज
  • कुछ विशेष वर्ग समान नागरिक संहिता को अपनी धार्मिक आजादी के लिए उचित नहीं मानते।
  • अत: एक बड़ी आबादी को नज़रंदाज़ कर कोई कानून अमल में नहीं लाया जा सकता है।
  • समान नागरिक संहिता को लागू करने का फैसला ले भी लिया जाता है तो इसे समग्र रूप देना कतई आसान नहीं होगा।
  • इसके लिये कोर्ट को निजी मामलों से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार करना होगा।
  • विवाह, तलाक, पुनर्विवाह आदि जैसे मसलों पर किसी मजहब की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना कानून बनाना आसान नहीं होगा।
  • शरिया कानून, 1937, Hindu Marriage Act, 1955, Christian Marriage Act, 1872, Parsi Marriage and Divorce Act, 1936 में सुधार की आवश्यकता है।

इसके अलावा कई राजनीतिक बाधाएं भी है-

  • मौजूदा वक्त में गोवा अकेला राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है।
  • वोट बैंक की राजनीति इस मुद्दे पर संजीदगी से पहल न होने की एक बड़ी वजह है।
  • एक दल समान नागरिक संहिता को अपना एजेंडा बताता रहा है।
  • दूसरी पार्टियाँ इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ सरकार की राजनीति बताती रही हैं।
  • गौरतलब है कि 1948 में हिन्दू कोड बिल संविधान सभा में लाया गया था।
  • तत्कालीन समय में हिंदू संस्कृति पर हमला बताते हुए इस बिल का जबरदस्त विरोध हुआ।
  • इस विरोध के कारण तत्कालीन कानून मंत्री भीमराव अंबेडकर को इस्तीफा देना पड़ा।
  • यही कारण है कि कोई भी राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर जोखिम नहीं लेना चाहता।

आगे की राह

  • समाज की प्रगति और सौहार्द हेतु उस समाज में विद्यमान सभी पक्षों के बीच समानता का भाव होना अत्यंत आवश्यक है।इसलिये अपेक्षा की जाती है कि बदलती परिस्थितियों के मद्देनज़र समाज की संरचना में परिवर्तन हो।
  • अभी देश में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए शादी, बच्चों को गोद लेना, संपत्ति या उत्तराधिकार आदि मामलों को लेकर अलग अलग नियम है। लिहाजा किसी धर्म में जिस बात को लेकर पाबंदी है, दूसरे संप्रदाय में उसी बात की खुली छूट है। इससे देश के बीच एकरूपता नहीं आ पा रही है।
  • आजादी के बाद से ही सभी धर्मों के लिए एक ऐसे कानून बनाए जाने की बात होती रही है जो सब पर एक समान लागू हो। हालांकि अभी तक सहमति नहीं बन सकी है। पूर्व में हिंदू कोड बिल और अब तत्काल तीन तलाक पर बना कानून इस दिशा में बड़े कदम माने जा रहे हैं।