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Blog / 13 Dec 2019

(इनफोकस - InFocus) स्पेस इंटरनेट (Space Internet)

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(इनफोकस - InFocus) स्पेस इंटरनेट (Space Internet)



चर्चा में क्यों हैं?

  • हाल ही में स्पेस एक्स नामक एजेंसी ने अंतरिक्ष में 60 उपग्रह भेजा है। इन उपग्रहों के जरिए स्पेस एक्स पूरी दुनिया में तेज गति वाली इंटरनेट सेवा मुहैया कराने का काम करेगी।
  • इनका नाम फाल्कन रॉकेट रखा गया है। इन फाल्कन रॉकेट की यह चौथी अंतरिक्ष यात्रा है।कॉम्पैक्ट फ्लैट पैनल वाले इन छोटे छोटे उपग्रहों का वजन महज 260 किलोग्राम है।

आवश्यकता क्यों

  • वर्तमान में, लगभग 4 बिलियन लोग विश्वसनीयइंटरनेट नेटवर्क तक पहुँच नहीं रखते हैं और ऐसा इसलिए है क्योंकि इंटरनेट पर वितरित करने के पारंपरिक तरीके फाइबर-ऑप्टिक केबल या वायरलेस नेटवर्क पृथ्वी पर हर जगह नहीं पहुंच पा रहे हैं।
  • कई दूरदराज के क्षेत्रों, या कठिन इलाके वाले स्थानोंइल टावर लगाना संभव नहीं है। ऐसे में अंतरिक्ष में उपग्रहों के संकेत इस बाधाको आसानी से पार कर सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • कुछ सैटेलाइट पहले से ही अंतरिक्ष में स्थापित कर दिये गये हैं। अगले चरण में पूरी दुनिया के लिए इन्हीं सैटेलाइटों के जरिए इंटरनेट सेवा को स्थापित करने की योजना पर इसके बाद काम प्रारंभ हो जाएगा।
  • इन उपग्रहों की एक खास बात यह भी है किइस पर आने वाले खर्च को कम करने के लिए भी स्पेस एक्स ने एक नया तरीका निकाला है।
  • अब कंपनी पुराने रॉकेट के कलपुर्जो का इस्तेमाल करके उनको अंतरिक्ष में भेज रही है।
  • दरअसल स्पेस एक्स ने अगले साल उत्तरी अमेरिका औरकनाडा में सेवा शुरू करने की योजना बनाई है। इसके बाद अब दुनिया भर में आबादी वाले इलाकों तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए इस तरह 24 बार उपग्रहों को अंतरिक्षमें भेजा जाएगा।

वर्तमान स्थिति

  • वर्तमान में इंटरनेट सेवा के लिए हम जमीन के नीचे बिछी अथवा समुद्र की गहराई में बिछाये गये मजबूत केबल के जरिए संपर्क स्थापित रखते हैं, अर्थात संचार महाद्वीप को दूसरे महाद्वीप से जोड़ने वालेकेबलों के माध्यम से होता है।
  • गौरतलब है कि हाल ही में प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागरमें इन केबलों के क्षतिग्रस्त होने की वजह से इंटरनेट सेवा बाधित भी हो चुकी है, उस दौरान खास तौर पर विकसित देशों की बैंकिंग सेवापर इसका जबर्दस्त प्रभाव पड़ा था।

अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट प्रणाली

  • अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट प्रणाली, वास्तव में, कई वर्षों से उपयोग में है- लेकिन केवल कुछ ही उपयोगकर्ताओं के लिए। इसके अलावा, अधिकांश मौजूदा सिस्टम भूस्थैतिक कक्षा में उपग्रहों का उपयोग करते हैं।
  • यह कक्षा भूमध्य रेखा से सीधे ऊपर, पृथ्वी की सतह से 35,786 किमी की ऊँचाई पर स्थित है। इस कक्षा में उपग्रह लगभग 11,000 किमी प्रतिघंटा की गति से चलते हैं, और पृथ्वी की एक परिक्रमा को उसी समय पूराकरते हैं जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक बार घूमती है।
  • कंपनी की प्रस्तावित योजना के तहत पृथ्वी से करीब 280 किलोमीटर की ऊंचाई पर इन सैटेलाइटों को स्थापित किया जाना है। इन्हें उस कक्षा में स्थापित रखने की तकनीकी अड़चनों को दूर करने का प्रयास कियाजा रहा है।
  • दुनिया भर में आबादी वाले इलाकों तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए इस तरह उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा, उसके बाद इन सभी की नेटवर्किंगहो जाएगी तब नेटवर्क की समस्या का समाधान हो जाएगा।

निचली कक्षा में चुनौतियाँ

  • पृथ्वी से करीब 280 किलोमीटर की ऊंचाई पर इन सैटेलाइटों को स्थापित किया जाना है किन्तु उसी कक्षा में कई अन्य सैटेलाइटों के पहले से होने की वजह से इनके चक्कर काटने के दौरान एक सैटेलाइट के दूसरे से टकरा जाने का खतरा भी है।
  • निचली कक्षा कम ऊंचाई के कारण, उपग्रह के संकेत अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र को कवर करते हैं। नतीजतन ग्रह के हर हिस्से तक संकेतों को पहुंचाने केलिए कई और उपग्रहों की आवश्यकता होगी।
  • इसके अतिरिक्त, इन कक्षाओं में उपग्रहों को गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भूस्थैतिक कक्षा में उपग्रहों की गति को दोगुना से अधिक 27,000) किमी प्रति घंटे की गति से यात्रा करना पड़ेगा।