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Blog / 23 Dec 2020

(इनफोकस - InFocus) माउंट एवरेस्ट की नई ऊंचाई (New Height of Mount Everest)

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(इनफोकस - InFocus) माउंट एवरेस्ट की नई ऊंचाई (New Height of Mount Everest)


सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, नेपाल और चीन ने संयुक्त रूप से घोषणा की कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई लगभग एक मीटर और बढ़ गई है।

  • इस घोषणा के मुताबिक़, दुनिया की सबसे ऊंची इस पर्वत चोटी की ऊंचाई अब 8,848.86 मीटर हो चुकी है।
  • ग़ौरतलब है कि माउंट एवरेस्ट की पुरानी मान्य ऊंचाई 8,848.00 मीटर ही है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

साल 2019 में चीन और नेपाल ने मिलकर विश्व के सबसे ऊँचे पर्वत को मापने के लिये एक समझौता ज्ञापन के अंतर्गत सहमति जाहिर की थी. इस ज्ञापन के मुताबिक दोनों देश माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई के संबंध में संयुक्त रूप से अपने निष्कर्षों की घोषणा करने वाले थे।

  • नेपाल और चीन की सर्वे टीम ने एवरेस्ट की ऊंचाई अलग-अलग नापी है, लेकिन इस संबंध में घोषणा संयुक्त रूप से किया गया है।
  • जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि दुनिया भर में माउंट एवरेस्ट की मान्य ऊंचाई 8,848.00 मीटर है, लेकिन इस मौजूदा घोषणा के पहले तक चीन इस मान्य ऊंचाई को नहीं मानता था. वह अभी तक माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई चार मीटर कम कर के ही आंकता था।
  • बता दें कि अभी तक जो मान्य ऊंचाई है, उसका निर्धारण ब्रितानी राज में भारतीय सर्वे विभाग की ओर से किया गया था।

माउंट एवरेस्ट के बारे में

माउंट एवरेस्ट चीन और नेपाल के बीच हिमालय में पृथ्वी का सबसे ऊंचा पर्वत है। इसकी वर्तमान आधिकारिक ऊंचाई 8,848 मी. है।

  • यह दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत, K2 से 200 मीटर अधिक ऊंचा है. K2 8,611 मीटर लंबा है और यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मौजूद है।
  • माउंट एवरेस्ट को अपना यह अंग्रेजी नाम सर जॉर्ज एवरेस्ट से मिला है, जो एक औपनिवेशिक युग के भूगोलवेत्ता थे. उन्होंने 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के सर्वेयर जनरल के रूप में कार्य किया था।
  • माउंट एवरेस्ट के कुछ स्थानीय नाम भी हैं मसलन नेपाल में इसे सागरमाथा और तिब्बत में चोमोलोंगमा कहते हैं।
  • यह पर्वत इन दोनों ही देशों में फैला हुआ है जबकि इसकी चोटी नेपाल की सीमा में मौजूद है।

इसकी ऊंचाई को फिर से मापने की जरूरत क्यों पड़ी?

हिमालय की उत्पत्ति पांच करोड़ वर्ष पूर्व कई भूकंपों की वजह से हुई है। हालाँकि बीते कुछ वक्त में तमाम टेक्टोनिक गतिविधियों के चलते इस पर्वत की ऊँचाई में परिवर्तन आने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

  • साल 2015 के एक भूकंप के दौरान नेपाल उत्तर-दक्षिण की ओर हिमालय के देशांतर पर एक मीटर तक खिसक गया. काठमांडू घाटी के उत्तर की पहाड़ियाँ एक मीटर तक उठ गईं।
  • इसके अलावा एक महत्वपूर्ण दुविधा यह भी था कि माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई को उसकी उच्चतम चट्टान बिंदु के आधार पर मापी जाए अथवा उच्चतम बर्फ बिंदु के आधार पर। बहरहाल इस बार की नाप में स्नो कैप को शामिल कर लिया गया है।
  • दरअसल एवरेस्ट की चोटी पर हर मौसम में कई मीटर की ऊंचाई वाले स्नो कैप में अंतर आ जाता है।
  • मानसून के दौरान होने वाली बर्फ़बारी की वजह से दो से तीन मीटर तक स्नो कैप बढ़ जाता है।
  • हालांकि जब पश्चिम से पूर्व की ओर हवा बहती है तो यह स्नोकैप इस हवा की वजह से अपने आप नष्ट हो जाता है।

कैसे मापा गया इसकी ऊंचाई को?

एवरेस्ट मापन की इस प्रक्रिया में कुछ सर्वेक्षक माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पुहँचें। उन्होंने एवरेस्ट की चोटी पर दो घंटे तक जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम की मदद से माप ली।

  • जीपीएस ट्रैकिंग का यह उपकरण नेपाल में अलग-अलग जगहों पर दूसरे आठ ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के साथ तालमेल मिलाते हुए काम करता है।
  • सैटेलाइट नेटवर्क के आधार पर जीपीएस एंटीना वास्तविक स्थिति की रिकॉर्डिंग करता है।
  • दरअसल जीपीएस की मदद से कोई पृथ्वी के केंद्र से एक सेंटीमीटर या उससे कम की अनिश्चितता से ऊंचाई को माप सकता है।
  • यह ऊंचाई समुद्र तल की तुलना में मापी जाती है। लेकिन एवरेस्ट के मामले में यह बहुत मुश्किल काम है। क्योंकि पृथ्वी पर अलग-अलग जगहों पर द्रव्यमान के अलग-अलग वितरण की वजह से व्यवहारिक रूप से समुद्र तल से ऊंचाई एक जैसी नहीं होता।