(इनफोकस - InFocus) सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization)
सुर्खियों में क्यों?
हाल ही में, भारत के हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के सात सिंधु घाटी स्थलों की खुदाई की गई। जहाँ बड़ी संख्या में हड्डियाँ तथा चीनी मिट्टी के बर्तनों में मवेशियों और भैंस के माँस सहित पशु उत्पादों के अवयव पाए गए हैं। इस प्रकार सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के मांसाहारी होने के साक्ष्य पुष्ट हुए हैं।
किस तरह का शोध है यह?
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान लोगों के खान-पान के तौर-तरीक़ों पर शोध किया है. यह शोध आर्कियोलॉजिकल साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में मूल रूप से उस क्षेत्र में उगाई गई फसलों पर फोकस किया गया है।
- समग्र रूप से इस शोध में फसलों के साथ मवेशियों और लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। वैज्ञानिक विधि से इन बर्तनों की पड़ताल बताती है कि प्राचीन भारत के लोग उनमें क्या खाते-पीते थे।
- इस शोध के लिए हरियाणा में सिंधु सभ्यता के स्थल राखीगढ़ी को चुना गया। आलमगीरपुर, मसूदपुर, लोहारी राघो और कुछ अन्य जगहों से मिले मिट्टी के बर्तनों को भी एकत्र किया गया।
शोध के नतीजे क्या कहते हैं?
सिंधु घाटी सभ्यता में जौ, गेहूं, चावल के साथ-साथ अंगूर, खीरा, बैंगन, हल्दी, सरसों, जूट, कपास और तिल की भी पैदावार होती थी।
- पशुपालन में गाय और भैंस मुख्य मवेशी थे। इलाक़े में मिले हड्डियों के 50-60 प्रतिशत अवशेष गाय-भैंस के हैं, जबकि लगभग 10 प्रतिशत हड्डियाँ बकरियों की हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि लोगों का पसंदीदा खाना माँस बीफ़ और मटन रहा होगा।
- गाय को दूध के लिए जबकि बैल को खेती के लिए पाला जाता था। हालांकि खुदाई में सूअर की हड्डियाँ भी मिली हैं, लेकिन सूअर किस काम आते रहे होंगे, ये अभी स्पष्ट नहीं किया जा सका है। कुछ अवेशष हिरण और पक्षियों के भी मिले हैं।
- शोध से पता चला है कि जुगाली करने वाले दूध से बने उत्पाद, जुगाली करने वाले पशुओं के माँस और वनस्पतियां इन बर्तनों में पकाई जाती थीं।
- सिंधु घाटी के शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में इस बारे में कोई अंतर नहीं था। बर्तनों का प्रयोग कुछ अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी किया जाता था।
- तब उस इलाक़े में जुगाली करने वाले कई पशु थे और इन बर्तनों में दुग्ध उत्पादों का सीधा इस्तेमाल तुलनात्मक रूप से कम होता था।
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में
भारतीय इतिहास की शुरूआत सिंधु घाटी सभ्यता से मानी जाती है। यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व भारत, पाकिस्तान तथा अफग़ानिस्तान के क्षेत्रो में फैली थी।
- यह पश्चिम में पाकिस्तान के सुत्कांगेदोर से पूरब में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर तक फैली हुई थी। जबकि इसका उत्तर-दक्षिण विस्तार चिनाब नदी के किनारे मांडा से लेकर दक्षिण में भगतराव तक था। कुछ इतिहासकार सबसे दक्षिणी क्षेत्र के रूप मे दैमाबाद को मानते हैं।
- इस सभ्यता की खोज साल 1921 में जॉन मार्शल के नेतृत्व में दयाराम साहनी और माधवस्वरूप वत्स ने की थी। इसकी अवधि ईसापूर्व 2600 से ईसापूर्व 1900 के बीच मानी जाती है।
- इस सभ्यता के लगभग 1100 केन्द्रों में से 924 केन्द्र भारत में मौजूद हैं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धौलावीरा, लोथल, राखीगढ़ी, रोपड, कालीबंगा, सुरकोटदा, बनवाली, आलमगीरपुर, चनहुदड़ो और कोट दीजी आदि इसके प्रमुख स्थलों में शामिल हैं।
- ईसापूर्व 2100 के बाद सिंधु सभ्यता के पश्चिमी भाग धीरे-धीरे खाली होते गए और पूर्वी भाग विकसित हुए। इस दौर में सिंधु सभ्यता में शहर कम गाँव अधिक थे। इसकी कई वजहें बताई जाती हैं जिनमें ख़राब मॉनसून को सबसे बड़ा कारण बताया जाता है। ईसापूर्व 2150 के बाद कई सदियों तक यही हालात रहे।
सिंधु घाटी सभ्यता की वर्तमान सभ्यता को देन
सिंधु सभ्यता की नगर नियोजन तथा जलनिकासी की व्यवस्था बेहतरीन हुआ करती थी। उस वक्त की सड़कें आयताकार ग्रिड पैटर्न पर थी और एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। इसी प्रकार की नगर नियोजन आज के महानगरों में पाया जाता है। इतना ही नहीं, सिंधु सभ्यता में जलनिकासी व्यवस्था आज के नगरों से बेहतर थी।
- धार्मिक विषयों की बात करें तो पशुपति की पूजा, लिंग पूजा, मातृदेवी की पूजा, जल की पवित्रता का विश्वास सिंधु सभ्यता की देन है। जो आज भी भारतीय संस्कृति का भाग है।
- मूर्तिकला और वास्तुशास्त्र में यह सभ्यता आज की सभ्यता की अग्रज रही है। विशाल स्नानागार, अनाज रखने का कोठार इसके महत्वपूर्ण स्मारक हैं। यहाँ पक्की ईंटो का प्रयोग होता था।
- यह सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया, चीन की प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी, और इसके तत्व आज भी भारतीय संस्कृति में विद्यमान हैं।