Home > InFocus

Blog / 12 Oct 2020

(इनफोकस - InFocus) नार्को व पॉलीग्राफ़ टेस्ट कैसे होता है? (How are Narco and Polygraph Test Done?)

image


(इनफोकस - InFocus) नार्को व पॉलीग्राफ़ टेस्ट कैसे होता है? (How are Narco and Polygraph Test Done?)


सुर्खियों में क्यों?

हाथरस कांड में चौतरफा दबाव झेल रही उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में वादी- प्रतिवादी और पुलिस प्रशासन का नार्को व पॉलीग्राफ़ टेस्ट कराए जाने का आदेश दिया है. आमतौर पर अपराधियों का नार्को और पॉलीग्राफ़ टेस्ट तो होता है लेकिन यूपी में यह पहला मौका जब पुलिस और प्रशासन के लोगों का भी नार्को व पॉलीग्राफ़ टेस्ट होगा.

क्या होता है नारकोटेस्ट?

19वीं सदी में, इटली के एक क्रिमिनोलॉजिस्ट सीज़ार लोम्बोर्सो ने पूछताछ के दौरान अपराधी के ब्लड प्रेशर में होने वाले बदलाव का पता लगाने के लिए एक मशीन बनाई थी. उसके बाद, साल 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मार्स्ट्रन ने एक ऐसी ही लेकिन इससे थोड़ी एडवांस मशीन बनाई. इस तरह, धीरे-धीरे इस तकनीक में सुधार होता गया और इस तरह के परीक्षणों का चलन बढ़ता चला गया. साल 1921 में कैलिफ़ोर्निया के एक पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन ने भी इसी तरह की एक मशीन बनाई थी.

  • इस टेस्ट का इस्तेमाल मूलतः अपराधियों से सच उगलवाने के लिए किया जाता है यानी यह झूठ पकड़ने वाली एक तकनीक है।
  • इसमें जिस व्यक्ति का टेस्ट किया जाता है उसे कुछ दवाइयाँ या इंजेक्शन दी जाती हैं। सामान्यतः ट्रूथ ड्रग नाम की एक साइकोऐक्टिव दवा या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन दिया जाता है। इस दवा को ट्रुथ सीरम भी कहा जाता है.
  • इसकी वजह से वह आदमी अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है. अर्धबेहोशी का मतलब, ना ही वह व्यक्ति पूरी तरह होश में होता है और ना ही पूरी तरह बेहोश। इस स्थिति में उस व्यक्ति का दिमाग़ झूठ नहीं गढ़ पाता है और वह सवालों का सही-सही जवाब देता है।

कैसे किया जाता है यह टेस्ट?

नार्को टेस्ट से पहले व्यक्ति का शारीरिक परीक्षण किया जाता है. इसमें विशेषज्ञों द्वारा उसकी उम्र, स्वास्थ्य और जेंडर की पूरी तरह जांच की जाती है.

  • अगर विशेषज्ञों को लगता है कि उस व्यक्ति का स्वास्थ्य पूरी तरह सही नहीं है तो उसका टेस्ट नहीं किया जाता है. क्योंकि अगर उस अस्वस्थ व्यक्ति को सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन दिया गया तो इसका उसके शरीर या दिमाग पर काफी बुरा असर हो सकता है. वह व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है.
  • यह टेस्ट जांच अधिकारियों, डॉक्टर, फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स और मनोवैज्ञानिकों की मौजूदगी में किया जाता है.

क्या होता है पॉलीग्राफ़ टेस्ट?

विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसके शरीर के अंदर कई तरह के बदलाव होते हैं. जैसे कि सांसो की गति, हृदय गति, ब्लड प्रेशर और पसीने आदि में बदलाव. इन्हीं बदलावों से पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति सच बोल रहा है कि नहीं.

  • पॉलिग्राफ टेस्ट में दवा की जगह व्यक्ति के शरीर में तमाम तरह की मशीनें लगाकर सच्चाई पता करने की कोशिश की जाती है.
  • मिसाल के तौर पर आरोपी के दिल की धड़कन नापने के लिए कार्डियो कफ और इलेक्ट्रोड्स लगाया जाता है.
  • इस तरह उस व्यक्ति की सांस, हृदय गति, पसीने और ब्लड प्रेशर को भी नापने के लिए कई तरह की मशीनें लगाई जाती हैं.
  • टेस्ट के शुरूआत में कुछ साधारण सवाल किए जाते हैं मसलन पूरा नाम, पता, माता-पिता का नाम, उम्र और कुछ सामान्य जानकारी. इसके बाद अपराध से जुड़े सवाल किए जाते हैं.
  • अगर मशीनों से जुड़े ग्राफ में इन सवालों की वजह से कोई बदलाव आता है तो इसका यह मतलब हुआ कि वह व्यक्ति सच नहीं बोल रहा है.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?

साल 2010 में, सेल्वी एंड अदर्स बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस व्यक्ति का पॉलिग्राफ या नार्को टेस्ट किया जाना है, उसकी सहमति जरूरी है. इसके अलावा, नार्को टेस्ट के लिए कोर्ट की अनुमति लेना भी अनिवार्य है.

  • कोर्ट के मुताबिक, किसी व्यक्ति को इस तरह के टेस्ट के लिए मजबूर करना उसकी ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ का उल्लंघन है.
  • संविधान के अनुच्छेद-20(3) के तहत किसी भी व्यक्ति को अपने ही खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
  • अदालत ने आगे कहा था कि इस मामले में साल 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश फॉलो किए जाने चाहिए।

क्या यह टेस्ट सौ फ़ीसदी सही होते हैं?

मंजूरी मिलने के बाद से ही ऐसे टेस्ट विवादों में रहे हैं, क्योंकि नार्को और पॉलिग्राफ टेस्ट से प्राप्त नतीजे हमेशा सही नहीं होते हैं.

  • कुछ अपराधी इतने शातिर होते हैं कि वे झूठ बोलकर भी इस तरह के टेस्ट की पकड़ में नहीं आते हैं.
  • शायद यही वजह है कि इन टेस्ट की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं.
  • अमेरिका और ब्रिटेन जैसे तमाम ऐसे बड़े देश है जहां पर अब इन टेस्ट पर बैन लग चुका है.
  • ग़ौरतलब है कि ऐसे टेस्ट के दौरान अगर आरोपी अपना ‘अपराध’स्वीकार कर भी ले तो भी अदालत इसे नहीं मानता है. क्योंकि अपराधी अपने पूरे होशो-हवास में इस तरह के बयान नहीं देता है.
  • उदाहरण के तौर पर, अगर किसी अपराधी ने स्वीकार कर लिया है कि उसने हत्या की है तो कोर्ट इसे साक्ष्य नहीं मानेगा. हां, अगर पूछताछ के दौरान पुलिस अपराधी से यह पूछती है कि उसने हत्या करने के बाद हथियार कहां छुपाए थे और पुलिस इस हथियार को ढूंढ कर लाती है तो वह हथियार साक्ष्य माना जाएगा.