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Blog / 05 Oct 2020

(इनफोकस - InFocus) विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन 2020 (Foreign Contribution (Regulation) Amendment 2020)

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(इनफोकस - InFocus) विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन 2020 (Foreign Contribution (Regulation) Amendment 2020)


सुर्ख़ियों में क्यों?

संसद ने फ़ॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट 2020 यानी FCRA बिल पर अपनी मुहर लगा दी है. नए बिल में अब ग़ैर-सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ के प्रशासनिक कार्यों में 50 फ़ीसदी विदेशी फ़ंड की जगह बस 20 फ़ीसदी फ़ंड ही इस्तेमाल हो सकेगा. यानी इसमें 30 फ़ीसदी की कटौती कर दी गई है. आपको बता दें कि मौजूदा वक्त में देश में एफसीआरए के तहत करीब 22,400 एनजीओ रजिस्टर्ड हैं.

एफसीआरए क्या है?

साल 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा विदेशी फ़ंडिंग की निगरानी के लिए FCRA क़ानून बनाया गया था. साल 2011 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा इसमें संशोधन किया गया. यह कानून व्यक्तियों, संघों और कंपनियों के लिए विदेशी योगदान की प्राप्ति और उपयोगिता को नियंत्रित करता है। विदेशी योगदान का मतलब किसी विदेशी निकाय द्वारा मुद्रा, सुरक्षा या लेख का दान या हस्तांतरण है। गैर सरकारी संगठनों में बढ़ता हुआ विदेशी योगदान देश की नीतियों को प्रभावित करता है। कभी-कभी विदेशी योगदान से संचालित संस्थाएं विदेशी राष्ट्रों के इशारे पर भारत में नीतियों को प्रभावित करती हैं। ऐसी स्थिति में, विदेशी वित्तीय योगदान को विनियमित करना जरूरी हो जाता है। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं कि सारी संस्थाएं ही ऐसा करती हों.

इस बार क्या बदलाव किया गया है इस बिल में?

नए बिल में अब ग़ैर-सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ के प्रशासनिक कार्यों में 50 फ़ीसदी विदेशी फ़ंड की जगह बस 20 फ़ीसदी फ़ंड ही इस्तेमाल हो सकेगा.

  • अब एक एनजीओ मिलने वाले ग्रांट को अन्य एनजीओ से शेयर भी नहीं कर सकेगी और एनजीओ को मिलने वाले विदेशी फ़ंड स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली की ब्रांच में ही रिसीव किए जाएंगे. हालांकि, दूरदराज के इलाकों में काम करने वाले एनजीओ के लिए स्थानीय बैंक में खाता खोलने की अनुमति दी गई है.
  • साथ ही, सरकार किसी एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस को तीन साल के लिए निलंबित करने के अलावा उसे निरस्त भी कर सकती है.
  • संशोधन विधेयक में कहा गया है कि विदेशी नागरिक होने पर पासपोर्ट की एक प्रति या ओसीआई कार्ड की प्रति देना जरूरी होगा. कोई भी सरकारी विभाग या अधिकारी विदेशी चंदा नहीं ले सकेगा.

क्यों आलोचना हो रही है इस बिल की?

सरकार के मुताबिक, विदेशी फ़ंड के दुरुपयोग को रोकने के लिए ये बिल लाया गया है लेकिन ऐसा कोई भी सबूत या डेटा नहीं दिखाया गया है जिससे यह साबित हो कि कितनी संस्थाओं ने विदेशी फंड का इस्तेमाल गलत कामों के लिए किया है.

  • सबग्रांट यानी बड़ी एनजीओ जो छोटी एनजीओ को ग्रांट बाँट दिया करती थीं वह रोक दिया गया है. ऐसे में, जो मिलकर समन्वय के साथ काम करने की धारणा थी वो अब ख़त्म हो जाएंगी.
  • ऐसी संस्थाओं के उच्च पदों पर बैठे लोगों के आधार नंबर अनिवार्य कर दिए गए हैं. यह सबसे पहले तो सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन है जिसमें कहा गया है कि आधार अनिवार्य नहीं किया जा सकता.
  • इसके अलावा, आधार की अनिवार्यता के चलते इन संस्थाओं के प्रमुख बनने और बोर्ड को ज्वाइन करने से लोग कतराएंगे क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जानकारियाँ सार्वजनिक नहीं करना चाहता.
  • सरकार का ये नया क़ानून ऐसे समय में आया है जब एनजीओ को सबसे ज़्यादा आर्थिक मदद की ज़रूरत है. आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. ऐसे में, एनजीओ की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है.

सरकार का क्या कहना है?

इस बिल को लेकर सरकार का कहना है कि विदेशों से मिलने वाले फ़ंड को रेगुलेट करना जरूरी था. दरअसल, ढेर सारी एनजीओ ऐसी हैं जिनमें ज़्यादातर फंडिंग विदेशों से होती है. ऐसे में, इन पर लगाम लगाना आवश्यक है ताकि ये फ़ंड किसी भी सूरत में देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल ना हों. इसके लिए सरकार विदेशी चंदा लेने पर पाबंदी, विदेशी चंदे के ट्रांसफर और एफसीआरए एकाउंट खोलने को लेकर स्पष्ट नियम और आधार नंबर देने अनिवार्यता की व्यवस्था लागू करना चाहती है.